दरअसल... सुनाई पड़ी हैं फिर से धमकियां


-अजय ब्रह्मात्मज
अभी बोनी कपूर और करण जौहर ने मुंबई पुलिस को सूचित किया है कि उनके पास अंडरवल्र्ड से धमकी भरे फोन आए हैं। फिल्म इंडस्ट्री में कहा जा रहा है कि धमकी भरे कॉल और भी लोगों के पास आए हैं, लेकिन सभी ने पुलिस को सूचित करना जरूरी नहीं समझा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने आश्वस्त किया है कि इन सूचनाओं की खोजबीन की जाएगी। मामले की तह में पहुंचने के साथ उन सभी व्यक्तियों को पुलिस सुरक्षा भी प्रदान की जाएगी। खबर तो ऐसी है कि पुलिस फिल्म इंडस्ट्री की हस्तियों को मिले फोन कॉल की लिस्ट तैयार कर यह पता करने की कोशिश कर रही है कि इनका स्रोत कहां है? क्या कोई एक ही अंडरवल्र्ड सरगना धमकियां दे रहा है या और भी अपराधी इसमें संलग्न हैं। पुलिस विभाग ने अपनी तहकीकात जारी कर दी है लेकिन फिल्म इंडस्ट्री की बेचैनी बढ़ती जा रही है। फिल्म इंडस्ट्री के प्रतिनिधि के तौर पर महेश भट्ट ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान से मुलाकात भी की।
    पिछले एक दशक से ज्यादा समय में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और अंडरवल्र्ड के संबंध में काफी बदलाव आया है। अब दो-ढाई दशक पहले की तरह अंडरवल्र्ड सक्रिय नहीं है। अंडरवल्र्ड और फिल्म इंडस्ट्री की सोहबत सरकारी स्कैनिंग के कारण स्वरूप में बदल गई है। खास कर 1992-93 के दंगों और बम धमाकों के बाद अंडरवल्र्ड के प्रति सख्त रवैया अपनाने से बदलाव आया। उसके पहले अंडरवल्र्ड और फिल्म इंडस्ट्री के मेलजोल पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। फिल्म इंडस्ट्री की मशहूर हस्तियां खुलेआम उनके दावतों और पार्टियों में शरीक होती थी और अंडरवल्र्ड के लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से फिल्मी गतिविधियों में हिस्सा लेते थे।
    सभी जानते हैं कि सालों तक फिल्म इंडस्ट्री और अंडरवल्र्ड की मिलीभगत चलती रही। अंडरवल्र्ड का पैसा फिल्मों में लगता था। फिल्में बनती थीं। अंडरवल्र्ड अपनी अतिरिक्त कमाई के लिए फिल्म इंडस्ट्री से पैसे उगाहता था। सिंपल तरीका था। धमकी भरे फोन आते थे। कुछ निर्माता, फायनेंसर और कलाकार तो धमकी भरे फोन से ही घबराकर अंडरवल्र्ड से गुप्त लेन-देन कर लेते थे। उन दिनों जो ऐसा नहीं करते थे, उन्हें खौफजदा करने के लिए हमले भी होते थे। इन हमलों में कुछ फिल्मी हस्तियां घायल हुईं और कुछ को तो जान भी गंवानी पड़ी। धीरे-धीरे पुलिस ने नकेल कसी तो यह सब नियंत्रित हुआ। फिर भी फिल्म इंडस्ट्री और अंडरवल्र्ड का रिश्ता बना रहा। पुलिस महकमे के लोग बताते हैं कि यह संबंध आज भी खत्म नहीं हुआ है। किसी न किसी रूप में यह नजर आ जाता है।
    अंडरवल्र्ड पर फिल्म इंडस्ट्री की आंशिक निर्माता कई कारणों से थी। सबसे बड़ा कारण तो फायनेंस था। फिल्में अव्यवस्थित तरीके से बनती थीं। फायनेंस का सीधा हिसाब-किताब नहीं रहता था। छोटी रकम के निवेश से कम समय में अधिक मुनाफा हो जाता था। फिल्मों के अलग-अलग राइट्स की भी अंडरवल्र्ड मांग करता था। अधिकार नहीं मिलने पर फिर वही धमकियों का सिलसिला आरंभ होता था। मुकेश दुग्गल, गुलशन कुमार और अजीत दीवानी आदि पर प्राण घातक हमले हुए। राजीव राय का अपहरण हुआ और राकेश रोशन पर गोली चली। बाद के सालों में मुंबई पुलिस ने सख्ती से कार्रवाई की और फिल्म इंडस्ट्री ने भी भरपूर सहयोग दिया। नतीजतन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और अंडरवल्र्ड, का लाइव संबंध खत्म हो गया। अब अचानक 2013 में नई धमकियां सुनाई पड़ी हैं।
    इस बीच हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काफी बदलाव आ गया है। कारपोरेट कंपनियों के आने की वजह से फायनेंस में थोड़ी पारदर्शिता आई है। निर्माता भी परिचित स्रोतों से धन उधार या कर्ज लेने लगे हैं। अंडरवल्र्ड से या अवैध तरीके से निवेशित धन की मुश्किलों को देखते हुए फिल्म इंडस्ट्री ने अपना रवैया बदल लिया है। लंबे अर्से के बाद पिछले सालों में बाक्स आफिस की खनक से फिल्म इंडस्ट्री में रौनक आई है। फिल्में 100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार कर रही हैं। छोटे निर्माता भी किसी न किसी तरह अपनी फिल्में थिएटर तक पहुंचा दे रहे हैं। मुमकिन है कि फल-फूल रही फिल्म इंडस्ट्री में धन की आमद देख कर अंडरवल्र्ड फिर से जागा हो।
    देश की किसी और भाषा की फिल्म इंडस्ट्री का अंडरवल्र्ड से ऐसा संबंध नहीं दिखता। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से अंडरवल्र्ड के जुडऩे का बड़ा कारण मुंबई है। पहले और आज भी अंडरवल्र्ड के ज्यादातर सूत्र मुंबई से ही जुड़े हैं। पलायन के पहले मुंबई में ही अंडरवल्र्ड मजबूत और एक्टिव था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का तो गढ़ ही मुंबई रही है।

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