फिल्म समीक्षा :शूटआउट एट वडाला
-अजय ब्रह्मात्मज
निर्देशक संजय गुप्ता और उनके लेखक को यह तरकीब सूझी कि गोली से जख्मी
और मृतप्राय हो चुके मन्या सुर्वे की जुबानी ही उसकी कहानी दिखानी चाहिए।
मन्या सुर्वे नौवें दशक के आरंभ में मारा गया एक गैंगस्टर था। 'शूटआउट एट
वडाला' के लेखक-निर्देशक ने इसी गैंगस्टर के बनने और मारे जाने की घटनाओं
को जोड़ने की मसालेदार कोशिश की है। मन्या सुर्वे के अलावा बाकी सभी
किरदारों के नाम बदल दिए गए है, लेकिन फिल्म के प्रचार के दौरान और उसके
पहले यूनिट से निकली खबरों से सभी जानते हैं कि फिल्म का दिलावर वास्तव में
दाउद इब्राहिम है। यह मुंबई के आरंभिक गैंगवार और पहले एनकाउंटर की कहानी
है।
आरंभ के कुछ दृश्यों में मन्या निम्न मध्यवर्गीय परिवार का
महत्वाकांक्षी युवक लगता है। मां का दुलारा मन्या पढ़ाई से अपनी जिंदगी
बदलना चाहता है। उसकी चाहत तब अचानक बदल जाती है, जब वह सौतेले बड़े भाई की
जान बचाने में एक हत्या का अभियुक्त मान लिया जाता है। उसे उम्रकैद की सजा
होती है। जेल में बड़े भाई की हत्या के बाद वह पूरी तैयारी के साथ अपराध की
दुनिया में शामिल होता है। यहां उसकी भिड़ंत हक्सर भाइयों से होती है। इस
गैंगवार के बीच पुलिस अधिकारी आफाक भी हैं, जो अपराधियों से मुंबई को निजात
दिलाना चाहते हैं। एनकाउंटर के लिए मन्या और दिलाबर में मन्या को चुनने का
उनका तर्क स्पष्ट नहीं हो पाता।
परिवेश और पृष्ठभूमि से लेखक-निर्देशक को भरपूर मारपीट, गोलीबारी और
हिंसा के दृश्य गढ़ने के मौके मिले हैं। लेखक-निर्देशक ने इन दृश्यों को
आठवें-नौवें दशक की फिल्मों की स्टायल में ही शूट किया है। पाश्र्र्व
संगीत और घटनाओं का क्रम और चित्रण उस दौर की फिल्मों की याद दिलाता है।
संवादों में कादर खान की छाप है। हर किरदार संवाद बोल रहा है यानी
डायलॉगबाजी कर रहा है। जेल में मन्या से मिलने आई उसकी प्रेमिका विद्या
कहती है 'उम्र कैद तुम्हें मिली है, सजा मैं भुगत रही हूं।' बाकी किरदारों
को भी उनकी पृष्ठभूमि के मुताबिक ऐसे ही संवाद दिए गए हैं।
हिंसा के अलावा लेखक-निर्देशक सेक्स और अश्लीलता का भी सहारा लिया है।
मन्या और विद्या के दो बेड सीन के अतिरिक्त तीन आयटम सौंग है, जिन्हें
प्रियंका चोपड़ा, सोफी चौधरी और सनी लियोनी पर उत्तेजक तरीके से फिल्माया
गया है। कहते हैं मन्या को कोठे और बार में जाने का शौक था। लेखक-निर्देशक
को अच्छा बहाना मिल गया है। इन गीतों को प्रस्तुति के भड़कीले और अंगदिखाऊ
अंदाज से निर्देशक की मंशा स्पष्ट हो जाती है। संजय गुप्ता आम दर्शकों की
यौन ग्रंथियों का फायदा उठाना चाहते हैं।
'शूटआउट एट वडाला' अपराध जगत पर बनी एक साधारण फिल्म है, जिसमें सेक्स,
अश्लीलता और हिंसा का मसालेदार मिश्रण है। आठवें-नौवें दशक में ऐसी
फिल्मों की भरमार थी। पच्चीस सालों के बाद संजय गुप्ता ने उसी परंपरा में
अपनी फिल्म पेश की है। दृश्य, संवाद और दृश्य संरचना के साथ प्रस्तुति तक
में उस दौर का स्पष्ट प्रभाव है।
जॉन अब्राहम और अनिल कपूर के किरदारों पर लेखक ने अधिक मेहनत की है।
उन्हें अच्छा स्पेस मिला है। जॉन अब्राहम ने पूरी मेहनत की है और उनकी
मेहनत रंग लाती दिखती है। अनिल कपूर का रोल और अभिनय दोनों ही दमदार है।
बाकी कलाकारों में मनोज बाजपेयी अपनी क्षमताओं के साथ एक छोटे रोल में
मौजूद हैं। सोनू सूद उनके साथ आने की वजह से कमजोर दिखते हैं और अपनी सीमा
जाहिर कर देते हैं।
*** तीन स्टार
अवधि - 150
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