फिल्म समीक्षा : जंजीर
-अजय ब्रह्मात्मज
हालांकि अपूर्वा लाखिया की 'जंजीर' अमिताभ बच्चन की 'जंजीर' की
आधिकारिक रीमेक है, लेकिन इसे देखते समय पुरानी फिल्म का स्मरण न करें तो
बेहतर है। अमिताभ बच्चन की प्रकाश मेहरा निर्देशित 'जंजीर' का ऐतिहासिक
महत्व है। उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की पहचान बनी थी। उन्हें एंग्री यंग
मैन की इमेज मिली थी। इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपूर्वा लाखिया की
'जंजीर' एक साधारण फिल्म लगती है। राम चरण के लिए हिंदी फिल्मों की यह
शुरुआत है।
कहानी और किरदारों के बीज वहीं से लिए गए हैं, लेकिन उन्हें स्टूडियो
में विशेष निगरानी के साथ सींचा गया है, इसलिए पुरानी फिल्म की नैसर्गिकता
चली गई है। वैसे भी अब शहरी जीवन में प्राकृतिक फूलों और पौधों की जगह
कृत्रिम फूलों और पौधों ने ले ली है। उसी प्रकार की कृत्रिमता का एहसास
'जंजीर' देख कर हो सकता है। हां, अगर पुराने अनुभव और ज्ञान से वंचित या
परिचित दर्शकों के लिए 'जंजीर' आज की फिल्म है। मल्टीप्लेक्स के दर्शकों को
मजा भी आएगा। फिल्म में आज के कंसर्न के साथ आधुनिक किरदार हैं। सब कुछ
बदल चुका है। नई 'जंजीर' का तेजा पुरानी 'जंजीर' देखता है और मोना डार्लिग
कहती है कि तुम भी तो तेजा (अजीत) जैसे ही हो। फिल्म की रीमेक फिल्म में आए
किरदार मूल फिल्म के किरदार की नकल ही लगते हैं। यह अजीब सा दौर है, जहां
फिल्मों के किरदारों से प्रेरित होकर नए किरदार रचे जा रहे हैं। ऐसे
किरदारों में जीवन की महक और ठसक मिलना मुश्किल है।
अपूर्वा लाखिया की 'जंजीर' स्टूडियो लैब में तैयार की गई फिल्म है।
उन्होंने लेखकों की नई टीम के साथ पुराने किरदारों की बिल्कुल नए तरीके से
रच डाला है। पुरानी फिल्म को हू-ब-हू नहीं उतारा जा सकता था, लेकिन आज के
संदर्भ में मौलिकता का पुनर्चित्रण तो किया जा सकता था।
स्वतंत्र फिल्म के तौर पर 'जंजीर' औसत फिल्म है। राम चरण सधे हुए
अभिनेता हैं। उन्होंने विजय खन्ना के किरदार को लेखक-निर्देशक की कल्पना से
निभाया है। उनमें अमिताभ बच्चन को खोजना ज्यादती होगी, क्योंकि नई 'जंजीर'
सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट पर नहीं बनी है। प्राण की शेर खान की भूमिका यहां
संजय दत्त ने निभाई है। वे कद-काठी में तो शेर खान लगते हैं, लेकिन पुरानी
फिल्म की तुलना में यह चरित्र ही कमजोर है। न आंखों में वह तुर्सी है और न
जबान पर वे तेजाब। दोनों की यारी ईमान और जिंदगी का पर्याय नहीं बन पाती।
माला के किरदार को एनआरआई बनाने का तुक समझ में नहीं आता। प्रियंका
चोपड़ा दिए गए किरदार में सहज और चपल और प्रभावशाली लगती हैं। समस्या माला
के किरदार की है। पूरी फिल्म में उसका स्थान निश्चित नहीं हो पाता। तेजा के
रूप में प्रकाश राज अचानक दो दशक पहले की वेशभूषा और आचरण में दिखते हैं।
उनका चित्रण असंगत है। मोना डार्लिग के रूप माही गिल को विस्तार मिला है।
वह अपने किरदार को निभा ले जाती हैं।
फिल्म में अनेक गाने हैं, किंतु कहानी से उनका तालमेल नहीं बैठ पाता। सारे गाने आयटम ही नजर आते हैं।
अवधि - 137 मिनट
** 1/2 ढाई स्टार
** 1/2 ढाई स्टार
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