112 अरब का कारोबार
-अजय ब्रह्मात्मज
हाल ही में संपन्न हुए फिक्की फ्रेम्स में प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि एक अरब से ज्यादा जनसंख्या के देश में हर दर्शक तक कैसे पहुंचा जाए। मीडिया उद्योग में चौतरफा विकास और बढ़ोत्तरी है। फिर भी लाभ का आंकड़ा अपेक्षा और संभावना से काफी कम है। मीडिया उद्योग की सबसे बड़ी बाधा और सीमा जन-जन तक नहीं पहुंच पाने की है। हिंदी फिल्मों को संदर्भ ले तो बाक्स आफिस पर सर्वाधिक कलेक्शन का रिकार्ड बना चुकी ‘3 इडियट’ को भी केवल 3 करोड़ दर्शकों ने ही देखा। एक अरब से ज्यादा आबादी के देश में 3 करोड़ दर्शक तो 3 प्रतिशत से भी कम हुए। गौर करें तो ‘3 इडियट’ को ही टीवी प्रसारण के जरिए 30 करोड़ दर्शकों ने देखा। अब फिल्म निर्माता चाहते हैं कि डीटीएच के माध्यम से वे पहले ही दिन अधिकाधिक दर्शकों तक पहुंच जाएं।
पिछले दिनों दक्षिण के अभिनेता निर्देशक और निर्माता कमल हासन ने यह तय किया था कि वे डीटीएच के माध्यम से ‘विश्वरूप’ रिलीज करेंगे। घोषणा के बावजूद वितरकों और प्रदर्शकों के भारी दबाव की वजह से वे ऐसा नहीं कर सके। उनकी आरंभिक कोशिश विफल रही, लेकिन यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि देर-सबेर देश भर के निर्माता अपनी फिल्मों को डीटीएच के माध्यम से दर्शकों तक ले जाएंगे। सारी कोशिश यही है कि रिलीज के साथ ही धन बटोर लिया जाए। स्वर्ण जयंती, रजत जयंती से वीकएंड कलेक्शन और ओपनिंग तक आ चुका फिल्म ट्रेड अपने पहले शो या डीटीएच प्रसारण से उगाही की संभावनाओं पर विचार कर रहा है।
भारतीय परिदृश्य में अभी तक फिल्मों की सफलता और लाभ का मापदंड बाक्स आफिस कलेक्शन ही है। फिल्म रिलीज होने के साथ ट्रेड पंडित कलेक्शन के आंकड़े एकत्रित करने लगते हैं। ओपनिंग,फस्र्ट डे कलेक्शन और वीकएंड कलेक्शन के आधार पर फिल्म के अनुमानित बिजनेश की भविष्यवाणी की जाती है। इन दिनों हम 100 करोड़ के लक्ष्य को सफलता का मानदंड मान रहे हैं। एक-दो सालों में यह 300 करोड़ हो जाएगा और 2015 तक 1000 करोड़ की कमाई का लक्ष्य सभी फिल्मों के सामने होगा। फिल्म पूरी तरह से व्यवसाय हो चुका है। हर फिल्मकार और निर्माता आरंभ में पैशन के साथ फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करता है। कुछ सालों के बाद उसका पैशन पैसों में बदल जाता है। वह अपनी बातचीत और फैसलों में उसे जस्टीफाई करने लगता है।
पिछले कई सालों के धीमे विकास के बादं फिल्म इंडस्ट्री ने 2012 में गति पकड़ी है। मीडिया जगत के बाकी क्षेत्रों में विकास की रफ्तार धीमी रही, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में 23 ़8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई। पिछले साल 9 फिल्मों ने 100 करोड़ यानी 1 अरब से अधिक का कलेक्शन किया। यहां तक कि छोटी फिल्मों ने भी अच्छा कारोबार किया। नफे के प्रतिशत को आधार मानें तो छोटी फिल्मों से मिला मुनाफा ज्यादा रहा। कारपोरेट और फैमिली प्रोडक्शन हाउस अब एक साथ बड़ी एंव छोटी फिल्मों के निर्माण और मार्केटिंग पर ध्यान दे रहे हैं। छोटी फिल्में अधिक सुरक्षित निवेश होती हैं। अगर नुकसान हुआ तो छोटा और लाभ हुआ तो बड़ा। यही कारण है कि नए कंटेंट, युवा निर्देशकों और नई सोच को तरजीह दी जाने लगी है।
फिल्मों के बिजनेश और कलेक्शन को डिजीटाइजेशन से बड़ा फायदा हुआ है। देश के अस्सी प्रतिशत सिनेमाघर डिजीटिल हो चुके हैं। अनुमान है कि अगले दो-तीन सालों में शत-प्रतिशत सिनेमा घर डिजीटिल हो जाएंगे। कस्बों और छोटे शहरों के डिजीटल होने का सीधा फायदा निर्माताओं को मिलता है। उन्हें स्पष्ट जानकारी रहती है कि उनकी फिल्मों को किस शहर के किस थिएटर में कितने शो मिले। टेलीकास्ट के आधार पर मिले कलेक्शन से उनकी आमदनी लगातार बढ़ रही है।
इधर की फिल्मों के प्रचार पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। ‘विक्की डोनर’ फिल्म के प्रचार पर उसके निर्माण से अधिक खर्च किया गया था। उसका नतीजा सामने है। पहले बजट का 5-10 प्रतिशत ही प्रचार पर खर्च किया जाता था। अब यह अनुपात बढ़ कर कम से कम 20 प्रतिशत हो चुका है। ध्यान दें कि अब पोस्टर और प्रोमो तक ही प्रचार सीमित नहीं रह गया। अब फिल्म की यूएसपी पर आधारित इवेंट होते हैं। फिल्म के कलाकार शहर-दर-शहर घूमते हैं। विभिन्न माध्यमों का सदुपयोग किया जाता है।
संक्षेप में पूरी कोशिश यही है कि देश के एक अरब से अधिक जनसंख्या को आखिरकार दर्शकों में बदल दिया जाए।
हाल ही में संपन्न हुए फिक्की फ्रेम्स में प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया कि एक अरब से ज्यादा जनसंख्या के देश में हर दर्शक तक कैसे पहुंचा जाए। मीडिया उद्योग में चौतरफा विकास और बढ़ोत्तरी है। फिर भी लाभ का आंकड़ा अपेक्षा और संभावना से काफी कम है। मीडिया उद्योग की सबसे बड़ी बाधा और सीमा जन-जन तक नहीं पहुंच पाने की है। हिंदी फिल्मों को संदर्भ ले तो बाक्स आफिस पर सर्वाधिक कलेक्शन का रिकार्ड बना चुकी ‘3 इडियट’ को भी केवल 3 करोड़ दर्शकों ने ही देखा। एक अरब से ज्यादा आबादी के देश में 3 करोड़ दर्शक तो 3 प्रतिशत से भी कम हुए। गौर करें तो ‘3 इडियट’ को ही टीवी प्रसारण के जरिए 30 करोड़ दर्शकों ने देखा। अब फिल्म निर्माता चाहते हैं कि डीटीएच के माध्यम से वे पहले ही दिन अधिकाधिक दर्शकों तक पहुंच जाएं।
पिछले दिनों दक्षिण के अभिनेता निर्देशक और निर्माता कमल हासन ने यह तय किया था कि वे डीटीएच के माध्यम से ‘विश्वरूप’ रिलीज करेंगे। घोषणा के बावजूद वितरकों और प्रदर्शकों के भारी दबाव की वजह से वे ऐसा नहीं कर सके। उनकी आरंभिक कोशिश विफल रही, लेकिन यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि देर-सबेर देश भर के निर्माता अपनी फिल्मों को डीटीएच के माध्यम से दर्शकों तक ले जाएंगे। सारी कोशिश यही है कि रिलीज के साथ ही धन बटोर लिया जाए। स्वर्ण जयंती, रजत जयंती से वीकएंड कलेक्शन और ओपनिंग तक आ चुका फिल्म ट्रेड अपने पहले शो या डीटीएच प्रसारण से उगाही की संभावनाओं पर विचार कर रहा है।
भारतीय परिदृश्य में अभी तक फिल्मों की सफलता और लाभ का मापदंड बाक्स आफिस कलेक्शन ही है। फिल्म रिलीज होने के साथ ट्रेड पंडित कलेक्शन के आंकड़े एकत्रित करने लगते हैं। ओपनिंग,फस्र्ट डे कलेक्शन और वीकएंड कलेक्शन के आधार पर फिल्म के अनुमानित बिजनेश की भविष्यवाणी की जाती है। इन दिनों हम 100 करोड़ के लक्ष्य को सफलता का मानदंड मान रहे हैं। एक-दो सालों में यह 300 करोड़ हो जाएगा और 2015 तक 1000 करोड़ की कमाई का लक्ष्य सभी फिल्मों के सामने होगा। फिल्म पूरी तरह से व्यवसाय हो चुका है। हर फिल्मकार और निर्माता आरंभ में पैशन के साथ फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करता है। कुछ सालों के बाद उसका पैशन पैसों में बदल जाता है। वह अपनी बातचीत और फैसलों में उसे जस्टीफाई करने लगता है।
पिछले कई सालों के धीमे विकास के बादं फिल्म इंडस्ट्री ने 2012 में गति पकड़ी है। मीडिया जगत के बाकी क्षेत्रों में विकास की रफ्तार धीमी रही, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में 23 ़8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई। पिछले साल 9 फिल्मों ने 100 करोड़ यानी 1 अरब से अधिक का कलेक्शन किया। यहां तक कि छोटी फिल्मों ने भी अच्छा कारोबार किया। नफे के प्रतिशत को आधार मानें तो छोटी फिल्मों से मिला मुनाफा ज्यादा रहा। कारपोरेट और फैमिली प्रोडक्शन हाउस अब एक साथ बड़ी एंव छोटी फिल्मों के निर्माण और मार्केटिंग पर ध्यान दे रहे हैं। छोटी फिल्में अधिक सुरक्षित निवेश होती हैं। अगर नुकसान हुआ तो छोटा और लाभ हुआ तो बड़ा। यही कारण है कि नए कंटेंट, युवा निर्देशकों और नई सोच को तरजीह दी जाने लगी है।
फिल्मों के बिजनेश और कलेक्शन को डिजीटाइजेशन से बड़ा फायदा हुआ है। देश के अस्सी प्रतिशत सिनेमाघर डिजीटिल हो चुके हैं। अनुमान है कि अगले दो-तीन सालों में शत-प्रतिशत सिनेमा घर डिजीटिल हो जाएंगे। कस्बों और छोटे शहरों के डिजीटल होने का सीधा फायदा निर्माताओं को मिलता है। उन्हें स्पष्ट जानकारी रहती है कि उनकी फिल्मों को किस शहर के किस थिएटर में कितने शो मिले। टेलीकास्ट के आधार पर मिले कलेक्शन से उनकी आमदनी लगातार बढ़ रही है।
इधर की फिल्मों के प्रचार पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। ‘विक्की डोनर’ फिल्म के प्रचार पर उसके निर्माण से अधिक खर्च किया गया था। उसका नतीजा सामने है। पहले बजट का 5-10 प्रतिशत ही प्रचार पर खर्च किया जाता था। अब यह अनुपात बढ़ कर कम से कम 20 प्रतिशत हो चुका है। ध्यान दें कि अब पोस्टर और प्रोमो तक ही प्रचार सीमित नहीं रह गया। अब फिल्म की यूएसपी पर आधारित इवेंट होते हैं। फिल्म के कलाकार शहर-दर-शहर घूमते हैं। विभिन्न माध्यमों का सदुपयोग किया जाता है।
संक्षेप में पूरी कोशिश यही है कि देश के एक अरब से अधिक जनसंख्या को आखिरकार दर्शकों में बदल दिया जाए।
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