खांचे और ढांचे से दूर सुशांत सिंह राजपूत
-अजय ब्रह्मात्मज
पटना में पैदा हुए, दिल्ली में पले-बढ़े और मुंबई में पहले टीवी और अब फिल्मों में पहचान बना रहे सुशांत सिंह राजपूत की कामयाबी का सफर सपने को साकार करने की तरह है। ‘काय पो छे’ की सराहना और सफलता के पहले ही उन्हें राजकुमार हिरानी की ‘पीके’ और मनीष शर्मा की ‘शुद्ध देसी रोमांस’ मिल चुकी थी। प्रतिभा की तलाश में भटकते निर्माता-निर्देशकों को तो सिर्फ धमक मिलनी चाहिए। वे स्वागत और स्वीकार के लिए पंक्तिबद्ध हो जाते हैं। सुशांत सिंह राजपूत के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। अभी 6 सितंबर को उनकी दूसरी फिल्म रिलीज होगी, लेकिन उसके पहले ही वे फिर से दो-तीन फिल्में साइन कर चुके हैं। आप अगर मुंबई में लोखंडवाला के इलाके में रहते हों तो मुमकिन है कि वे किसी मॉल, जिम या रेस्तरां में आम युवक की तरह मटरगस्ती करते मिल जाएं। अभी तक स्टारडम को उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया है। वैसे फिल्म इंडस्ट्री में यह भी खबर फैल रही है कि सुशांत के तो भाव बढ़ गए हैं।
बहरहाल, हमार बातचीत ‘शुद्ध देसी रोमांस’ को लेकर होती है। इस फिल्म के बारे में वे बताते हैं, ‘हिंदी फिल्मों में हम रोमांस के नाम पर फैंटेसी देखते रहे हैं। हीरो-हीरोइन केबीच सब कुछ गुडी-गुडी चलता रहता है। ‘शुद्ध देसी रोमांस’ मेंआज के यूथ की सोच और भावना है। एक आम युवक या युवती के मन में प्यार को लेकर जो भी कन्फ्लिक्ट होते हैं, उन सभी को यह फिल्म टच करती है। फिल्म देख कर सभी यही कहेंगे कि सच तो है। ऐसा ही मेरे साथ हुआ था। दोस्तों के साथ हुआ था।’
इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत रघु गाइड की भूमिका में हैं। जयपुर शहर का यह गाइड मनचला और आजाद तबियत का है। सुशांत रघु की खासियतों को जाहिर करते हैं, ‘उसके अंदर जो चल रहा होता है, वह बोल देता है या कर देता है। वह अपने दिल की सुनता है और उससे वैसे ही डील करता है, जैसे हमारी उम्र के युवक होते हैं। जो कोई भी इस वक्त रिलेशनशिप में हैं, वे रघु से कनेक्टेड फील करेंगे।’
क्या वजह है कि सुशांत अपारंपरिक किस्म की फिल्में ही चुन रहे हैं? क्या उन्हें हिंदी फिल्मों के टिपिकल हीरो की फिल्में नहीं मिलतीं या कोई और बात है? सुशांत मुस्कराते हैं और जवाब देते हैं, ‘मुझे दस में से पांच पारंपरिक फिल्में मिलती हैं। उनमें नाच-गाना और एक्शन रहता है। आप जानते हैं कि मैं डांसर रह चुका हूं और मैंने मार्शल आर्टस की ट्रेनिंग भी ली है। मैं ट्रैडिशनल फिल्मों की मांग पूरी कर सकता हूं। दरअसल, इस वक्त मैं लार्जर दैन लाइफ फिल्में नहीं चुन रहा हूं। अभी रियलस्टिक फिल्मों में मजा आ रहा है। जब तीन-चार महीनों का लंबा वक्त होगा तो वैसी फिल्में करूंगा। फिलहाल टिपिकल हीरो जैसा होने के बावजूद मसाला फिल्मों को ना कहने की हिम्मत कर रहा हूं।’ सुशांत ऐसे चुनाव को जोखिम नहीं मानते, उनके शब्दों में, ‘अगर 100-200 करोड़ के क्लब में जाने की मंशा हो तो ऐसी फिल्में रिस्क हो सकती है। मैं तो मीडियम और छोटी फिल्में कर रहा हूं। जिस तेजी से देश में मल्टीप्लेक्स बढ़ रहे हैं, उसकी वजह से ऐसी फिल्मों की मांग बढ़ेगी। अगले पांच साल उम्दा कंटेंट और आक्रामक मार्केटिंग का है।’
सुशांत के लिए रघु अनजान किरदार नहीं था। जयदीप साहनी ने इसे जिस रंग-ढंग से गढ़ा है, वह अभिनेता को परफार्मेंस की संभावनाएं देता है। सुशांत स्पष्ट कहते हैं, ‘जयदीप साहनी को अच्छी तरह मालूम था कि उन्हें रघु में क्या चाहिए? वे विमर्श के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनके चरित्र और संवाद ऐसे होते हैं कि आप अपनी सोच से उसे गाढ़ा कर सकते हैं। मनीष शर्मा और जयदीप साहनी अपनी राय देने के बाद कलाकारों को खुला छोड़ देते हैं। वे हमें बंदिश में नहीं रखते थे। इस फिल्म को देखते समय किसी मोड़ पर रघु को थप्पड़ मारने का दिल करेगा, लेकिन आखिर में महसूस होगा कि अपना ही बंदा है। असल जिंदगी में तो ऐसा ही होता है।’
पिछली फिल्म ‘काय पो छे’ में सुशांत के हिस्से में हीरोइन नहीं आई थी। ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में उनके साथ दो हीरोइनें हैं। लगता है भरपाई की जा रही है? बात काटते हुए सुशांत बताते समय कनखी मारते हैं, ‘आप को नहीं पता है हीरोइन पाने के लिए मैंने सोलह सोमवार कर व्रत किया था।’ फिर कहते हैं, ‘अच्छा ही हुआ। हीरोइनें की संख्या तो स्क्रिप्ट के हिसाब से घटती-बढ़ती रहेगी। इस बार परिणीति चोपड़ा और वाणी कपूर के साथ अच्छा अनुभव रहा। एक एनर्जेटिक है तो दूसरी नैचुरल ़ ़ ़ दोनों के अपने गुण हैं।’
यशराज फिल्म्स के साथ जुडऩे की अपनी खुशी बताते समय वे बचपन का सपना याद करते हैं, ‘पांचवीं या छठी क्लास में ऐसे ही ख्याल आया था कि मैं यशराज फिल्म्स के लिए फिल्म कर रहा हूं। पर्दे पर लिखा आ रहा है यशराज फिल्म्स प्रेजेंट्स सुशंत सिंह राजपूत ़ ़ ़ ़। फिल्म साइन करते समय आदित्य चोपड़ा को मैंने अपने सपने के बारे में बताया था। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि जब तक अच्छा काम करते रहोगे, तब तक फिल्में मिलती रहेंगी। इसके बाद यशराज फिल्म्स की ही दिबाकर बनर्जी निर्देशित ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ कर रहा हूं।’ अपने स्टारडम से अंजान सुशांत कहते हैं, ‘स्टारडम शब्द से मैं अपरिचित हूं। इसे मैं समझ नहीं पाता। मैं न तो इसकी इच्छा रखता हूं और न इसके मजे लेना चाहता हूं। स्टार बनने की प्रक्रिया भी मुझे नहीं मालूम। अगर मुझे इस शब्द की वजह से क्या करू? क्या करूं? की स्थिति में आना होगा तो वह बहुत बड़ी विचलन होगी। स्टार बनने के साथ ही खांचा और ढांचा तय हो जाता है। मैं तो अभी भिन्न-भिन्न किरदारों को जीना चाहता हूं। सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत बने रहने में मजा नहीं है।’
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