फिल्म समीक्षा : कमांडो
-अजय ब्रह्मात्मज
एक्शन फिल्म के तौर पर प्रचारित 'कमांडो' का एक्शन रोमांचित करता है।
विद्युत जामवाल में बिजली की गति और चकमा है। एक्शन दृश्यों में उनकी
स्फूर्ति देखते ही बनती है। एक्शन पसंद करने वाले दर्शकों को यह फिल्म
अवश्य देखनी चाहिए।
भारतीय सेना के एक कमांडो के खो जाने से कहानी शुरू होती है। करणबीर
डोगारा (विद्युत जामवाल) का हेलीकॉप्टर नियमित अभ्यास के दौरान क्रैश कर
जाता है। करण को चीनी सेना के जवान गिरफ्तार कर लेते हैं। वे उसे जासूस
समझते हैं। चीनी कैद में निश्चित मौत से बचकर करण भागता है और भारतीय सीमा
में प्रवेश कर जाता है। वह पंजाब के एक गांव पहुंचता है। वहां उसकी भिडंत
अनायास कुछ गुंडों से हो जाती है। वह एक लड़की को उनसे बचाता है। बाद में वह
लड़की उसके पीछे पड़ जाती ह कि अब आगे भी बचाओ। इस कहानी के साथ हम देख चुके
होते हैं कि इलाके का बदमाश एके-74 (जयदीप अहलावत) गांव की लड़की सिमरन
(पूजा चोपड़ा) से शादी करना चाहता है। सिमरन उसके चंगुल से बचने के लिए भागी
है।
इसके आगे की कहानी एके-74 और करण के संघर्ष की हो जाती है। करण किसी भी
तरह सिमरन को एके-74 की गिरफ्त में नहीं आने देना चाहता। वे अपनी कमोडो
ट्रेनिंग का भरपूर फायदा उठाता है और एके-74 के दांत खट्टे कर देता है।
फिल्म में लंबे और रोमांचक चेज सीन हैं। पहाड़, नदी, नाले और जंगल में ऐसे
दृश्यों के लिए जरूरी एक्शन हैं। करण की ताकत और स्फूर्ति से लग जाता है कि
वह एके-74 पर भारी पड़ेगा।
कमांडो में विद्य़ुत जामवाल के साथ जयदीप अहलावत की तारीफ करनी होगी।
दोनों के एक्शन और अदायगी पर ही पूरी फिल्म टिकी है। सिमरन फिल्म में एक्शन
और चेज का कारण बनती है। इस भागदौड़ में ही सिमरन और करण का रोमांस भी हो
जाता है। सिमरन की भूमिका में नयी होने के बावजूद पूजा चोपड़ा अच्छी लगती
हैं। उनमें एक रवानी है।
यह फिल्म शुद्ध एक्शन फिल्म है। डिशुम,ढिशुम,ढिचक्यों। चूंकि हिंदी में
रोमांस किए बगैर नायक हीरो नहीं बन सकता, इसलिए फिल्म में गैरजरूरी रोमांस
भी है। अब रोमांस है तो रोमांटिक गीत अनिवार्य हो जाते हैं, लेकिन कमांडो
को रोमांटिक गाने गाते देखना उचित नहीं लगता। फिल्म के क्लाइमेक्स में करण
का भाषण भी जबरदस्ती जोड़ा हुआ लगता है। निर्भीक होने का करण का पाठ फिजूल
है।
*** तीन स्टार
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