कानपुर आ गए हैं चुलबुल पांडे-दिलीप शुक्ला
-अजय ब्रह्मात्मज
1990 में सनी देओल की फिल्म ‘घायल’ से हिंदी फिल्मों के लेखन से जुड़े दिलीप शुक्ला ने इस बीच कई कामयाब और चर्चित फिल्में लिखी हैं। बीच में उन्होंने ‘हैलो हम लल्लन बोल रहे हैं’ फिल्म का निर्देशन भी किया। वहीं ‘गट्टू’ जैसी चिल्डे्रन फिल्म भी लिखी। एक अर्से के बाद ‘दबंग’ ने उन्हें फिर से चर्चा में ला दिया है। अब ‘दबंग 2’ आ रही है। अपने संवादों और किरदारों के देसी टच के लिए मशहूर दिलीप शुक्ला इन दिनों काफी डिमांड में हैं।
मूलत: लखनऊ निवासी दिलीप शुक्ला का कुछ समय कानपुर में भी गुजरा है। कानपुर में उनका ससुराल है और बहन की शादी भी कानपुर में हुई है। शुरू से कानपुर आते-जाते रहने और वहां के लोगों को भली-भांति समझने से दिलीप शुक्ला को चुलबुल पांडे जैसे किरदारों को पर्दे पर जीवित करना मुश्किल नहीं रहा। ‘दबंग 2’ में उन्होंने चुलबुल पांडे को कानपुर के बजरिया थाने का प्रभारी बना दिया है। वे कहते हैं, ‘इस बार चुलबुल पांडे कनपुरिया लहजे में बोलते नजर आएंगे। वे गाली और गोली तो नहीं चलाते, लेकिन अपनी बोली से ही घायल कर देते हैं।’
चुलबुल पांडे के बारे में पूछने पर वे बताते हैं, ‘मैंने अनेक फिल्मों में पुलिस आफिसर के किरदार लिखे हैं। फिर लग रहा था कि अब पुलिस पर नया क्या लिखें? ईमानदार पुलिस अधिकारी और उसकी मुश्किलें या बेईमान पुलिस अधिकारी और उसका ईमानदार बनना ़ ़ ़ ऐसी कहानियों पर ढेर सारी फिल्में बन चुकी हैं। मैं अपने लेखन में सबसे पहले विचार ले आता हूं। उसके बाद कहानी लिखना शुरू करता हूं। मुझे चुलबुल का विचार और किरदार अच्छा लगा। वह थोड़ा कानून मानता है और थोड़ा नहीं मानता है। वह थोड़ा अच्छा भी है और थोड़ा बुरा भी है। इस से एक नया कलर आ गया। बाकी उसमें कुछ अभिनव कश्यप ने भी जोड़ा। डायरेक्टर तो फिल्म को अपने हिसाब से आगे बढ़ा ही देता है।’
दिलीप शुक्ला पहली ‘दबंग’ की सफलता का श्रेय सबसे पहले अरबाज खान को देना चाहते हैं। वे कहते हैं, ‘सबसे पहले अरबाज ने स्क्रिप्ट में विश्वास जताया। उसके बाद उसने अपने भाई सलमान को राजी किया। सलमान खान के आने के बाद फिल्म अपने आप बड़ी हो गई। सलमान के अदायगी ने ‘दबंग’ को सब की पसंद बना दिया। ‘दबंग 2’ के लिए फिर मुझे बुलाया गया तो मैं हंसी-खुशी राजी हो गया। चूंकि कहानी मेरी है तो मुझे मालूम था कि इसे आगे कैसे बढ़ा सकते हैं। मेरे लिए यह मुश्किल काम नहीं था। ‘दबंग 2’ में फैमिली के रिश्ते आगे बढ़े हैं। भाइयों की खटास अब खत्म हो गई है। बाप-बेटे के बीच भी रिश्ता गाढ़ा हुआ है। पहली ‘दबंग’ में चुलबुल पांडे रज्जो पर डोरे डाल रहे थे। अब वह उनकी बीवी है। उसके घर में होने के वजह से रोमांस का स्तर अलग होगा। पारिवारिक रिश्तों में नयापन दिखेगा। इसके अलावा लड़ाई की पिच बड़े शहर में आ गई है। नया विलेन नए अंदाज में आ गया है। हमारी आपस में सहमति थी कि ‘दबंग 2’ को पहली ‘दबंग’ से अलग न करें। देखने-सुनने में अलग लगने पर दर्शकों का इंटरेस्ट कम हो जाएगा।’
‘फिल्म में पहले भी नार्थ का टच था। इस बार वह टच और गहरा होगा। पहली ‘दबंग’ में चुलबुल पांडे लालगंज थाने में थे। वह छोटी जगह थी। अब वे कानपुर शहर में आ गए हैं। कानपुर मेरा परिचित शहर है। इस शहर में पैदल घुमता रहा हूं। इस फिल्म में कनपुरिया भाषा भी मिलेगी। इस फिल्म में गुंडई भी कनपुरिया अंदाज में है। कानपुर शहर के लोगों में थोड़ी बहुत खलीफागिरी है। वहां हर आदमी खुद को दूसरे का गुरू मानता है। आम कनपुरिया भी थोड़ा शातिर मिजाज और तंजिया होता है। वे हमेशा हवा में रहते हैं। हर कनपुरिया सामने वाले से खुद को ज्यादा अनुभवी और जानकार मानते हैं। दूसरे को वे घंटे पर रखते हैं।’, बताते हैं दिलीप शुक्ला।
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