शत्रुघ्न सिन्हा से अंतरंग बातचीत
शत्रुघ्न सिन्हा का यह इंटरव्यू 16 मई 1995 को किया गया था। इसका संपादित अंश हिंदी स्क्रीन में छपा था। अब कलाकारों के पास इतना समय नहीं रहता कि वे ढंग से विस्तृत बात कर सकें। पढ़ें और आनंद लें।
25 साल का कैरिअर
0 25 सालों से ज्यादा का यह फिल्म के शिखर के करीब सुख-दुख, तालियों, गालियों, मान-सम्मान, प्रगति और
व्यवधान के बीच का यह सफर संपूर्णता में अगर तौला जाए तो बहुत ही कामयाबी का सफर
रहा है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से। आभारी हूं भगवान का, भाग्य का (जिस भाग्य पर पहले कम विश्वास करता था,
लेकिन अब जब देखता हूं चारों तरफ और
खासकर पीछे मुडक़र देखता हूं तो लगता है कि सिर्फ अच्छा कलाकार या कला का भंडार ही
जरूरी नहीं है। खासकर फिल्मों के क्षेत्र में या कला के व्यावसायिक क्षेत्र में ।
चाहे वह टेलीविजन हो वीीडियो हो, फिल्म
हो। जिस तरह लाटरी के विजेता को अपने ऊपर गुमान करने का, अहंकार करने का कोई अधिकार नहीं होता, उसी तरह फिल्मों में स्टार बनने वाले को अपने
ऊपर अहंकार करने का कोई हक नहीं बनता। यह उसकी भूल होगी, मूर्खता होगा। जब मैं पीछे मुडक़र देखता हूं तो यह जरूर
लगता है कि और बहुत अच्छा कर सकता था, यह जरूर लगता है कि बहुत खामियां भी हुईं, बहुत भूल भी हुईं, भूल का शिकार भी हुआ लेकिन और आगे भी जा सकता था।
लेकिन डर भी जाता हूं, जब देखता
हूं कि पिछले पच्चीस सालों में जिस मोड़ या मुकाम पर मैं खड़ा हूं। सारे बिहार से
मैं ही अकेला उस मोड़ या मुकाम पर क्यों हूं। उसके पहले कोई क्यों नहीं था। और
आजतक कोई क्यों नहीं आया। क्या मैं अपने आपको बिहार का सबसे रूपवान या गुणवान मान
लें, कि मुझ से ज्यादा सुंदर या
गुणी कोई बिहार में नहीं है। बिहार में क्या, हर मोहल्ले में होंगे। मुझे इस बात की जरा भी गलतफहमी
नहीं है, हम से ज्यादा गुणी,
रूपवान और टैलेंटेड लोग हैं ... होंगे।
लेकिन यह लाटरी का टिकट मेरे ऊपर ही क्यों निकला। ये अहंकार नहीं करते। you
must be feeling great मैं कहता हूं नहीं, I am only feeling
blessed क्या वजह है कि इतने बड़े बिहार
से अकेला शत्रुघ्न सिन्हा क्यों, अकेला
बंगाल से मिथुन चक्रवर्ती क्यों? बंगाल
भी तो कला का खान है। अगर आधार गुण ही है तो कमल हासन जैसे दिग्गज कहना चाहिए को
मद्रास वापस क्यों भेज दिया गया। अगर गुण ही आधार है तो आज बेहतरीन कलाकारों में
से एक नसीरुद्दीन शाह और ओमपुरी को वही मान-सम्मान, वह मुकाम क्यों नहीं मिला। जिसके वो हकदार हैं। यह कुछ
समझ में नहीं आता। जितनी कोश्शि करता हूं, उतना ही समझना मुश्किल होता है। और लोग कहते हैं, मुझ से कहते हैं आप बहुत आगे बढ़े, मगर आप अमिताभ बच्चन नहीं बने। जबकि कुछ लोग
कहते हैं कि आप अमिताभ बच्चन से ज्यादा प्रतिभाशाली हैं, ज्यादा बहुआयामी हैं। फिर भी आप अमिताभ बच्चन नहीं
बने। मैं हंसता हूं, क्या मैं इस
बात का रोना रोऊं, जो मैं नहीं
बन सका। या उस बात के लिए भगवान को धन्यावद दूं। जो करोड़ों लोग नहीं बन सके और आज
मैं बना हूं।
-
0 एक घटना ने बहुत जबरदस्त छाप छोड़ी है मेरे मन पे। मंदिर में एक लडक़ा
पूजा करने गया उसने कहा, भगवान
मेरे पास जूते नहीं हैं। कृपा करो मुझे जूते दे दो। पूजा करके मुड़ा, उसके पीछे एक लडक़ा था, उसकी टांगें नहीं थीं। तो ये कि जो मिला, उसके गुण गाऊं या जो नहीं मिला उसके लिए रो-रो
के अपनी शक्ति को दुर्बल करूं। अपने आपको जलाऊं। यह बात ठीक नहीं है। जैसा कि
मैंने शुरू में कहा मिलिट्री से ट्रेनिंग लेने वाला हर कोई तो फील्ड मार्शल मानेक
शॉ नहीं बन गया। हर डॉक्टर डॉक्टर ढोलकिया या लाला सूरजनंदन प्रसाद नहीं बन गया।
तो उस पर दुखी होना ठीक नहीं है। मैं बेसिकली कंटेडेंड आदमी हूं। पिछले पच्चीस
वर्षों में सब कुछ खोने-पाने के बावजूद एक ही वाक्य कह सकता हूं - कि सितारों के
आगे जहां और भी हैं। आज भी ऐसा महसूस होता है कि अभी बहुत आगे जाना है। लोगों की नजरों
में सब कुछ पान के बावजूद ऐसा लगता है कि शायद ऊंचाई की, प्रगति की पहली सीढ़ी पर हूं।
0 कलाकार के नाते जितनी भी तारीफ होती है या आलोचना होती है उसे मैं
स्वीकार करता हूं। अगर सही तरीके से शिकायत होती है तो अपने आपको देखता हूं,
अपने भीतर ़ ़ ़ कोशिश करता हूं बढिय़ा
करने का, सुधारने का। लेकिन
कलाकार के नाते तसल्ली होती ही नहीं है। मैं पहले सोचता था कि लोग ऐसे ही डायलॉग
बोलते हैं। लेकिन आजमाने पर मैंने भी यही पाया। अपनी हर फिल्म ़ ़ ़ अपने हर काम
से लगता है कि मैंने कुछ किया ही नहीं है। चाहे अंर्वजलि यात्रा हो, ‘खुदगर्ज’ हो या ‘काला
पत्थर’ हो या कि ‘दोस्त’ हो कि ‘दोस्ताना’
हो कि ‘कालका’ हो
कि ‘मिलाप’ हो। जब लोग बहुत तारीफ करते हैं तो धन्यवाद तो
कह देता हूं, लेकिन मुझे कहीं यह
भी लगता है कि लोग मेरा मजाक तो नहीं उड़ा रहे। लगता है कि मैंने ठीक नहीं किया।
शायद यह एक अच्छी निशानी है। महसूस होता है कि मैं तरक्की की पहली सीढ़ी पर हूं।
बहुत मुकाम पार करना बाकी है। रही बात व्यक्तिगत तौर पर - व्यक्ति के नाते - आह
व्यक्ति के नाते - चूंकि मनुष्य बहुत जटिल प्राणि है। व्यक्ति के नाते कई बार
आत्मिक संतुष्टि मुझे होती है, जब
मुझे लगता है कि मैं दूसरे व्यक्तियों के काम आ सकता हूं। आ रहा हूं या आने की
प्रक्रिया में हूं। लगता है सागर के एक बूंद के समान ही समाज में मैं योगदान दे
रहा हूं। अगर सामाजिक जिंदगी के तहत, सामाजिक जिम्मेदारी के तहत राजनीति में निस्वार्थ जा रहा हूं। तो अच्छा
लगता है कि काले लोगों के बीच में अपने आपको सफेद पाता हूं। अहंकार तो नहीं एक
आत्मिक संतुष्टि होती है। मैं महसूस करता हूं, भगवान ने शक्ति दी है कीचड़ में भी कमल की तरह खिले
रहने की शक्ति दी है उसने। अगर मैं प्रगति का, निर्माण का, खुशहाली की कड़ी का एक टुकड़ा भी बन जाऊं (जिसकी प्रक्रिया में हूं) तो
तसल्ली होती है। चूंकि आम कलाकारों को देखता हंू कि उनके पास एक ही अध्याय है। वह
अध्याय वहीं शुरू होता है और वहीं खत्म हो जाता है। कलाकार-कलाकार-कलाकार। फिल्म
वाले तीन शब्दों - शराब-शबाब और कबाब के चक्रव्यूह में घिरे हुए हैं। अफसोस भी
होता है उनके लिए, खुशी होती है
अपने लिए कि सद््बुद्धि मिली। ऐसा स्वभाव, ऐसे लोगों का साथ, सही
मार्गदर्शन, वक्त पर सही काम
करने की कला जिसकी वजह से मैं समाज के प्रति काम आ रहा हूं। खुशी का कारण है।
- जिंदगी के रास्ते में कोई अफसोस। दोराहे-चौराहों से गुजरे होंगे। कभी
राह चुनने की भी दिक्कत रही होगी?
0 डाक्टर बन सकता था। दोराहे पर था कि डाक्टरी की पढ़ाई करूं या पूना
इंस्टीट्यूट जाऊं। मैंने अपने आपको नियत की नियति पर छोड़ दिया। और हां इंसान हूं,
कई फिल्में जो नहीं कर सका उसका अफसोस
है कि उन्हें करना चाहिए था। कई फिल्में की उनका अफसोस है कि नहीं करना चाहिए था।
वह तो स्वाभाविक है। ‘शोर’
मुझे करना चाहिए था। प्रेमनाथ वाली
भूमिका मनोज जी चाहते थे कि मैं करूं। ‘यादों की बारत’ में जो
भूमिका धर्मेन्द्र जी ने की। ऐसी बहुत सारी फिल्में हैं।
शादी के समय ... मेरा ख्याल
है। मैं दिल का साफ आदमी हूं। मैंने आपको नियत की नियति पर छोड़ दिया तो प्रकृति
रही मेरे साथ। कहीं फरेब नहीं किया।
- क्या-क्या मोड़ रहे?
0 मेरे पास संभावनाएं थीं, एक
तो बाकी स्टार की तरह बनूं - फूल बनूं और मुरझा जाऊं और एक था कि फूल बनूं और
खुशबू के दूर-दूर तक फैलाने की कोशिश करूं। तो मैंने कलाकार की, स्टार की लोकप्रियता के प्लेटफार्म सृजनात्मक,
रचनात्मक, क्रियात्मक कामों के जरिए काम को बढ़ाने की कोशिश की।
फिर सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों के जरिए। बहुत विरोध भी हुआ। पर जब मैंने ठान
लिया कि नहीं, इसका बहुत
रचनात्मक इस्तेमाल हो सकता है। स्टार तो हूं ही, कलाकार तो हूं ही। लेकिन उनके लिए भी फर्ज बनता है
जिनके बीच में रहता हूं। जो हमारे लोग हैं। चाहे वह अपना प्रदेश हो या देश हो।
इसलिए विरोध हुए, व्यवधान भी
हुए। आर्थिक दृष्टिकोण से घाटा भी हुआ। बहुत ज्यादा। मानसिक परेशानियां भी झेलनी
पड़ीं। अपमान भी झेलना पड़ा। अपने लोगों का विरोध झेलना पड़ा। बिहार प्रदेश की
सरकार की नजरों में तो मैं विपक्ष में ही माना जाता हूं। अभी पच्चीस सालों का वहां
बहुत बड़ा कार्यक्रम हुआ था। नागरिक अभिनंदन किया गया था। आपको सुनकर हैरत होगी कि
बिहार का पहला स्टार, बिहारी
बाबू के अभिनंदन में सत्तारूढ़ पार्टी का एक मिनिस्टर नहीं आया। कांग्रेस का एक
मिनिस्टर नहीं आया। सुनील दत्त गए। बड़े भाई हैं। पालिटिकल फंक्शन नहीं था वह। एक
कलाकार का मान था। लता मंगेशकर कल कम्युनिस्ट पार्टी में चली जाएं और उसके बाद
कलाकार लता मंगेशकर का सम्मान हो तो क्या गोपीनाथ मुंडे और मनोहर जोशी नहीं जाएंगे
उनके सम्मान में। हुसैन कल नक्सलवादी पार्टी में चले जाएं तो क्या हम उनकी पेंटिंग
को गाली देने लगेंगे? कल दिलीप
कुमार से मर्डर हो जाए तो हम क्या कहेंगे कि दिलीप कुमार बहुत खराब कलाकार हैं। हम
कह सकते हैं कि शायद खराब आदमी हैं। हम यह तो नहीं कह सकते कि खराब कलाकार हैं।
लेकिन यह दुर्भाग्य रहा। मुझे गांधी जी की वह पंक्ति याद है कि किसी भी अभियान में
सम्मान तक पहुंचने के लिए चार दौर से गुजरना पड़ता है उपहास, उपेक्षा, तिरस्कार, दमन और उसके बाद सम्मान। मैं उपहास का विषय बना, उपेक्षा का शिकार हुआ, तिरस्कार किया गया। इन दिनों मैं दमन और सम्मान के बीच
के दौर से गुजर रहा हूं।
- बिहार के प्रति जो आपका लगाव है, लेकिन आपके प्रति बिहारी की राजनीतिक सत्ता का जो
व्यवहार है, वह क्या आपके भाजपा
में होने से प्रेरित है?
0 मैं भाजपा में नहीं था तो भी कुछ ऐसा ही दुर्भाग्य रहा। वीपी सिंह को
लाने में इतनी मदद की, जबकि मैं
जनता दल में था नहीं बगैर पार्टी की सदस्यता ग्रहण किए, मैंने जो राजीव गांधी का विकल्प ढूंढऩे की कोशिश की।
भ्रष्टाचार और भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ जो आवाज उठाई। मुझे लगा कि वीपी सिंह उस पर
खरे उतरेंगे। अगर खरे उतरे तो बात अलग है। क्योंकि ज्योतिष न मैं हूं और न ज्योतिष
देश की जनता थी। बाकी राज्यों में तो मेरी जय-जयकार होती रही। मगर अपने राज्य की
सरकार को कांटे की तरह चुभता रहा मैं। कोई सहयोग नहीं, कोई पहचान नहीं, हर बात का विरोध। मैं ही सबसे बड़ा खतरा हूं।
- आपकी पार्टी की तरफ से भी तो विरोध रहा?
0 पार्टी की तरफ से भी हुआ। बीच में। पार्टी में जो हुआ, वह हम समझ सकते हैं। कुछ असुरक्षा भी रही।
हालांकि मैंने शुरू से कहा कि मैं तो निस्वार्थ भाव से आया इसमें। मैं कभी पद के
पीछे रहा नहीं। जिन्होंने मेरा राजनीतिक इतिहास देखा हो वे मानेंगे कि आज तक कोई
मांग नहीं, कोई डिमांड नहीं,
कोई कमांड नहीं। उस दिन मनोहर जोशी से
भी कह दिया कि कोई पूछे इनसे कि मैंने कभी किसी ट्रांसफर या पोस्टिंग की बात की
है। सरकार बनाने में मेरा योगदान हो सकता है और है, पर सरकार चलाने में उसकी डे टू डे फंक्शनिंग में मैं
कोई कारण नहीं बनता। लेकिन यह जरूर है कि हमारे बनाए हुए लोग अगर गलत काम करेंगे
या वही भ्रष्ट नीतियों पर चलेंगे तो मैं घुग्घूं नहीं हूं कि चुपचाप बैठ जाऊंगा।
मैं खुद नहीं ले रहा हूं अपने लिए कुछ। आज देश के चंद भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली
लोगों में से मैं भी हूं, जिस पर
किसी किस्म का आरोप नहीं है। चाहे व्यक्तिगत छवि हो, चाहे राजनीतिक छवि हो, चाहे सामाजिक छवि हो। एक जरा सी हल्की सी लोगों ने
कोशिश भी की खराब करने की, तो जो
मैंने विज्ञापन किया था सोडा का, जिसे
लोगों ने शराब का समझा था। मैंने उसके लिए खुलेआम क्षमा मांग ली कि ठीक है भाई
मानवीय प्रकृति है भूल हो गई। मगर अपराध नहीं हुआ। अगर मैंने माडलिंग की तो अपराध
नहीं था। फिल्मों में खून करता हूं तो कातिल नहीं बन जाता हूं। लेकिन मुझे एहसास
हुआ कि मुझ जैसे सचेत, जागरूक
जिससे देश के लोगों की अपेक्षाएं हैं। जिसके बारे में लोग अच्छा सोचते हैं। उसे
जरूर ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे
देश की जनता पर हल्का सा भी बुरा प्रभाव पड़े। लोकप्रिय व्यक्तियों को ऐसी भूलों से
बचना चाहिए। उसके अलावा कोई अपराध नहीं है। लोग कहते भी हैं फिल्मोद्योग के अकेूल
नामचीन और लोकप्रिय, जिनकी
लड़कियों के बीच अच्छी छवि हो, आज
कहीं कोई चक्कर नहीं सुनाई पड़ता। अकेला मिसाल हूं। जिस दिन शादी हुई, उसके बाद कोई स्कैंडल भी नहीं आया बाहर। और
ऐसा नहीं कि मैं उस पोजीशन पर नहीं हूं। चाहनेवालियों के खत तो अभी भी आते हैं।
ऐसा है कि आज का बोया हुआ कल काटना पड़ता है। तो हर तरफ से अपने आपको ठीक रखा।
इसका मतलब यह नहीं कि हम जो करेंगे, मैं चुपचाप देखूंगा। विरोध का तरीका होता है, पहले पार्टी के अंदर, फिर लोगों से बातचीत के अंदर। लेकिन जहां समझाना होगा,
समझाऊंगा। पर जहां डांटना होगा, वहां भी चुप नहीं होऊंगा।
लमहे लमहे की सियासत पर नजर रखते हैं
हमसे दीवाने भी दुनिया की खबर रखते हैं।
इतने नादां नहीं भी हम कि भटक कर रह जाएं
कोई मंजिल न सही रहगुजर रखते हैं।
मार ही डाले जो बेमौत ये दुनिया वो है
हम जो जिंदा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं।
इस कदर हमसे तगाफुल न बरतो साहेब
हम भी कुछ अपनी दुआओं में असर रखते हैं।
इतना असर है तो हम उस असर को
बेअसर नहीं होने देंगे। लेकिन बिहार के संदर्भ में कुछ अजीब ही रहा। चाहे मेरी कोई
भी पालिटिकल एसोसिएशन हो। जब कांग्रेस उसने मुझे अछूत समझा। चाहे एक तरफ बिहार की
जनता ने मान-सम्मान-जान दिया, बिहारी
बाबू का खिताब दिया। हिंदुस्तान में किसी भी कलाकार का नाम पंजाबी बाबू या गुजराती
बाबू नहीं सुना होगा। बिहार की जनता ने इतना गौरव दिया, वहीं बिहार की सरकार ने बिल्कुल अछूत की तरह, प्लेग की तरह या तो मुझ से दूर भागते रहे या
फिर मुझ से खौफ खाते रहे। मुझ से डरते रहे या जगह-जगह पर व्यवधान पैदा करते रहे।
लेकिन चलिए कोई बात नहीं।
- बिहार से ऐसा क्यों है?
0 घृणा पब्लिक से नहीं है। जो हमारा भावनात्मक बैंककै। उससे तो सागर जैसा
गहरा लगाव है। घृणा, भय या अछूत
की तरह व्यवहार यह सब सरकार का है। शायद उन्हें कोई खतरा दिखता रहा। शायद उन्हें
सोते-सोते ख्वाब आता रहा कि इतना लोकप्रिय है। अकेला आदमी है जो accepted भी है, respected भी है। able भी है। respectable भी
हैं। शायद यही खतरा बनेगा। अखबारों ने छापा कि मुझे मुख्यमंत्री बनने की गलतफहमी
या खुशफहमी है। न मैंने कभी कोशिश की और न मैं चाहूंगा। उसके बावजूद उन्हें लगता
है कि अगर कोई खतरा हो सकता है तो जो टावरिंग पर्सनैलिटी है, पहाड़ की तरह उभर कर आया है - वह है बिहारी
बाबू शत्रुघ्न सिन्हा। खामखां वाली बात है, मगर वहम का इलाज तो होता नहीं।
- क्या आपने कभी कविताएं भी लिखीं?
0 नहीं, कविताओं से
प्रेम बहुत है। पढऩे का शौक है। शेर-ओ-शायरी पढ़ता हूं। सामना में लिखता था - तीर
बिहारी बाबू के। समय की कमी है। व्यस्तता काफी बढ़ गई है। लगता है महीना अब 60 दिन
का होना चाहिए।
- अपनी दो-तीन फिल्में?
0 जो मुझे बहुत पसंद है, उसमें
से एक तो ‘अंतर्जलि यात्रा’,
एक राकेश रोशन की ‘खुदगर्ज’ एक ‘मिलाप’
हो सकता है,इसलिए पसंद हो कि मेरी पहली
फिल्म थी नायक के रूप में। ‘आ
गले लग जा’, ‘दोस्त’, ‘समझौता’, ‘शैतान’, ‘भाई हो तो ऐसा’, ‘रामपुर
का लक्ष्मण’, ‘दोस्ताना’,
‘काला पत्थर’।
0 ‘खुदगर्ज’ के चरित्र के जरिए मैं खुद को अपने आप के बहुत करीब महसूस कर रहा था। अपने
लोगों के बहुत करीब महसूस कर रहा था। एक मौका मिला कि उस जरिए कि हम बिहार और
बिहारी लोग जो काम कर रहे हैं उनकी छवि को कुछ बेहतर बनाएं। उसके पहले तो बिहारी
चरित्र नौकर हुआ करते थे। एक तो वह खुशी थी कि उसके जरिए मैं नया आयाम दे पाया।
अपनी भाषा से प्रेम। जो बोल चाल की भाषा है। काम करने में बहुत कमफर्टेबल। क्लीन
सब्जेक्ट। एक आदमी अपनी मेहनत, लगन
और दृढ़ता से संघर्ष, संयम और
हौसला के साथ कहां से कहां तक पहुंच सकता है। एक मिसाल भी लोगों के लिए। एक
कैरेक्टर मशाल भी लोगों के लिए। इन सब कारणों से वह मुझे बहुत पसंद है।
- ‘अंतर्जलि यात्रा’ ‘कस्बा’
की यात्रा कहां तक बढ़ी?
0 ‘पतंग’ की मैंने। हर साल एक फिल्म करने को सोचा है।
इस साल ही गैप हुआ शायद। लेकिन करूंगा जरूर। गौतम घोष से ही बात हुई है। कुमार
शाहनी ने भी एप्रोच किया। ऐसी फिल्में इसलिए करता हूं कि माई कंट्रीव्यूशन टू बेटर
सिनेमा।
- नया निर्देशक जो आपकी कीमत न दे पाए, पर आपको एप्रोच कर तो आप स्वीकार करेंगे?
0 प्राइस तो गौतम घोष भी नहीं दे पाए। मैंने उनकी फिल्म देखी ‘पार’। नया निर्देशक अपना पहले का काम दिखाए तो जरूर करूंगा। नहीं तो डर जाऊंगा
स्वाभाविक हूं। ‘सरदार पटेल’
देखी है। अब केतन मेहता चाहें तो काम
करूंगा। अब अगर कोई सिर्फ शत्रुघ्न सिन्हा करे लेकी आगे बढऩा चाहता हो तो कहूंगा
कि पहल बकरी लो, फिर हाथी की ओर
जाना। हां, अगर तुम्हारे अंदर
काबिलियत है कि तुम्हें हाथी ही चाहिए तो कोई बात नहीं। मैंने ऐसे बहुत लोगों को
बढ़ावा दिया। सुभाष घई को बढ़ावा दिया, राकेश रोशन को बढ़ावा दिया।
- बिहार से आप हैं, बिहार
में फिल्म इंडस्ट्री बड़ा करने की बात आपने नहीं सोची?
0 सोची, जरूर सोची।
मैंने कोशिश की। एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया। मैंने बाकायदा फिल्मसिटी की
स्थापना की बात सोची। मैंने कितने पैसे खर्च किए। कितनी बार आदमी भेजा। रांची में
राडा वाला जमीन दिखाया। पटना में पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार है। दस साल से
ज्यादा हो गए उस रिपोर्ट पर धूल जमती जा रहा है। 65 एकड़ से छोड़ते-छोड़ते दस एकड़
पर आ गया कि दस एकड़ दे दो। तुम्हारे लिए टूरिस्ट स्पॉट बना दूंगा। तुम्हारे लिए
फिल्मसिटी बना दूंगा। न केवल भोजपुरी, बंगाली फिल्में भी बनेंगी। और मुझ जैसा स्टार लोगों को लेकर भी आ सकता है।
क्योंकि सहूलियत है। एयरपोर्ट है। हमने प्रोजेक्ट रिपोर्ट दिया है। लेकिन बिहार
में अस्पताल भी बनवाना हो तो मुश्किल। मैं तो कहता हूं कि अगर मदर टेरेसा भी
अस्पताल बनाने आएं तो भी बिहार सरकार के लोग कहेंगे ‘उ त ठीक बा, लेकिन हमार केतना कट होखी’।
उनको अपना कट चाहिए। इसलिए बिहार से लोग भाग रहे हैं।
0 बिहार के प्रतिभाओं के लिए कोशिश की। मैंने कालका फिल्म बनाई। उसमें
बिहार के लोगों को काम दिया। कई लोगों ने कहा कि हमको छोटा रोल दिया। मैंने कहा -
तुम लोग तो मूंगी लाल ताजा-ताजा आए हो। छोटे रोल की बात कर रहे हो। बोलने की औकात
तुम्हारी क्या है? शत्रुघ्न
सिन्हा ट्रेंड होकर आया था तो मैंने जो शुरुआत की थी, उससे तो सौ गुना बड़ा रोल दिया है। मैंने भरपूर कोशिश
की। बिहारी बाबू फिल्म में बिहार की कितनी प्रतिभाओं को मौका दिया। लेकिन अगर उन
फिल्मों की सफलता के बाद भी ये सफल नहीं हो पाए तो मैं सफलता की गारंटी तो नहीं दे
सकता। अपना ही नहीं कर सकता, दूसरे
की क्या करूंगा।
0 बिहार से आने वाले ज्यादातर लोग एक्टिंग के लिए आए। कोई निर्माता सामने
नहीं आया। अगर कोई प्रोड्यूसर कामयाब होता बिहार से तो शायद उसे देखने आते। एक्टर
बनने में उन्हें आसान लगा। मैंने कई लोगों के लिए कोशिश की। मगर जबरदस्ती किसी को
नहीं बनाया जा सकता। कल पभी आए, आज
भी बैठे हुए हैं। अगर इतना आसान होता तो मेरे सारे रिश्तेदार एक्टर ही होते। क्या
मेरे खानदान में और कोई नहीं है या मैं कोई सुरखाब के पर लगाकर आया हूं। ऐसा होता
तो अमिताभ बच्चन का भाई भी बड़ा स्टार होता। धर्मेन्द्र के भाई भी कलाकार होते।
सुनील दत्त ने भाई को बनाने की बहुत कोशिश की। ‘राम तेरी गंगा मैली’ इतनी बड़ी हिट थी, पर उसके बाद चिंपू को फिल्म नहीं मिली। आज निर्देशक
बनना पड़ा। सुभाष घई तो बहुत टैलेंटेड एक्टर होकर आए थे पूना से, वो तो किस्मत ने साथ दे दिया निर्देशक बन गए।
यह लाइन बहुत खराब है। दस करोड़ में एक का अनुपात है।
- टीवी में काम करने से स्टारडम को कोई खतरा नहीं लगता?
0 टीवी एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे स्वीकारने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया। सिनेमा नहीं मरने वाला है।
सिनेमा तो खैर रहेगा। हालीवुड में भी नहीं मरा। फिल्मों की तकनीक नहीं रुकेगी।
साइंस और टेक्नोलॉजी के विकास को नीं बांधा जा सकता। यह दिन दूनी रात चौगुनी की
रफ्तार से बढ़ेगा। जहां तक मेरे काम करने का सवाल है, मैंने फिल्में बंद नहीं की हैं। यह विस्तार है। फिल्म
से समाज, समाज से राजनीति और अब
टीवी। यह मेरे काम का विस्तार है। यह उन लोगों की मूर्खता होगी जो मेरे टीवी में
जाने पर सवाल करेंगे, क्योंकि
आखिर वे लोग क्या कर रहे हैं। वे जीटीवी पर इंटरव्यू दे रहे हैं, स्टार टीवी पर आ रहे हैं, एटीएन पर आ रहे हैं। उनकी फिल्में टीवी पर
दिखाई जा रही हैं। यह तो गुड़ खाए गुलगुले से परहेज वाली बात हो गई। आ तो रहे हैं
टीवी पर। आज ज्यादातर लोग छोटे पर्दे के जरिए ही दिख रहे हैं। इसलिए छोटे पर्दे से
कतराने से काम नहीं बनेगा। यह हकीकत है। फिर ठीक किसी ने कहा, भले ही शेखर सुमन ने कहा, पर्दा छोटा या बड़ा नहीं होता, काम बड़ा-छोटा नहीं हो सकता। विदेशों में भी
एक से एक लोग काम कर रहे हैं। हिंदुस्तान में ओमपुरी सब जगह काम कर रहे हैं। आज
छोटे पर्दे का महत्व बड़े पर्दे से कम नहीं है और हो सकता है बड़े पर्दे से भी
बड़ा हो जाए। पहुंच बहुत ज्यादा है।
0 ‘देवता’ के लिए विशेष आग्रह था। सुनील, प्रदीप, शंकर अप्पा। अभी आदमी होने के साथ अमीर दिल का आदमी
है। इनका आग्रह रहा। उन्होंने महीनों इंतजार किया। यहां तक कहा कि अगर आप नहीं तो
सीरियल नहीं। अगर ‘देवता’
का रोल कोई करेगा तो आप करेंगे, नहीं तो रख देंगे। फिल्मी बात होगी, पहले लगा। आज तक का सबसे बड़ा सीरियल, अच्छी-अच्छी फिल्मों से ज्यादा पैसा खर्च हो
गए इसमें। बड़ा स्टार कास्ट। शत्रुघ्न सिन्हा, मुकेश खन्ना, ओमपुरी, शेखर सुमन,
आशीष विद्यार्थी सब तो हैं। यह किसी
फीचर फिल्म से बड़ी होगी। इसमें बहुत बड़ा हाथ छोटे भाई समान शेखर सुमन का है। वह
इस कदर पीछे लगा रहा कि उसके अनुरोध को, आग्रह को मैं नहीं टाल सका।
0 शेखर सुमन टीवी पर काफी अच्छा कर रहा है। मैं एक नई दिशा में कदम उठाकर
कोशिश की है कि बाकी लोगों पर भी इसका असर पड़ेगा। और लोग भी इस सच्चाई को समझते
हुए इस दिशा में ध्यान देंगे। आगे आएंगे। उसी तरह जैसे मैंने ‘अंतर्जलि यात्रा’ जैसी फिल्म की तो बाद में राखी और डिंपल ने भी वैसी
फिल्में कीं। मुझे भी अच्छा लगा कि शायद मैं भी कहीं प्रकाश पुंज की तरह प्रेरणा
स्रोत बनने में कामयाब रहा। उसके बाद और भी स्टार आएंगे। लोग आ तो रहे ही हैं - अब
नाक सीधे पकडि़ए या उल्टा पकडि़ए।
0 शुरू-शुरू में टीवी के लिए लोग इंटरव्यू भी नहीं देते थे। अब सब कुछ बदल
गया है। अब टीवी की दौड़ कोई रोक नहीं सकता है। इसको व्यवसाय नहीं बनाया है। टीवी
के जरिए जितना गांव-गांव के घर में घुस सकते हैं। उतना फिल्मों के जरिए नहीं जा
सकते। वह भी फर्क है। लेकिन यह भी ठीक है कि -- ठीक नहीं है। यही हुआ होगा कि टीवी
के बड़े स्टार अपने ऊपर ध्यान आकृष्ट नहीं करा पाते। मेरे लिए तो अच्छा है कि
सामाजिक काम करना है तो टीवी जितनी मदद कर सता है। फिल्म तो गांव के लोग साल-छह
महीने में एक बार देखेंगे। वह भी जरूरी नहीं है कि पूरा परिवार देखे। टीपी पर उतने
समय में 50 बार देख सकता है। मेरे लिए यह विस्तार है। एक और नया आयाम।
0 शत्रुघ्न सिन्हा के आने से छोटे पर्दे पर शत्रुघ्न सिन्हा का बड़प्पन आ
रहा है। मेरे आने से उनकी इज्जत बढ़ गई है ऐसा भी नहीं है कि मेरे पास काम नहीं
है। इतना व्यस्त हूं। सनडे को भी शूटिंग कर रहा था। कुछ लोग कह रहे हैं कि काम
नहीं है या अभी मौका मिला। मेरे पास तो सिप्पी का भी प्रस्ताव आया था। पहले क्यों
नहीं कर लिया। सही वक्त पर सही काम किया है मैंने।
- सही वक्त कैसे?
0 दो साल पहले विकास नहीं हुआ था। अब वह क्रिसेंडो पर आया है। अब वह धार
है कि अब नहीं जंप करूं तो पीछे रह जाऊंगा। इसके पहले देख रहा था। समझ रहा था।
स्टडी कर रहा था। टीवी अपने पूर्ण यौवन पर है। खासकर हिंदुस्तान में। हो सकता है
कल टीवी भी क्रैश कर जाए।
- बतौर निर्माता क्यों नहीं?
0 ख्याल तो आया था। बहुत लोग पीछे पड़े हुए हैं। एक समय मेरी वाइफ काफी
सोच रही थीं। अब उसमें दो बात है। आसार बहुत हैं कि अगली सरकार हमारी सरकार हो
जाएगी। अब चंद महीनों की बात है। इसमें यही बात है। आज मैं अपन छवि की बात करता
हूं कि अब मैं कुछ ऐसी राजनीतिक हस्तियों में हूं, जिन पर सौभाग्य या दुर्भाग्य से कोई आरोप नहीं है। कोई
डील नहीं है। पारदर्शी हूं। जब सरकार मेरी आ जाएगी तो बात तो मेरिट पर ही होगी,
लेकिन कहने वालों की जुबान नहीं रूकेगी
कि हां भैया शत्रुघ्न सिन्हा जी का पास नहीं होगा तो किसका पास होगा। इस बात की
पुष्टि के लिए एक उदाहरण देना चाहूंगा कि जितने दिन तक जनता दल की सरकार रही और जब
तक सुबोध कांत मंत्री रहे (उनके मंत्री बनाने में अपना भी कुछ हद तक योगदान हो
सकता है) लेकिन तब तक मैंने सीरियल तो छोड़ दीजिए अपनी एक फिल्म चलवाने की बात
नहीं की मैंने। उस समय कोई भी प्रोजेक्ट ले सकता था आसानी से। सुबह देता और शाम को
मिल जाता। उसी छवि की चिंता है। लोग तो यही कहेंगे न सरकार उसकी है तो उसकी बात
कौन टालेगा।
- लेकिन लोगों के कहने से आप क्यों रूकेंगे?
0 मेरा पर्पस सौल्व हो जाता है। मैं जो करता, ‘देवता’ जैसा
ही कुछ करता न। कल जो लोग मेरे पास आए, वे इसमें भी बड़ा सब्जेक्ट लेकर आए थे। वह रमेश सिप्पी के सीरियल से भी
बड़ा सीरियल था। सोप ओपरा लेकर आए। आज के आदमी की कहानी है। जवानी से लेकर बुढ़ापे
तक की कहानी। ‘देवता’ के पहले आए होते तो शायद वही कर लेता मैं। हो
सकता है पहले भी सोचा हो लोगों ने, पर
हिम्मत नहीं कर पाए हों। ‘देवता’
से वह झिझक खत्म हो गई।
- टीवी कितना देखते हैं?
0 बहुत कम। मौका मिल ही गया तो समाचार देखता हूं। लेकिन जब से दूरदर्शन पर
झूम दर्शन शुरू हुआ है तब से वही देखता हूं। ‘फिल्मी चक्कर’, ‘फिल्म दीवाने’, ‘आपकी अदालत’ देख लिया है।
- आज के माहौल में आप निर्णय कैसे लेंगे भूमिका का?
0 पहले मैं केवल रोल देखता था। अब तनी शर्ते होती हैं - एक रोल तो अच्छा
होना ही चाहिए, जो मेरे स्टार
स्टैटस का हो। दूसरा जो पब्लिक स्टैटस को शूट करता हो। तीसरे सामाजिक छवि का ख्याल
रखे। आगे भी कुछ करूंगा तो इन तीनों का ख्याल रखूंगा।
- अपने पहुंच या प्रभाव से बिहार को नहीं लाएंगे क्या?
0 ऐसा कुछ होगा तो मैं जरूर कोशिश करूंगा। बिहार की छवि सुधाने की अवश्य
कोशिश करूंगा। चाहे टीवी का जरिया हो या और कोई माध्यम हो। बुद्ध का प्रदेश बुद्धु
का प्रदेश हो गया हो। देहाती होना अपराध नहीं है। पिछड़ा होना अपराध नहीं है।
बिहार के बाहर गए लोग स्वयं को बिहारी कहलाने में शर्म महसूस करते हैं। अपने बारे
में बताना नहीं चाहते। अपनी पहचान भूलना चाहते हैं। कल अपने मां-बाप को भूल
जाएंगे। फिर अपने आप को भूल जाएंगे। जरूरत है कि और लोग भी आगे आएं। न सिर्फ
निर्माण में उड़ान में भी आगे आएं।
- भाजपा ही वर्तमान में सही पार्टी क्यों है?
0 इसलिए कि भाजपा ही सबसे सही पार्टी है। खासकर मुझ जैसा आदमी जो कई
राजनेताओं और पार्टियों के नजदीक होने के बावजूद यहां खुलासा कर दूं नजदीक होना
पार्टी का सदस्य होना नहीं है। मैं नजदीक वैसे ही था। जैसे आम जनता रहती है। मैंने
उनकी रोटी नहीं खाई। कोई काम नहीं लिया। राज्यसभा नहीं लिया कि उनके गुण गाऊं। और
न मेरा कोई इरादा था। मैं कहता भी था कि आज मैं इन लोगों को समर्थन दे रहा हूं,
इसलिए समर्थन मांग रहा हूं। कल अगर ये
लोग भी पैमाने पर सही नहीं उतरे, मापदंड
पर खरे नहीं उतरे तो कल मैं इनके खिलाऊ भी बगावत की आवाज बुलंद करने से नहीं
चुकूंगा और ऐसा मैंने किया भी। जब मुझे लगा विश्वनाथ प्रताप सिंह विनाश प्रताप
सिंह बन रहे हैं तो देश में लोग जलने लगे, मरने लगे, कामकाज ठप्प
हो गया। तब बगावत की आवाज बुलंद की। मैंने यहां तक कहा कि विश्वनाथ जी नोटों के
मामले में बहुत ईमानदार हैं। वोटों के मामले में बहुत करप्ट हैं। मैंने यह भी कहा
मुझे ईमानदार, मगर निकम्मा और
भ्रष्ट, मगर प्रगतिशील
प्रधानमंत्री तो मैं दूसरे को चुनूंगा।
मैंने पाया कि भाजपा अकेली
ऐसी पार्टी है, जिसके अंदर न
केवल ऐसे-ऐसे विभूतिगण हैं। सत्य और सच कहने की क्षमता और शक्ति दोनों भाजपा में
है। आज लोग मान रहे हैं। आज भाजपा की बात मानी जा रही है। देश की जनता आज महसूस कर
रही है कि काश्मीर के बारे में भाजपा की राय सही है। देश की सबसे ज्यादा चिता करने
वाली। देश की खोई हुई गरिमा को हासिल कर सकती है भाजपा। समस्याओं का समाधान कर
सकती है। इसलिए सब कुछ सोच समझ कर आखिरी बार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ
हूं। अखबारों के कहने में बहुत विरोधाभास है। वे शिवसेना के कुछ कहने पर तो विरोध
करने आ जाते हैं। चरस का पैकेट हथ में लेकर बहुत लोग आ गए थे अंग्रेजी अखबार वाले।
लेकिन पंजाब में जब लाला जगत राय पर आक्रमण हुआ तब कोई नहीं गया। गुजरात समाचार पर
आक्रमण हुआ, तब कोई नहीं गया।
कलकत्ता में आक्रमण हुआ तो नहीं गए। इतनी सेलेक्टिव एटीट्यूड है और वे कहते हैं
कम्युनल पार्टी। मगर आज तक जवाब नहीं दे पाए। देश के बड़े बुद्धिजीवी दूसरी पार्टियों
में हैंँ सभी क्षेत्रों के लोग हैं। क्या ये सभी सांप्रदायिक हैं क्या?
- 6 दिसंबर 92 की घटना को क्या कहेंगे?
0 बहुत पुरानी बात हो गई। अखबारों न इतना रिएक्ट किया कि इसे नेशनल शेम
कहा। मैं मानता हूं, मेरे लिए वह
दुखपूर्ण घटना थी। मैं खुद यही चाहता कि कानून के दायरे में हल होता। हालांकि मुझे
लगा कि कानून के दायरे में करने की नियत नहीं थी सरकार की। ऐसा क्यों हुआ? अभी ‘चराए-ए-शरीफ’ को नेशनल
शेम क्यों नहीं लिखा। वही अखबार हैं न। काश्मीर में मंदिर तोड़े गए तो नेशनल शेम
क्यों नहीं लिखा। भारत-चीन लड़ाई में भारतीय सैनिक मारे गए तब नेशनल शेम क्यों
नहीं लिखा। इतने कर्जे में डूबा हुआ था तब नेशनल शेम क्यों नहीं लिखा। अभी प्लेग
से लोग मरे तो नेशनल शेम क्यों नहीं लिखा?
- अगर इसे लिखा तो क्या गलत लिखा?
0 बहुत गलत लिखा। इसलिए कि बात एकतरफा थी। ‘बहुमत हिताय बहुमत सुखाय’। बहुमत क्या सोचती थी।
- वह तो सरकार गिर गई?
0 गिर नहीं गई, गिराई
गई। बिल्कुल असंवैधानिक तरीके से गिराई गई।
- लेकिन फिर से नहीं आई?
0 पर इसका क्या जवाब होगा, अगर
फिर से आ गई तो। आज कोई सोच सकता था कि महाराष्ट्र और गुजरात में भाजपा आ जाएगी।
कोई सोच सकता था कभी। इसका मायने है कि जो लोग सांप्रदायिक कह रहे हैं। वे सबने
बड़े सांप्रदायिक और संर्कीण वे लोग हैं। जो भारत की जनता का अपमान कर रहे हैं।
जनमत का अपमान कर रहे हैं। काश्मीर में चुनाव क्यों करा रहे हैं? मैं खुद कह रहा हूं कि किसी भी मस्जिद
(हालांकि मस्जिद नहीं थी वहां पर, सिर्फ
ढांचा था) या कुछ भी हो, उसको तोडऩे के हक में नहीं हूं। क्यों किसी की
भावना को ठेस पहुंचाएं। मेरे बहुत सारे मुसलमान दोस्त हैं। मेरे बच्चों को पालने
वालों में एक मुस्लिम औरत रही है। यह तो मैंने भेदभाव रखा ही नहीं। ऐसा होता तो
पाकिस्तान जाता ही नहीं। एक बार नहीं, कितनी बार गया।
- निजी जीवन में कितने धार्मिक हैं?
0 उतना ही, जितना एक आम
इंसान। किसी को दुख न पहुंचाएं, ऐसा
काम न करें, जिससे किसी को ठेस
लगे। कर्म में विश्वास करता हूं। अपने कार्य के परिणामों का श्रेय भगवान को देना।
अगर मनमाफिक परिणाम न हो तो अपने अंदर टटोलना। और भक्ति मेरे लिए शक्ति है। जरूर
भक्ति में विश्वास करता हूं। वही शक्ति देती है और वही ...। भक्ति मेरे लिए मॉनीटर
भी है।
0 राम जन्म भूमि की बात समाप्त करूं- कई बार सिचुएशन बियांड कंट्रोल हो
जाती है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि मेरे मृत शरीर पर ही देश का विभाजन होगा।
देश तो बंट गया। पाकिस्तान बन गया। बापू का आज भी उतना ही आदर करते हैं। वे
श्रद्धेय हैं। वही इस बार हुआ कि सिचुएशन कंट्रोल से बाहर हो गई। इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने कहा कि 6 नवंबर को फैसले की सुनवाई होगी। सिर्फ यह फैसला करना रह गया
था कि अधिकृत जमीन है या नहीं। जो नहीं होता, उस पे काम शुरू हो जाता। उसके बाद लोगों ने कहा कि एक
महीने के बाद फैसला देंगे। इतने छोटे से मसले को एक महीना बाद देने का कोई
मतलब ही नहीं था। चलो फिर भी मान लिया। 6
नवंबर को सुनवाई हुई तो कहा 4 दिसंबर को फैसला करेंगे। न्यायालय अच्छी तरह जानती
थी कि लाखों लोग जमा हैं। पिछली बार कार सेवा करके चले गए थे। बार-बार लोग नहीं
जाएंगे। लोग उत्तेजित हैं। 4 को भी फैसला कर देते। फिर बताया कि एक सप्ताह बाद
फैसला देंगे। तो लोगों को लगा कि यह साजिश है टालने की। उसके बाद फिर जय श्री राम,
हो गया काम। अगर आप इस तरह छेड़ेंगे और
जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ करेंगे आप। तो नियत में खोट थी। अगर दोषी हैं (जो कि
नहीं है भाजपा) तो कांग्रेस दोषी है। मुसलमान भाई सही कहते हैं।
- बिल्कुल कांग्रेस वही सोचती थी जो भाजपा चाहती थी?
0 मैं इस पर सहमत नहीं होऊंगा कि भाजपा चाहती थी कि ढांचा टूटे। पहली बात
कोई भी समझदार व्यक्ति, कोई भी
राजनीतिक पार्टी, जो सत्ता में
आने की हकदार पार्टी है, कभी भी
ऐसा बेवकूफाना हरकत नहीं करेगी कि विश्व के सामने ढांचा तुड़वाएं। अगर तोड़वाना
होता तो सरकार उनकी ही थी। काम आराम से रातोरात हो जाता। बदनामी भी कांगेस को हो
सकती थी, ढांचा टूट सकता था। कुछ
लोगों को पकड़ा भी गया था। आराम से हो
सकता था। कर के कहलवा देते कि मैं तो कांग्रेस का आदमी हूं। एक पंथ दो काज भी हो
सकता था। मुसलमान भाई लोग ठीक ही चिढ़े हुए हैं। कांग्रेस सरकार ने क्या किया?
आज तक कुछ नहीं हो पाया।
कांग्रेस का कहना था कि रैपिड एक्शन फोर्स इसलिए नहीं पहुंच सकी कि रास्ते
में व्यवधान खड़े कर दिए गए थे, पर
वह व्यवधान सरकार भी खडक़ सकती थी। ताकि कार सेवक वहां तक नहीं पहुंचे। दरअसल वे
चाह रहे थे कि ऐसा हो जाए। वे चाहते थे कि इससे भाजपा की बदनामी होगी और मुसलमानों
का वोट उन्हें मिल जाएगा, लेकिन
राज खुल गया। भाजपा आगे बढ़ गई। भारत सरकार क्या इतनी कमजोर है कि वह उसे नहीं रोक
सकती थी। हिंदु-मुस्लिम दंगा रोक नहीं सकती थी। ये लोग लाशों के सौदागर हैं। यह
कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन का नतीजा है।
0 कांग्रेस में कई दोस्त रहे।
सुनील दत्त मेरे बड़े भाई समान हैं।
0 शबाना ने कहा he is the BJP biggest hope जावेद ने कहा he is the only hope मैं उनकी प्रतिक्रिया से खुश हुआ। यह भावना
अच्छी है। वे बहुत सेक्युलर आदमी हैं।
- एक अच्छा आदमी गलत जगह पर?
0 वो लोग कह रहे हैं जो खुद गलत है या जो मायनेरिटी में हैं या जिनके
सोचने का ढंग ही अलग है। फिर भी लोग मुझे अच्छा कहते हैं, यह अच्छा लगता है। मैं इतने कच्चे दिमाग का आदमी नहीं
हूं। मैं सोच-समझ कर भाजपा में हूं। मुहब्बत में धर्म को आधार मान ही नहीं सकता।
मेरा बेटा मुसलमान लडक़ी से शादी कर ले तो मुझे क्या एतराज होगा। पूजा करे, ना करे। नमाज पढ़े, ना पढ़े्र। मैं केवल इतना चाहूंगा कि बुरा काम न करे।
- सिंधी समाज के लिए आप क्या कर रहे हैं?
0 सिंधी समाज को झेल ़ ़ ़ मेरा मतलब है सिंधी समाज में शादी की सिंधियों
की मैं बहुत कद्र करता हूं और इन लोगों से सीखना चाहिए। सही मायने में देखें तो
आजादी के बाद इन्हीं लोगों को अपनी जगह नहीं मिली। सिर्फ अपनी मेहनत, लगन, बुद्धि और प्रतिभा से आज सिर्फ न हिंदुस्तान में अपना ना, किया हुआ है, सबसे ज्यादा कामयाब लोगों में से, बल्कि विश्व में भी बहुत हद तक साख बनाई ै।
कामयाबी में उनका भी स्थान है। हैट्स ऑफ। मैं तो बड़ी कद्र करता हूं। इनके लिए
दवाखाना खोलने की जरूरत तो है नहीं, ये लोग खुद ही अस्पताल खोल कर बैठे हैं।
0 लेकिन अगर मुझे बताएं, सुझाव
दें तो जरूर करूंगा। अगर मेरे काम से कहीं भी मद मिल सकती है तो जरूर करूंगा।
सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम करूंगा। समारोहों में उनके बहुत गया हूं।
0 मेरी बहुत इज्जत करते हैं। वे मानते हैं कि हमारे परिवार का है। दामाद
की तरह, घर के सदस्य की तरह।
मेरा परिवार है अच्छा खासा। बंबई-दिल्ली हर जगह प्यार मिला। पाकिस्तान गया था।
वहां के सिंधी समाज ने भी आदर किया।
- पत्नी एक्ट्रेस, बाद
में काम क्यों नहीं किया?
0 वो काम करने के समय टाइम पास कर रही थीं। मेरी सास बहुत सख्त थी। मिस
इंडिया बनने के बाद वह एयर होस्टेस बनना चाहती थीं। पर सास उन्हें आंख के पास रखना
चाहती थीं। मैं उस समय कुछ कर नहीं पा रहा था। तो टाइम पास था, इसी बहाने बंबई में रहने का। चूंकि बहुत सुंदर
थीं। मुझ से भी मिलना वगैरह बंद था। उनका वो इंतजार की घड़ी थी। उसके बाद शादी हुई
तो फिर पढऩा शुरू किया। उनकी बहुत ख्वाहिश थी कि मेरा खाना खुद बनाएं। घर पूरा
संभाला है। रामायण का मामला हो। पढऩे वालों को ताज्जुब होगा कि आज तक मुझे नहीं
मालूम कि इनकम टैक्स कंसलटेंट या चार्टर्ड एकाउंटेंट कौन है। मुझे नहीं मालूम।
सारा संभाला है उन्होंने। 25 सालों में 5 घंटे भी उनके साथ नहीं बैठा होऊंगा। मैं
बहुत खुशकिस्मत हूं कि मुझ जैसे बहुआयामी व्यक्ति का सारा काम उन्होंने संभाला।
राजनीति में भी समर्थन मिला। मैं बिल्कुल पुरुष अहंवादी नहीं हूं। मैं बराबरी में
यकीन करता हूं। उन्नीस-बीस समझ सकता हूं। अनुभव और उम्र से फर्क पड़ता है। लेकिन
बातचीत के बाद मिल कर निर्णय हो। स्त्री को बराबर का दर्जा या कई मामलों में अपने
से ऊपर का दर्जा देने में बहुत विश्वास रखता हूं। बहुत ज्यादा। मुझे वो लोग पसंद
ही नहीं आते हैं। जो अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हैं या पत्नी के साथ गाली-गलौज करते
हैं। पत्नी तो छोडि़ए, मैंने आज
तक अपने किसी गर्लफ्रेंड को हाथ नहीं लगाया। एक ही बार किसी पर हाथ उठाया था,
हल्का सा कंधा पर। उससे वह जितना रोई
होगी, उससे ज्यादा मैं रोया था।
मेरे अंदर कैसे पाशविक वृति आ गई। मैंने बच्चों पर भी हाथ नहीं उठाया। मुझे देखकर
लगता होगा कि मैं बच्चों की बहुत पिटाई करता होऊंगा। मैंने कभी हाथ नहीं उठाया।
तुम-तड़ाम या गाली-गलौज नहीं। फिल्म में मैं अकेला आदमी हूं शायद जो four
letter word का इस्तेमाल नहीं करता। कोई
सुना ही नहीं होगा, यह सब सुना
ही नहीं होगा। आपने कभी सुना है शत्रुघ्न सिन्हा ने कहीं पर सीन कर दिया।
0 आज आप जो बोते हैं, उसी
को कल काटना पड़ता है।
वो दौर भी देखा है, तारीख की आंखों ने
लमहे ने खता की थी सदियों ने
सजा पाई।
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