फिल्म समीक्षा : चेन्नई एक्सप्रेस
रोहित शेट्टी और शाहरुख खान की फिल्म 'चेन्नई एक्सप्रेस' इस जोनर की
अन्य फिल्मों की तरह ही समीक्षा से परे हैं। ऐसी फिल्मों में बताने, समझने
और समझाने लायक गुत्थियां नहीं रहतीं। फिल्म सरल होती हैं और देश के आम
दर्शकों से सीधा संबंध बनाती हैं। फिल्म अध्येताओं ने अभी ऐसी फिल्मों की
लोकप्रियता के कारणों को नहीं खोजा है। 'चेन्नई एक्सप्रेस' आमिर खान की
'गजनी' और रोहित शेट्टी की 'गोलमाल' से हुई धाराओं का संगम है। यह
एंटरटेनिंग है।
रोहित शेट्टी की फिल्मों में उदास रंग नहीं होते। लाल, गुलाबी, पीला,
हरा अपने चटकीले और चटखीले शेड्स में रहते हैं। कलाकारों के कपड़ों से लेकर
पृष्ठभूमि की प्रापर्टी तक में यह कंटीन्यूटी बनी रहती है। सारे झकास रंग
होते हैं और बिंदास प्रसंग रहते हैं। 'चेन्नई एक्सप्रेस' में पहली बार
शाहरुख खान और रोहित शेट्टी साथ आए हैं। शुक्र है कि रोहित शेट्टी ने
उन्हें अजय देवगन जैसे सीक्वेंस नहीं दिए हैं। अजय और रोहित की जोड़ी अपनी
मसखरी में भी सौम्य बनी रहती है। यहां कोई बंधन नहीं है। हास्य दृश्यों में
शाहरुख खान अपनी सीमाओं की वजह चेहरे को विकृत करते हैं। शाहरुख खान यहां
अपने अंदाज और आदतों के साथ मौजूद हैं। अपनी ही फिल्मों के रेफरेंस से वे
किरदार में कामेडी के रंग डालते हैं।
दर्शकों की सुखद और सुंदर अनुभूति के लिए दीपिका पादुकोण हैं। दक्षिण
भारतीय शैली की साड़ियों और श्रृंगार में वह खूबसूरत लगती हैं। दीपिका का
आत्मविश्वास बढ़ा है। उनकी लंबाई अब आड़े नहीं आती। कई दृश्यों में तो वह
इसका फायदा उठाती हैं। 'चेन्नई एक्सप्रेस' में दीपिका पादुकोण ने संवादों
को खास लहजा दिया है। फिल्म में वह कई बार टूटता है। अगर लहजे की एकरूपता
बनी रहती तो प्रभाव बढ़ जाता।
रोहित शेट्टी की फिल्मों का धूम-धड़ाका, हंसी-मजाक, एसएमएस लतीफे और
अतार्किक सीक्वेंस हैं। मजेदार तथ्य है कि उनकी फिल्मों में इसकी कभी या
अधिकता खलती नहीं है। दरअसल, उनकी फिल्में टाइम पास का एक मजेदार पैकेज
होती हैं। रोहित शेट्टी ने अपने दर्शकों को पहचान लिया है और वे अपनी शैली
को निखारने के साथ मजबूत करते जा रहे हैं। उनके इस्टाइल को समझने और परखने
की जरूरत है।
'चेन्नई एक्सप्रेस' में चालीस प्रतिशत संवाद तमिल में हैं, कुछ दृश्य
बगैर संवाद के चलते हैं। भावनात्मक और नाटकीय दृश्यों में कुछ संवादों को
समझाया गया है। अपने प्रवाह में बाकी फिल्म समझ में आ जाती है। तमिल
रहन-सहन, भाषा और लैंडस्केप भी 'चेन्नई एक्सप्रेस' में है। लेखक-निर्देशक
ने सावधानी बरती है कि कहीं से भी आक्रमण या मजाक न हो। नॉर्थ-साउथ डिवाइड
को यह फिल्म विचित्र तरीके से कम करती है। रोहित शेट्टी ने अप्रत्यक्ष
तरीके से हिंदी दर्शकों को तमिल माहौल से जोड़ा है।
रोहित शेट्टी ने 'चेन्नई एक्सप्रेस' से यह भी साबित कर दिया है कि उनकी
ऐसी फिल्मों में भाषा और संवाद की बड़ी भूमिका नहीं होती। एक्शन-रिएक्शन से
भरपूर ड्रामा में बेसिक इमोशन रहते हैं, इसलिए बगैर कहे या बताए ही सब कुछ
समझ में आता है। हालांकि फिल्म में शाहरुख ने दीपिका को मिस सबटाइटल नाम
भी दिया है, लेकिन उनकी उपयोगिता खाने में नमक की तरह है।
'चेन्नई एक्सप्रेस' शाहरुख खान और दीपिका के पिता की शाब्दिक भिड़ंत
महत्वपूर्ण है। यहां शाहरुख खान और दीपिका बेटियों के पक्ष में लंबी तकरीर
करते हैं। इस प्रसंग में दीपिका के पिता एक शब्द भी नहीं बोलते। उन्होंने
दीपिका की कलाई मुट्ठी में कस ली है। यह एक भाव ही उनके विचार को जाहिर कर
देता है।
ईद के मौके पर आम दर्शकों के लिए यह शाहरुख खान और रोहित शेट्टी की ईदी है।
अवधि- 143 मिनट
*** तीन स्टार
Comments
Shahrukh is no more a king of Bollywood. Wrinkles on his face make him quite suitable for old age roles.
He should not waste time and money on media management. Even media manipulation can not save him, particularly english press, whose readers are in minority!
The truth is - he is not better than Aamir, Salman, Hrithik or even Ranbir Kapoor. He must accept this bitter truth.
Multiplex owners were so much disappointed with the underperformance of the film that MULTIPLEX OWNERS UNION have taken a firm decision that they wont give more than 2000 screens to any future films of SRK!