है सुकून विद्या बालन की जिंदगी में

-अजय ब्रह्मात्मज

    विद्या बालन की शादी हो चुकी है। वह अपने पति सिद्धार्थ राय कपूर के साथ जुहू में समुद्र किनारे के एक अपार्टमेंट में रहती हैं। घर बसाने के बाद वह घर सजा रही हैं। यह उनका अपना बसेरा है। इस बसेरे में सुकून है। अब वह यहीं रहती है। शादी के बाद जिंदगी बदल रही है। रूटीन बदल रहा है। मां-बहन की सिखायी सुनायी बातों के अर्थ अब खुल रहे हैं। किसी और के साथ होने से सोच बदलती है। और उसी के साथ रहने से बहुत कुछ बदल जाता है। आचार, व्यवहार, सोना, जागना, खाना-पीना और भी बहुत कुछ। अभी तक भारतीय समाज में लड़कियां ही अपना घर छोड़ती हैं। एक नए परिवार के साथ रिश्ते बनाती हैं। अगर नवदंपति ने स्वतंत्र और परिवार से अलग रिहाइश रखी तो भी लडक़े के परिवार से अधिक करीबी और भागीदारी होती है। धीरे-धीरे मायका छूट जाता है। लडक़ी एक नए परिवार में प्रत्यारोपित हो जाती है। आरंभिक उलझनों और सामंजस्य के बाद जीवन का नया अध्याय आरंभ होता है।
    विद्या बालन के जीवन का नया अध्याय आरंभ हो चुका है। अब वह नए बसेरे से ही शूटिंग, इवेंट और मेलजोल के लिए निकलती हैं और फिर लौट कर यहीं आती हैं। कुंवारी जिंदगी बंद कमरे की तरह होती है। इस कमरे की रोशनी और अंधेरे का प्रतिशत और संतुलन अपने वश में रहता है। शादी के बाद इस कमरे की खिड़कियां खुल जाती है। नए रोशनदान नजर आने लगते हैं। कुंवारी जिंदगी के बंद कमरे की प्रकाश सज्जा बदल जाती है और नई हो जाती है शादीशुदा जिंदगी।
    आठ सालों से फिल्मों में सक्रिय विद्या बालन का फिल्म करिअर बढ़ी उम्र में आरंभ हुआ। 27 की उम्र में उन्हें पहली फिल्म ‘परिणीता’ मिली। हालांकि उस से दस साल पहले 1995 में अपने धारावाहिक ‘हम पांच’ से वह दर्शकों के बीच आ चुकी थीं, लेकिन वैसे तो हर साल सैकड़ों लड़कियां आती हैं। दो-चार सीरियल में काम करती हैं। कुछ एड में दिखती हैं और फिर हमेशा के लिए गुमनामी के कोहरे में खो जाती हैं। एक तरह से विद्या बालन भी खो चुकी थीं। ‘हम पांच’ के बाद दस साल का लंबा संघर्ष ़ ़ ़ जी हां, संघर्ष ़ ़ ़ क्योंकि ‘परिणीता’ के लिए भी उन्हें 64 ऑडिशन देने पड़े थे। कोफ्त और हताशा की पराकाष्ठा हो चुकी थी। झुंझलाहट भी थी। बावजूद इसके हर ऑडिशन में कुछ बेहतर और परफेक्ट होने की कोशिश काम आई। विधु विनोद चोपड़ा ने प्रदीप सरकार की पसंद पर सहमति जतायी। हमें एक लंबे अंतराल के बाद ऐसी अभिनेत्री मिली, जो किसी फिल्मी परिवार या सौंदर्य प्रतियोगिता से नहीं आई थी। न ही वह रैंप मॉडल थी और न 21वीं सदी में निखर रही मॉडर्न लडक़ी के सौंदर्य के प्रतिमान पर खरी उतरती थी। पहली फिल्म में दशकों पुराने समय की एक बंगाली औरत की भूमिका। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लोकप्रियता के कायदे-कानूनों से भिन्न शुरुआत के बावजूद विद्या बालन ने पहली ही फिल्म से अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज की और सारे पुरस्कार बटोर ले गईं। अभिनय में निखरने के अभ्यास का ही नतीजा है कि पिछले साल उन्हें ‘द डर्टी पिक्चर’ के लिए नेशनल अवार्ड भी मिला। पिछले साल ही आई ‘कहानी’ की सफलता का वाजिब श्रेय उन्हें मिला। इस साल उन्होंने फिर से सारे पुरस्कार बटोर लिए। विद्या बालन नायिकाओं की किसी कतार या श्रेष्ठ होने की होड़ में नहीं है। बिल्कुल अलग राह है उनकी। उनके लिए किरदार लिखे जा रहे हैं और वह लेखकों-निर्देशकों और दर्शकों की पसंद बनी हुई हैं।
    विद्या बालन खुद को विशेष नहीं मानतीं। अपने समय और उम्र की तमाम लड़कियों में से एक विद्या बालन मानती हैं कि पूरे समाज के साथ फिल्म इंडस्ट्री में भी बदलाव आया है। लड़कियों का महत्व बढ़ा है, क्योंकि समाज में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है। फिल्म इंडस्ट्री में नौ साल पहले इक्की-दुक्की लड़कियां दिखती थीं। अब सेट पर लड़कियां ही लड़कियां दिखती हैं। वे केवल हेयर ड्रेसर या एसिंस्टैंट डायरेक्टर भर नहीं हैं। फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र में उनकी दखल बढ़ी है। इसकी वजह से फिल्मों में महिलाओं के चरित्र, निरूपण और प्रस्तुति में भी फर्क आया है। यकीन करें दस साल पहले ‘कहानी’ की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
    ‘कहानी’ के बाद विद्या बालन ने राजकुमार गुप्ता की ‘घनचक्कर’ शुरू कर दी थी, लेकिन अपनी शादी की औपचारिकताओं और व्यस्तताओं की वजह से वह फिल्मों की साइनिंग, शूटिंग आदि से दूर हो गई थीं । कयास लगाए जाने लगे कि शादी के बाद विद्या बालन का एक्टिंग करिअर ठहर गया। आम धारणा है कि हिंदी फिल्मों की हीरोइनें शादी के बाद दर्शकों की चाहत नहीं रह जातीं। लिहाजा निर्माता-निर्देशक भी उनसे किनारा कर लेते हैं। इस सवाल पर विद्या बालन ‘द डर्टी पिक्चर’ की नायिका की तरह बिंदास टिप्पणी करती हैं, ‘आजकल इतने विवाहेतर संबंध बन रहे हैं। शादी हो गई तो क्या? मैं दर्शकों से विवाहेतर संबंध रख सकती हूं। आज के जमाने में किसी और की बीवी की चाहत रखना पाप नहीं नहीं है। दर्शक मुझे पसंद करें? मुझे खुशी होगी।’ मजाक अलग, सीरियस नोट पर विद्या कहती हैं, ‘शादी के बाद भी मेरे एक्टर में कोई बदलाव नहीं आया है। मैं पहले सिंगल थी और एक्टर थी। अभी शादी हो गई है तो भी एक्टर हूं। उम्मीद करती हूं कि मुझे जिंदगी भर काम मिलता रहेगा। जब नानी या दादी बनूंगी तो भी एक्टर ही रहूंगी।’
    सिद्धार्थ राय कपूर से उनकी दोस्ती की खबरें शादी के पहले से आने लगी थीं। सिद्धार्थ से हुई मुलाकात और दोस्ती की बात चलने पर वह बताती हैं, ‘सिद्धार्थ से पहली मुलाकात फिल्मफेअर अवार्ड में हुई थी। मैं ‘पा’ का अवार्ड लेकर निकल रही थी तो किसी ने मेरा परिचय कराया। वह बहुत संक्षिप्त और औपचारिक मुलाकात थी। अगले ही दिन मैं उनकी फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ के लिए जा रही थी। जाने से पहले पांच मिनट की मुलाकात हुई। फिर दो-तीन फिल्मों के सिलसिले में बातें हुईं। चंद मुलाकातों के बाद धीरे-धीरे मुझे पता भी नहीं कब, लेकिन यह लगा कि इनसे दोस्ती होनी चाहिए। उनके व्यक्तित्व में आकर्षण था। सिद्धार्थ में कई बातें  निजी तौर पर अच्छी लगीं। बताने लायक उनका सबसे अच्छा गुण है कि वे नॉन जजमेंटल हैं और सभी का आदर करते हैं। दूसरों का आदर हमारी परवरिश का हिस्सा रहा है।’
    वह आक्षेप, आरोप और अपमान के दिनों को नहीं भूल सकी हैं। कोई रंजिश नहीं है, फिर भी उन्हें लगता था कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। एक दिन वह अपने पिता के सामने फट पड़ीं, ‘एक दिन मैं सभी को साबित कर के दिखाऊंगी।’ पिता ने समझाया, ‘तुम्हें किसी के लिए कुछ साबित करने की जरूरत नहीं है। हमेशा कुछ लोग तुम्हें निष्कासित और तिरस्कृत करेंगे। तय करो कि तुम क्या चाहती हो? खुद को खुद के लिए साबित करो।’ पिता का यह मंत्र उस दौर में संबल बना। कुछ दोस्तों की मदद मिली। विद्या ने लंबी छलांग मारी और उछल कर कतार से बाहर निकल आईं। अब न उनके आगे कोई है और पीछे से किसी के आगे निकलने का खतरा है। विद्या बालन अपनी पीढ़ी की अलहदा अभिनेत्री हैं। इन दिनों वह ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ की शूटिंग कर रही हैं। उनकी ‘घनचक्कर’ पूरी हो चुकी है। दोनों ही फिल्मों में वह शादीशुदा किरदार है। ‘घनचक्कर’ के ट्रेलर में दिख रही विद्या बालन अभी तक की अपनी इमेज और भूमिकाओं से बिल्कुल अलग हैं। वह फिल्म के निर्देशक को धन्यवाद देती हैं, ‘राजकुमार गुप्ता ने सोचा कि मैं पंजाबी हाउसवाइफ की ऐसी भूमिका कर सकूंगी। सच कहूं तो मुझे यह किरदार निभाने में बहुत मजा आया।’ वह एम एस शुभलक्ष्मी के जीवन पर बन रही फिल्म के प्रति उत्साहित हैं। बचपन में घर में उन्हें सुनती हुई वह बड़ी हुई हैं।
    चलते-चलते विद्या बालन बताती हैं कि पहले वह अनिद्रा की समस्या से त्रस्त थीं। रातों को जल्दी नींद नहीं आती थी। मां की फटकार लगातार मिलती थी, लेकिन नींद कोई बेटी तो है नहीं कि फटकार सुन ले। अब रूटीन बदला है। घर लौटकर साथ खाने के बाद सोने की तैयारी होती है। बारह बजे तक रात के साथ विद्या भी सो जाती हैं। फिर भी मां की फटकार कम नहीं हुई है। वह प्यार के साथ मां को याद करती हुई बताती हैं, ‘मां तो मां है। अब वह कहती हैं कि किसी दिन साढ़े दस बजे तो सो जाओ।’ समझदार पार्टनर हो तो शादी के बाद की जिंदगी के बदलाव में हिचकोले नहीं आते। एक-दूसरे के आगोश में पता ही नहीं चलता कि कब क्या बदला? सुधि आने पर सब कुछ सुहाना और सुंदर लगता है। अभी विद्या बालन संतुष्ट हैं।

Comments

अभिनय की दुनिया उनका अपना एक मुकाम है आज .... शुभकामनायें विद्या को
पढ़ कर अच्छा लगा कि विद्या बालन एक सुकून भरी जिंदगी जी रही है । आलेख बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण है ।
sujit sinha said…
छोटे-छोटे वाक्य और बात कहने का अंदाज अलहदा है |

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को