हर चैनल पर जारी हैं गेम शोज



-अजय ब्रह्मात्मज
    हिंदी चैनलों पर चल रहे गेम शो की लोकप्रियता में कमी नहीं आ रही है। चैनलों में होड़ लगी है। कोशिश है कि उनके चैनल से प्रसारित गेम शो को अधिकाधिक दर्शकता मिले। टैम रेटिंग के हिसाब से ‘झलक दिखला जा’ ने ‘केबीसी’ को पीछे छोड़ दिया है। तीसरे स्थान पर ‘बिग बॉस 7’  है। इन तीनों टॉप शो में एक चीज सामान्य है कि तीनों के मेजबान हिंदी फिल्मों के पॉपुलर स्टार हैं। तीनों गेम शो में बाकी फिल्म स्टारों की भी भागीदारी बनी रहती है। मूल रूप से रोचक और इंटरैक्टिव होने की वजह से इन शोज में दर्शकों की भी रुचि ज्यादा रहती है।
    सैटेलाइट चैनलों के आने के बाद गेम शोज की मांग और दर्शकता बढ़ी। उसके पहले दूरदर्शन पर सिद्धार्थ बसु के ‘क्विज शो’ के बारे में ही दर्शक जानते थे। जीटीवी ने विदेशी गेम शो के अधिकार लेकर भारत में गेम शो का निर्माण किया। इस दौर में जीटीवी के केवल ‘सारेगामा’ और ‘अंताक्षरी’  मौलिक और भारतीय गेम शो थे। बाद में ये विभिन्न स्वरूपों और अवतारों में दूसरे चैनलों पर आए। अभी किसी भी जनरल एंटरटेनमेंट चैनल पर जाएं तो दिन भर में दो-चार घंटे के गेम शो मिल ही जाते हैं। ‘कलर्स’ और ‘लाइफ ओके’ गेम शोज के प्रसारण में सबसे आगे हैं। स्टार प्लस, सोनी और जीटीवी उनके पीछे चल रहे हैं।
    इन दिनों मुख्य रूप से तीन कोटि के गेम शोज चल रहे हैं। क्विज शो, टैलेंट शो और रियलिटी शो। हालांकि इनके स्वरूप और प्रस्तुति में थोड़ी भिन्नता रहती है, लेकिन सभी गेम शोज का उद्देश्य फैमिली आडिएंस को आकृष्ट करना होता है। फैमिली में अगर बच्चे और युवा दर्शकों के कोई गेम शो पसंद आ जाएं तो उसकी लोकप्रियता टिकी रहती है। कुछ गेम शोज ने तो अपने वफादार दर्शक बना लिए हैं। ऐसे दर्शक अपने प्रिय शोज के नए सीजन के आते ही लौट आते हैं। बीच में भले ही वे फिल्में या सीरियल देखते रहें। चैनलों की कोशिश रहती है कि उनके गेम शोज के फार्मेट में नवीनता और बदलाव के बावजूद मूल संरचना में अधिक फर्क नहीं आए। ऐसे शोज के होस्ट के साथ भी दर्शको का आत्मीय रिश्ता बन जाता है। अमिताभ बच्चन उदाहरण हैं। सभी जानते हैं कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में शाहरुख खान की मेजबानी दर्शकों को पसंद नहीं आई थी।
    स्टार प्लस ने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की मेजबानी की जिम्मेदारी अमिताभ बच्चन को देकर बड़ा जोखिम लिया था। यह अवसर स्वयं अमिताभ बच्चन के लिए ंभी बड़ा दांव था। जोखिम और दांव में दोनों को सफलता मिली। सैटेलाइट चैनल पर दर्शकों के मनोरंजन की एक नई राह खुली। हर चैनल गेम शोज की तैयारी में लग गया। आज उसके फायदे भी दिख रहे हैंं। फिल्म स्टारों को भी अपनी इमेज और लोकप्रियता बनाए रखने का जरिया मिल गया है। रेगुलर आमदनी हो रही है सो अलग। भारतीय समाज में सिनेमा से अधिक पॉपुलर कोई भी मनोरंजन माध्यम नहीं है, इसलिए बतौर मेजबान फिल्म स्टारों को लेते ही शोज के प्रति दर्शकों की उत्सुकता बढ़ जाती है। अगर चैनल ने गेम शोज के प्रचार, प्रसार और कंटेंट में कोताही नहीं की तो दर्शक मिल ही जाते हैं। समस्या तो शोज की लोकप्रियता बरकरार रखने में होती है।
    लोकप्रियता चढऩे और गिरने का मामला त्रिआयामी है। इसमें पहला आयाम तो मेजबान ही है। मेजबान की शिष्टता, भाषा और व्यवहार से बहुत फर्क पड़ता है। अगर किसी मेजबान ने कभी बदतमीजी की या आशिष्टता दिखाई तो दर्शकता पर सीधे असर पड़ता है। दूसरा आयाम प्रतिभागियों का चुनाव और उनकी क्षमता एवं भागीदारी का है। कई बार देखा गया है कि कमजोर प्रतिभागियों की वजह से आरंभिक उत्सुकता पांच-दस एपीसोड के बाद छीजने लगती है। तीसरा आयाम गेम शोज की पारदर्शिता है। अगर दर्शकों को लगा कि मेजबान या शोज के निर्माता विजेताओं के चुनाव में घपलेबाजी कर रहे हैं तो वे बिदक जाते हैं। मूलभूत ईमानदारी पारदर्शिता की उम्मीद हमेशा बनी रहती है।
    गेम शो टीवी चैनलों के लिए सुनिश्चित लाभ का जरिया बन चुके हैं। हालांकि गेम शोज की लागत सामान्य शोज और सीरियल से अधिक होती है, लेकिन रिटर्न भी तो अधिक होता है। चैनल की साख और लोकप्रियता बढ़ाने में गेम शोज सहायक होते हैं। देखा गया है कि गेम शोज के मार्फत चैनलों अपनी ब्रांडिंग मजबूत करने में सफल रहे हैं। गेम शोज के लक्षित दर्शकों के मद्देनजर अच्छे स्पांसर मिलते हैं और ऐड की कमी नहीं रहती है।
    दिक्कत सिर्फ इतनी है कि अभी तक सारे भारतीय चैनल विदेशों के लोकप्रिय गेम शोज के भारतीय संस्करण प्रस्तुत करने में ही सारी एनर्जी और पूंजी खर्च कर देते हैं। संकेंद्रित रूप से भारतीय शो विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया गया। फिर भी उम्मीद है कि भविष्य में भारतीय मिजाज और परिवेश के गेम शोज बनेंगे। वे दर्शकों को पसंद भी आएंगे।
   




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