हंगल की अंतिम यात्रा का सन्नाटा
-अजय ब्रह्मात्मज
खूब लिखा गया। अखबारों,चैनलों और सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा इस तथ्य को रेखांकित किया गया कि एके अवतार कृष्ण हंगल की अंतिम यात्रा में फिल्म इंडस्ट्री की नामचीन हस्तियां नहीं आईं। संकेतों में कुछ नामों की तरफ इशारा किया गया। सभी की शिकायत थी कि जिस कलाकार ने अपनी जिंदगी के लगभग 50 साल इंडस्ट्री को दिए और 200 से अधिक फिल्में कीें। उसकी अंतिम यात्रा के लिए उसकी ही बिरादरी के गणमान्य सदस्यों को फुर्सत नहीं मिल सकी। यह शिकायत उचित होने के बावजूद निरर्थक है। हमें दिवंगत व्यक्ति की जिंदगी पर गौर करना चाहिए। अगर दिवगंत व्यक्ति के करीबी नहीं आते तो सोचने की जरूरत थी। इंडस्ट्री में हर व्यक्ति के निधन पर सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मौजूदगी की चाहत वास्तव में इलेक्ट्रानिक मीडिया की जरूरतों से उपजी है। उन्हें अपने चैनलों पर दिखाने के लिए कुछ बड़े नाम,नाटकीय और भव्य अंतिम यात्रा और रंगीन-विवादास्पद जिंदगी चाहिए। उन्हें लगता है कि इससे दर्शकता बढ़ती है। टीवी पर चल रही शिकायतों को देख कर ही पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया नेटवर्क पर सन्नाटे का जिक्र हुआ।
इस सन्नाटे के एहसास का एक संदर्भ है। कुछ ही समय पहले दारा सिंह और राजेश खन्ना के निधन के समय फिल्मी सितारों का हुजूम उनके आवास और श्मशान भूमि में पहुंचा था। टीवी चैनलों ने उनकी चलती-फिरती तस्वीरों का सीधा प्रसारण किया। उनकी अंत्येष्टि में आए सितारों को देखने के बाद जब हंगल की अंतिम यात्रा में जाने-पहचाने सितारे नहीं दिखे तो कुछ लोगों को यह बात खली। उन्हें यही लगा कि हंगल को महत्व नहीं मिला। गौर करें तो यह स्वाभाविक था। हंगल कोई स्टार या मशहूर अभिनेता नहीं थे। निस्संदेह वे बेहतर अभिनेता थे,लेकिन बेहतर और लोकप्रिय होने में फर्क है। उनकी अंतिम यात्रा की तस्वीरें या फुटेज देखें तो उसमें उनके सारी दोस्त मौजूद थे। इप्टा के सदस्यों और रंगकर्मियों ने उन्हें भावभीनी विदाई दी। पूरे देश में रंगकर्मियों और थिएटर के लोगों ने हंगल की याद में स्मृति सभाएं कीं। ऐसी स्वत स्फूर्त स्मृति और श्रद्धांजलि सभाएं तो राजेश खन्ना के लिए भी नहीं हुईं। हंगल को पूरे देश ने याद किया। वे आम दर्शकों के प्रिय अभिनेता साबित हुए। भले ही खास सितारों ने उनकी अंतिम यात्रा में शिरकत नहीं की।
हिंदी फिल्मों में आप स्टार नहीं हैं या किसी स्टार से संबंधित नहीं हैं तो जिंदगी और मौत में यही स्थिति बनती है। इस इंडस्ट्री में केवल स्टार ही प्रथम दर्जे का नागरिक होता है। बाकी सभी दोयम दर्जे के होते हैं। यह सिर्फ इंडस्ट्री का ही रवैया नहीं है। इंडस्ट्री तो इसी समाज का हिस्सा है। गौर करने की बात है कि समाज में भी स्टार का आकर्षण बाकी अभिनेताओं,तकनीशियनों,लेखकों और निर्देशकों से विशेष होता है। इस सच्चाई से आंख मूंदने पर ही हम अपेक्षा करने लगते हैं कि हंगल की अंतिम यात्रा में सितारों को आना चाहिए। क्या वे बी आर इशारा की अंतिम यात्रा में आए थे? या उन्होंने अशोक मेहता की अंतिम यात्रा में शामिल होने की जहमत उठाई थी? जीते जी चरित्र अभिनेता और शेष को सिर टिकाने या शेयर करने के लिए सितारों का कंधा नहीं मिलता और आप मरने के बाद अर्थी को कंधा देने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। किस गलतफहमी में हैं। एके हंगल ने अपनी आत्मकथा में जिक्र किया है कि उनकी पहली फिल्म शागिर्द ने गोल्डन जुबली मनाई थी। गोल्डन जुबली के जश्न में हंगल को नहीं बुलाया गया था। इसे उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री के एक सबक के तौर पर लिया था। वह सबक सही निकला। करिअर की शुरूआत का रवैया ही उनकी मौत में दिखा। ऐसा सिर्फ हंगल के साथ ही नहीं हुआ। सभी के साथ होता है और आगे भी इसमें कोई परिवत्र्तन नहीं आएगा।
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