फिल्म समीक्षा : गाेलियों की रासलीला राम-लीला
-अजय ब्रह्मात्मज
ऐन रिलीज के समय फिल्म का नाम इतना लंबा हो गया। धन्य हैं 'राम-लीला'
टाइटल पर आपत्ति करने वाले ... बहरहाल, ' ...राम-लीला' विलियम
शेक्सपियर के मशहूर नाटक 'रोमियो-जूलियट' पर आधारित फिल्म है, इसीलिए इस
प्रेम कहानी के शीर्षक में पहले पुरुष का नाम आया है। एशियाई प्रेम
कहानियों में स्त्रियों का नाम पहले आता है, 'हीर-रांझा', 'लैला-मजनू',
'शीरीं-फरिहाद', 'सोहिनी-महिवाल' आदि। संजय लीला भंसाली ने 'रोमियो-जूलियट'
की कहानी को गुजरात के रंजार में स्थापित किया है, जहां सेनाड़ा और रजाड़ी
परिवारों के बीच पुश्तैनी दुश्मनी चल रही है। इन परिवारों के राम और लीला
के बीच प्रेम हो जाता है। 'रोमियो-जूलियट' नाटक और उस पर आधारित फिल्मों की
तरह ' ...राम-लीला' भी ट्रैजिक रोमांस है।
संजय लीला भंसाली सघन आवेग के निर्देशक हैं। उनकी फिल्मों में यह सघनता
हर क्षेत्र में दिखाई देती है। खास कर किरदारों को गढ़ने और उनके भावात्मक
संवेग की रचना में वे उत्तम हैं। उनके सामान्य दृश्य भी गहरे और परतदार
होते हैं। रंग, दृश्य, ध्वनि और भाषा से वे विषय के अनुरूप वातावरण तैयार
करते हैं। संजय हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय पारंपरिक रूपकों का सुंदर
इस्तेमाल करते हैं। उन्हें अपनी सौंदर्य दृष्टि से निखारते हैं। उनमें
नवीनता लाते हैं। ' ...राम-लीला' घोर पारंपरिक फिल्म है। कहानी, चरित्र,
कथानक और घटनाओं में किसी अन्य ट्रैजिक रोमांस के शिल्प का ही पालन किया
गया है, लेकिन प्रस्तुति की भव्यता और कलाकारों की अभिनय प्रवीणता से उनमें
नए आयाम जुड़ जाते हैं। संजय लीला भंसाली की ' ़ ़ ़ राम-लीला' रंगीन,
भव्य, चमकदार और रोचक है।
फिल्म के प्रमुख चरित्र राम और लीला के रूप में रणवीर सिंह और दीपिका
पादुकोण की केमिस्ट्री ओर एनर्जी पहले फ्रेम से ही जाहिर हो जाती है। संजय
ने दोनों चरित्रों की एंट्री पर खास ध्यान दिया है। हिंदी फिल्मों के
पारंपरिक दर्शकों के लिए नायक-नायिका की एंट्री खास महत्व रखती है। एंट्री
की बाजी जीतने के बाद संजय ने उनके प्रेम, भिड़ंत और विद्वेष की मोहक
दृश्य-संरचना की है। रणवीर सिंह ने राम को भावनात्मक उफान की पूरी उर्जा के
साथ पर्दे पर पेश किया है। बस कहीं-कहीं संवाद अदायगी में उनकी आवाज मार
खाती है। दीपिका पादुकोण तो सौंदर्य की बेफिक्र अभिव्यक्ति हो गई हैं। उनका
गहन आत्मविश्वास नृत्य, दृश्य, संवाद अदायगी और भावाभिव्यक्ति में दिखाई
देता है। संजय ने इस बार उनकी आंखों के साथ चपलता और खामोशी का सार्थक
उपयोग किया है। दीपिका की प्रतिभा के ये नए आयाम ' ... राम-लीला' में
प्रकट हुए हैं। लापरवाह लहराती, भागती और फिर पलटकर देखती दीपिका की मादकता
'हम दिल दे चुक सनम' की ऐश्वर्या राय की याद दिला देती है।
सहयोगी कलाकारों में सुप्रिया पाठक का चरित्र एकआयामी है, लेकिन
उन्होंने अपनी प्रतिभा से उसे मोहक रंग दिया है। उनकी निष्ठुरता कंपा देती
है। गुलशन देवैया और रिचा चढ्डा इस फिल्म की उपलब्धि हैं। राम और लीला की
तरह उनके चरित्र को खुले तरीके से विकसित होने का मौका नहीं मिला है, फिर
भी वे मिले दृश्यों में प्रभावशाली हैं। उन्होंने अपने चरित्रों को ढंग से
समझा और पेश किया है। अभिमन्यु सिंह समेत दूसरे कलाकार अपनी भूमिकाओं से
फिल्म में कुछ जोड़ते हैं और नाटकीयता को गाढ़ा करते हैं।
' ...राम-लीला' भाषाविदों के लिए अध्ययन योग्य है। रंजार की स्थानीय
भाषा में अंग्रेजी का घुलना और भाषा प्रवाह में निरंतर सुनाई पड़ना सचमुच
शोध और विश्लेषण का विषय है। ' ...राम-लीला' के प्रमुख किरदार स्थानीय
रंग-ढंग में होने के बावजूद इंग्लिश वर्ड्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते
हैं। और हां, ' ...राम-लीला' के कथानक में मोबाइल फोन की भी बड़ी भूमिका
है। घटनाओं के जोड़, मोड़ और तोड़ में उसका उपयोग हुआ।
फिल्म के नृत्य-गीत सम्मोहक हैं। नृत्य निर्देशकों ने उन्हें भव्य
तरीके से संजोया और पेश किया है। रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की मेहनत और
संगत रंग लाई है। गीतों के बोल और संगीत की मधुरता के योग से गीत-नृत्य
फिल्म का आकर्षण बढ़ाते हैं। फिल्म का छायांकन नयनाभिरामी है।
संजय लीला भंसाली की फिल्मों में अभी तक बमुशिकल थप्पड़ की आवाज तक आती
थी। इस बार तो गोलियों की रासलीला है। भरपूर एक्शन के बावजूद रोमांस गुम
नहीं होता। किरदारों और कलकारों का समुचित भावावेग '...राम-लीला' को
मनोरंजक प्रेमलीला में बदल देता है।
***1/2 साढ़े तीन स्टार
अवधि - 157 मिनट
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