स्पेशल छब्बीस पर सोनाली सिंह की टिप्पणी
चवन्नी के पाठकों के लिए सोनाली सिह की खास टिप्पणी...
फिल्म इतनी चुस्त - दुरुस्त है कि सिनेमा हॉल में एकांत तलाश रहे प्रेमी जोड़ो को शिकायत हो सकती है । फिल्म का ताना -बाना असल घटनायों को लेकर बुना गया है। यह किसी भी एंगल से "Ocean'11" से प्रेरित नहीं है ।"Ocean' 11" के सभी सदस्य अपनी-अपनी फ़ील्ड के एक्सपर्ट थे। कोई मशीनरी ,कोई विस्फोटक तो कोई हवाई करतब में पारंगत था।यह नीरज पाण्डेय की" स्पेशल 26 "है, जिसमे बहुत सारे बच्चे पैदा करने वाले आम आदमी और बीवी के कपड़े धोने वाले अदने से आदमी हैं । जब कलकत्ता के बाज़ार में नकली सीबीआई की भिडंत असली सीबीआई से होती है तब नकली सीबीआई ऑफिसर अनुपम खेर का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है । ऐन वक़्त पर अक्षय कुमार का आत्मविश्वास स्थिति संभाल लेता है। यह भारत की कहानी है,जहाँ "आत्मविश्वास कैसे जगाये/बढ़ाये " जैसी किताबे सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है। यह हम सभी भारतीयों की कहानी है जो जानते है कि "असली ताकत दिल में होती है ।"
दुनिया को बेवकूफ बनाने वाले अक्षय कुमार की पाक मोहब्बत हैरत में डाल देती है। उसकी असलियत जानने के बावजूद लड़की बिना शक-ओ -शुबह मोहब्बत करती है। ऐसे उदाहरण आते रहने चाहिए। प्रेम का स्तर सुधरेगा ।
"In Tragedy Every Moment is Eternity.In Comedy Eternity is A Moment "
अनुपम खेर का बेमिशाल अभिनय फिल्म का प्लस पाइंट है। खासकर वह द्दृश्य जब वह होटल के कमरे में मनोज बाजपेयी के सामने बैठे होते है। उस वक़्त हमें लगता है कि वह रो रहे है। फिल्म के आखिरी में जब वही द्रश्य दुबारा दिखाया जाता है,तब हमें पता चलता है दरअसल उस वक़्त वह हँस रहे थे। अभिनय का यह पहलू मैंने कभी नहीं देखा। शुक्रिया और बधाई अनुपम खेर .....अभिनय का नया कीर्तिमान रचने के लिए ।
पार्श्व संगीत काबिलेतारीफ है। इतनी ख़ूबसूरती से संजोया गया है कि सीधे -सपाट संवाद अखरते नहीं है ।गानों को डालकर अच्छा ही किया। हम "A Wednesday" की बहुत तारीफ करते है। उसे इंटेलीजेंट सिनेमा कहते है। एक खास समुदाय/आयु को आकर्षित करने वाला सिनेमा इंटेलीजेंट हो सकता ह, पर परफेक्ट नहीं। असल सिनेमा वही होता है जो हर समुदाय/ आयु और अन्य स्तरों को भुलाकर सभी को एक साथ सिनेमा देखने के लिए मजबूर कर दे ।
Waah Kya Scene Hai -----इंटरव्यू वाले दृश्य की डिटेलिंग लाजवाब है। भिन्न -भिन्न परिवेश और शख्सियत वाले लोगो के मिलने से दृश्य बहुत उम्दा बन पड़ा है। उस दृश्य को लिखने में लेखक के दिमाग की पर्चियां उड़ गयी होंगी पर दृश्य पर मिली दाद ने खामियाजे की भरपाई भी कर दी होगी।
नौवें दशक के भारत को देखना सुखद अनुभव था । दिल्ली का कनाट प्लेस ,राजपथ पर राजीव गांधी , क्रिकेट ग्राउंड पर सुनील गावस्कर ,खाली -खाली सड़के ,लाइट ब्लू मारुति 800......नीरज पाण्डेय बहुत ईमानदार हैं । वह नौवें दशक के मरीन ड्राइव को नहीं फिल्मा सके तो आसानी से दर्शकों की पकड़ में आ जा सकने वाला सेट लगवाया ।
नीरज पाण्डेय की ईमानदारी ही है,जो हमें भारतीय सिनेमा के उज्जवल भविष्य की आस दिखाती है ।
फिल्म इतनी चुस्त - दुरुस्त है कि सिनेमा हॉल में एकांत तलाश रहे प्रेमी जोड़ो को शिकायत हो सकती है । फिल्म का ताना -बाना असल घटनायों को लेकर बुना गया है। यह किसी भी एंगल से "Ocean'11" से प्रेरित नहीं है ।"Ocean' 11" के सभी सदस्य अपनी-अपनी फ़ील्ड के एक्सपर्ट थे। कोई मशीनरी ,कोई विस्फोटक तो कोई हवाई करतब में पारंगत था।यह नीरज पाण्डेय की" स्पेशल 26 "है, जिसमे बहुत सारे बच्चे पैदा करने वाले आम आदमी और बीवी के कपड़े धोने वाले अदने से आदमी हैं । जब कलकत्ता के बाज़ार में नकली सीबीआई की भिडंत असली सीबीआई से होती है तब नकली सीबीआई ऑफिसर अनुपम खेर का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है । ऐन वक़्त पर अक्षय कुमार का आत्मविश्वास स्थिति संभाल लेता है। यह भारत की कहानी है,जहाँ "आत्मविश्वास कैसे जगाये/बढ़ाये " जैसी किताबे सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है। यह हम सभी भारतीयों की कहानी है जो जानते है कि "असली ताकत दिल में होती है ।"
दुनिया को बेवकूफ बनाने वाले अक्षय कुमार की पाक मोहब्बत हैरत में डाल देती है। उसकी असलियत जानने के बावजूद लड़की बिना शक-ओ -शुबह मोहब्बत करती है। ऐसे उदाहरण आते रहने चाहिए। प्रेम का स्तर सुधरेगा ।
"In Tragedy Every Moment is Eternity.In Comedy Eternity is A Moment "
अनुपम खेर का बेमिशाल अभिनय फिल्म का प्लस पाइंट है। खासकर वह द्दृश्य जब वह होटल के कमरे में मनोज बाजपेयी के सामने बैठे होते है। उस वक़्त हमें लगता है कि वह रो रहे है। फिल्म के आखिरी में जब वही द्रश्य दुबारा दिखाया जाता है,तब हमें पता चलता है दरअसल उस वक़्त वह हँस रहे थे। अभिनय का यह पहलू मैंने कभी नहीं देखा। शुक्रिया और बधाई अनुपम खेर .....अभिनय का नया कीर्तिमान रचने के लिए ।
पार्श्व संगीत काबिलेतारीफ है। इतनी ख़ूबसूरती से संजोया गया है कि सीधे -सपाट संवाद अखरते नहीं है ।गानों को डालकर अच्छा ही किया। हम "A Wednesday" की बहुत तारीफ करते है। उसे इंटेलीजेंट सिनेमा कहते है। एक खास समुदाय/आयु को आकर्षित करने वाला सिनेमा इंटेलीजेंट हो सकता ह, पर परफेक्ट नहीं। असल सिनेमा वही होता है जो हर समुदाय/ आयु और अन्य स्तरों को भुलाकर सभी को एक साथ सिनेमा देखने के लिए मजबूर कर दे ।
Waah Kya Scene Hai -----इंटरव्यू वाले दृश्य की डिटेलिंग लाजवाब है। भिन्न -भिन्न परिवेश और शख्सियत वाले लोगो के मिलने से दृश्य बहुत उम्दा बन पड़ा है। उस दृश्य को लिखने में लेखक के दिमाग की पर्चियां उड़ गयी होंगी पर दृश्य पर मिली दाद ने खामियाजे की भरपाई भी कर दी होगी।
नौवें दशक के भारत को देखना सुखद अनुभव था । दिल्ली का कनाट प्लेस ,राजपथ पर राजीव गांधी , क्रिकेट ग्राउंड पर सुनील गावस्कर ,खाली -खाली सड़के ,लाइट ब्लू मारुति 800......नीरज पाण्डेय बहुत ईमानदार हैं । वह नौवें दशक के मरीन ड्राइव को नहीं फिल्मा सके तो आसानी से दर्शकों की पकड़ में आ जा सकने वाला सेट लगवाया ।
नीरज पाण्डेय की ईमानदारी ही है,जो हमें भारतीय सिनेमा के उज्जवल भविष्य की आस दिखाती है ।
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Tamasha-E-Zindagi
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