फिल्‍म समीक्षा : डेविड


film review : something is there with the name of the film david

नाम में कुछ रखा है

-अजय ब्रह्मात्मज
लंदन - 1975
मुंबई - 1999
गोवा - 2010

अलग-अलग देशकाल में तीन डेविड हैं। इन तीनों की अलहदा कहानियों को बिजॉय नांबियार ने एक साथ 'डेविड' में परोसा है। फिल्म की इस शैली की जरूरत स्पष्ट नहीं है, फिर भी इसमें एक नयापन है। लगता है नाम में ही कुछ रखा है। लेखक-निर्देशक चाहते तो तीनों डेविड की कहानियों पर तीन फिल्में बना सकते थे, लेकिन शायद उन्हें तीनों किरदारों की जिंदगी में पूरी फिल्म के लायक घटनाक्रम नहीं नजर आए। बहरहाल, बिजॉय एक स्टायलिस्ट फिल्ममेकर के तौर पर उभरे हैं और उनकी यह खूबी 'डेविड' में निखर कर आई है।
लंदन के डेविड की दुविधा है कि वह इकबाल घनी के संरक्षण में पला-बढ़ा है। घनी उसे अपने बेटे से ज्यादा प्यार करता है। डेविड को एक प्रसंग में अपने जीवन का रहस्य घनी के प्यार का कारण पता चलता है तो उसकी दुविधा बढ़ जाती है। गैंगस्टर डेविड अपने संरक्षक घनी की हत्या की साजिश में शामिल होता है, लेकिन ऐन वक्त पर वह उसकी रक्षा करने की कोशिश में मारा जाता है।
मुंबई के डेविड की ख्वाहिश संगीतज्ञ बनने की है। वह अपने पादरी पिता की करुणा और व्यवहार से सहमत नहीं है। एक विशेष अवसर के ठीक पहले उसके पिता विषम परिस्थिति के शिकार होते हैं। डेविड अपने पिता के प्रति सावधान होता है और फिर उसकी जिंदगी बदल जाती है।
गोवा के डेविड के जीवन में प्रेम नहीं है। उसकी होने वाली बीवी उसे छोड़ चुकी है। लड़कियों से दूर रहने वाला डेविड आखिरकार रोमा से प्रेम करने लगता है, लेकिन वहां उसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में पीटर दिखता है। तीनों डेविड की जिंदगी खास परिस्थितियों में नया मोड़ ले लेती है। विभिन्न कालखंड और देशकाल में होने के बावजूद तीनों की नियति में अधूरापन है। लंदन के डेविड के रूप में नील नितिन मुकेश को भरपूर स्टायलिश किरदार मिला है। वे अपने किरदार में जंचते हैं। मुंबई के डेविड की भूमिका में अपेक्षाकृत नए विनय विरमानी हैं। उन्होंने अपने किरदार को निभाने की अच्छी कोशिश की है। गोवा के डेविड के रूप में विक्रम का अभिनय उम्दा और शानदार है, लेकिन उस किरदार पर लेखक ने अधिक मेहनत नहीं की है। अभिनेत्रियों में तब्बू और मोनिका डोगरा उभर कर आती हैं। लंबे समय के बाद दिखी तब्बू ने मामूली किरदार को भी अपनी अदाकारी से खास बना दिया है।
'डेविड' में विभिन्न दशकों के परिवेश और लुक पर मेहनत की गई है। भाषा की विविधता भी रखी गई है। बिजॉय नांबियार इस फिल्म में एक सधे निर्देशक के रूप में नजर आते हैं। तीन कहानियों की वजह से फिल्म अंतिम प्रभाव में थोड़ी बिखर जाती है।
अवधि - 160 मिनट
ढाई स्टार

Comments

फिल्म ठीक हो न हो, पर समीक्षा ठीक लगी।
विश्वत सेन, दिल्ली

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को