पुरस्कारों से वंचित प्रतिभाएं
-अजय ब्रह्मात्मज
साल खत्म होने के साथ ही हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय पुरस्कारों के इवेंट शुरू हो गए हैं। इस साल जून तक इनका सिलसिला जारी रहेगा। विभिन्न मीडिया घरानों और संस्थानों द्वारा आयोजित इन पुरस्कार समारोहों में पिछले साल दिखे और चमके सितारों में से चंद लोकप्रिय नामों को पुरस्कृत किया जाएगा। शुरू से यह परंपरा चली आ रही है कि लोकप्रिय पुरस्कार बाक्स आफिस पर सफल रही फिल्मों के मुख्य कलाकारों को ही दिए जाएं। अभी तक उनका पालन हो रहा है। दरअसल, फिल्मों के लगभग सारे पुरस्कार समारोह इवेंट में बदल चुके हैं। कालांतर में इनका टीवी पर प्रसारण होता है इसलिए जरूरी होता है कि परिचित और मशहूर चेहरों को ही सम्मान से नवाजा जाए। इसी बहाने वे इवेंट में परफार्म करते हैं। इवेंट की शोभा बढ़ाते हैं। प्रसारण के समय दर्शक जुटाते हैं।
2012 में नौ फिल्मों ने सौ करोड़ से अधिक का बिजनेस किया। इन फिल्मों में हमने तीनों खान के अलावा अजय देवगन, अक्षय कुमार, रितिक रोशन और रणबीर कपूर को देखा। इस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तमाम पुरस्कार इन्हीं के बीच बटेंगे। आमिर खान और अजय देवगन घोषित रूप से पुरस्कार समारोहों में हिस्सा नहीं लेते, इसलिए उन्हें पुरस्कृत करने की संभावनाएं कम हैं। रह गए सलमान खान और शाहरुख खान ़ ़ ़ इन में सलमान को पुरस्कारों की परवाह नहीं रहती। हां, शाहरुख खान अभी तक पुरस्कारों के लिए लालायित रहते हैं। ‘अग्निपथ’ में रितिक रोशन और ‘बर्फी’ में रणबीर कपूर ने उल्लेखनीय अभिनय से प्रभावित किया है। संभावना है कि एक-दो पुरस्कार इनके हिस्से भी आ जाएं।
इन लोकप्रिय सितारों के अलावा इस साल तीन अन्य अभिनेताओं ने अपनी फिल्मों में अदाकारी की खास छाप छोड़ी। सबसे पहले इरफान खान का नाम लें। तिग्मांशु धूलिया की फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ में इरफान खान ने शीर्षक भूमिका को उसकी उम्र और भावनाओं के साथ संजीदगी से निभाया। एथलीट फौजी पान सिंह तोमर की गतिशीलता को पर्दे पर चपल तरीके से दिखाना आसान नहीं रहा होगा। और फिर जब पान सिंह तोमर बागी होकर बीहड़ में घूसता है तो उसकी जिंदगी उबड़-खाबड़ हो जाती है। इरफान ने भाषा, लहजा और बॉडी लैंग्वेज के लिहाज से बहुत ही उम्दा अभिनय किया है।
ऐसे ही पिछले साल मनोज बाजपेयी की प्रतिभा के भिन्न आयाम पर्दे पर दिखे। अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, प्रकाश झा की ‘चक्रव्यूह’ और वेदव्रत पाएन की ‘चिटगांव’ में हमने इस प्रतिभाशाली अभिनेता को विभिन्न किरदारों में देखा। हर किरदार को मनोज बाजपेयी ने अभिनय की बारीकी से अलग रखा। उन्होंने एक बार फिर से साबित किया कि अलग चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं मिले तो उन में गहराई तक उतर सकते हैं।
पिछले साल ही हमने लगभग एक दशक से ज्यादा समय से सक्रिय और संघर्षरत अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिकी को अपनी छंटा बिखेरते देखा। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में फैजल खान के किरदार को उन्होंने सच्चाई के साथ चित्रित किया। इस फिल्म के दूसरे भाग के नायक नवाजुद्दीन सिद्दिकी ही हैं। उन्होंने निर्देशक अनुराग कश्यप के भरोसे को नहीं टूटने दिया। पर्दे पर उनके किरदार में आया परिवर्तन बखूबी उभरा। एक साथ इमोशन के इतने शेड कम किरदारों को मिलते हैं। यह नवाजुद्दीन की प्रतिभा ही है कि वे इस भूमिका में कहीं नहीं चूकते।
यकीन करें। ये तीनों प्रतिभाएं इस साल पुरस्कारों से वंचित रहेंगी। कुछ स्थानों पर इनका नामांकन भले ही हो जाए, लेकिन ठीक इनकी आंखों के सामने साधारण और औसत अभिनेताओं को पुरस्कृत कर इन्हें ठेस पहुंचाया जाएगा। एक-दो आयोजकों ने अगर हिम्मत की तो भी इन्हें क्रिटिक अवार्ड की कैटेगरी में डाल देंगे। तात्पर्य यह है कि प्रतिभा, लोकप्रियता और पुरस्कार के बीच कोई तालमेल नहीं रहता। पुरस्कार तो सिर्फ उन चमकते चेहरों को दिया जाता है जो भीड़ जुटाने को काम करते हैं। यह भी एक किस्म की प्रतिभा है, लेकिन इसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का नाम देना सही नहीं है।
Comments
देखते है...ज्यादा बुरा ये होगा कि आप उन्हे नामांकित ही न करें..क्योकिं वो बहुत खराब लगेगा जब.. इन लोगो के काम के नामांकन के बाद कोई 100 करोडी सितारा अवार्ड लेता हुआ निकल जाएगा.इरफान खान,नवाजुद्दीन सिद्दीकी,वाजपेयी,नगमा खातून,(नाम याद नहीं आ रहा) को पुरस्कार मिले..1
देखते है...बेहतर होगा कि आप उन्हे नामांकित न करें..क्योकिं वो बहुत खराब लगेगा जब इन लोगो के काम के नामांकन के बाद कोई 100 करोडी सितारा अवार्ड लेता हुआ निकल जाएगा.इरफान खान,नवाजुद्दीन सिद्दीकी,वाजपेयी,नगमा खातून,(नाम याद नहीं आ रहा) को पुरस्कार मिले इसी नाउम्मीद सी उम्मीद के साथ..!