फिल्म समीक्षा : लिसेन अमाया
रिश्तों का नया समीकरण
-अजय ब्रह्मात्मज
बदलते समाज में भावनाएं, संबंध और हम सभी के आसपास की जिंदगी तेजी से
बदल रही है। विधुर या विधवा होने के बाद जिंदगी में अकेला पड़ गया व्यक्ति
कई बार दूसरों के प्रति आकर्षण महसूस करता है, लेकिन सामाजिक दबाव और घरेलू
जिम्मेदारियों के बीच वह प्रिय व्यक्ति के साथ नहीं रह पाता। समाज और
बच्चे अपने माता-पिता के नए संबंधों को सहजता से नहीं ले पाते। अमाया तेज,
समझदार और आज की लड़की है। पिता के न रहने के बाद वह अपनी मां लीला के साथ
बेहतरीन जिंदगी जी रही है। दोनों के रिश्ते मधुर और भरोसे के हैं। उनके बीच
खुली बातचीत होती है, लेकिन मां की जिंदगी में आए जयंत सिन्हा को देखते ही
अमाया बिखर और बिफर जाती है।
लीला स्वावलंबी मां है। पति के निधन के बाद उन्होंने अमाया को अकेले
ही पाला है। जीवन के महत्वूपर्ण साल उन्होंने अमाया की देखभाल में बिताया
है। वह 'बुक ए कॉफी' नाम से एक कैफे भी चलाती हैं। निजी देख-रेख और सेवा की
वजह से उनका कैफे सभी के बीच लोकप्रिय है। इसी कैफे में फोटोग्राफर जयंत
सिन्हा से लीला की मुलाकात होती है। वे विधुर हैं। दोनों करीब आते हैं।
अमाया को भी जिंदादिल जयंत पसंद है। वह उनके साथ एक किताब लिखने की योजना
भी बनाती है। सब कुछ ठीक चल रहा है, तभी अमाया को एहसास होता है कि जयंत
उसकी मां की जिंदगी में भी आ चुके हैं। अमाया विचलित है कि कैसे कोई और
उसके पापा की जगह ले सकता है और मां का बेडरूम शेयर कर सकता है। इस विचलन
में वह रूढि़वादी हो जाती है। जब उसे अपनी गलती और मां की जरूरत का एहसास
होता है तो वह मां से माफी मांगती है।
'लिसेन अमाया' आज की कहानी है। रिश्तों के नए समीकरण को रेखांकित करती
यह फिल्म भावुक ओर मर्मस्पर्शी है। फिल्म के कुछ दृश्य भावनात्मक उद्रेक
का संचार करते हैं और आंखें गीली कर देते हैं। इस फिल्म में कोई भी खल
चरित्र नहीं है। सभी अपनी परिस्थितियों को सुलझाने की फिक्र में उलझे हुए
हैं। दीप्ति नवल और फारूख शेख ने अपने किरदारों को सहजता से निभाया है।
स्वरा भास्कर ने अमाया के द्वंद्व को सही अभिव्यक्ति दी है। वह भावपूर्ण
अभिनेत्री हैं। फिल्म के सहयोगी कलाकारों से निर्देशक ने उचित सहयोग लिया
है।
अवधि - 110 मिनट
*** साढ़े तीन स्टार
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