प्रभावशाली फिल्‍मी हस्तियां : विद्या बालन,आमिर खान और रणबीर कपूर

विद्या बालन
चूंकि खान हिंदी फिल्मों में कामयाबी के पर्याय माने जाते हैं,इसलिए विद्या बालन की अप्रतिम कामयाबी के मद्देनजर उन्हें ‘लेडी खान’ टायटल से नवाजा गया। तब विद्या बालन ने मजाक में ही एक सच कहा था कि अब औरों की कामयाबी विद्या बालन से आंकी जानी चाहिए।बहरहाल,‘किस्मत कनेक्शन’ के समय चौतरफा विध्वंसात्मक आलोचना और छींटाकशी के केंद्र में आई दक्षिण भारतीय मूल की इस मिडिल क्लास लडक़ी ने साड़ी पहनने के साथ लक्ष्य साधा और फिर ‘इश्किया’ से अपने कदम बढ़ा दिए।हिंदी फिल्मों की निर्बंध नायिका विद्या बालन ने उसके बाद हर नई फिल्म से खास मुकाम हासिल किया। पहले ‘डर्टी पिक्चर’ और फिर ‘कहानी’ उन्होंने इस कथित सच को झुठला दिया कि हिंदी फिल्में सिर्फ हीरो के दम पर चलती हैं और हीरोइनें तो केवल नाच-गाने के लिए होती हैं। नाच-गानों से विद्या बालन को परहेज नहीं है। वह इनके साथ ही चरित्रों की गहराई में उतरना जानती हैं। वह उन्हें विश्वसनीय और प्रभावपूर्ण बना देती हैं। अभिनय के साथ उनमें आम भारतीय महिला का लावण्य है। उन्होंने सबसे पहले नायिकाओं केलिए जरूरी ‘जीरो साइज’ का मिथक तोड़ा। अपनी जोरदार कामयाबी से उन्होंने लेखकों-निर्देशकों की कल्पना को विस्तार की संभावनाएं दी हैं। अब वे पर्दे पर मनचाही नायिकाओं का सृजन कर सकते हैं।

आमिर खान
पिछले कुछ सालों से आमिर खान जहां खड़े होते हैं,वहीं से सफलता की राह मुड़ती है। यों यह सिलसिला ‘लगान’ के निर्माण और अभिनय से आरंभ हुआ। टीवी शो ‘सत्यमेव जयते’ के बाद की आमिर खान की राह चढ़ाईदार और तीक्ष्ण है। शायद ही कोई और स्टार आमिर खान का अनुसरण करे। समाज कह कुरूप सच्चाइयों को साक्ष्यों और हमदर्दी के साथ उजागर करते हुए आमिर खान स्वयं भी प्रकाशित हुए। नतीजतन उन्होंने हर प्रकार के कंज्यूमर ऐड और एंडोर्समेंट से तौबा कर ली। पैसों के लिए दाता की हथेलियों पर नाचने तक के लिए तैयार स्टारों के बरक्स आमिर खान का यह फैसला एक मिसाल है। सफलता सार्वजनिक जिंदगी में दायित्व भी सौंपती है। सिद्धहस्त स्टार आमिर खान ने अपनी ताजा फिल्म ‘तलाश’ से साबित किया कि दर्शकों की पसंद बने रहने और बाक्स आफिस कलेक्शन का आंकड़ा बढ़ाने के लिए आत्ममुग्ध नायक बन कर पर्दे को छेंकने की जरूरत नहीं है। अपने द्वंद्व और पश्चाताप से जूझता सुर्जन सिंह शेखावत किसी आम नागरिक की तरह निजी उलझनों के बीच कर्तव्य से नहीं चूकता। वह किदी फिल्मों का अपराजेय हीरो नहीं है। आमिर खान अपने स्टारडम का उपयोग अपने मानदंडों को ऊंचा करने के साथ ही दर्शकों के भाव और सौंदर्यबोध को मनोरंजक तरीके से विकसित करने में कर रहे हैं।
रणबीर कपूर
मनोरंजन की रणभूमि के वीर सितारे रणबीर कपूर निर्भीक हैं। ‘सांवरिया’ से ‘बर्फी’ तक के सफर में रणबीर कपूर ने निरंतर सिद्ध किया है कि वे अभिनय की नई चुनौतियों के लिए सक्षम और योग्य हैं। ‘राकेट सिंह’ हो या ‘राजनीति’,‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ हो या ‘बर्फी’ या फिर ंिहदी फिल्मों के हीरो की बंधी-बंधयी इमेज तोड़ती ‘रॉकस्टार’ हो। हर फिल्म में हम रणबीर कपूर के क्रिएटिव साहस और सफलता का साक्षात्कार करते रहे हैं। ‘बर्फी’ में उनके परफारमेंस का देखते हुए पारंपरिक दर्शकों द्वारा संजीव कुमार और कमल हासन का स्मरण अस्वाभाविक नहीं है। बगैर एक शब्द बोले मूक-वधिर बर्फी ने अपनी सहृदयता और मानवीयता की मिठास से दर्शकों को भावसिक्त कर दिया। हाल ही में यूएनओ में इस फिल्म के प्रदर्शन को पूरी दुनिया के चुनिंदा रीाजनयिकों ने सराहा। इमेज की फितूर में लकीर के फकीर बनते समकालीनों को रणबीर कपूर अपनी विविधता से पराजित कर देते हैं। कपूर खानदान के वारिस रणबीर कपूर ने परदादा,दादा और पिता की परंपरा का उल्लेखनीय निर्वाह किया है। निश्छल और निद्र्वंद्व स्वभाव के रणबीर कपूर के दैनंदिन जीवन में स्टार का आरण और मास्क नहीं है। वे स्पष्ट कहते हैं,मैं नाम और दाम के लिए फिल्मों में नहीं आया हूं। दोनों मुझे विरासत में लिे हैं? मुझे तो काम चाहिए ़ ़ ़ फिल्में? अलग फिल्में


Comments

रणबीर कपूर सच में एक प्रभावी कलाकार है | उसने पाने परदादा और दादा की विरासत को बखूबी बरक़रार रखा है | बाकि आमिर मुझे सिर्फ कुछ ही फिल्मों में अच्छे लगे हैं और विद्या तो बस अब क्या कहें क़यामत हैं |

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को