70 वें जन्मदिन पर अमिताभ बच्चन से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत
-अमिताभ बच्चन का जीवन देश का आदर्श बना हुआ है। पिछले कुछ समय से
फादर फिगर का सम्मान आप को मिल रहा है। पोती आराध्या के आने के बाद तो देश
के बच्चे आप को अपने परिवार का दादा ही मानने लगे हैं।
0 यह देश के लोगों की उदारता है। उनका प्रेम और स्नेह
है। मैंने कभी किसी उपाधि, संबोधन आदि के लिए कोई काम नहीं किया। मैं नहीं
चाहता कि लोग किसी खास दिशा या दृष्टिकोण से मुझे देखें। इस तरह से न तो
मैंने कभी सोचा और न कभी काम किया। जैसा कि आप कह रहे हैं अगर देश की जनता
ऐसा सोचती है या कुछ लोग ऐसा सोचते हैं तो बड़ी विनम्रता से मैं इसे
स्वीकार करता हूं।
- लोग कहते हैं कि आप का वर्तमान अतीत के फैसलों का
परिणाम होता है। आप अपनी जीवन यात्रा और वर्तमान को किस रूप में देखते हैं?
निश्चित ही आपने भी कुछ कठोर फैसले लिए होंगे?
0
जीवन में बिना संघर्ष किए कुछ भी हासिल नहीं होता। जीवन में कई बार कठोर
और सुखद प्रश्न सामने आते हैं और उसी के अनुसार फैसले लेने पड़ते हैं। जीवन
हमेशा सुखद तो होता नहीं है। हम सभी के जीवन में कई पल ऐसे आते हैं, जब
कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। यह उतार-चढ़ाव जीवन में लगा रहता है। मैंने
कभी उस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अपने फैसलों के बारे में ज्यादा नहीं सोचा।
पिताजी ने कहा है, जो बीत गई, वह बात गई। और फिर आगे बढ़ें। केवल इतना
मुझे ज्ञात है कि जो भी मेरे साथ हुआ वह दुखद रहा हो या सुखद रहा हो, उससे
मैंने क्या सीखा। यदि मैं उन संकट के क्षणों से निकल पाया तो यह अवश्य
समझने की कोशिश की कि क्यों संकट के वे क्षण मेरे जीवन में आए? उन पर
सोच-विचार करने पर ऐसा लगा कि मैंने कुछ सीखा ही। अगर आप मुझसे पूछें कि
क्या अपना जीवन दोबारा ऐसे ही जीना चाहेंगे या उसमें परिवर्तन लाना चाहेंगे
तो मेरा जवाब होगा, मैं उसे वैसे के वैसे ही जीना चाहूंगा।
- गलतियों, भूलों और संकटों के बावजूद...
0
अगर वे गलतियां नहीं होतीं तो हम कुछ सीखते नहीं। और संभव है कि बाद में
मुसीबत ज्यादा बड़ी हो जाती। हम उन गलतियों से जो सीख पाए, वह नहीं हो
पाता।
- कुछ लोग कहते हैं कि स्थितियां ही मनुष्य को बनाती
हैं। मुझे लगता है स्थितियां केवल मनुष्य को उद्घाटित करती हैं। कोई
जन्मजात वैसा ही नहीं होता, जैसा वह आज है। अमिताभ बच्चन नित नए रूप में
उद्घाटित हो रहे हैं?
0 इस दिशा में मैंने कुछ सोचा नहीं। यह तो आप जैसे लोग
हैं, जो सोचते और मानते हैं कि एक नया रूप आ रहा है। मैं तो अपने आप को
वैसा ही समझता हूं। मैंने अपने आप में न तो कोई परिवर्तन देखा है और न कभी
इसकी कोशिश की है।
- दरअसल हम आपसे ही जानने की कोशिश कर रहे हैं?
0
जैसे ही मैं उसका वर्णन करना शुरू कर दूंगा तो ऐसा लगेगा कि मैं अपनी ही
तारीफ के पुल बांध रहा हूं। देखना, सोचना, समझना और बताना यह आप लोगों का
काम है। अगर आप को लगता है कि मुझ में कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में
लिखा जाना चाहिए तो लिखें। अपना परिचय या वर्णन मैं अपने आप नहीं कर
पाऊंगा। जब भी इस तरह के सवाल आते हैं और मुझ से पीछे पलटकर देखने के लिए
कहा जाता है तो मुझे लगने लगता है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। मैं
नहीं समझता कि मैं आत्मकथा लिखने के योग्य हूं या मेरे अपने जीवन में ऐसा
कुछ है, जो लिखा जाना चाहिए। बाबुजी ने जरूर आत्मकथा लिखी। वह ऐतिहासिक
लेखन है।
- फिर भी कुछ क्षण और पल रहे होंगे, जब आप हताश और
निराश हुए होंगे। फिल्मों में आने के समय की बात करें तो जिस प्रकार आप को
अस्वीकार किया गया। फिर बाद में जिसे वन मैन इंडस्ट्री कहते थे, उसे ही
फिल्में न मिलें। इन सारी परिस्थितियों में आप किसी अमरपक्षी की तरह फिर से
उड़ान भरते हैं। आप में थोड़ी सी चिंगारी बची रह जाती है, जिससे आप लहलहा
उठते हैं।
0 इतनी बारीकी से मैंने अपने आप को नहीं देखा और देखना भी नहीं चाहता।
- सिर्फ यह बता दें कि आखिर वह कौन सी ऊर्जा है, जो आप को ताकत देती है?
0
शुरू में काम न मिलने का आपने जिक्र किया। इस संबंध में मेरी स्पष्ट राय
है कि जब तक आप के गुणों से कोई परिचित नहीं है तो कैसे अपने व्यवसाय में
ले ले। धीरे-धीरे परिचय मिलने लगता है तो काम भी मिलने लगता है। काम मिलने
के बाद आप के गुण और काबिलियत की चीजें सामने आती हैं। फिर आप का काम और
बढ़ता है। हमारी इंडस्ट्री में रूप, कला और बॉक्स ऑफिस तीनों को देखा जाता
है। इन्हें समेटकर ही कोई फैसला लिया जाता है। हो सकता है कि मुझ में कुछ
त्रुटियां रही हों, जिनकी वजह से मुझे काम न मिला हो। बीच में दो-तीन सालों
तक मैंने कोई काम नहीं किया था। हां, जो संन्यास लिया था, वह मुझे नहीं
लेना चाहिए था। बाबुजी ने कहा है, अनवरत समय की चक्की चलती रहती है। कई बार
ऐसा मन करता है कि उस चक्की से छिटककर कुछ देखें, लेकिन मेरा मानना है कि
एक बार चलायमान हो गए तो चलते रहना चाहिए। वह चक्की अपने आप रूक जाए या आप
की नाकामयाबी से रूके तो यह दूसरी बात है। अनिश्चय का एक माहौल हमारे
व्यवसाय में हमेशा बना रहता है। आगे भी ऐसा ही रहेगा। अब वृद्ध हो गए हम।
सत्तर बरस के हो गए। अब मुझे नौजवान भूमिकाएं तो मिलेंगी नहीं। वृद्ध
भूमिकाएं सीमित होती हैं। उसी तरह का काम मिलेगा, वही करते रहेंगे।
-बाबुजी ने चार खंडों में आत्मकथा लिखी। उसका एक खंड
‘क्या भूलुं क्या याद करूं’। आप के जीवन में भी कुछ भूलने और याद रखने वाली
बातें होंगी। क्या कुछेक सुखद क्षण हमारे पाठकों से शेयर करेंगे?
0 सबसे सुखद बात है कि जनता ने इस व्यवसाय में स्वीकारा मुझे।
उनका स्नेह, प्यार, प्रार्थनाएं और दुआएं नहीं होतीं तो हम आज की स्थिति
में नहीं होते। माता-पिता का आशीर्वाद.. उन्होंने हमारी जो परवरिश की।
बाबुजी का लेखन, उनके लेखन से मिली सीख.. उनके साथ समय बिताने का अवसर
मिला। उनका जीवन हमारे लिए उदाहरण बना। यही सब कुछ सुखद बातें हैं।
-पारिवारिक जीवन में आपने पुत्र, पति, पिता और अब
दादा की भूमिकाएं निभाई हैं। अभिषेक के अनुसार आप सारी भूमिकाओं में
परफेक्ट रहे हैं।
0 यह मुझे मालूम नहीं है कि मैं कितना परफेक्ट रहा हूं?
-पूरे देश ने आप की पितृ और मातृ सेवा देखी है। अपनी
व्यस्तताओं के बावजूद आप ने उनकी पूरी देखरेख की। ऐसी सेवा बहुत कम लोग कर
पाते हैं। मुझे लगता है कि यह उत्तर भारत के मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों
का खास गुण है। आपने उसे निभाया और एक आदर्श बने। पारिवारिक मूल्यों के
प्रति आप का दृष्टिकोण आप के ब्लॉग लेखन, व्यवहार और प्रतिक्रियाओं में साफ
नजर आता है।
0अपने जीवन के दौरान जो भी देखा, सुना, पढ़ा और सीखा
मां-बाबुजी से या जिस वातावरण में हम रहे, जिस माहौल में पले-बढ़े, वहीं सब
कुछ सीखा। कभी किसी ने बताया या कहा नहीं कि ऐसे करना चाहिए। जो मन में
आया हमने किया। जो हमे लगा कि करना चाहिए, वही किया। मुझे लगता है, जिनकी
वजह से हमारा जीवन है। जिन्होंने अपनी जिंदगी की तमाम कठिनाइयों के बीच
हमें शिक्षा दी। पाला, बड़ा किया... इतना तो हमारा फर्ज बनता है कि जब वे
सहायता की स्थिति में हों या चिकित्सा की आवश्यकता हो तो उसे पूरा करें। हर
संतान को सब कुछ करना चाहिए। मैं ऐसा मानता हूं और मैंने यही किया। इस वजह
से कभी कुछ नहीं किया कि आदर्श बनना है, या मिसाल रखनी है।
-पोती का नाम आराध्या ही है न?
0 हां, आराध्या ही है।
-दादा
के रूप में आप आराध्या को कितना समय दे पाते हैं? कहते हैं हर पुरुष पति,
पिता और दादा बनने के साथ बदलता है। उसके दृष्टिकोण बदल जाते हैं। इन दिनों
ऐसा लग रहा है कि आप सुखी और संतुष्ट हैं। अभी आप किसी चीज के लिए
प्रयासरत नहीं दिखते। जो मिल रहा है या जो सामने है, उसका आनंद उठा रहे
हैं?
0 पहले भी ऐसा ही व्यवहार था मेरा। जो मिलता था, वह करते थे। पहले वाली असुरक्षा आज भी है। पता नहीं कल काम मिलेगा कि नहीं मिलेगा।
-क्या सत्तर साल के सफल अमिताभ भी असुरक्षित हैं?
0 क्यों नहीं? प्रतिदिन एक भय रहता है कि आज जो काम
करना है, वह कैसे होगा? होगा कि नहीं होगा? अभी आप का इंटरव्यू खत्म कर
‘केबीसी’ के सेट पर जाऊंगा। डर लगा रहता है। संघर्ष प्रतिदिन रहेगा हमारे
जीवन में। बाबुजी के सामने जब हम अपनी दुविधाएं रखते थे तो वे यही कहते थे
कि संघर्ष हमारे साथ रहने वाला है। उन्होंने कहा था कि कभी इत्मीनान नहीं
रहता। मुझे नहीं लगता कि यह संभव होगा। यही हम चाहेंगे कि हमारा परिवार और
निकट संबंधी सुख-शांति से रहें। हमारे चाहने वालों का स्नेह-प्यार बना रहे,
क्योंकि उन्हीं की वजह से हम बने हैं। हम अलग से कोई खास प्रयत्न नहीं
करते। जो आ जाता है, उसी में चुन लेते हैं सोच-समझकर कि इसी में रूचि होगी।
- आप अपने काम में सौ प्रतिशत से ज्यादा देते हैं। अभिषेक की एक ही शिकायत है कि डैड अपने सेहत का ख्याल रखें और आराम करें?
0
आराम तो एक दिन सभी को करना ही पड़ेगा। शरीर जब नहीं चलेगा तो आराम करना
ही पड़ेगा। जब तक शरीर साथ दे रहा है तब तक शरीर चलाते रहेंगे।
- आप के ब्लॉग पर बार-बार उल्लेख आता है कि अब मैं समाप्त करता हूं, नहीं तो परिजन नाराज हो जाएंगे?
0 हां वो होता है।
- वह कौन सी चाहत है, जो सुबह चार बजे भी ब्लॉग लिखने के लिए मजबूर करती है?
0 यह प्रथा बन गई है। मैं उसमें कोई व्यवधान नहीं आने
देना चाहता। मैंने उनसे वादा किया हुआ है कि प्रतिदिन लिखूंगा। अब एक बार
जबान या शब्द दे दिया तो उसे पूरा करना चाहिए। हां, यह होता है कि कई बार
देर हो जाती है। दिनचर्या में कई सारे काम होते हैं। उन्हें पूरा करने के
बाद ही लिखता हूं, लेकिन लिखता अवश्य हूं, ताकि उनसे संपर्क बना रहे।
- कई बार मैंने देखा कि आप अपने पाठकों का पूरा ख्याल रखते हैं। उनकी बात मानते हैं। उन्हें जवाब देते हैं?
0
हां, जवाब देता हूं। यह सुविधा हमने ही ब्लॉग में जोड़ी है कि जो कुछ भी
मैं कहता हूं,आप उस टिप्पणी कर सकें। उसके बाद मैं भी उत्तर देता हूं।
उन्हें लगता है कि वे भी मेरे आमने-सामने बैठकर बातें करते हैं। यह सब
अच्छा लगता है।
-तमाम कलाकारों के बीच आप का यूथ कनेक्ट सबसे ज्यादा
और तीव्र है। आप की भाषा, आप की बातचीत। उसमें बड़े-बुजुर्ग होने का एहसास
नहीं होता। कोई उपदेश नहीं देते आप?
0 उपदेश, आवे तो देवें(जोरदार ठहाका)।
-अगर मैं सीधे पूछूं कि आप क्यों ट्विट पर हैं, फेसबुक पर हैं, ब्लॉग पर हैं?
0
किसी ने कहा कि आप का वेबसाइट होना चाहिए, जहां पर लोग आप के बारे में
जानें। जहां से जनता को आप के बारे में जानकारी मिले। बहुत सारे फेक लोग आप
की आईडी और नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। उसमें गलत चीजें भी छप रही हैं।
उसे सीधा और सही करने की जरूरत है।
मैंने कहा कि भाई वेबसाइट कर दो। उन्होंने मुझ से वक्त
मांगा। मैंने कहा, मुझे तो कल ही चाहिए। फिर उन्होंने सुझाया कि कल ब्लॉग
हो सकता है। मैंने उसे समझा। लगा कि अच्छी चीज है। पहला ब्लॉग लिखा। दो-चार
लोगों ने उत्तर दिए। फिर प्रतिदिन करते गए। पाठकों की संख्या बढ़ती गई।
फिर उसके बाद पता चला कि एक ट्विटर है। फिर फेसबुक की जानकारी मिली।
धीरे-धीरे जो सुविधाएं मिल रही हैं, उन्हें मैं एक बार जरूर देखना और चखना
चाहूंगा। एक जिज्ञासा है बस।
- खास बात है कि आप के ब्लॉग में कभी दोहराव नहीं होता?
0
मैं पहले से कुछ भी सोचकर नहीं लिखता। कंप्यूटर खोलने के बाद जो जी में
आता है लिख देता हूं। मन में जो बात आती है, वही लिखता हूं। पहले से प्लान
नहीं करता कि आज यह लिखूंगा, कल वह लिखूंगा। हां, तस्वीरें मैं डालता हूं।
दिन भर की कुछ खिंची यादगार तस्वीरें। मेरा लेखन बहुत ही मामूली है। बस मैं
एक लोगों से बातचीत करता हूं।
-अभी तो लोग आप के ब्लॉग पर शोध करेंगे?
0 शोध(एक ठहराव) कहां होने वाला है?
- अभी आप के सबसे अंतरंग मित्र कौन हैं?
0
परिवार के सदस्य हमारे मित्र हैं और कुछ मित्र आते-जाते हैं। मेरे ज्यादा
दोस्त हैं नहीं, क्योंकि मैं ज्यादा लोगों से मिलता-जुलता नहीं हूं।
-कुछ नाम ले सकें?
0 (ठहरकर)... क्या लें। सभी के लिए द्वार खुला हुआ है। जो आ जाए।
- सबसे कीमती धरोहर क्या है आप के पास?
0 बाबुजी का लेखन.. माता-पिता के साथ बिताए गए क्षण। जो उनके सानिध्य में बीता, वही हमारी धरोहर है।
- अपने बाद की पीढ़ी को और देश को क्या धरोहर देना चाहेंगे?
0
इस विषय या लक्ष्य से जीवन जीने पर मैं गलत हो जाऊंगा। मैं यह सोचकर नहीं
चलना चाह रहा हूं कि अगली पीढ़ी को कुछ दूंगा। यदि मेरे साथ रहकर उन्होंने
कुछ सीखा या समझा तो वही उनकी धरोहर है।
-हम भाग्यशाली हैं कि हमने साक्षात अमिताभ बच्चन को
देखा है। आने वाली पीढ़ी निश्चित ही हमसे रश्क करेगी। मुमकिन नहीं लगता कि
भविष्य में कोई और अमिताभ बच्चन आएगा। आप सिर्फ एक जीवन नहीं हैं विशेष
परिघटना हैं भारत की। देश की युवा पीढ़ी को जीवन का क्या संदेश देना
चाहेंगे?
0 पहले तो मुझे इस पर विश्वास होना चाहिए कि मैं कोई
परिघटना हूं। हमने तो कभी ऐसे जीवन नहीं बिताया कि उस पर कोई शोध होगा,
सर्वे होगा और लोग निष्कर्ष निकालेंगे। ना ही मैंने किसी को कुछ कहने,
लिखने और नाम देने से रोका है। मैं सभी को बाबुजी की सीख देना चाहूंगा- मन
का हो तो अच्छा, न हो तो ज्यादा अच्छा। जब तक जीवन है, तब तक संघर्ष है। ये
छोटी-मोटी बातें हैं।
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* मिथिलेश आदित्य
* मिथिलेश आदित्य
* मिथिलेश आदित्य