फारुख शेख : जीवन और अभिनय में रही नफासत

-अजय ब्रह्मात्‍मज 
                उनसे मिलने के बाद आप उनके प्रशंसक हुए बिना नहीं रह सकते थे। शालीन, शिष्ट, अदब, इज्जत और नफासत से भरा उनका बात-व्यवहार हिंदी फिल्मों के आम कलाकारों से उन्हें अलग करता था। उन्हें कभी ओछी, हल्की और निंदनीय बातें करते किसी ने नहीं सुना। विनोदप्रिय, मिलनसार और शेर-ओ-शायरी के शौकीन फारुख शेख ने अपनी संवाद अदायगी का लहजा कभी नहीं छोड़ा। पहली फिल्म 'गर्म हवा' के सिकंदर से लेकर 'क्लब 60' तारीक तक के उनके किरदारों को पलट कर देखें तो एक सहज निरंतरता नजर आती है।
               वकील पिता मुस्तफा शेख उन्हें वकील ही बनाना चाहते थे, लेकिन कॉलेज के दिनों में उनकी रुचि थिएटर में बढ़ी। वे मुंबई में सक्रिय इप्टा [इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन] के संपर्क में आए और रंगमंच में सक्रिय हो गए। उनकी इस सक्रियता ने ही निर्देशक एमएस सथ्यू को प्रभावित किया। इप्टा के सहयोग से सीमित बजट में बन रही 'गर्म हवा' में उन्हें सलीम मिर्जा के प्रगतिशील बेटे सिकंदर की भूमिका सौंपी गई। पिछले दिनों एमएस सथ्यू ने 'गर्म हवा' के कलाकारों के स्वाभाविक अभिनय पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि बलराज साहनी के असर से सभी कलाकारों ने अपने किरदारों के प्रति रियलिस्ट अप्रोच रखा। 'गर्म हवा' फारूख शेख की पहली फिल्म थी। उनके कई सीन बलराज साहनी के साथ थे। कहा जा सकता है कि बलराज साहनी की संगत उनकी शैली में चस्पां हो गई। नैचुरल एक्टिंग ही उनका मिजाज बन गया। हालांकि उन्हें इस तथ्य का मलाल रहा कि वे कमर्शियल एक्टर नहीं बन सके। वे राजेश खन्ना की लोकप्रियता का उल्लेख करते रहे, लेकिन उन्होंने इसे दंश नहीं बनने दिया। वे हिंदी फिल्मों के पैरेलल सिनेमा के योग्य और समर्थ अभिनेता के रूप में उभरे। रोचक तथ्य है कि 'गर्म हवा' के अभिनय के लिए उन्हें पारिश्रमिक के तौर पर सिर्फ 750 रुपए मिले थे और वह भी पंद्रह सालों के बाद।
              मशहूर निर्देशक सत्यजित राय को 'गर्म हवा' पसंद आई थी। उन्होंने अपनी हिंदी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में अकील की भूमिका के लिए फारूख शेख को चुना। फिर मुजफ्फर अली की 'गमन' में वे गुलाम हसन के रूप में नजर आए। आजीविका की तलाश में देश में अंदरुनी विस्थापन झेल रहे बिहार-यूपी के बेरोजगार युवकों के दर्द को यह फिल्म बखूबी व्यक्त करती है। 'गमन' फिल्म का गीत 'सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है' मुंबई शहर की हकीकत की चिरकालिक प्रासंगिक अभिव्यक्ति है। हिंदी फिल्मों के आम दर्शकों को वे 'चश्मेबद्दूर' के सिद्धार्थ पाराशर के रूप में पहचान में आए। सई परांजपे की इस फिल्म में उन्होंने दिल्ली के मध्यवर्गीय युवक की झेंप, शर्म और ईमानदारी को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया था। 'चश्मेबद्दूर' के पहले उन्हें यशराज फिल्म्स की 'नूरी' मिल चुकी थी। पूनम ढिल्लो के साथ दर्शकों ने उन्हें पसंद भी किया था। मनमोहन कृष्ण के निर्देशन में बनी इस फिल्म की लोकप्रियता की वजह से उन्हें तत्काल 40 फिल्मों के ऑफर मिले थे, लेकिन फारूख शेख ने करिअर की आसान राह नहीं पकड़ी। 'नूरी' के दोहराव और ऊब से बचने के लिए उन्होंने एक भी फिल्म साइन नहीं की। सई परांजपे को इसलिए हां कहा कि 'चश्मेबद्दूर' नई शैली की आधुनिक फिल्म थी। सई परांजपे की ही 'कथा' में बासुदेव के रूप में फारूख शेख ने स्मार्ट और चालाक युवक की भूमिका को जीवंत कर दिया था।
फारूख शेख 'गर्म हवा', 'गमन', 'नूरी', 'चश्मेबद्दूर', 'बाजार', 'साथ-साथ', 'लोरी', 'उमराव जान', 'लाहौर' आदि फिल्मों के लिए याद किए जाएंगे। बीच में उन्होंने टीवी शो 'जीना इसी का नाम है' में मेजबान के रूप में अमिताभ बच्चन के समान ही भाषा और व्यवहार की शालीनता सिखायी। वे अपने मेहमानों को पूरे संदर्भ के साथ बाइज्जत पेश करते थे। उनकी बातचीत में आत्मीयता बहती थी। चुटकी लेते समय भी उनकी विनोदप्रियता के कारण माहौल खुशगवार रहता था। एक गैप के बाद 2010 के बाद वे फिर से फिल्मों में एक्टिव हुए थे। इसी दौर में 'लाहौर' के सशक्त अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
              इस साल उनकी तीन फिल्में आई। 'लिसन अमाया' में वे 25 सालों के बाद दीप्ति नवल के साथ दिखे। घोर कमर्शियल फिल्म 'ये जवानी है दीवानी' में रणबीर कपूर के पिता के रूप में उनकी मौजूदगी फिल्म का एक मजबूत पहलू था। उनकी आखिरी रिलीज फिल्म 'क्लब 60' रही। इस फिल्म में उन्होंने मुंबई में एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्ग के अकेलेपन को उन्होंने संवेदनशील तरीके से पेश किया था।
                           फिल्मों की सक्रियता के बावजूद वे रंगमंच से जुड़े रहे। फिरोज अब्बास खान के निर्देशन में 'तुम्हारी अमृता' में शबाना आजमी के साथ वे मंच को रोशन कर देते थे। दोस्तों और फैमिली के लिए समर्पित फारूख शेख की छवि संयमित और शिष्ट अभिनेता की रही। सहयोगी कलाकार उनकी नफासत और मजाकिया स्वभाव के किस्से सुनाते हैं। दुबई में कल रात दिल का दौरा पड़ने से 65 की उम्र में उनका निधन हो गया। वे अपने परिवार के साथ वहां गए थे।

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