सिनेमाभाषा के नायक हैं अमिताभ-जगदीश्वर चतुर्वेदी
आज से 11 अक्तूबर अमिताभ बच्चन के जन्मदिन तक बच्चन वार्ता जारी रहेगी। अस वार्ता में पहला लेख जगदीश्वर चतुर्वेदी का है। यह लेख अमिताभ बच्चन के 70 वें जन्मदिन पर जगदीश्वर ने लिखा था। यह प्रकाशित नहीं हो पाया था। और भी सामग्रियां हैं। उन्हें तो प्रकाशित करूंगा ही। आप सभी से आग्रह है कि अगर आप कुछ लिखना और बताना चाहें तो मुझे brahmatmaj@gmail.com पर भेज दें।
अमूमन
अभिताभ बच्चन की अभिनयकला पर कम उनके संवादों पर ज्यादा बातें होती हैं। इसी
तरह कंटेंट में एंग्रीयंग मैन प्रमुख है। एंग्रीयंगमैन से लेकर कौन बनेगा करोड़पति
तक अमिताभ की साझा इमेज की धुरी है रीयल हिन्दी भाषा। एंग्रीयंग मैन की इमेज को
उन्होंने विगत 20 सालों में सचेत रूप से बदला है और कन्वेंशनल पात्रों की भूमिका निभायी।
कन्वेंशनल चरित्रों वे संरक्षक-अभिभावक के रूप में सामने आए।यह एंग्रीयंग मैन की
बागी इमेज से एकदम उलट इमेज है। वहीं पर कौन बनेगा करोड़पति में उनका व्यक्तित्व इन
दोनों से भिन्न नजर आता। इसमें अमिताभ बच्चन उदार मित्र के रूप में सामने आते हैं
यह ऐसा उदार व्यक्ति है जिसके लिबरल विचारों और हाव-भाव को सहजता के साथ महसूस कर सकते हैं।एंग्रीयंग मैन को
पीड़ितजन,कन्वेंशनल को परंपरागत लोग और कौन बनेगा करोड़पति की इमेज को युवा और
औरतें बेहद पसंद करते हैं।कौन बनेगा करोड़पति में वे एंग्रीमैन एवं कन्वेंशनल
चरित्र की इमेजों से भिन्न नजर आते हैं।
असल में इन तीनों में साझा
तत्व है उनकी बेहतर संवादशैली और हिन्दी भाषा पर अदभुत मास्टरी।हिन्दी भाषा और
संवादशैली के बिना अमिताभ बच्चन की कोई निजी पहचान नहीं बनती। अमिताभ ने अन्य
भारतीय भाषाओं में भी फिल्में की हैं लेकिन पहचान हिन्दी फिल्मों से बनी है।
अमिताभ को एक आइकॉन के रूप
में देखेंगे तो वे इस क्रम में वे तीन काम करते हैं प्रथम,वे एक आइकॉन के रूप में
अपनी इमेज बनाते हैं,इसमें वे अपने अभिनय के जरिए श्रोता-दर्शक से एकीकरण करते हैं
,उसकी अनुभूतियों को स्पर्श करते हैं। दर्शक जब उनको देखता है तो उसके दिमाग में
पहले से उनकी इमेज रहती है। दूसरा काम वे यह करते हैं कि अपने को प्रतीक या साइन
बनाते हैं।
अमिताभ बच्चन आज साख के
प्रतीक हैं,भरोसे के प्रतीक हैं। इमेज बनाने के क्रम में अमिताभ ने अपने शरीर को
सामान्य रखा है। शरीर का खास किस्म का गठन बनाने की कभी कोशिश नहीं की। इस क्रम
में यथार्थ में जैसे दिखते हैं वैसा ही शरीर वे अभिनय में भी रखते हैं। अतः उनके
एक्शन,भाव-भंगिमाएं और विचार बहुत ही आसानी से दर्शक को सम्प्रेषित हो जाते हैं ।तीसरा,
फलतः वे दर्शक के लिए प्रेरक बन जाते हैं। इस तरह की प्रस्तुति की आंतरिक विशेषता
है कि अभिनय में जो चीजें नजर आती हैं उनका निषेध भी साथ ही साथ सम्प्रेषित होता
जाता है। या यों कह् वे अपना विचारधारात्मक विलोम भी बनाते हैं।इसके कारण अभिनय
सुंदर लगता है।फलतः अमिताभ तो अच्छा लगता है लेकिन चरित्र नहीं।
असल में दृश्यभाषा कोड रहित
होती है। इटली के प्रमुख सिनेमा आलोचक पीर पाब्लो पासोलिनी का मानना है कि सिनेमा ,यथार्थ
की भाषा पर निर्भर करता है।यह मनुष्य के एक्शन की भाषा है।इस परिप्रेक्ष्य में
देखें तो अमिताभ स्क्रीन पर जो भाषा बोलते हैं वह यथार्थ पात्र का प्रतिनिधित्व
करने वाली भाषा है। यह भाषा सिनेमाकला के विभिन्न अंगों के जरिए व्यक्त होती है। इस
परिप्रेक्ष्य में देखें तो अमिताभ बच्चन ने अपने व्यक्तित्व में सिनेमा की भाषा को
पूरी तरह आत्मसात कर लिया है। सिनेमा की भाषा यथार्थ की भाषा होती है। इसमें भाषिक
कोटियों की निर्णायक भूमिका होती है। वे सिनेमा में भाषा के नायक हैं।
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