खिली और खिलखिलाती दीपिका पादुकोण
-अजय ब्रह्मात्मज
दीपिका पादुकोण ने पीछे पलट कर नहीं देखा है, लेकिन हमें दिख रहा है कि वह समकालीन अभिनेत्रियों में आगे निकल चुकी हैं। दौड़ में शामिल धावक को जीत का एहसास लक्ष्य छूने के बाद होता है, लेकिन होड़ में शामिल अभिनेत्रियों का लक्ष्य आगे खिसकता जाता है। दीपिका पादुकोण के साथ यही हो रहा है। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ की अद्वितीय कामयाबी ने उन्हें गहरा आत्मविश्वास दिया है। वह खिल गई हैं और बातचीत में उनकी खुशी खिलखिलाहट बन कर फूट पड़ती है। अक्तूबर की उमस भरी गर्मी में दोपहर की मुलाकात चिड़चिड़ी हो जाती है। फिर भी तय समय पर दीपिका से मिलना है, क्योंकि शूटिंग, डबिंग और प्रोमोशन के बीच उन्हें यही वक्त मिला है। वह जुहू स्थित सनी सुपर साउंड में ‘राम-लीला’ की डबिंग कर रही हैं।
थोड़े इंतजार के बाद मुलाकात होती है। उनकी परिचित मुस्कान और गर्मजोशी से संबोधित ‘हेलो’ में स्वागत और आदर है। बात शुरू होती है ‘राम-लीला’ से ़ ़ ़ वह इस फिल्म के प्रोमो और ट्रेलर में बहुत खूबसूरत दिख रही हैं। बताने पर वह फिर से मुस्कराती हैं और पलकें झुका कर तारीफ स्वीकार करती हैं। करिअर और फिल्म के लिहाज से ‘राम-लीला’ के बारे में बताती हैं, ‘हर हीरोइन का यह ख्वाब है कि वह संजय सर के साथ काम करे। ‘खामोशी’ से लेकर ‘गुजारिश’ तक में उनकी हीरोइनों के परफारमेंस की तारीफ हुई है। मनीषा कोईराला, ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित, रानी मुखर्जी, सोनम कपूर सभी उनकी फिल्मों में खास लगी हैं। उनकी फिल्मों की हीरोइनों सालों तक दर्शकों की स्मृति में रहती हैं। ‘राम-लीला’ के ऑफर से मैं खुश, उत्साहित और घबराई हुई थी। मैं जानती थी कि वे किसी हड़बड़ी में फिल्म नहीं बनाते। समय सीमा तो रहती होगी, लेकिन उसका दबाव शूटिंग में नहीं रहता। वे एक्टर को पूरी आजादी देते हैं। एक्टर को प्रोत्साहित करते है और सपोर्ट करते हैं। उनकी बारीकियों में प्यार होता है। इस फिल्म का अनुभव किसी सुनहरे सपने के साकार होने की तरह मुझे याद रहेगा।’
संजय लीला भंसाली की यह खासियत है। उनकी फिल्मों में हीरोइनें अपनी प्रचलित इमेज से अलग दिखती हैं। वे हर हीरोइन की प्रतिभा का कोई छिपा और अनछुआ आयाम खोज निकालते हैं। सहज जिज्ञासा होती है कि दीपिका में उन्होंने क्या खास खोज निकाला? फिल्म रिलीज होने पर हम सभी यह देख लेंगे, फिर भी खुद अभिनेत्री से उसे जान लेना अलग मायने रखता है। दीपिका इस राय से सहमति जाहिर करती हैं, ‘आप मुझे ‘राम-लीला’ में बिल्कुल नए रंग-ढंग में देखेंगे। शुटिंग के दरम्यान वे हमेशा कहते रहे कि मैं बहुत नाजुक दिखती हूं, लेकिन इमोशनली बहुत स्ट्रांग हूं। मेरी इन खूबियों को उन्होंने किरदार में ढाला है। और भी कई पहलू हैं, जो आप पर्दे पर देखें तो अच्छा। मैं खुद अंजान थी अपनी पर्सनैलिटी के उन पहलुओं से ़ ़ ़ लीला मेरी ही तरह नाजुक और मजबूत है।’
‘राम-लीला’ की नायिका लीला है। संजय लीला भंसाली के नाम के मध्य में आया यह नाम उनकी मां का है। संजय ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि अपनी मां का नाम पेश कर रहा हूं तो पूरी सावधानी बरतूंगा। दीपिका क्या सोचती हैं लीला के बारे में? ‘लीला अपनी शर्तों पर जीती है। निर्भीक स्वभाव की लीला केवल अपनी मां की सुनती है। दूसरों को कान तक नहीं देती। प्यार के मामले में कंजर्वेटिव है,’ संक्षेप सा जवाब देती हैं दीपिका। फिल्म के प्रोमो में दीपिका गुजरात के कास्ट््यूम में दिख रही है। वर्तमान समय की वर्किंग वीमैन की तरह दीपिका भी आम जिंदगी में जींस-टीशर्ट या शर्ट पहनना पसंद करती हैं। ऐसे में कॉस्ट्यूम की वजह से क्या फर्क आता है किरदार में? वह स्पष्ट करती हैं, ‘साडिय़ां तो मैंने ‘ओम शांति ओम’ और ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में भी पहनी हैं। इस फिल्म का कास्ट्यूम गुजराती है। कपड़े और गहने पहनने से एक्टर का आधा काम आसान हो जाता है। फिल्म का लुक टेस्ट और रिहर्सल भी हम कास्ट््यूम में करते हैं। फील से फीलिंग्स आती है। कास्ट्यूम धारण करते ही स्टायल अलग हो जाती है। ’
बतौर एक्टर संजय की संगत के बारे में दीपिका दो टूक शब्दों में बताती हैं, ‘संजय सर के साथ कुछ भी आसान नहीं रहता। फिल्म देखते समय सब कुछ सहज लग सकता है। मैंने महसूस किया कि स्क्रिप्ट को वे निराले अंदाज से सीन में ट्रांसफार्म कर देते हैं। उन्हें हर सीन में ‘मैजिक’ चाहिए। वे डायरेक्ट करते समय सीन समझाने के बाद यही कहते हैं कि बस, अब मैजिक पैदा कर दो। जादू हो जाए। बतौर एक्टर हमें सोचना पड़ता है। कई बार तो 15-20 टेक के बाद भी वे कुछ नया करिश्मा चाहते हैं। उनकी शूटिंग में दिल-दिमाग और शरीर निचुड़ जाता है। मुश्किल होने के बावजूद यह मेरे लिए लर्निंग एक्सपीरिएंस भी रहा। ‘राम-लीला’ ने मेरा रेंज बढ़ा दिया है। मुझे पता चला है कि मैं और क्या-क्या कर सकती हूं?’
हीरोइनों की होड़ में आगे निकल रही दीपिका पीछे पलट कर देखना उतना जरूरी नहीं मानतीं। खिलाड़ी मानसिकता की दीपिका अपना दर्शन समझाती हैं, ‘जिंदगी में पीछे मुड़ कर कभी-कभी ही देखना चाहिए। हमेशा फोकस आगे की तरफ हो। सफलता को बहुत सीरियसली नहीं लेना चाहिए। आगे क्या करना है? मैं खिलाड़ी रह चुकी हूं। जानती हूं कि जीत और हार को लेकर रुक नहीं सकते। तारीफ अच्छी लगती है। मैंने बुरा वक्त भी देखा है, इसलिए अच्छे वक्त को खूब एंज्वॉय कर रही हूं। डेढ़ दो साल से सब कुछ अच्छा चल रहा है। नया करने की चाहत बढ़ गई है। कुछ करते समय पेट में तितलियां उडऩी चाहिए। मुझे आराम का काम नहीं चाहिए। काम घबराहट दे तो मजा है।’ अभी कुछ ऐसा आ रहा है क्या? दीपिका अपनी आगामी फिल्मों के बारे में बताती हैं, ‘फराह खान की ‘हैप्पी न्यू ईअर’ कर रही हूं। उसमें मुंबई की बार डांसर हूं। इम्तियाज अली की फिल्म करूंगी रणबीर के साथ ़ ़ ़’
गौर करेंगे कि दीपिका के चेहरे की चमक-दमक बढ़ गई है। वह इनका राज खोलती हैं, ‘मैं खुश हूं अपने काम को लेकर ़ ़ ़ लोगों के प्यार और तारीफ से यह खुशी बढ़ जाती है। उम्मीद करती हूं कि यह जारी रहे।’ ग्रामीण पारंपरिक सोच में कहते हैं लड़कियां शादी के बाद खूबसूरत हो जाती हैं? क्या हम कह सकते हैं कि दीपिका की फिल्मों से शादी हो गई है? ‘अरे वाह, इतने खूबसूरत तरीके से आपने बात कही। शादी ही हुई है। फिलहाल मेरी जिंदगी फिल्मों तक सीमित है। मेरा कोई पर्सनल लाइफ नहीं है। परिवार के सदस्यों से भी भेंट नहीं हो पाती। मैं रीडिंग, डबिंग, शूटिंग, मीटिंग, इंटरव्यू यहां तक कि फिल्म के प्रोमोशन में भी खुश रहती हूं।’ दीपिका को सबसे ज्यादा खुशी किस रूप में मिलती है -- स्टार, एक्टर या दीपिका? सवाल खत्म होते ही दीपिका बताती हैं, ‘बेटी के रूप में सबसे ज्यादा खुशी होती है। मम्मी-पापा की लाडली दीपिका। जब घर जाती हूं तो वे जो प्यार-दुलार मिलता है। यहां तो मैं अकेली रहती हूं। परिवार में रहने पर मैं निश्चिंत रहती हूं। वह मेरी सबसे बड़ी खुशी है। उसके बाद काम ़ ़ ़’
काम में एक फर्क बना हुआ है। आज भी हीरोइनों से अधिक तवज्जो और बाकी सबकुछ हीरो को मिलता है। क्या दीपिका कभी इस फर्क से परेशानी नहीं महसूस करतीं? हिंदी फिल्मों का इतिहास भी हीरो के नामों के साथ लिखा जाता है। दीपिका कुछ सोचती हैं, ‘मैंने क्या इस तरह से नहीं सोचा। अपने पारिश्रमिक की किसी और से तुलना नहीं की। पता भी नहीं करती। मैं अपने काम और पारिश्रमिक से खुश हूं। जिंदगी में हम सभी कुछ ज्यादा चाहते हैं। मैं भी चाहती हूं। अच्छी फिल्में, अच्छे डायरेक्टर, बड़ा काम, बड़ा नाम ़ ़ ़़ इन इच्छाओं के साथ अपने वर्तमान से खुश हूं। मैं चाहूंगी कि अंत में लोग मुझे एक बेहतर इंसान के तौर पर याद करें। कोई यह न कहे कि हीरोइन तो अच्छी थी,लेकिन ़ ़ ़। मेरी याद में लेकिन न लगे।’
‘राम-लीला’ को दीपिका के प्रशंसक क्यों देखें? आखिर इसमें क्या कुछ मिलेगा उन्हें? दीपिका हंसते हुए कहती हैं, ‘मैं पचास विशेषताएं बता सकती हूं। फिलहाल यही कहूंगी, ‘यह संजय लीला भंसाली की फिल्म है, जिन्होंने ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘देवदास’ जैसी ऐतिहासिक फिल्में बनायी थीं। यह कलरफुल, वायबेंट और फील गुड फिल्म है। मेरे और रणवीर के परफारमेंस के लिए देखें। हमारी केमिस्ट्री अच्छी है। यह आप को खुद की प्रेमकहानी लगेगी।’
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