फिल्म समीक्षा : विश्वरूप
हंगामा है क्यों बरपा
-अजय ब्रह्मात्मज
भारतीय मिथक में विश्वरूप शब्द कृष्ण के संदर्भ में इस्तेमाल होता है।
कृष्ण ने पहले अपनी मां को बालपन में ही विश्वरूप की झलक दी थी। बाद में
कुरूक्षेत्र में अर्जुन के आग्रह पर उन्होंने विश्वरूप का दर्शन दिया था और
उन्हें इसे देखने योग्य दिव्य दृष्टि भी दी थी। कमल हासन की फिल्म
'विश्वरूप' में तौफीक उर्फ वसीम कश्मीरी उर्फ विश्वनाथ जैसे नामों और पहचान
के साथ एक रॉ आफिसर का आधुनिक विश्वरूप दिखता है। वह एक मिशन पर है। इस
मिशन को साधने के लिए वह विभिन्न रूपों को धारण करता है। कमल हासन अपनी
फिल्मों में निरंतर भेष और रूप बदलते रहते हैं। इस मायने में वे बहुरूपिया
कलाकार हैं। हर नई फिल्म में वे अपने सामने नए लुक और कैरेक्टर की चुनौती
रखते हैं और उन्हें अपने अनुभवों एवं योग्यता से पर्दे पर जीवंत करते हैं।
'विश्वरूप' में उन्होंने आज के ज्वलंत मुद्दे आतंकवाद की पृष्ठभूमि में
अपने किरदार को गढ़ा है। इस फिल्म की कथाभूमि मुख्य रूप से अफगानिस्तान और
अमेरिका में है। फिल्म की शुरुआत में वे एक नर्तक के रूप में आते हैं।
उन्होंने बिरजू महाराज के निर्देशन में अपनी इसी छवि को मांजा और विश्वसनीय
तरीके से पेश किया है। एक नर्तक की कमनीयता को उन्होंने अच्छी तरह व्यक्त
किया है। उनकी पत्नी निरूपमा (पूजा कुमार) जिंदगी से कुछ ज्यादा पाने की
कोशिश में अपने बॉस दीपंकर चटर्जी पर प्रेम पाश फेंकती है। निर्दोष पति को
धोखा देने के अपराधबोध से बचने के लिए उनकी कमजोरियों की जानकारी हासिल
करने के उद्देश्य से वह एक जासूस (अतुल तिवारी) की मदद लेती है। जासूस
अतिरिक्त उत्साह में फंसता और मारा जाता है। यहां से कुछ नए तथ्य उद्घाटित
होते हैं और हम फिल्म की असली कहानी पर आते हैं। फिर भी यह स्पष्ट नहीं हो
पाता है कि भारतीय रॉ ऑफिसर इस मिशन से क्यों जुड़ा है?
कमल हासन की फिल्मों में उनका किरदार मुख्य और प्रबल होता है। वे अपनी
योग्यता के विभिन्न पहलुओं को एक साथ पेश करने की हड़बड़ी में फिल्म की सभी
घटनाओं और किरदारों को अपनी तरफ मोड़ लेते हैं। लिहाजा खास तरह का एकल आनंद
देने के साथ उनकी फिल्में एकांगी हो जाती हैं। 'विश्वरूप' उनकी इस आदत से
नहीं बच पाई है। इसके बावजूद फिल्म का वितान और विधान आकर्षित करता है। 58
की उम्र में भी उनकी गति और ऊर्जा विस्मित करती है। वे इस संदर्भ में वे
देश के अनोखे और विरले कलाकार हैं। इस फिल्म का आनंद कमल हासन की अदाकारी
और एक्शन में है। कमल हासन अपने प्रशंसकों को हरगिज निराश नहीं करते।
न जाने क्यों इस फिल्म के कुछ दृश्यों को लेकर इतना हंगामा मचा हुआ है?
यह फिल्म तालिबान के कैंप की छवि पेश करती है, जिसमें दिखाया गया है
इस्लाम की रूढि़यों का पालन करने के साथ इस्लाम के नाम पर वे किस तरह के
कुकृत्य में शामिल हैं और कैसा समाज रच रहे हैं। फिल्म के एक दृश्य में
आतंकवादी ओमर अफसोस करता है कि उसने अपने बेटे को डाक्टर बनने की इजाजत
क्यों नहीं दी? 'विश्वरूप' निश्चित रूप से इस्लाम की कट्टर धारणाओं पर
हल्की चोट करती है। कमल हासन का उद्देश्य संदेश देने से अधिक इस पृष्ठभूमि
में दर्शकों का मनोरंजन करना है। वे इस उद्देश्य में सफल रहे हैं।
अपने छोटे से किरदार जासूस की भूमिका में अतुल तिवारी लुभाते हैं। कहीं
उन पर और निर्देशकों की नजर न पड़े? एक उम्दा लेखक को हास्य कलाकार बनाने
में उन्हें देर नहीं लगेगी। अतुल तिवारी के सटीक संवादों ने फिल्म को विशेष
रूप से अर्थपूर्ण गहराई दी है। कमल हासन हमेशा की तरह खुद का विस्तार करते
नजर आते हैं। सहयोगी भूमिकाओं में पूजा कुमार, शेखर कपूर और राहुल बोस ने
अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। उनके लिए अधिक गुंजाइश नहीं थी।
-अवधि-165 मिनट
-तीन स्टार
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