फिल्म समीक्षा : इंकार
-अजय ब्रह्मात्मज
सुधीर मिश्र ने 'इंकार' में ऑफिस के परिवेश में 'यौन उत्पीड़न' का विषय
चुना है। हर दफ्तर में यौन उत्पीड़न के कुछ किस्से होते हैं, जिन्हें आफिस,
व्यक्ति या किसी और बदनामी की वजह से दबा दिया जाता है। चूंकि हम पुरुष
प्रधान समाज में रहते हैं, इसलिए 'यौन उत्पीड़न' के ज्यादातर मामलों में
स्त्री शिकार होती है और पुरुष पर इल्जाम लगते हैं।
इस पृष्ठभूमि में सहारनपुर (उत्तरप्रदेश) के राहुल और सोलन (हिमाचल
प्रदेश) की माया की मुलाकात होती है। दोनों एक ऐड एजेंसी में काम करते हैं।
राहुल ऐड वर्ल्ड का विख्यात नाम है। एक इवेंट में हुई मुलाकात नजदीकी में
बढ़ती है। प्रतिभाशाली माया को राहुल ग्रुम करता है। अपने अनुभव और ज्ञान
से धार देकर वह उसे तीक्ष्ण बना देता है। माया सफलता की सीढि़यां चढ़ती
जाती है और फिर ऐसा वक्त आता है, जब वह राहुल के मुकाबले में उसके समकक्ष
नजर आती है। काम के सिलसिले में लंबे प्रवास और साथ की वजह से उनके बीच
शारीरिक संबंध भी बनता है। सब कुछ तब तक सामान्य तरीके से चलता रहता है, जब
तक माया राहुल की सहायिका बनी रहती है। जैसे ही उसे अवसर और अधिकार मिलते
हैं, राहुल असहज महसूस करने लगता है। दोनों के बीच असहयोग बढ़ता है। तनातनी
होती है। अल्फा मेल अपने आसपास अल्फा फीमेल को बर्दाश्त नहीं कर पाता।
माया से रहा नहीं जाता और वह राहुल पर 'यौन उत्पीड़न' का आरोप लगा देती है।
फिल्म अंदरूनी कामदार जांच कमिटी की सुनवाई से आरंभ होती है। सुनवाई के
दौरान राहुल और माया के बयानों और पक्ष से हमें दोनों की जिंदगी में आई
लहरों की जानकारी मिलती है। कामदार सुनवाई में एक बार मानती भी हैं कि दो
खूबसूरत लोग लंबे समय तक साथ काम करेंगे तो उनके बीच शारीरिक संबंध बनना
अस्वाभाविक नहीं है। जीवन के बदलते मूल्यों ने लव और सेक्स के प्रति अप्रोच
बदल दिए हैं। बड़े-छोटे शहरों में सभी संस्थानों में ऐसे संबंध बनते हैं।
मीडिया,्र फिल्म, फैशन और ऐड वर्ल्ड में खुलापन ज्यादा है तो ऐसे संबंधों
की तादाद ज्यादा होती है। कोई परवाह नहीं करता और न ही कोई बिसूरता है।
मानवीय संबंधों में उत्तर आधुनिकता की वजह से आए इस प्रभाव के बावजूद भारत
में देखा जाता है कि अधिकांश मामलों में ऐसे संबंध भावनात्मक हो जाते हैं।
स्त्री और पुरुष दोनों ही इसे दिल पर ले लेते हैं।
'इंकार' की यही कहानी स्त्री-पुरुष के बजाए दो पुरुषों की होती है तो
इसे ईष्र्या और द्वेष का नाम दिया जाता। चूंकि इस कहानी में एक स्त्री और
दूसरा पुरुष है और दोनों के बीच भावनात्मक शारीरिक संबंध भी बने हैं। इसलिए
व्यक्तिगत द्वेष 'यौन उत्पीड़न' का टर्न ले लेता है। करिअर में राहुल और
माया के आमने-सामने आने के पहले सब कुछ सहज और स्वाभाविक है। राहुल का
पुरुष अहंमाया की तरक्की और समकक्षता बर्दाश्त नहीं कर पाता। वह कठोर और
रूखा होता है तो माया बिफर जाती है। 'यौन उत्पीड़न' का आरोप फिल्म में बदले
की एक चाल के रूप में आता है। सतह पर बिगड़े संबंधों के नीचे राहुल और माया
की भावनात्मक संवेदना की धारा है। राहुल आखिरकार भारतीय पुरुष है। उसकी एक
ही चिंता है कि माया ने जॉन के साथ क्या किया? क्या किया से उसका तात्पर्य
सिर्फ इतना है कि वह उसके साथ सोई तो नहीं थी? दूसरी तरफ भारतीय नारी माया
जॉन के करीब आने के बाद साथ सोने से मु•र जाती है। अंतिम दृश्यों में आकर
'इंकार' साधारण और चालू फिल्म बन जाती है।
अर्जुन रामपाल और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही तरीके से
पर्दे पर उतारा है। चित्रांगदा सिंह कभी भूमिका को लेखक-निर्देशक का समर्थन
मिला है। छोटी भूमिका में होने के बावजूद गुप्ताजी (विपिन शर्मा) की मारक
टिप्पणियां याद रह जाती हैं।
सुधीर मिश्र अगर बोल्ड कल्पना करते और माया के साथ जाते तो 'इंकार'
21वीं सदी में महेश भट्ट की 'अर्थ' के समान एक प्रोग्रेसिव फिल्म हो जाती।
अफसोस एक अच्छी सोच और कोशिश अपने निष्कर्ष में प्रभावहीन हो गई।
अवधि-131 मिनट
*** तीन स्टार
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