अनुष्‍का शर्मा से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत


-अजय ब्रह्मात्मज
- विशाल भारद्वाज की ‘मटरू की बिजली का मन्डोला’ क्या है?
0 इस फिल्म से मैं अलग जोनर में जाने की कोशिश कर रही हूं। पहली बार कामेडी ड्रामा कर रही हूं। यह मुख्य रूप से तीन किरदारों मटरू, बिजली और मन्डोला की कहानी है। तीनों थोड़े अटपटे से हैं। उनके परस्पर संबंध विचित्र किस्म के हैं।
- मटरू और मन्डोला के बीच बिजली क्या कर रही है?
0 बिजली मन्डोला की बेटी है। वह बहुत ही बिगड़ैल है। नाज-ओ-नखरे में पली है। दिल्ली और ऑक्सफोर्ड में उसकी पढ़ाई हुई है। अभी तक मैंने जितनी फिल्में कीं, उनमें मेरा किरदार बहुत ही स्पष्ट और सुलझा हुआ रहा है। बिजली अस्थिर और खिसकी हुई है। उसे पता ही नहीं है कि लाइफ में क्या करना है? बिना विचारे कुछ भी करती रहती है। सही और गलत के बारे में नहीं सोचती है। उसे अपनी जिंदगी में पिता से आजादी मिली हुई है कि वह जैसे चाहे जीए। मैंने ऐसा वनरेवल कैरेक्टर नहीं निभाया है। शूटिंग करते समय मैं खुद को नासमझ बच्ची समझ रही थी।
- पिछले चार सालों में आप ने छह फिल्में कर लीं। आप की सारी फिल्में सफल रही हैं। क्या आप ने सोच-समझ कर फिल्में चुनीं या उनकी कामयाबी महज संयोग है?
0 मैंने सोच समझ कर ही फिल्में चुनी हैं। किसी और की दी हुई सोच से मैंने करिअर के फैसले नहीं लिए हैं। मैं किसी के कहने पर कुछ नहीं कर सकती। मैं बहुत ही स्ट्रांग दिमाग की लडक़ी हूं। कह सकते हैं कि व्यक्तिवादी हूं। अफसोस की बात है कि अपने देश में व्यक्तिवादी होने को दोष माना जाता है। हमेशा यही सीख दी जाती है कि इस की तरह बनो या उस की तरह बनो। कभी यह नहीं कहा जाता कि तुम जैसी हो, वैसी बनो। मां-बाप ज्यादा ख्याल नहीं करते कि मेरा बच्चा कैसा है? उसकी अपनी क्या क्वालिटी है? बच्चों के पसंद-नापसंद का ध्यान नहीं रखा जाता। मैंने अपन सारे निर्णय खुद लिए हैं। मैं भविष्य में भी किसी और को दोषी नहीं ठहराना चाहती।
- कैसे चुनती हैं फिल्में?
0 फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर सुना और कहा जाता है कि आउट ऑफ साइट आउट ऑफ माइंड। लोग कहते हैं कि अधिक से अधिक फिल्में साइन कर लो। हमेशा दिखते रहना चाहिए। मुझे इसमें बेवकूफी नजर आती है। अगर मैं ज्यादा काम करूंगी तो खुद को पूरी तरह से खर्च कर दूंगी। मुझे वही फिल्में करनी हैं,जो इस समय मेरे लिए जरूरी हैं। अपनी जरूरतें मैं खुद तय करती हूं। ‘बैंड बाजा बारात’ मेरे करिअर में सही समय पर आई। उसके बाद सही समय पर मैंने यश जी की फिल्म ‘जब तक है जान’ की। अभी ‘मटरू की बिजली का मन्डोला’ कर रही हूं। यहां हमारे हर फैसले का नतीजा छह महीने या साल भर के बाद सामने आता है। यह फिल्म मैंने पिछले साल जनवरी में शुरू की थी। इस जनवरी में इसका रिजल्ट आएगा। दूरगामी सोच रखनी पढ़ती है।
- आपकी बातों से लग रहा है कि आप ने शुरू से ही समझदार फैसले लिए? आज कल की लड़कियों में यह गुण अच्छा लगता है। चौबीस की उम्र में ऐसी परिपक्वता कैसे आई?
0 बहुत ही संरक्षित जीवन मिला है मुझे। अपने समझदार फैसलों का श्रेय मैं पापा को दूंगी। मैं बहुत कुछ पापा जैसी हूं। सच कहें तो हम दोनों एक जैसा ही सोचते हैं। कई बार ऐसा होता है कि बगैर बताए ही वे मेरे फैसले जान लेते हैं और मैं उनके दिल की बात सुन लेती हूं। सोलह-सतरह की उम्र में मॉडलिंग की शुरुआत के समय मेरे सारे विचार पापा के अनुभवों के आधार पर बने थे। मैं उनसे ही समझती थी। उन्होंने हमेशा कहा कि तुम वही करो जो तुम्हें सही लगे। उनसे मिली इस आजादी से मेरे अंदर इंटयूशन पैदा हुआ। पापा ने मेरे अंदर विश्वास जगाया। उन्होंने यही कहा कि हमेशा अच्छा होगा।
- कह सकते हैं कि आप आत्मविश्वास से भरी सफल अभिनेत्री हैं?
0 मेरी दूसरी फिल्म आने में थोड़ी देर हुई तो लोगों ने वन फिल्म वंडर लिखना शुरू कर दिया था। अगर आत्मविश्वास नहीं होता तो आंख मूंद कर कोई भी फिल्म साइन कर लेती। फिल्में मिल रही थीं, लेकिन खास फिल्में नहीं मिल रही थीं। फिल्म से अगर कुछ मिले तभी उसे करने का मजा है। मैं मानती हूं कि अच्छे काम का परिणाम भी अच्छा होता है। मैं आर्मी के बैकग्राउंड की हूं। हर काम को एक टास्क के तरह लेती हूं।
- आपको अनुभवी और नए दोनों किस्म के डायरेक्टर मिले। इनके साथ ने आपकी करिअर को किस रूप में संवारा?
0 अभी की बात करूं तो विशाल भारद्वाज, राजकुमार हिरानी और अनुराग कश्यप की फिल्में कर रही हूं। तीनों अलग किस्म के डायरेक्टर हैं। उन तीनों के नजरिए से मैं समृद्ध होती हूं। उनके किरदार हमेशा अलग होते हैं। एक्टर के तौर पर मुझे चुनौतियां मिलती हैं। ‘मटरू ़ ़ ़’ की ही बात करूं तो बिजली के बहुत सारी इमोशन मैं नहीं समझ सकती। विशाल भारद्वाज के किरदार ब्लैक एंड ह्वाइट नहीं होते। उनका रंग ग्रे होता है।
- आप किस तरह की एक्टर हैं?
0 मैं अपनी लाइनें याद करती हूं। सबसे पहले यह मालूम करती हूं कि मेरा किरदार क्या नहीं करेगा? यह इसलिए जरूरी होता है कि उस किरदार में दर्शकों को अनुष्का शर्मा ही न दिखे। मैं निजी जिंदगी में जैसे चलती और भागती हूं,उससे बिल्कुल अलग चाल-ढाल है बिजली का। बिजली जिस लहजे में बात करती है उस लहजे में मैं कभी बात न कर पाऊं। गौर करें तो लेखक-निर्देशक स्क्रिप्ट में ही किरदार का चित्रण कर देते हैं। हमें सिर्फ उसे कैमरे के सामने निभा देना पड़ता है। मुझे खुशी है कि मेरी फिल्मों के कैरेक्टर लोगों को याद रहे।
- बिल्कुल सही कह रही हैं। इन दिनों ज्यादातर फिल्मों के किरदार इतने कमजोर और एक समान होते हैं कि उनकी अलग पहचान नहीं बन पाती। नाम याद रखना तो दूर की बात है।
0 इस फिल्म के टायटल में ही मेरा नाम डाल दिया गया है। बिजली बिल्कुल निश्शंक और निर्भीक स्वभाव की लडक़ी है। मैं खुद को समझदार मानती हूं, लेकिन इस फिल्म में मुझे कंफ्यूज दिखना था। कई बार मुझे बिजली के व्यवहार पर ही गुस्सा आता था। वह पागल लगती थी। अच्छा है न? मैं चाहूंगी कि समीक्षक और दर्शक मुझे किसी एक खाने में डाल कर न रखें। हमेशा नई फिल्में हथियाने की कोशिश में रहूंगी।
- सीधा सवाल करूं कि एक्टिंग क्या है तो क्या जवाब होगा?
0 मेरे लिए एक्टिंग साधना है। एक्शन बोलने के बाद कैमरा ऑन होता है और उसके साथ हम एक्टर ट्रांस में चले जाते हैं। वह एक ऐसा समय होता है कि अपनी किए का एहसास तुरंत हो जाता है। हमारी जिंदगी लोगों के जजमेंट पर निर्भर करती है,लेकिन कैमरे के सामने का वह क्षण पूरी तरह से हमारा होता है। उस क्षण में हम जो करते हैं वही एक्टिंग है।
- कितना जरूरी है कि आप जिस डायरेक्टर के साथ काम कर रही हैं उसकी सारी फिल्मों से परिचित हों?
0 मैंने अभी तक ज्यादातर रोमांटिक कामेडी की है। ‘मटरू ़ ़ ़’ शुरू करने के पहले मैंने विशाल भारद्वाज की सारी फिल्में देखी। मैं यह समझना चाहती थी कि उनके एक्टर कैसे होते हैं? मैंने महसूस किया कि उनके एक्टर बगैर संवादों के भी बोलते हैं। हमारी फिल्मों में संवादों की प्रचुरता रहती है। विशाल भारद्वाज की फिल्मों में संवाद सटीक और कम होते हैं। उनके ज्यादातर किरदार परतदार होते हैं। इन वजहों से उनके साथ काम करने में ज्यादा मजा आया। भविष्य में भी मेरी यही रणनीति रहेगी कि हर डायरेक्टर की सारी फिल्में देख कर उनकी शैली को समझ सकूं।
- अपने को-एक्टर इमरान खान के बारे में कुछ बताएं?
0 सबसे पहले तो वे बड़े नेक व्यक्ति हैं। उन में असुरक्षा की कोई भावना नहीं है। वे किसी के बारे में बुरी बात नहीं करते। मुझे भी दूसरों में कमी निकालना अच्छा नहीं लगता। इमरान के साथ मैं वास्तविक किस्म की बातें कर सकती थी। इमरान बेंगलोर में पढ़े हैं। मैं बेंगलोर में रहती थी। हमारे बीच बहुत सारे कामन बातें भी हैं। मैंने पहले नहीं सोचा था कि इमरान के साथ मेरी पहली फिल्म इस जोनर की होगी। मैंने रोमांटिक कामेडी की उम्मीद की थी।
- पंकज कपूर और शबाना आजमी जैसे सिद्धहस्त कलाकारों से क्या सीखा?
0 मैंने पंकज कपूर की तरह एकाग्रचित कलाकार नहीं देखा। इस उम्र में भी कुछ अलग करने की उनकी ललक जिंदा है। यह उनसे सीखा जा सकता है। पंकज जी को शूट करते हुए देखना भी एक यादगार अनुभव रहा। शबाना जी से तो मैं पहले भी मिली थी। ऐसे कलाकार अलग से बुला कर कोई टिप नहीं देते। हम इन्हें काम करते देखते हैं और इन से सीखते हैं। यह हमें चुनना पड़ता है। शबाना जी बहुत ही नैचुरल एक्टर हैं।


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