मिस्टर फर्नाडीस के एकांत और इला के अकेलेपन का जायकेदार मेल है - लंचबॉक्स : सोनाली सिंह
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द लंचबाक्स पर सोनाली सिंह की यह टिप्पणी शेयर करते हुए आप सभी से आग्रह है कि आप भी अपने विचारों से अवगत करांए। इस फिल्म पर बातें करें। और भी फिल्मों पर कुछ लिखने का मन करे तो लिख कर मुझे भेजें.... brahmatmaj@gmail.com मिस्टर फर्नाडीस के एकांत और इला के अकेलेपन का जायकेदार मेल है - लंचबॉक्स " फिल्म की शुरुआत में नायिका तल्लीनता से लंच बनाते हुए नज़र आती है जैसे Mrs.Dalloway गार्डन पार्टी की तैयारी में लीन हो। ताज्जुब है कि वह समय काटने के लिए टीवी नहीं देखती।शायद टीवी पर नाचती - गाती खुशहाल जिंदगियों का हरापन उसके स्याह अकेलेपन को और गहरा कर जाता है। वह बार- बार फ्रिज खोलकर अपने खालीपन को खाने -पीने की तमाम चीज़ों से भरने की कोशिस भी नहीं करती। सुबूत है उसके हनीमून की ड्रेस जो आज भी उसे फिट आती है ,थोड़ी ढीली ही होती है।
यह फिल्म किसी फार्मूले पर नहीं चलती ,आस- पास बिखरी जिंदगी की पटरियों पर दौड़ती है। हम सभी ने लंच में कभी न कभी केले खाए है नहीं तो लंच में केले खाते लोगों को देखा तो जरुर ही है। इस फिल्म को देखकर कितनी ही कहानियां याद आती है , कितने ही अनुभव ताज़ा हो जाते है।
एक पति जिसका पत्नी से संवाद ख़त्म हो चुका है शायद उसने अपने संवाद कही और कायम कर लिए है। जब इला अपने पति के अफेयर की बात शेयर करती है तो यह मिस्टर फर्नाडीस की उम्र का तजुर्बा ही होता है कि वह नायिका को सेक्सी लान्ज़री या हॉट मसाज की सलाह नहीं देते। वह जानते है राग के स्रोत कही और होते है ,स्त्री या पुरुष के सौन्दर्य में नहीं। सौन्दर्य तो बुलबुले की तरह है जो एक के पीछे एक आते है , आते रहेंगे और निश्चित रूप से छवियाँ वासना और हवस के बाहर भी आकर्षित तो करती ही है।
फिल्म में कई खूबसूरत मंज़र है जैसे मिस्टर फर्नाडिस का राह चलते तस्वीर बनाने वाले से 'शायद मैं हूँ इस तस्वीर में ' सोचकर तस्वीर उठा लेना। हम (भारतीय) हर बात को अपने से जुड़ा हुआ मानते है और दिल से लगा लेते है. सपोज़ एक लड़की का नाम चांदनी हो , वह चांदनी चौक जाये और बारिश हो जाये। वह समझेगी क्योंकि वह यानी कि चांदनी चांदनी चौक में थी इसलिए बारिश हो गयी। यह बात ह्यूमर जरुर क्रिएट करती है पर जिंदगी से अपनापा भी जोड़े रखती है।
नायिका का इत्मीनान से चाय का गिलास लेकर ख़त पढने बैठना । चाय का रंग कांच के गिलास में निखर कर आता है जिसे देखकर जो चाय की तलब लगती है कि दो प्याली (कांच की ) इलायची और केसर वाली चाय पीकर भी शांत नहीं होती।
मिस्टर फर्नाडीस को अचानक बाथरूम में अपने दादाजी की गंध महसूस होती है। मैंने सुना था अगर आप कभी अकेले हो और तेज़ खुशबू का झोंका आस- पास महसूस हो ,समझना चाहिए कि कोई अच्छी आत्मा हमारे आस- पास है।जब कभी मुझे अपने शरीर से दादाजी की गंध (जो कि जीवित है )आती महसूस होती है तो क्या समझना चाहिये ……हमारे घर छूट जाते है पर पुरखों की गंध देह से लिपटी रहती है। खैर वह तो एक खूबसूरत बिम्ब था।
यह बात मैंने नोट की, आपके युवावस्था के दौर का बॉलीवुड रोमांस ताउम्र आपका पीछा नहीं छोड़ता। इला जितनी भी बार प्यार में पड़ेगी ,साजन फिल्म के गानों के बगैर उसका रोमांस पूरा नहीं होगा।
लंचबॉक्स बनाम पोस्ट बॉक्स …ख़त के बिना बात अधूरी है। ख़त जिसके सीने में भावनाएं धड़कती है। माना उनसे हाथों की खुशबू गायब हो चुकी है। उन्हें पाने के लिए दिनोदिन का इंतज़ार नहीं करना पड़ता पर इंतज़ार तो उसी बेसब्री से किया जाता है ना …और मिलने के बाद ख़ुशी का इज़हार भी उसी जोर-शोर से किया जाता है ना ……यही ख़त (फिल्म) युवा और बुज़ुर्ग दर्शकों को जोड़ने का काम कर रही है।
फिल्म देखते हुए मुझे लगा कि मिस्टर फर्नाडीस फाइल में कुछ काट रहे है तभी पीछे बैठे बुज़ुर्ग दर्शक ने समझाया की वह कुछ काट नहीं रहे है , हाईलाइट कर रहे है , देखो उसने हाथ में हाई-लाइटर पकड़ा हुआ है।
नायिका की माँ पिता के मरने पर दिलासा देती हुयी बेटी से कहती है कि उसे बहुत भूख लग रही है , सुबह से कुछ नहीं खाया , पराठें खाने का मन कर रहा है। शादी के बाद कुछ सालों तक हममे बहुत प्यार था पर…बीते सालों में उसकी जिंदगी खाना खिलाना, दवाई देना , नहलाना बस खाना दवाई , नहाना तक सिमट कर रह गयी थी। अब क्या,,, इला को अपने जीवन का सार समझ आ जाता है और वह बेटी के साथ भूटान जाने का निणर्य ले लेती है। भले ही इससे बुरे हालत होंगे पर ऐसे तो ना होंगे।
कई लोगो को ताज्जुब होता है !! इला डिमांडिङ्ग क्यों नहीं है ? वह अपने पति से झगडा क्यों नहीं करती ? वह इतनी ठंडी क्यों है ?
दरअसल झगडा - दोस्ती, प्यार-तकरार और मज़बूरी-ख़ामोशी का चोली- दामन का साथ होता है। वह ज़माना गया जब औरते हनीमून के दिनों की तस्वीरे देख- देख कर बाकी की नीरस जिंदगी गुज़र दिया करती थी। उसने अपनी तरफ से १०० % दिया है। उसकी कोई गलती नहीं है इसलिए उसे कोई गिल्ट भी नहीं। यही कारण है वह आंसू नहीं बहाती ।
वह तलाक ले सकती थी …कही जाब कर सकती थी ..घर से अलग होकर रह सकती थी पर भूटान जाना ……….Finding Neverland की तरह भूटान जाना उसका सुनहरा सपना था। हर लड़की का होता है !
वह झगडा नहीं करती , डिवोर्स की धमकी नहीं देती ,फिर से कोशिस नहीं करके देखती……उसे मालूम है कोशिसो से कुछ समय के लिए चीज़े सही हो सकती है पर हमेशा के लिए नहीं। उसे भी अपने घर के चलते हुए पंखे को देखकर वहशत होने लगती है हलाकि वह ओरिएंट का नहीं है ,वह अपनी माँ की तरह हनीमून की तस्वीरे देख-देख कर बाकी की नीरस जिंदगी नहीं काटना चाहती. वह इतनी कमज़ोर नहीं कि किसी रात अपने गहने उतारकर, कमरे की बत्ती बंद करके, बेटी को गोद में उठाकर , वह बिल्डिंग की छत से छलांग लगा दे।
प्यार हो तो बांटने में जलन होती है , अब पति एक अफेयर चलाये या दो……पर उसके आत्मसम्मान का क्या , उसके समर्पण का क्या , उसके वक़्त का क्या जो उसने पति के घरोंदे को सजाने -सवारने में दिया था । वह भूटान जाना चाहती थी। ।वह अपने पति को झन्नाटेदार सबक सिखाना चाहती थी
नो हार्ड फीलिंग। तुम अपनी जिंदगी जीने के लिए सवतंत्र हो और मैं अपनी !!!
शायद उसके दिमाग में अर्थ फिल्म का क्लाइमेक्स घूम रहा था।
जब पति पत्नी के घर/जिंदगी में दोबारा आने की अनुमति मांगता है।
पत्नी " नहीं "कहकर दरवाज़ा बंद कर देती है।
शेख की माँ सही कहती है कि कभी - कभी गलत ट्रेन भी हमें सही पते पर पंहुचा देती है (चेन्नई एक्सप्रेस और' जब वी मेट' देखी है ना )
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