भविष्य की फिल्मों के प्रति मैं सचेत हूं-अजय देवगन




अजय देवगन का यह इंटरव्‍यू अगस्त 2004 में टैंगो चार्ली की शूटिंग के दरम्‍यान मुंबई की फिल्‍मसिटी में किया गया था। चवन्‍नी के पाठकों और अजय देवगन के प्रशंसकों के लिए खास भेंट है यह...
- रोल के चुनाव में आप काफी प्रयोग कर रहे हैं। बिल्कुल अलग-अलग स्वभाव की फिल्में हैं आपके। इस चुनाव के पीछे कोई पद्धति है क्या?
0 पहले यह धारणा थी कि हीरो को हीरो की तरह ही व्यवहार करना चाहिए। उसे एक ही तरह का किरदार निभाना चाहिए। अब इसमें बदलाव आ गया है। दर्शक बदल गए हैं। वे दूसरी तरह की फिल्में स्वीकार कर रहे हैं। इससे हमें भी स्कोप मिला है कि अलग-अलग रोल कर सकें। जैसा कि हॉलीवुड में होता है। इससे संतुष्टि भी मिलती है और अलग काम करने का आनंद भी मिलता है। यह भाव नहीं आता कि अरे यार आज फिर शूटिंग में जाना है और वही सब करना है। गाना गा रहे हैं आप या उसी प्रकार के दृश्य कर रहे हैं। किरदार अलग हों तो उन्हें निभाते हुए कुछ सोचना पड़ता है। यह रोचक बात है।
- आपका यह निर्णय करिअर के लिहाज से कितना लाभदायक साबित हुआ?
0 बहुत ही फायदा हुआ। दर्शकों से सराहना भी मिली। मीडिया ने भी सराहा। आजकल दूसरे एक्टर भी यही कर रहे हैं। इसका मतलब है कि यह काम कर रहा है।
- खाकीफिल्म में मुझे लगा कि एक निगेटिव किरदार की मौत हीरो जैसी नहीं होनी चाहिए?
0 मैं आपकी राय से सहमत हूं। लेकिन एक्टर की इमेज के हिसाब से कई बार अलग ट्रीटमेंट रखा जाता है। यह हॉलीवुड में भी होता है। इमेज की वजह से थोड़ा प्रिफरेंस दिया जाता है। यही कि फिल्मों में भी वह होना चाहिए। उससे फायदा भी होता है। खाकीके बारे में कई रिएक्शन अच्छे आए थे। कई बार ऐसा होता है कि हीरो अगर निगेटिव रोल कर रहा हो और क्लाइमेक्स में फिल्म का हीरो उसे मार रहा हो तो दर्शकों को संतुष्टि नहीं मिलती। कई बार यह ठीक से चित्रित नहीं हो पाता कि एक पाजीटिव कैरेक्टर निगेटिव कैरेक्टर को मार रहा है। मुझे नहीं मालूम कि मेरे किरदार के साथ वह ट्रीटमेंट कहां तक सही या गलत रहा। यह तो करते-करते पता चलेगा।
- लगता है कि निर्देशक एक्टर के प्रभाव में आ जाते हैं?
0 प्रभाव में न भी आएं तो हर एक्टर के प्रशंसक होते हैं। उन्हें शायद यह बात अच्छी न लगे कि उनके हीरो की पिटाई हो रही है। मेरे दर्शक और प्रशंसक संतुष्ट थे। खाकीमें मेरी भूमिका से वे संतुष्ट थे। आम दर्शक खुश थे। आज के दर्शक बदल गए हैं। मुझे लगता है कि खाकीमें मेरे रोल से मीडिया नाखुश हुआ। कुछ लोगों ने लिखा कि मेरे रोल में और भी कुछ होना चाहिए था। मुझे लगता है कि आप कुछ नया करते हैं तो दर्शकों की राय अलग-अलग होती है। नई चीज कुछ लोगों को पसंद आएगी और कुछ लोगों को पसंद नहीं आएगी। इससे हम सीखते भी हैं कि आगे करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।
- खाकीके बाद आपने क्या सीखा ?
0 अगर मुझे खाकीजैसा रोल फिर से मिला तो मैं अवश्य  करूंगा।
- युवामें दर्शकों की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो सकीं?
0 ऐसा ही रेस्पांस मुझे भी मिला है। इस मुद्दे पर आपसे पहले भी बात हुई थी। मुझे लगता है कि दर्शकों की अपेक्षा मेरी उम्मीद से ज्‍यादा निकली। अगली बार सावधान रहूंगा। आदमी अपनी गलतियों से ही सीखता है। अच्छी बात है कि मुझे अपनी गलती का एहसास है। इस एहसास के बावजूद अफसोस नहीं है। लोगों की प्रतिक्रियाओं से हम सीखते हैं, लेकिन कई बार बगैर किसी ठोस कारण के ही लोग रिएक्टिव हो जाते हैं। फिर उस पर हम ध्यान नहीं देते, क्योंकि हर चीज हम लोगों के हिसाब से नहीं कर सकते। आप विश्लेषित करें और उसमें सच दिखे तो खुद में सुधार करें। भविष्य की फिल्मों के प्रति मैं सचेत हूं। यह ख्याल रखूंगा कि मैं क्या कर रहा हूं। लोगों की अपेक्षा मेरी उम्मीद से ज्‍यादा बढ़ गई है।
- फिल्म में आपके किरदार के साथ न्याय नहीं हुआ?
0 नहीं, ऐसा नहीं है। जब मैंने सुना था तो रोल अच्छा लगा था। उस पर सही काम भी हुआ। फिल्म में वह अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं कर सका। मुझे भी प्रतिक्रिया मिली है कि उसकी पहचान नहीं बन सकी है। अगर आप कॉलेज पॉलिटिक्स की बातें कर रहे हैं तो आज के जमाने में वह है नहीं। आज के यूथ को कुछ लेना-देना नहीं है पॉलिटिक्स से। कैरेक्टर ऐसा बन गया है कि लोगों को लगता है कि क्यों ऐसा कर रहे हैं। अच्छे परफार्मेंस और अच्छे किरदार में भी अंतर होता है। किरदार की पहचान न बन पाए तो रोल जंचता नहीं है। लेकिन फिर हम ऐसी गलतियों से सीखते हैं। मुझे युवाकरने का कोई अफसोस नहीं है, उस फिल्म से मैंने बिल्कुल अलग चीजें सीखीं। मणि रत्नम बड़े अच्छे और अनुभवी निर्देशक हैं। उनसे चार चीजें सीखने को मिलीं। मेरे लिए यह भी बहुत है। परफार्मेंस के प्रति उनका एटीट्यूड बिल्कुल अलग था। कई बार वह दर्शकों के बीच असर नहीं करता, फिर भी आप सीखते तो हैं। एक अग्रेसिव सीन में मणि ने कहा कि मुस्कराओ। कुछ लोगों ने कहा कि उससे सीन की तीव्रता कम होगी, मगर मणि ने कहा कि नहीं, आप करो। मुझे बात अच्छी लगी और मैंने सीख भी ली। हो सकता है किसी और फिल्म में इसका इस्तेमाल करूं।
- मणि रत्नम की फिल्म में ही शायद किसी सीन में आपने उन्हें सलाह दी थी कि आप संवाद बोलने के बजाय अपनी खामोशी से बात जाहिर करेंगे। क्या संवाद आपके लिए बाधक हैं या उन्हें आप अधिक महत्व नहीं देते?
0 संवाद क्यों रखे जाते हैं। आप कुछ बताना या जताना चाहते हैं तो उसके लिए संवाद रखे जाते हैं। वास्तविक जिंदगी में भी कई बार ऐसी स्थिति में होते हैं, जब आप कुछ बोल नहीं पाते, मगर अपनी बात किसी और तरीके से जाहिर कर देते हैं। अगर आप किसी से नाराज हैं तो उस पर चिल्लाने के बजाय आप चुप्पी साध लें तो उस पर बड़ा प्रभाव होगा। यह स्थितियों पर निर्भर करता है। कई बार संवाद बेहद जरूरी होते हैं। साथ ही बिना वजह का भाषण देने का कोई फायदा नहीं है। आज ट्रेंड बदल भी रहा है। अब यह ऑडियो विजुअल मीडिया नहीं है, बल्कि विजुअल ऑडियो मीडिया बन गया है। अगर सिर्फ संवादों से ही बातें करनी हैं तो आप रेडियो का इस्तेमाल करें। फिर आप विजुअल और एक्सप्रेशन क्यों दिखा रहे हैं। जो चीजें एक्सप्रेशन से दिखाई जा सकती हैं, फिर वहां संवाद की क्या जरूरत है।
- मणि रत्नम ने आपकी सलाह मानी क्या?
0 मुझे ऐसी कोई स्थिति याद नहीं है। मैं जिस तरह की शैली या स्कूल में यकीन करता हूं, उसमें मणि का विश्वास मुझे से भी च्यादा है। वह जो भी सलाह देते थे या निर्देशक देते थे, वह मेरे विचारों के अनुकूल होता था। लोग मुझे कहते हैं कि मैं अंडरप्ले करता हूं। कई बार मणि मुझ से कहते थे कि यार थोड़ा ज्‍यादा हो रहा है, थोड़ा कम कर दे। सोचें कि वह किस स्कूल से आते हैं। उनका मानना है कि सब कुछ नैचुरल होना चाहिए। कभी हीरो की तरह न दिखें और न व्यवहार करें। मुझे उनकी बातें पसंद हैं। मैं खुद वैसे ही स्कूल में यकीन करता हूं।
- चूंकि आप अंडरप्ले करते हैं और किरदारों को हीरो नहीं होने देते, इसलिए आपकी लोकप्रियता शाहरुख खान या रितिक रोशन जैसी नहीं है। क्या सोचते हैं?
0 मुझे लगता है कि ऐसी तुलना नहीं होनी चाहिए। देखा जाए तो उनकी फिल्मों की तरह मेरी फिल्में भी चली हैं और उनकी फिल्मों की तरह मेरी फिल्में भी गिरी हैं। पिछले दो सालों में मेरी ज्‍यादातर फिल्में चली हैं। फिल्मों को ओपनिंग अच्छी मिली। सफलता का अनुपात ठीक रहा है। मेरी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल हैं।
- मैं बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की बात नहीं कर रहा। मैं पॉपुलर इमेज की बात कर रहा हूं?
0 लेकिन आखिरी चीज तो बॉक्स ऑफिस ही है। बॉक्स ऑफिस पर आप असफल हैं तो आपकी पॉपुलैरिटी बेमानी है। मैं ठीक से नहीं बता सकता। हो सकता है कि हम दोनों अलग-अलग शैली और स्कूल के हैं। तुलना न करें। वे अपना काम कर रहे हैं। मैं अपना काम कर रहा हूं। मैं अपने काम से खुश हूं, क्योंकि वह मैं अपनी शर्तों पर कर पा रहा हूं।
- मुझे क्या लगता है कि आप ज्‍यादा बोलते नहीं हैं और मीडिया में आपकी चर्चा कम होती है?
0 और भी बातें हैं। मैं शो नहीं करता। विज्ञापनों में नहीं आता। हर जगह मौजूद नहीं रहता। मैं इंटरव्यू नहीं करता। मैं नहीं चाहता कि दो साल के बाद किसी प्रकार का अफसोस करूं कि यार सफलता के लिए मैंने कोई समझौता किया। खुद को नाहक बदलने की कोशिश की। मुझे इसी बात की खुशी है कि अपनी शर्तों पर मैंने थोड़ी-बहुत कामयाबी पा ली है। मुझे इस तरह का अफसोस नहीं है कि इस कामयाबी के लिए किसी दबाव में रहना पड़ा। मुझे शोज पसंद नहीं हैं। मैं उस कांसेप्ट में ही यकीन नहीं करता। हो सकता है कि शोज से लोग ज्‍यादा कमा लेते हों, लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं है। आखिरी चीज तो अपना संतोष है। एक पत्रकार के तौर पर आप कभी किसी झूठी स्टोरी से तारीफ पा सकते हैं, लेकिन सालों बाद भी वह सच्चाई कचोटती रहेगी कि आपने झूठ के सहारे यह पाया है। अगर मेरा विवेक किसी बात के लिए राजी नहीं होता तो मैं उसे करता ही नहीं। मैं अपनी दिशा से खुश हूं। मेरी प्रक्रिया थोड़ी धीमी है, बस। मेरा मानना है कि अगर आप मेहनती हैं, आप में प्रतिभा है, आप जिम्मेदार हैं तो चीजें आपके पक्ष में हो जाती हैं। यही मेरा विश्वास है।
- आप की नियोजित प्रायवेसी की क्या वजह है?
0 मैं बहुत प्रायवेट किस्म का आदमी नहीं हूं। जो चीजें मैं निजी रखना चाहता हूं उन्हें में किसी के साथ शेयर नहीं कर सकता। कुछ लोग कहते हैं कि मुझे बातें करनी चाहिए, लोगों स मिलना चाहिए, आगे-आगे रहना चाहिए। उनकी राय में इससे मेरी लोकप्रियता में फर्क आएगा। मैं इन चीजों में यकीन नहीं करता। आजकल मैं ऐसी जिंदगी जी रहा हूं कि सेट से निकलने के बाद मैं भूल जाता हूं कि मैं एक एक्टर हूं। घर पर रहता हूं तो अपने परिवार के साथ घर पर रहता हूं। कम से कम खुशहाल पारिवारिक जिंदगी तो जी लूं। उसे मैं खत्म नहीं करना चाहता। आखिर हम काम क्यों करते हैं? अंत में तो खुशी और संतोष ही चाहिए न। मैं खुश और संतुष्ट हूं। अगर मैंने अपने बारे में बताना शुरू किया कि दिन में क्या करता हूं, रात में क्या करता हूं या सोने के पहले क्या करता हूं तो इससे मेरी खुशी प्रभावित होगी। हो सकता है कि दिन-रात बातें करने लगूं तो अपने काम से भी चिढ़ होने लगे, क्योंकि मैं ऐसा आदमी नहीं हूं।
- आप विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय नहीं रखते?
0 दरअसल मैं जजमेंटल नहीं हो सकता। मैं कैसे किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रख सकता हूं। इसके अलावा यह मेरा काम नहीं है। एक इंसान जो बाहर बहुत अच्छा हो, वह घर के अंदर उतना ही खराब हो सकता है। ऐसा होता भी है। कई बार आप अपनी गैरजानकारी में आरोप लगा देते हैं। लेकिन जब किसी मुद्दे पर अपनी राय रखना जरूरी समझता हूं तो अवश्य रखता हूं। मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। आखिरकार हम इंडस्ट्री के हिस्से हैं। हमारी एकता आवश्यक है। एकता रहे तो कोई हमें नहीं छेड़ सकता। अफसोस है कि हमारी इंडस्ट्री में एकता नहीं है। मैं चाहूंगा कि वह एकता हो। हमें कोशिश करनी चाहिए कि इंडस्ट्री को बाहर से बचाएं।
- ऐसा कैसे है कि आप किसी विवाद में नहीं फंसते?
0 चूंकि मैं विवादों में रहता ही नहीं। मैं दूसरों को आदर देता हूं। एक दूरी रखता हूं तो लोग मुझे से भी दूरी रखते हैं। हम वही पाते हैं, जो देते हैं। अगर मैं अपने स्पॉट ब्वॉय को गाली देता रहूं तो वह भी गाली देता रहेगा। सामने नहीं देगा तो पीठ पीछे देगा।
- रितुपर्णों घोष की फिल्म का अनुभव कैसा रहा? क्या वह एक्सपेरिमेंटल फिल्म है?
0 वह एक्सपेरिमेंटल फिल्म नहीं है। वक्त बदल रहा है। हर तरह की फिल्में लोग स्वीकार कर रहे हैं। आजकल कमर्शियल और नॉन कमर्शियल सिनेमा नहीं होता। फिल्में केवल अच्छी या बुरी होते हैं। अच्छी फिल्में चलती हैं, खराब फिल्में नहीं चलतीं। फिल्म छोटी या बड़ी हो सकती है। हम तुम  बड़े बजट की फिल्म नहीं है, मगर उसने बड़ा बिजनेस किया है। वह अलग फिल्म है और मुझे मजा आया। मुझे लगता है कि लोग ऐसी फिल्मों के लिए तैयार हैं। अगर सब जगह नहीं तो मल्टीप्लेक्स में तो अवश्य चलेगी यह फिल्म। मल्टीप्लेक्स से भी अच्छा बिजनेस हो जाता है। मैं एक संतुलन रखना चाहता हूं। ऐसी फिल्में भी करूंगा, जिससे छोटे शहरों के दर्शक संतुष्ट रहे। मैं क्लास के लिए भी फिल्में करूंगा। आजकल ऐसी स्क्रिप्ट नहीं है, जिसकी यूनिवर्सल अपील हो। दर्शक बंट गए हैं। स्क्रिप्ट के समय ही तय कर लें कि किस दर्शक के लिए बना रहे हैं। हर तरह के दर्शक को संतुष्ट नहीं कर सकते। हमें तय करना होगा कि क्या करना है।
- अभिनेता के तौर पर आपको एडजस्ट करने में कितनी दिक्कत होती है?
0 अगर आप प्रोफेशनल एक्टर हैं तो आपको हर निर्देशक के साथ बदलना पड़ता है। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो एक समय में एक ही फिल्म करें। मुझे कोई दिक्कत नहीं होती।
- रितुपर्णों के बारे में कुछ और बताएं?
0 एक बड़ा फर्क है कि वे लोग शांत हैं। वे आराम से काम करते हैं। यहां तो बहुत तनाव रहता है। मैंने फिल्म देखी है। मैं तो बहुत खुश हूं। कई बार फिल्म देखने के बाद समझ में आता है कि अरे गलती हो गई। इस फिल्म के प्रति थोड़ा संशय जरूर थ, मगर मैं संतुष्ट हूं।
- रितुपर्णों की शैली में थोड़ी भिन्नता रहती है। वह थोड़े फेमिनिन और पोयटिक लगते हैं?
0 इस फिल्म में नहीं है। यह रहस्यात्मक लग सकती है। रहस्य यह है कि हीरो-हीरोइन के क्या संबंध हैं। उनके बीच क्या है और क्या हो रहा है? किरदारों के रहस्य को उन्होंने बहुत अच्छी तरह रखा है।
- और भी बंगाली फिल्में कर रहे हैं?
0 अपर्णा सेन के साथ एक योजना बन रही थी। मगर वह पूरी नहीं हो सकी।
- फिर से रेनकोटके बारे में जानना चाहूंगा?
0 शांत रहा सब कुछ। पता ही नहीं चला कि फिल्म कब शुरू हुई और कब खत्म हो गई। वह अपने काम पर ध्यान देते हैं और एक्टर पर अधिक दबाव नहीं डालते। वह लिरिकल हैं। भावनाओं पर बहुत ध्यान देते हैं। रियल रखते हैं सीन। वह खुद ही लिखते भी हैं। इस फिल्म के संवाद भी ऐसे हैं, जो आप वास्तविक जिंदगी में बोलते हैं।
- आप एक ही साथ इमोशनल और एक्शन एक्टर हैं। कैसे यह संतुलन किया है आपने?
0 यह अपने आप हुआ है। मैं बहुत च्यादा होमवर्क नहीं करता। मेरा अपना मेथड होता है। शूटिंग शुरू करता हूं तो पहले एक-दो सीन में ही संतुलन बन जाता है। एटीट्यूड तय हो जाए तो फिर कुछ सोचना नहीं पड़ता।
- प्रकाश झा ने कहा कि आप इकॉनोमिकल एक्‍टर हैं?
0 मुझे नहीं मालूम कि वह क्या बताना चाहते थे। जब एक्टर असुरक्षित न हो तो वह एक्सपेरिमेंट कर सकता है। अधिकांश एक्टर इस भ्रम में रहते हैं कि वे किसी शॉट में कुछ कर के दिखा देंगे। कुछ साबित करने के मूड में रहते हैं। लोगों को यह न लगे कि शॉट में मैंने तो कुछ किया ही नहीं? असुरक्षा खत्म हो जाए तो आप संतुलन बना लेते हैं। आम तौर पर एक एक्टर बोल रहा होता है तो दूसरा सोचता रहता है कि मैं क्या कर लूं। हाथ उठा लूं या कुछ और कर लूं। जबकि उसे सिर्फ सुनना रहता है कि दूसरा क्या बोल रहा है? वही तो करना है। उसे सिर्फ सुनना है।
- सारे निर्देशक आपके वाक का इस्तेमाल कर रहे हैं?
0 ऐसा कोई सचेत प्रयास नहीं है। मैंने नोटिस ही नहीं किया और न ही किसी और ने बताया।
- कौन-कौन सी फिल्में आ रही हैं?
0 टैंगो चार्ली है, सिपाही, ब्लैकमेल, रेनकोट रिलीज होगी, बेनाम है। श्याम बजाज की है। प्रकाश झा, जॉन मैथ्यू, सोहम, करण जौहर की होगी। जॉन मैथ्यू की फिल्म मानवीय भावनाओं पर है। वैसी फिल्म आजकत किसी ने बनायी ही नहीं। जिंदगी के सही-गलत फैसलों और ग्लैमर वर्ल्‍ड पर है। अपहरण’, ‘गंगाजलकी तरह की फिल्म है। सोहम की थ्रिलर है। करण का अपना फिल्मी ड्रामा है। पीरियड फिल्म होगी। राजजी भी कुछ सोच रहे हैं।
- करण के साथ आपकी फिल्म को बड़ी घटना माना जा रहा है?
0 बेवकूफी है। मैं उन्हें सही लगा वह मेरे पास आए। स्क्रिप्ट पसंद  आई और मैं उनकी फिल्‍म में आ गया। उन्हें लगा कि मैं उस किरदार में सही लगूंगा।
- कहा जा रहा है कि शाहरुख से दोस्ती हो गई?
0 कभी झगड़ा ही नहीं था। सिर्फ मीडिया का वहम था। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। मैं हर फिल्म और कोआर्टिस्ट को गंभीरता से लेता हूं। वैसी ही एक फिल्म है। मुझे मेहनत करनी होगी।
- आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं है?
0 मैं हर फिल्म को गंभीरता से लेता हूं। इस फिल्म के प्रति भी गंभीर हूं। मेरे लिए उतनी ही मेहनत है बस... अच्छा है कि अलग-अलग तरह की फिल्में करूं और वह मैं कर रहा हूं। मेरा किसी के प्रति कोई रिजर्वेशन नहीं है। अच्छी स्क्रिप्ट हो तो किसी के साथ भी काम कर सकता हूं।
- नायसा के बाद क्या परिवर्तन आया है?
0 आप ज्‍यादा जिम्मेदारी महसूस करते हैं। समय का संतुलन रखने लगते हैं कि इतने बजे तक ही काम करूंगा। उसके साथ समय बिताऊंगा। वह साढ़े आठ बजे तक सो जाती है, इसलिए उसके पहले घर पहुंचने की कोशिश करता हूं। ताकि कुछ समय बिता सकें। प्राथमिकताएं थोड़ी बदलती हैं। व्यक्ति के तौर पर तो वही हूं। थोड़ा जिम्मेदार हो गया हूं। थोड़ा शांत हो गया हूं। घर पहुंचने पर बच्ची का चेहरा दिख जाए तो बाकी चीजें भूल जाती हैं।
- कितन अच्छे पिता हैं आप?
0 वह तो नायसा ही बड़ी होने पर बताएगी। मैं नहीं बता सकता। अच्छा या बुरा जो भी है।
- नायसा में क्या अच्छा लगता है?
0 इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है। अपने बच्ची की हर बार अच्छी लगती है। वह दुनिया की सबसे खूबसूरत लडक़ी होती है। लोगों को भले ही लगे कि आपका बच्चा कुछ गलत कर रहा है। मगर आपको नहीं लगता होगा। अप उसकी हर चीज पसंद करते हैं।
- अपने अनुभव बढ़ाने के लिए क्या करते हैं?
0 हम शूटिंग के सिलसिले में ऐसी जगह जाते हैं, जहां आम आदमी नहीं जाता है। हम सुनते हैं। पढ़ते हैं और लोगों से मिलते हैं। लोगों से मिलने में आपकी ग्रोथ होती रहती है।
- उनसे मिलना-जुलना किस स्तर पर होता है?
0 यहां पर ही देखें कि हर किस्म का आदमी है। हर व्यक्ति के साथ कुछ न कुछ समस्या है। हम उन्हें देखते-समझते हैं। उनसे बातें होती हैं। नई जगहों पर जाने पर नए लोग मिलते हैं। हमारी जानकारी बढ़ती रहती है। मैं सेट पर खाली या अकेला नहीं बैठता। लोगों से मिलता हूं। बातें करता हूं। मेरा मानना है कि घर से ज्‍यादा वक्त तो काम पर बिताते हैं। ये लोग हमेशा मेरे आसपास रहते हैं। उनसे दूरी कैसे रख सकते हैं। यह तो बहुत ही बोरिंग हो जाएगा। हम मर जाएंगे। अकेले कोने में बैठ कर शॉट का इंतजार करते हुए क्या करेंगे? ये लोग परिवार के सदस्यों की तरह आपकी देखभाल करते हैं। अगर  कुछ होता है तो वे खड़े रहते हैं। मैं मानता हूं कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री एक संयुक्त परिवार की तरह है। अगर एकता रहे तो कोई हाथ नहीं लगा सकता।
- और क्या कर रहे हैं?
0 डिस्ट्रीब्यूशन का काम है। प्रोडक्शन अभी बंद है, क्योंकि मैं बहुत व्यस्त हूं। हो सकता है कि अगले साल कुछ करूं। डिस्ट्रीब्यूशन के काम में थोड़ा-बहुत इंटरेस्ट लेता हूं।
- निर्देशन के इरादे का क्या हुआ?
0 अभी तो प्रोडक्शन नहीं कर रहा हूं। निर्देशन का क्या होगा? निर्देशन तो फुल टाइम काम है। मैंने सोचा ही नहीं था। पता नहीं राजू चाचाके समय कैसे बात उड़ी। फिलहाल कोई प्लान नहीं है।
- होम प्रोडक्शन क्यों बंद है ?
0 उसके लिए वक्त चाहिए। और वक्त मैं निकाल नहीं पा रहा हूं। एक भी दिन खाली नहीं मिल पा रहा है। उसके लिए तो फुर्सत चाहिए।
- मुश्किल स्थितियों में फंसे कैरेक्टर आप निभाते हैं, जो खुद कुछ नहीं कर पाता ?
0 साधारण आदमी जब असाधारण परिस्थितियों में फंसता है और विजयी होता है - तभी वह हीरो होता है। असाधारण व्यक्ति साधारण स्थिति में क्या करेगा। क्या उत्तेजना रहेगी। हीरो का कांसेप्ट ही है कि साधारण आदमी और असाधारण परिस्थिति। किसी भी स्थिति में परिस्थिति छोटी नहीं हो सकती। यही तो फिल्ममेकिंग है।
- स्क्रिप्ट सुनते समय इन चीजों पर ध्यान नहीं देते?
0 स्क्रिप्ट पसंद आए, बस... यह नहीं सोचते कि कैरेक्टर इस तरह का है या उस तरह का है।
- मस्ती क्यों की?
0 मस्ती मजेदार फिल्म थी। उसे करते हुए मजा आया। तब मैंने सोचा भी नहीं था कि फिल्म नहीं चलेगी तो क्या होगा? वह मेरी फिल्म भी नहीं थी। अगर चल गई तो आपको फायदा हो गया। कुछ फिल्में इसलिए भी करते हैं कि टेंशन नहीं चाहिए। रिलैक्स  माहौल रहता है। शूटिंग पर जाकर सोच रहे हैं। छुट्टी मनाने का मन होता है।
- आपको सारे निर्देशकों ने दोहराने की कोशिश की। ऐसा क्यों?
0 ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे भी वही लोग पसंद हैं जो प्रोफेशनल हैं। अच्छे व्यक्ति हैं। सभी का एटीट्यूड ऐसा ही रहता है। ऐसा न हो कि शूटिंग पर जाएंगे तो वह मिलेगा। और बोर करेगा। एक स्वस्थ माहौल तो होना ही चाहिए। तनाव रहे तो डायरेक्टर भी ठीक से काम नहीं कर पाता। आपके घर पर दस हजार टेंशन हो सकता है, पर आप सेट पर हैं तो आपको काम करना चाहिए, क्योंकि आपको पैसे मिले हैं। अन्यथा सेट पर मत आइए।
- कैसे संतुलन बिठाते हैं अलग-अलग निर्देशकों से ?
0 यह बहुत आसान है। अगर डायरेक्टर मे विश्वास हो तो उसकी शैली से फर्क नहीं पड़ता। हमें तो निर्देशक की बात माननी होती है। निर्देशक का होमवर्क क्लियर होना चाहिए। अपना इनपुट तो होता है, पर गाइडलाइन मिलना चाहिए। उस रास्ते पर चलना होता है। सारा श्रेय निर्देशक को मिलना चाहिए। मैं इस मामले में भाग्यशाली रहा कि मुझे सारे डायरेक्टर क्लियर मिले। चाहे मणि रत्नम, राजकुमार संतोषी या रामू हों... सभी एकदम स्पष्ट हैं। मैं कंफ्यूज नहीं रहता।
- आप विविध आयामी हुए हैं?
0 मैं एक इमेज में नहीं रहना चाहता। वेरायटी मिलता रहे। मैंने न तो इमेज बनाने की मेहनत की और न उसे तोडऩे की। इमेज दर्शक बनाते हैं। हमें कैसी फिल्में मिलती हैं इस पर भी निर्भर करता है। और फिर आपकी पसंद और प्राथमिकता भी तो होती है। आज दर्शकों को इमेज से मतलब नहीं है। वे अच्छा काम देखना चाहते हैं। एक्टर अच्छा कर रहा है या बुरा कर रहा है - वही देखते हैं।
- क्या आप हस्तक्षेप या पहल नहीं करते?
0 वह अपनी कोशिश हो सकती है। एक एक्टर सोच सकता है कि उसे अपनी इमेज बनानी है। ऐसी कोशिश मैंने कभी नहीं की। अगर कोशिश की होती तो आज तोडऩे की कोशिश नहीं करता। अगर उसे इमेज से खुश रहता। मैं कोई इमेज नहीं बनाना चाहता। मैं अलग-अलग किस्म की चीजें करना चाहता हूं ताकि लोग पटल कर कहें कि मैं अलग-अलग चीजें कर सकता हूं। यह तारीफ है और अच्छी बात है।
- समकालीनों में कौन अच्छे लगते हैं?
0 जो भी अच्छा कर रहे हैं, वे सभी अच्छे हैं। मैं जो कर सकता हूं, वे नहीं कर सकते और मैं उनकी तरह का काम नहीं कर सकता। अगर मेरा कंपीटिशन है भी तो खुद से है कि मैंने पिछली फिल्म से बेहतर किया है कि नहीं। वे मेरी कॉपी नहीं कर सकते, मैं उनकी कॉपी नहीं कर सकता। इतना काम है इंडस्ट्री में कि पूछिए नहीं। आप रोजाना चार फिल्मों को ना कहते हैं। मेरे साथ ही नहीं, सभी के साथ यही हो रहा है।
- थिएटर एक्टर काफी तारीफ करते हैं, आप उनकी मदद के लिए क्या करने हैं?
0 यही जिंदगी और फिल्म इंडस्ट्री है। मैं उनकी मदद नहीं कर सकता, वे मेरी मदद नहीं कर सकते। बस इतना ही कर सकते हैं कि साथ में काम करते समय उन्हें सहज रखें। हां, कभी लगे कि कोई अच्छा एक्टर है और स्क्रिप्ट सुनते समय उसका ख्याल आ जाए तो हम सुझाव दे देते हैं। उसके अलावा कुछ नहीं कर सकते।
- किस फिल्म को लेकर उत्साहित है। यह मत कहिएगा कि सभी के लिए हैं?
0 सभी के लिए होते हैं। तभी तो हां करते हैं। हां कई बार शूटिंग करते-करते लगता है कि निर्णय गलत हो गया। अगर मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं भी स्वीच ऑफ हो जाता हूं। जो सही नहीं है। अगर मेरी बात निर्देशक की समझ में न आए या उसकी बात मेरी समझ में न आए तो फिल्म नहीं बन सकती। परस्पर सहमति होनी चाहिए। फिर 50 प्रतिशत ही काम रहता है। एक तो बात तय है कि हर एक्टर टेंपरामेंटल होता है। चाहे कोई लाख कहे कि मैं प्रोफेशनल हूं और अपना काम पूरा करता हूं, मगर वह स्क्रीन पर दिख जाता है। आप अच्छे से अच्छे एक्टर को बोलते हैं कि अरे उसने गड़बड़ कर दी। वह खुद ही होता है। मैं मानता हूं, बाकी नहीं मानते। होता क्या है कि आप एक स्टोरी शुरू करते हैं। लिखते-लिखते लगता है कि मजा नहीं आ रहा तो फाड़ कर फेंक देते हैं। हमलोग फाडक़र नहीं फेंक सकते। क्योंकि इसमें बाकी लोग भी शामिल हैं। आप सोच सकते हैं कि पैसे वापस कर दूंगा, मगर उससे कुछ नहीं होगा। निर्माता मर जाएगा अगर उसकी फिल्म पूरी नहीं हुई। आप बैकआउट नहीं कर सकते। आप सोचते हैं कि सुबह तबियत खराब है, नहीं जाता हूं तो सौ लोगों का काम मारा जाता है। तीन या चार लोग ऐसे होते हैं, जिनके बगैर काम नहीं हो सकता। कई तरह के दबाव होते हैं। जिसे लोग नहीं समझ पाते। दबाव रहता है।
- एक्टिंग का स्कूल क्या है?
0 मैं किसी एक स्कूल का नहीं हूं। मैं एक्टिंग नहीं करने में यकीन करता हूं। एक बार शिवाजी गणेशन से पूछा गया था कि नो एक्टिंगक्या होती है। उन्होंने कहा था कि नो एक्टिंगजैसी कोई चीज नहीं होती। एक्टिंग तो एक्टिंग है। आप उसको कितना नैचुरली कर लेते हो। सिर्फ दस कदम चलने का शॉट है तो वह भी एक्टिंग ही है। मजा इसी में है कि वह कितना स्वाभाविक लगता है।
- एक्टिंग कितना प्रिटेंडिंग है?
0 यह कैरेक्टर पर निर्भर करता है। मेरे खयाल में सबसे ज्यादा जरूरी कनविक्शन है। अगर आप कनविंस हैं तो वह स्वाभाविक तौर पर आता है। अगर आप कनविंस नहीं हैं तो मुश्किल होती है। एक्टिंग में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पर वह मेहनत दिखनी नहीं चाहिए।
- एक्टिंग क्या तैरने की तरह आसान काम है?
0 जिन्हें आता है उनमे लिए आसान काम है। मैंने पहले कहा कि कई बार मैं स्विच ऑफ हो जाता हूं। वैसी हालत में भी बुरा काम नहीं करता। औसत काम तो होगा ही। कुछ और सोचते हुए भी आप तैर लेते हैं या गाड़ी ड्राइव कर लेते हैं। दस हजार चीजें सोचते हुए भी गाड़ी चलती रहती है और सही दिशा में मुड़ती रहती है।
- कोई ऐसी फिल्म, जिसमें बहुत मेहनत करनी पड़ी?
0 परफार्मेंस के स्तर पर तो नहीं, पर प्राभाविकता के लिहाज से द लिजेंड ऑफ भगत सिंहजैसी फिल्मों में मेहनत करनी पड़ती है। उसमें एक रियल लाइफ कर रहे हैं। आप उसे गलत तरीके से नहीं पेश कर सकते, क्योंकि इतिहास में वह व्यक्ति आया था और लोग उसके बारे में जानते हैं। फिर थोड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। वह ऐसा करेगा तो क्यों करेगा? आदि... इसका मतलब कि हमें खयाल रखना पड़ता है।
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0 जिम्मेदारी बढ़ जाती है। मैं समझौते वाले काम नहीं करता। किसी फिल्म और कैरेक्टर में विश्वास होने के बाद ही हां कहता हूं। सबसे पहले अपना संतोष आता है। शुरू में हर तरह के काम करने होते हैं। नाम और हैसियत हासिल करने के बाद उसकी जरूरत ही नहीं रह जाती।
- क्या कभी कैरेक्टर प्रभावित करते हैं?
0 कई बार लगता है कि इस कैरेक्टर पर थोड़ा ध्यान दें तो कमाल हो सकता है। फिर आप उसकी डिटेलिंग आदि पर काम करना होता है। भगत सिंहपर होमवर्क करना पड़ा। गंगाजलस्क्रिप्ट के साथ चला।
- कोई प्रेरक रहा?
0 एक व्यक्ति तो नहीं रहा। हां, काम पसंद आया तो उसने प्रभावित किया। कई लोग अच्छा काम कर रहे हैं। उनसे जरूरी सीखा है।
- अमिताभ बच्चन के बारे में...
0 सच है कि हमारी पीढ़ी अमिताभ बच्चन की फिल्में देखकर पली-बढ़ी है। वह हमारे अंदर हैं। अप चाहे जितनी कोशिश कर लें, वह आपके दिमाग से नहीं निकल सकते। बचपन से लेकर आज तक उनकी ही फिल्में देखें तो वह प्रेरणा स्रोत रहे।
- फिल्म कैसे बदल रही हैं?
0 हमारे लिए अच्छी बात है कि दर्शक बदल रहे हैं। लोग अलग किस्म की फिल्में बनाने में सफल रहे। पांच-तीन साल पहले की आशंका नहीं रही कि दर्शक की समझ में नहीं आएगा। आज वह नहीं रहा। वेरायटी आ रहा है।
- कौन लोग?
0 नई पीढ़ी... नई कहानियां आ रही हैं। हमें लगता है कि नई पीढ़ी को महत्व देना चाहिए। राज जी, मणि, करण, रामू... रूटीन से अलग काम करना। नए लोग कहानी पर ध्यान दे रहे हैं।





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