दरअसल : वीकएंड कलेक्शन का शोर-शराबा
-अजय ब्रह्मात्मज
अभी यह देखना ही नहीं है कि चल रही फिल्म किस हिसाब से उत्तम और मनोरंजक है। रिलीज के पहले विमर्श आरंभ हो जाता है कि इस हफ्ते रिलीज हो रही फिल्म 100 करोड़ का कलेक्शन करेगी कि नहीं? पत्रकार भी आजकल निर्माता, निर्देशक और स्टार से यही सवाल पूछते हैं कि क्या आप की फिल्म 100 करोड़ का आंकड़ा पार करेगी? अजीब सी होड़ है। 100 करोड़ क्लब में आने को सभी बेताब हैं। 100 करोड़ क्लब में शामिल होने के बाद ही हीरो को सही स्टार माना जा रहा है। जैसे कि ‘ये जवानी है दीवानी’ के बाद रणबीर कपूर खानत्रयी, अक्षय कुमार और अजय देवगन की पंगत में आ गए।
पहले दिन से लेकर पहले वीकएंड तक में कलेक्शन का यह शोर-शराबा चलता है। उसके बाद न तो दर्शकों को सुधि रहती है और न निर्माता-निर्देशक याद रखते हैं। फिल्मों की लोकप्रियता की मियाद छोटी हो गई है। बॉक्स ऑफिस पर पॉपुलर फिल्म भी तीन-चार हफ्तों से ज्यादा नहीं टिक पाती। 50 दिन और 100 दिन महज गिनती हैं। पूरे होने पर भी तसल्ली नहीं मिलती। हफ्ता बीतने के साथ दर्शकों की कतार ढीली और पतली होती जाती है। अभी चर्चा में चल रही ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ 100 करोड़ क्लब में आने के बाद रिकॉर्ड तोड़ रही है। अगर यह कोई नया रिकॉर्ड बनाती है तो भी यकीन रखें कि अगले छह महीने में कोई नई फिल्म इसे पीछे छोड़ देगी।
दरअसल, इधर लगातार मल्टीप्लेक्स बन रहे हैं। टायर टू शहरों में तेजी से सिंगल थिएटर मल्टीप्लेक्स में तब्दील हो रहे हैं। मल्टीप्लेक्स आते ही टिकटों के दर ज्यादा हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात कि कलेक्शन में पारदर्शिता आ जाती है। मुंबई में बैठ कर पता किया जा सकता है कि इलाहाबाद और पटना के थिएटर का क्या कलेक्शन चल रहा है? अगले पांच सालों में मल्टीप्लेक्स की संख्या और बढ़ेगी। टायर टू के बाद टायर थ्री शहरों में मल्टीप्लेक्स खुलने आरंभ होंगे। सभी जानते हैं कि विकसित देशों की तुलना में भारत में दर्शकों और थिएटरों का अनुपात बहुत कम है। मजबूरी में दर्शक अपने घरों में पायरेटेड डीवीडी से मनोरंजन करते हैं। अगर सारे दर्शक थिएटर में फिल्में देखने लगें तो वीकएंड कलेक्शन की रकम दोगुनी-तिगनी हो जाएगी।
वीएंड कलेक्शन को हर निर्माता तमगे की तरह चमका रहा है। खानत्रयी की निजी होड़ में कलेक्शन भी एक कारक हो गया है। अब फिल्म वही अच्छी है, जिसका कलेक्शन सबसे ज्यादा। सारी बहस-बातचीत कलेक्शन के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है। किसी का भी ध्यान फिल्म की क्वालिटी की तरफ नहीं है। ट्रेड पंडित, फिल्म पत्रकार और अब दर्शक भी कलेक्शन के आधार पर ही बातें करने लगे हैं। ऐसी खबरें आ रही हैं कि ज्यादा कलेक्शन की फिल्मों को अधिक दर्शक मिल रहे हैं। अगर फिल्म 100 करोड़ क्लब में आ गई हो तो उसके दर्शक तेजी से बढ़ते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता।
‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के कलेक्शन में शाहरुख खान के धुआंधार प्रचार को रेखांकित किया जा रहा है। दबे स्वर में कहा जा रहा है कि फिल्म कोई खास नहीं थी, लेकिन शाहरुख खान की कोशिशों से यह हिट हो गई। ऐसी धारणाओं पर गौर करते समय सोचना चाहिए कि शाहरुख खान ने ‘रा ़वन’ के समय इस से कम कोशिश नहीं की थी, फिर भी वह सफल फिल्म नहीं मानी जाती। बहरहाल, शाहरुख खान की ऊर्जा की नकल और मांग की जा रही है। नई फिल्मों के स्टार पर दबाव है कि वे भी फिल्मों की रिलीज के समय शहर-दर-शहर दौरा करें। अपनी फिल्मों के लिए दर्शक सुनिश्चित करें। प्रिव्यू से लेकर वीकएंड तक में ही कलेक्शन जुटाएं। एक मोटे आंकड़े के अनुसार किसी भी फिल्म को शत-प्रतिशत कलेक्शन मिले तो एक दिन की कुल राशि 35 करोड़ के लगभग होगी। अब देखना है कि निकट भविष्य में कितनी फिल्में वीकएंड में 100 करोड़ क्लब में पहुंचती हैं। अगले साल तक थिएटरों की संख्या बढ़ेगी तो वीकएंड कलेक्शन यों ही 125-150 करोड़ हो जाएगा।
Comments