फिल्म समीक्षा : गोरी तेरे प्यार में
-अजय ब्रह्मात्मज
धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी पुनीत मल्होत्रा की फिल्म 'गोरी तेरे
प्यार में' पूरी तरह से भटकी, अधकचरी और साधारण फिल्म है। ऐसी सोच पर फिल्म
बनाने का दुस्साहस करण जौहर ही कर सकते थे। करण जौहर स्वयं क्रिएटिव और
सफल निर्देशक हैं। उन्होंने कुछ बेहतरीन फिल्मों का निर्माण भी किया है।
उनसे उम्मीद रहती है, लेकिन 'गोरी तेरे प्यार में' वे बुरी तरह से चूक गए
हैं।
जोनर के हिसाब से यह रोमांटिक कामेडी है। इमरान खान और करीना कपूर जैसे
कलाकारों की फिल्म के प्रति दर्शकों की सहज उत्सुकता बन जाती है। अफसोस है
कि इस फिल्म में दर्शकों की उत्सुकता भहराकर गिरेगी। दक्षिण भारत के
श्रीराम (इमरान खान) और उत्तर भारत की दीया (करीना कपूर) की इस प्रेमकहानी
में कुछ नए प्रसंग,परिवेश और घटनाएं हैं। उत्तर-दक्षिण का एंगल भी है।
ऐसा लगता है कि लेखक-निर्देशक को हीरो-हीरोइन के बीच व्यक्ति और समाज
का द्वंद्व का मसाला अच्छा लगा। उन्होंने हीरोइन की सामाजिक प्रतिबद्धता
को हीरो के प्रेम में अड़चन की तरह पेश किया है। हाल-फिलहाल तक हीरोइन का
साथ और हाथ हासिल करने के लिए हीरो उसके पिता की सहमति का सविनय प्रयास
करता था। इस फिल्म में हीरोइन के पिता की जगह सामाजिक कार्य और एनजीओ आ गया
है।
हीरो की पूरी कोशिश किसी तरह काम पूरा कर हीरोइन को साथ ले जाना भर है।
हीरोइन का सोशल एक्टिविज्म प्रेम के लिए हां करने के साथ ही काफुर हो जाता
है।
'गोरी तेरे प्यार में' जैसी फिल्म युवाओं की सामाजिकता में बढ़ती रुचि
को नष्ट करती हैं। सुधार,बदलाव और नेक कार्य को भी एक मजाक बना देती हैं।
वास्तव में यह कहीं न कहीं लेखक, निर्देशक और निर्माता की भ्रमित सोच का
नतीजा है। उन्हें अपने देश की समस्याओं और प्रवृत्तियों की सही जानकारी
नहीं है। ज्ञान के इस अभाव में 'गोरी तेरे प्यार में' जैसी ही मनोरंजक
फिल्में बन सकती हैं।
फिल्म में अनेक समस्याएं हैं। तर्क और कारण के लिहाज से विचार करें तो
अनेक दृश्य और प्रसंग असंगत लगेंगे। प्रतिष्ठित प्रोडक्शन कंपनी से संबंधित
व्यक्तियों को इन बातों पर बेसिक ध्यान देना चाहिए।
अवधि-147 मिनट
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