अपने पैटर्न और कम्फर्ट जोन में खुश हूं-सोहा अली खान



-अजय ब्रह्मात्मज

-‘साहब बीवी गैंगस्टर रिटर्नस’ का संयोग कैसे बना?
0 तिग्मांशु धूलिया की ‘साहब बीवी और गैंगस्टर’ मैंने देखी थी। वह मुझे अच्छी लगी थी। पता चला कि वे सीक्वल बना रहे हैं। मैंने ही उनको फोन किया। मैंने कभी किसी को फोन नहीं किया था। पहली बार मैंने काम मांगा। पार्ट वन में बीवी बहुत बोल्ड थी। मैं सोच रही थी कि कर पाऊंगी कि नहीं? फिर तिग्मांशु ने ही बताया  कि बीवी का रोल टोंड डाउन कर रहे हैं। उस वजह से मैं कम्फटेबल हो गई। फिल्म की रिलीज के बाद भाई ने फोन कर के मुझे बधाई दी। उन्होंने बताया कि रिव्यू के साथ-साथ कलेक्शन भी अच्छा है।
- आपकी ‘वार छोड़ न यार’ आ रही है। इसके बारे में कुछ बताएं?
0 पहले मुझे लगा था कि नए डायरेक्टर की फिल्म नहीं करनी चाहिए। बाद में स्क्रिप्ट सुनने पर मैंने हां कर दी। वे दिबाकर बनर्जी के असिस्टेंट रहे हैं। इस फिल्म में मेरे साथ शरमन जोशी, जावेद जाफरी और संजय मिश्रा हैं। बीकानेर के पास बोर्डर के समीप भयंकर गर्मी में इसकी शूटिंग हुई है। अपनी सीमा में हमने हिंदुस्तान और पाकिस्तान बनाया था। यह वार सटायर है। ऐसी फिल्म हिंदी में नहीं बनी है।
- किस प्रकार से यह सटायर है?
0 सीमा पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के मोर्चे हैं। पाकिस्तानी कमांडर जावेद जाफरी हैं और इंडियन आर्मी ऑफिसर शरमन जोशी हैं। हमें लगता है कि बॉर्डर पर हमेशा तनाव रहता है और गोली-बारी होती रहती है। वहां मैं एक टीवी रिपोर्टर की हैसियत से जाती हूं। किसी वजह से वहां मुझे रुकना पड़ता है। इस सटायर में एक मैसेज भी है।
- वॉर रिपोर्टर के लिए आपने किसे आयडियल माना?
0 फिल्म में मेरा नाम रुत दत्ता है। अब आप जो भी समझ लीजिए।
- आप इतनी कम फिल्में क्यों कर रही हैं?
0 मेरे पास जो ऑफर आते हैं उन्हीं में से कुछ चुनती हूं। इस साल यह मेरी दूसरी फिल्म होगी। इसके बाद अरशद वारसी के साथ ‘जो भी करवा लो’ फिल्म आएगी। वह आउट एंड आउट कामेडी है। इस फिल्म में मैंने एक पुलिस इंस्पेक्टर का रोल किया है। मुझे एक्शन और कैबरे करने का मौका मिला। इसे समीर तिवारी निर्देशित कर रहे हैं।
- आपकी तमाम फिल्में सीमित बजट की हैं? आप बड़ी एंटरटेनर फिल्मों की हिस्सा क्यों नहीं हैं?यही आपने चुना है या महज संयोग है?
0 ऐसा नहीं है कि मैं बड़ी एंटरटेनर फिल्में नहीं करना चाहती हूं। मैंने पहले ही कहा कि मुझे जो मिलता है उन्हीं में से चुनती हूं। मैं फिल्में करना चाहती हूं, लेकिन कहीं कुछ अटका हुआ है। मुझे लगता है कि सिनेमा का उद्देश्य होना चाहिए। सिर्फ पैसे कमाने से तो यह आर्ट नहीं रह जाएगा। मैं फिल्मों में ज्यादा पैसे या नाम कमाने के लिए नहीं आई हूं। मुझे सेट पर जाना अच्छा लगे। अपना काम एंज्वाय करूं। वैसे भी हिंदी फिल्मों में हीरोइनों के लिए कम गुंजाइश रहती है। फिर भी मैं कोशिश करती रहूंगी।
- क्या आपको भी लगता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हीरो की ही पूछ होती है?
0 इंडस्ट्री अभी तक हीरो केंद्रित ही है। बाहर के समाज में जो स्थिति है वही यहां भी है। मुझे तो पता नहीं चलता कि इंडस्ट्री कैसे चलती है? कभी बड़ा स्टार भी नहीं चलता और कभी कोई छोटी फिल्म कमाल कर जाती है।
- पिछले दिनों में आई कौन सी हिंदी फिल्में आपको अच्छी लगी हैं?
0 मुझे ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ बहुत अच्छी लगी। मैं छह-सात घंटे की फिल्म एक साथ देख सकती हूं। मुझे तो अच्छी लगी। मुझे तो ‘गो गोवा गॉन’ भी पसंद आई। मैं कम फिल्में देखती हूं। मुझे पांच लोग बताएं तो फिल्म देखती हूं। अगर पांच सौ लोग बताएं तो नहीं देखती हूं। ऐसी फिल्म को मेरी जरूरत नहीं होती है।
- फिल्मों के अलावा क्या करती हैं आप?
0 योगा करती हूं। बैडमिंटन खेलती हूं। खूब घूमती हूं। पढऩे का भी शौक है। नई जगह देखने और रिलैक्स करने के लिए मुंबई से भागती हूं। काम के अलावा यहां रुकने की कोई वजह नहीं। मुझे यह शहर अच्छा नहीं लगता। यहां के लोग अच्छे हैं, लेकिन शहर तो खूबसूरत नहीं है। खूबसूरती के लिए मन तरसता है तो बाहर निकल जाती हूं।
- निजी जिंदगी में सोहा कैसी हैं?
0 मैं बहुत कम में संतुष्ट हो जाती हूं। मेरी पसंद भी सीमित है। आस-पास में दो-चार लोग ही रहें तो काफी है। यों समझें कि अगर मुझे कोई चप्पल पसंद है तो टूट जाने पर भी उसे टेप लगाकर मैं पहनती रहूंगी। लोगों से वगैर मिले दो-तीन दिनों तक आराम से मैं घर में रह सकती हूं। सभी कहते हैं कि मुझे खुद में बदलाव लाना चाहिए। इसके लिए मैं मनोचिकित्सक से भी मिल चुकी हूं। उनकी सलाह है कि मुझे अपनी जिंदगी में हर पैटर्न तोडऩा चाहिए। उनकी सलाह है कि एक्टर के तौर पर भी मुझे अपने कम्फर्ट जोन से निकलना चाहिए।




Comments

Seema Singh said…
हाँ ,ना की फिफ्टी-फिफ्टी अन्तर्द्वन्द की मानसिकता में मैडम सोहा अली जिन्दगी के हिडोले में ? वो स्वीकारती हैं "किसी से बगैर मिले दो-या तीन दिनों तक आराम से मैं घर में रह सकती हूँ । सभी कहते हैं की मुझे खुद में बदलाव लाना चाहिए "? सोहा ,मैं नहीं मानती जो लोग ऐसा कहते हैं उनसे आपको पूछना चाहिए , ऐसा क्यों ? उनके स्वभाव की जो सहज प्रकृति है ,जिसमें वे अच्छा महसूस " किसी अन्य के लिए उलझन बने बगैर " उससे बेहतर की सलाहें -मशवरे दुनिया का कोई मनोचिकित्सक नहीं दे सकता, यहां सोचने और समझने जैसी बात है , प्रकृति में मौजूद हम सब भिन्न-भिन्न हैं फिर सब के स्वभाव की प्रकृति एक सी कैसे सम्भव ? उन्हीं सब में अपने -आपको समझना चाहिए । कभी किसी नामी हस्ती " विशेषत: वैज्ञानिक या किसी नये आयामों के खोजी " के प्रारम्भिक जीवन के पहलुओं को देखने की। …;तब पता चलेगा। …! ?सोहा की यह सादगी और भोलापन क्या खूब है !

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को