दरअसल : शहर और फिल्मों का रिश्ता
-अजय ब्रह्मात्मज
घूमने-फिरने के शौकीन जानते हैं कि ‘लोनली प्लैनेट’ अत्यंत विश्वसनीय और अनुभवसिद्ध जानकारियां देता है। दुनिया में आप कहीं भी जा रहे हों, अगर आपने ‘लोनली प्लैनेट’ का सहारा लिया है तो यकीन करें कि बजट होटल, बजट रेस्तरां और बजट सफर कर सकते हैं। ‘लोनली प्लैनेट’ की जानकारियां अद्यतन और परखी हुई होती हैं। उनकी नयी किताब ‘फिल्मी एस्केप्स’ का विषय बहुत रोचक है। जूही सकलानी ने इसे अपने शोध के आधार पर लिखा है।
‘फिल्मी एस्केप्स’ में देश के बीस शहरों और राज्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। कश्मीर, गुजरात, केरल, गोवा, लद्दाख जैसे राज्यों के अलावा दिल्ली, आगरा, लखनऊ, वाराणसी, शिमला, कसौली, नैनीताल, अमृतसर, उदयपुर, जैसलमेर, मुंबई, कोलकाता, दार्जीलिंग और ऊटी के बारे में जूही सकलानी ने लिखा है। उन्होंने हर शहर और राज्य में हुई उल्लेखनीय फिल्मों की शूटिंग का हवाला दिया है। साथ ही में उस शहर के होटल और रेस्तरां की सूचना के साथ दर्शनीय स्थानों का विवरण प्रस्तुत किया है। संक्षेप में यह पुस्तक वर्णित शहरों और राज्यों के संबंध में रोचक सूचनाएं देती है। चूंकि उन शहरों और राज्यों के लोकेशन पर शूट हुई फिल्में हम सभी देख चुके होते हैं, इसलिए एक निजी रिश्ता सा बन जाता है।
हिंदी फिल्में अपने दर्शकों को मनोरंजन के साथ अनोखी जानकारियां देती रही है। दशकों से हिंदी फिल्मों के दृश्यों और गानों के बहाने दर्शक देश-विदेश के मनोरम स्थानों का नजारा लेते रहे हैं। एक दौर था, जब देश के अधिकांश दर्शकों ने फिल्मों के जरिए ही विदेशों का आरंभिक यात्राएं कीं। यश चोपड़ा ने लंदन, न्यूयॉर्क और स्विट्जरलैंड को भारतीय पर्यटकों का लक्षित डेस्टीनेशन बना दिया। दूर क्यों जाएं? काश्मीर और गोवा की लोकप्रियता फिल्मों से ही बढ़ी। फिल्मों के रंगीन होने के बाद अचानक काश्मीर में फिल्मों की शूटिंग बढ़ गई। गानों, दृश्यों और बर्फीली वादियों के लिए काश्मीर प्रमुख लोकेशन बन गया। उसके बाद ही देश के नवविवाहित हनीमून के लिए काश्मीर के टिकट कटाने लगे। जो काश्मीर नहीं जा सकते थे, वे शिमला और मनाली से संतोष कर लेते थे। काश्मीर में हालात बिगड़े तो बाद में गोवा की प्लानिंग होने लगी।
फिल्मकारों ने कभी-कभी शहरों को फिल्मों के किरदार के तौर पर पेश किया है। इन फिल्मों से शहरों के मिजाज और मौसम की जानकारी मिल जाती है। यह भी पता चलता है कि वहां के लोगों के पहनावे और हाव-भाव कैसे होते हैं। हम अपने देहात, कस्बे और शहरों के सिनेमाघरों से सीधे उन शहरों की उड़ान भरते हैं और किरदारों के साथ सफर कर शहर देख आते हैं। फिल्मों से अधिकांश दर्शकों ने मुंबई, दिल्ली, कोलकाता के बारे में जाना और समझा। हिंदी फिल्मों के दर्शक चेन्नई के बारे में कम जानते हैं तो इसकी वजह यही है कि इस शहर का इस्तेमाल लोकेशन के तौर पर भी कम हुआ है।
पर्यटन और सिनेमा को जोड़ती ‘फिल्मी एस्केप्स’ रोचक और पठनीय है। जूही सकलानी ने इस पुस्तक में महेश भट्ट, दिबाकर बनर्जी, करण जौहर, मुजफ्फर अली, राईमा सेन, नरगिस फाखरी और संतोष शिवन के भी मिनी इंटरव्यू और लेख दिए हैं। ‘फिल्मी एस्केप्स’ बेहतरीन गाइड बुक है,जो शहरों और फिल्मों की तस्वीरों से सजी है। उन शहरों में शूट हुई फिल्मों से जुड़ी कुछ घटनाएं पुस्तक की रोचकता बढ़ा देती हैं। क्या आप जानते हैं कि शिमला के गेटी थिएटर के मंच पर के एल सहगल, पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, मदन पुरी, शशि कपूर और अनुपम खेर परफॉर्म कर चुके हैं।
वाराणसी की बात करें तो इस साल प्रदर्शित ‘रांझणा’ में इसके घाटों और गलियों को आनंद एल राय ने बहुत खूबसूरती के साथ दिखाया। डॉ ़ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की ‘मोहल्ला अस्सी’ में अस्सी घाट के मिजाज और बनारस के ठाठ को बखूबी उतारा गया है। ‘लागा चुनरी में दाग’ में तो रानी मुखर्जी ने अपने गीत में स्पष्ट कहा था, ‘सबकी रगों में खून बहे हैं, हमारी रगों में गंगा मैया’। अमिताभ बच्चन तो दावा कर ही चुके हैं कि वे गंगा किनारे के ऐसे छोरे हैं, जो बनारसी पान चबा कर बंद अक्ल के ताले खोल लेते हैं।
एक कमी खलती है कि शहरों के साथ जुड़ी फिल्मों की पूरी सूची नहीं दी गई है। अगर दिल्ली, कोलकाता, जयपुर आदि शहरों में शूट हुई फिल्मों की सूची भी दे दी जाती तो यह पुस्तक फिल्मप्रेमियों और शोधार्थियों के लिए और महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके अलावा हर शहर का नक्शा भी होना चाहिए था ताकि प्रारंभिक जानकारी इस पुस्तक से ही मिल जाए।
फिल्मी एस्केप्स - ट्रैवल विद द मूवीज
लेखक-जूही सकलानी
प्रकाशक- लोनली प्लैनेट
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