फिल्म समीक्षा : लाइफ ऑफ पाई
-अजय ब्रह्मात्मज
यान मार्टेल का उपन्यास 'लाइफ ऑफपाई' देश-विदेश में खूब पढ़ा गया है। इस
उपन्यास ने पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है। विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार आंग ली
ने इसी उपन्यास को फिल्म का रूप दिया है। 3 डी तकनीक के उपयोग से उन्होंने
मार्टेल की कल्पना को पर्दे पर धड़कन दे दी है। जीव-जंतु और प्राकृतिक
सौंदर्य की लगभग नैसर्गिक अनुभूति दिलाने में वे सफल रहे हैं। यह फिल्म पाई
की कहानी है। पांडिचेरी के निजी चिड़ियाघर के मालिक के छोटे बेटे पाई के
माध्यम से निर्देशक ने जीवन, अस्तित्व, धर्म और सहअस्तित्व के बुनियादी
प्रश्नों को छुआ है।
पाई अपने परिवार के साथ कनाडा के लिए समुद्र मार्ग से निकला है। रास्ते
के भयंकर तूफान में उसका जहाज डूब जाता है। मां-पिता और भाई को डूबे जहाज
में खो चुका पाई एक सुरक्षा नौका पर बचा रह जाता है। उस पर कुछ जानवर भी आ
गए हैं। आखिरकार नाव पर बचे पाई और बाघ के बीच बने सामंजस्य और सरवाइवल की
यह कहानी रोमांचक और रमणीय है। किशोर पाई की [सूरज शर्मा] की कहानी युवा
पाई [इरफान खान] सुनाते हैं। अपने ही जीवन के बारे में बताते समय पाई का
चुटीला अंदाज कहानी को रोचक बनाने के साथ एक दृष्टिकोण भी देता है।
पाई बचपन से जिज्ञासु और खोजी है। हिंदू परिवार में पैदा हुआ पाई
इस्लाम और ईसाई धर्म को भी समझने की कोशिश करता है। वह सभी धर्मो की
विधियों को अपने आचरण में लाना चाहता है। उसके जीवन में रिचर्ड पार्कर
[रॉयल बंगाल बाघ] के अपने के बाद तब्दीली आती है। आंग ली पाई के मानस से चल
रहे जीवन के उथल-पुथल को किनारे कर समुद्र यात्रा पर कहानी को केंद्रित
किया है। जहाज डूबने के बाद प्रशांत महासागर में बाघ रिचर्ड पार्कर के साथ
बिताए पाई के दिनों को मुख्य कथा के रूप में देखते हैं। कैमरमैन क्लाउडियो
मिरांडा का कार्य उल्लेखनीय है।
3डी के प्रभावशाली उपयोग के लिए यह फिल्म देखी जानी चाहिए। जेम्स
कैमरून के स्टूडियो में ही इसका सीजी [कम्प्यूटर ग्राफिक] काम हुआ है।
जीव-जंतुओं और खास कर शेर की भाव-भंगिमाओं को दिखाने में सीजी टीम की
काबिलियत झलकती है। आंग ली ने अकेले व्यक्ति के साहस और सरवाइवल की इस
कहानी में जीवन संघर्ष के साथ हास्य का पुट भी बनाए रखा है। बाघ रिचर्ड
पार्कर और पाई के डर और दोस्ती को उन्होंने अपने लेखक की मदद से अच्छी तरह
गढ़ा है।
इरफान युवा पाई के रूप में प्रभावित करते हैं। साफ दिखता है कि वे कैसे
किरदारों को आत्मसात करने के साथ उसकी विशिष्टताओं को अपने बॉडी लैंग्वेज
से जाहिर करते हैं। किशोर पाई के रूप में सूरज शर्मा का काम उल्लेखनीय है।
उन्होंने बीच समुद्र में अपनी जिजीविषा को अच्छी तरह प्रकट किया है। तब्बू
की भूमिका छोटी है।
इस फिल्म 3डी में ही देखने की कोशिश करें।
**** चार स्टार
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