फिल्म रिव्यू : चोर चोर सुपर चोर
-अजय ब्रह्मात्मज
मानसून में छोटी फिल्मों की बूंदाबांदी चल रही है। 'चोर चोर सुपर चोर' दिल्ली के मायापुरी इलाके के उचक्कों के नेटवर्क पर बनी फिल्म है। शुक्ला ने इन्हें पाला-पोसा और सिखाया है। उनमें से एक सतबीर को यह काम अच्छा नहीं लगता। वह कोई इज्जतदार काम करना चाहता है।
अपने साथियों से अलग जिंदगी की शुरुआत करते ही उसकी नजर नीना पर पड़ जाती है। वह नीना से प्यार करने लगता है। अपने सीधेपन में वह नीना से उल्लू बनता है, पर एहसास होने पर वह उससे बड़ी चाल चलता है। अपनी चाल में वह कामयाब भी हो जाता है। पता चलता है कि सतबीर समझदार और दुनियादार है।
निर्देशक के राजेश ने दिल्ली की गलियों की जिंदगी को बगैर ताम-झाम के पेश कर दिया है। फिल्म में साधारण किरदार हैं और उन सभी की छोटी-छोटी ख्वाहिशें हैं। इन ख्वाहिशों को निर्देशक ने रोचक तरीके से चित्रित किया है। फिल्म में अवांछित गाने की जगह कुछ जोरदार दृश्य जोड़े जा सकते तो फिल्म की पुख्तगी बढ़ जाती।
दीपक डोबरियाल भरोसेमंद एक्टर हैं। उन्होंने स्क्रिप्ट और फिल्म की सीमाओं के बावजूद रोचकता बनाए रखी है। सहयोगी कलाकारों का चुनाव बेहतर है। सभी ने निर्देशक की मदद की है। 'चोर चोर सुपर चोर' में नयापन जरूर है, लेकिन एक कच्चापन भी है।
अवधि- 99 मिनट
* * दो स्टार
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