शाहरुख का दुख
शाहरुख का दुख
-अजय ब्रह्मात्मज
शाहरुख खान ने अपनी पहचान की मार्मिक व्यथा और कथा एक अंग्रेजी पत्रिका के लिए लिखी है। ‘बीइंग ए खान’ आलेख में उन्होंने बड़े सटीक तरीके से अपनी पहचान और उसकी वजह से हो रहे अपमान और परेशानी को सुंदर गद्य में पेश किया। आम तौर पर फिल्म सितारों के पास अभिव्यक्ति के लिए ढेर सारे अनुभव होते हैं, लेकिन उनके पास उन्हें व्यक्त करने योग्य समृद्ध भाषा नहीं होती। जीवित सितारों में अमिताभ बच्चन अपवाद हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी में समान गति से अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। उनके ब्लॉग और ट््िवट को निरंतर फॉलो करें तो बहुत कुछ सीख-समझ सकते हैं। शाहरुख खान के पास भी विशद और विविध अनुभव हैं। वे उन्हें सुंदर तरीके से इंटरव्यू और आलेख में व्यक्त करते हैं। वे पूरी गंभीरता से प्रश्नों को सुनते हैं और फिर जवाब देते हैं। यही वजह है कि उनका हर इंटरव्यू पठनीय होता है।
‘बीइंग ए खान’ में उन्होंने अपनी तकलीफ के बारे में लिखा है। इस आलेख में फिल्म स्टार शाहरुख खान केवल पृष्ठभूमि में हैं। शब्दों से झांकता व्यक्तित्व एक आम मुसलमान का है। उसे हर वक्त शक की निगाह से देखा जाता है। हर बार विवादास्पद क्षणों में उसे अपनी भारतीयता, देशभक्ति और पहचान साबित करनी पड़ती है। अमेरिका में सुरक्षा गार्डों द्वारा उनकी जांच की खबरों से सभी वाकिफ हैं। वैसी स्थिति भारत में तो कभी नहीं बनी, लेकिन विभिन्न अवसरों पर हम उनकी टिप्पणी और बयानों की प्रतीक्षा करते हैं। कोशिश रहती है कि वे हर बार अपना पक्ष स्पष्ट करें। फिल्म इंडस्ट्री के बाकी खानों को भी कमोबेश ऐसे दबाव में रहना पड़ता है।
पिछले दिनों आलेख प्रकाशित होने के बाद पड़ोसी देश पाकिस्तान से अचानक उनके कुछ शुभचिंतक जाग उठे। उन्होंने शाहरुख खान की सुरक्षा की चिंता जाहिर करने के साथ उन्हें पाकिस्तान आने का आमंत्रण भी दे दिया। इस आमंत्रण की खबर से मीडिया और समाज का एक तबका यह समझ बैठा कि शाहरुख खान को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है। वे बौखला उठे। उन्होंने अनचाहे आमंत्रण की चिंता करने में शाहरुख खान को भी समेट लिया। वास्तव में यही वह दर्द और तकलीफ है, जिसके बारे में शाहरुख खान ने लिखा है। बाबरी मस्जिद ढहने के बाद पूरे देश की सोच में तेजी से ध्रुवीकरण हुआ है। उसके बाद निरंतर जारी आतंकवादी गतिविधियों में पाकिस्तान और कुछ मुसलमानों की संलग्नता से बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के अधिकांश सदस्य मुसलमानों की भारतीयता पर शक करने लगे हैं। सार्वजनिक जगहों पर सुरक्षा संबंधी जांच अनिवार्य प्रक्रिया है, लेकिन सामने मुसलमान नागरिक खड़ा हो तो सुरक्षा गार्डों की उंगलियां सख्त हो जाती है और जिस्म टटोलने लगती हैं। कई मित्रों को ऐसी अपमानजनक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है। आप नाराजगी भी जाहिर नहीं कर सकते, क्योंकि तब जांच की प्रक्रिया बेवजह लंबी और सख्त हो जाएगाी।
शाहरुख खान के आलेख को सही संदर्भ में समझने की कोशिश करें तो उसके पीछे अपनी पहचान से आहत व्यक्ति नजर आता है। चूंकि वह व्यक्ति देश का एक लोकप्रिय स्टार भी है, इसलिए उसका दुख ज्यादा गहरा एवं मर्मांतक हो जाता है। शाहरुख खान अपने साथ ही उन दोनों बच्चों की भी परवाह की है, जिनके वे पिता और पालक हैं। उनकी पत्नी हिंदू हैं। बच्चों को आजादी है कि बड़े होने पर वे जो भी धर्म चुनें। देश में लाखों हिंदू-मुसलमान पति-पत्नी मिल जाएंगे। उन सभी के बच्चों को ऐसी तकलीफदेह पहचान से गुजरना पड़ता है और पड़ेगा।
अपने आलेख पर उठे बवाल के बाद शाहरुख खान ने सफाई देते हुए बयान जारी किया है। उन्होंने उस बयान में तीन पहचानों की बात की है। उनमें से दो तो जन्म के साथ मिल जाते हैं। पहला देश और दूसरा नाम(सरनेम) इन दोनों पहचानों के बाद पेशे से तीसरी पहचान मिलती है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और सोशल साइंटिस्ट अमत्र्य सेन तो पहचान के संकट को समेटते हुए पूरी किताब ही लिख दी है। अपने देश में हर व्यक्ति के अनेक पहचान होती है। हम अपनी सुविधा से उसकी किसी एक पहचान को निशाना बना लेते हैं और अपना गुस्सा उतारते हैं। शाहरुख ने स्वीकार किया है कि भारतीय मुसलमान होने की वजह से वे कई बार कट्टरपंथियों और गुमराह धर्मावलंबियों द्वारा इस्तेमाल हो जाते हैं। व्यक्ति शाहरुख खान स्वयं इनमें शामिल नहीं होते,लेकिन उनकी छवि और लोकप्रियता का दुरुपयोग होता है।
अफसोस की बात है कि शाहरुख खान के आलेख को पढ़े बिना ही ज्यादातर लोग टिप्पणियां कर रहे हैं। दरअसल, वे शाहरुख खान को आइकॉनिक इमेज पर चोट कर अपना अहं संतुष्ट कर रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि फिल्म इंडस्ट्री का ही कोई और खान या अन्य स्टार भी अपने अनुभवों को लिखना या शाहरुख खान के लिखे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता। न जाने क्यों बाकी सब खामोश हैं?
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- आनंद