हीरो बन गए मनीष पॉल


-अजय ब्रह्मात्मज
    लंबे समय तक होस्ट, आरजे, एंकर आदि की भूमिकाएं निभाने के बाद मार्च 2012 में अचानक मनीष पॉल को खयाल आया कि अब फिल्मों में एक्टिंग करनी चाहिए। उनके दोस्त रीतिका ने उन्हें डायरेक्टर सौरभ वर्मा से मिलने के लिए कहा। मुलाकात हुई तो सौरभ वर्मा ने अपनी फिल्म ‘मिकी वायरस’ के बारे में बताया। नाम सुनते ही मनीष हंसने लगे। उन्होंने बताया कि मेरे घर का नाम मिकी है। संयोग से मनीष की तरह ही ‘मिकी वायरस’ का मिकी भी दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में रहता है। लगे हाथ मनीष ने बिना मांगे ही कुछ इनपुट दे दिए। दस दिनों के बाद सौरभ का फोन आया कि तू मेरी फिल्म कर ले। इस तरह मनीष पॉल को ‘मिकी वायरस’ मिली और अब वह जल्दी ही रिलीज होगी।
- फिल्मों में आने का इरादा कब और कैसे हुआ?
0 मुंबई आया हर अभिनेता कभी न कभी फिल्म करना चाहता है। मुझे आते ही फिल्मों में काम नहीं मिला। पहला काम टीवी में मिला। फिर आरजे का काम मिला। मेरी आदत रही है कि मैं अपने कंफर्ट जोन को खुद ही तोड़ता हूं। फिल्में मिलने से पहले मैं तैयारियों में लगा था। सही समय आया तो फिल्म मिल गई।
- फिल्मों से पहले आपका साबका लाइव ओडिएंस से रहा है। फिल्मों के लिए खुद को बदलने में कितनी दिक्कत हुई?
0 होस्टिंग करने की वजह से मुझे कैमरे में देखने की आदत सी है। सौरभ की ट्रेनिंग और वर्कशाप से फायदा हुआ। फिल्म मिलते ही मैंने मानसिक तैयारी शुरू कर दी थी। फिल्म में काफी एक्शन है। एक्शन के लिए मैंने बॉडी पर ध्यान दिया। परफारमेंस में सौरभ की सलाह मानी।
- आपने बड़ी लांचिंग का इंतजार नहीं किया। क्या सेफ खेलना नहीं चाहते थे?
0 मैंने आज तक सेफ नहीं खेला है। मैंने हमेशा पंगा लिया है। मुझे मालूम है कि मैं इंडस्ट्री से बाहर का हूं। यहां मुझे कोई जानता नहीं है। मुझे बड़ी फिल्म नहीं मिलेगी। मेरे साथ मां का आशीर्वाद था। वह हमेशा कहती है कि टैलेंट छिप कर नहीं रह सकता। अपने काम पर ध्यान देना। कभी निराश होता था तो मां ही ढाढस बंधाती थी। मुझे जब जो काम मिला मैंने उसे अपना दो सौ प्रतिशत दिया।
- अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?
0 मैं दिल्ली से हूं। मेरे परिवार के ज्यादातर सदस्य फायनेंस के बिजनेस में हैं। केवल मैं थोड़ा अलग निकला। शुरू से ही सभी ने मुझे प्रोत्साहित किया। उन्होंने हर तरह का समर्थन दिया।
- यह अलग सा शौक कब जागा?
0 कह सकता हूं कि नर्सरी के समय ही यह शौक जाग गया था। तब मैं सनफ्लावर बना था। स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता रहा। मेरे रुझान को देखते हुए शिक्षकों ने भी मदद की। मुझे गाने के लिए स्कॉलरशिप तक मिली। मजेदार सी बात है कि परीक्षा में मैं 60 माक्र्स तक के ही सवाल हल करता था। कभी स्कॉलर  बनने की इच्छा नहीं हुई,इसलिए 100 माक्र्स तक पहुंचा ही नहीं। मुझे स्कॉलर बुद्धू लगते थे।
- पढ़ाई-लिखाई कहां हुई?
0 दिल्ली से ही। स्कूल के बाद मैंने टूरिज्म की पढ़ाई की। डैड ने सलाह दी थी कि पढ़ के टूरिस्ट एजेंसी खोल ले। वह नहीं हो पाया तो भी उन्होंने बुरा नहीं माना। मेरे शौक को देखते हुए उन्होंने मुंबई जाने की सलाह दी।
- क्या कभी कोई आदर्श रहा?
0 बिल्कुल नहीं। मैंने कभी किसी को आदर्श नहीं बनाया। सच कहूं तो मैं काम शुरू करने के पहले कुछ सोचता ही नहीं। एंकरिंग के लिए भी पहले से सोचकर नहीं जाता था। मैं चैलेंज लेने में यकीन करता हूं। मैंने यही महसूस किया कि किसी योजना के साथ मुंबई नहीं आना चाहिए। आप मुंबई आ जाएं अगर यह चाहेगी तो आपको स्वीकार कर लेगी वर्ना वापस भेज देगी। मेरे कई दोस्त वापस चले गए। मुझे यह अपने काम का शहर लगता है।
- दिल्ली की कमी किस रूप में महसूस होती है?
0 मैं वहां का खाना मिस करता हूं। दिल्ली में चौड़ी सडक़े हैं तो वहां की ड्राइविंग भी मिस करता हूं। मैं मालवीय नगर में पला-बढ़ा हूं तो वहां के बंगाल स्वीट्स के समोसे और बंटे खाते-पीते थे। पुरानी दिल्ली के अड्डे तो मशहूर हैं ही। कुतुब के इलाके में भी कुछ रेस्त्रां हैं। अभी तो मुझे मुंबई की लत लग गई है। अब यह अच्छा लगने लगा है।
- एक्टर का कोई घर या ठिकाना होता है क्या?
0 केवल सूटकेस होता है। आज कल मेरी जिंदगी सूटकेस में रहती है। बहुत पहले से लाइव शो की वजह से हमेशा घर के बाहर ही रहता हूं। मां तो कहती थी कि यह हमारे घर का बंजारा है। मेरी बर्थडे पर मां पिताजी सूटकेस ही गिफ्ट करते थे।
- पापुलर सेलिब्रिटी होने की क्या मुश्किलें हैं?
0 फिलहाल तो यही कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए घर भी चले आते हैं। बिल्डिंग में किसी के यहां दोस्त या रिश्तेदार आया हुआ हो तो वह बेहिचक घर की घंटी बजा देता है। शुरू में तकल्लुफ में मैं ना नहीं करता था। अभी मना करने लगा हूं।



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