दोहरी खुशी का वक्त है-प्रियंका चोपड़ा


-अजय ब्रह्मात्मज
-आप की ‘बर्फी’ और म्यूजिक सिंगल लगभग साथ-साथ आ रहा है। क्या कहना चाहेंगी?
‘बर्फी’ मेरे करियर की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। परफॉरमेंस के लिहाज से सबसे मुश्किल फिल्म होगी। मैं एक ऑटिस्टिक लडक़ी का रोल प्ले कर रही हूं। बहुत सारे लोग ऑटिस्टिक लोगों के बारे में नहीं जानते हैं।वे बहुत सिंपल,निर्दोष और अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं।   मैंने बहुत  संजीदगी से इस रोल को प्ले किया है। मेरे लिए यह बहुत मुश्किल था, लेकिन अनुराग बसु ने यह रोल करवाने में मेरी बहुत मदद की है। उनके पैरों पर मैं इस फिल्म में खड़ी हूं। उम्मीद करती हूं कि यह लोगों को बहुत पसंद आएगा। जहां तक ‘सिंगल’ का सवाल है, तो वह भी नया है। मैंने अपने पैरों पर खड़े होकर परफार्म किया है। मैंने पहले कभी गाया नहीं है। यह अंग्रेजी में होगा। अमेरिका के ब्लैक आइड पीज ग्रुप के साथ मैंने यह गाना गाया है। गाने के बोल हैं, ‘इन माय सिटी’। दरसअल, मैं बचपन से बहुत सारे शहरों को अपने पालन-पोषण का श्रेय देती हूं। बरेली हो, लखनऊ हो, लद्दाख या पुणे और मुंबई। या अमेरिका में बोस्टन हो, न्यूयॉर्क हो, जहां मैं पली-बढ़ी हूं। इसलिए मेरे ‘सिंगल’ का पहला गाना उन सभी शहरों को समर्पित है। मुझे इन शहरों ने गर्मजोशी से वेलकम किया। मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया। मेरे लिए यह दोहरी खुशी का वक्त है।
- लेकिन इस गाने में हर शहर की तारीफ होगी या फिर किसी एक शहर को आप श्रेय देंगी?
किसी सिटी का नाम नहीं है। ऐसा मैं कर भी नहीं सकती, क्योंकि मैंने बोला है ‘इन माय सिटी’। इसलिए, कोई भी शहर खुद को इस गाने से कोरिलेट कर सकता है। मेरे दिलो दिमाग में सारे शहर हैं, जहां मैं रही हूं। उनकी वजह से मैं जिस किस्म की इंसान बनी हूं, यह गाना उनके लिए है। यह बहुत सेलिब्रेटिंग गाना है। मेरी जिंदगी, मेरी अपब्रिगिंग को सेलिब्रेट करता है।
-गाने का शौक आप को था पहले से भी और इसकी ट्रेनिंग भी ली थी, लेकिन अचानक से एक ऐसे मोड़ पर जब आप एक्टिंग करियर के बेहतरीन दौर से गुजर रही हैं, आप ने इसका फैसला क्यों लिया? यह कहीं आप को रास्ते से भटकाएगा तो नहीं?
मैं पिछले डेढ़ साल से इस अलबम पर काम कर रही हूं। उस दौरान मैंने चार फिल्में की हैं। उनमें से दो बहुत अच्छी चलीं। एक थोड़ी कम चली और एक रिलीज होने को है। ऐसे में, मैंने दोनों चीजों के बहुत बेहतरीन तरीके से साधा है। अभिनय और गायकी दोनों मेरी जिंदगी के बहुत अहम हिस्से हैं। मैंने पढऩे से पहले गाना सीखा था। अक्षर सीखने से पहले मैंने गाना गाना सीख लिया था, क्योंकि मेरे पापा गाते हैं। इस तरह, गायकी तो मुझे विरासत में मिली है। यह भी लोगों को पसंद आएगा, यही होप करती हूं।
- एक ‘सिंगल’ के लिए डेढ़ साल का समय देना, यह तपस्या ज्यादा बड़ी नहीं लगती आप को?
नहीं, पूरे एलबम पर डेढ़ साल लगे हैं, लेकिन अमेरिका में एक-एक गाने के साथ अलबम रिलीज होती है। पहले एक सिंगल आएगा, दो-तीन महीने चलेगा, फिर दूसरा सिंगल आएगा। इस तरह वहां अलबम को रिलीज किया जाता है।
-झिलमिल के बारे में बताएं। वह ऑटिस्टिक है, लेकिन उसका अपना किरदार क्या है?
झिलमिल एक ऑटिस्टिक लडक़ी है, जिसकी भावनाएं उसके अंदर ही रहती हैं। हम में और उन में यह अंतर होता है कि हम एक साथ कई चीजें कर सकते हैं, वे एक बार में एक ही चीज करते हैं। वे ज्यादा कुछ बोलते नहीं। अपनी ही दुनिया में रहते हैं। झिलमिल कुछ वैसी ही है। बहुत प्योर, बहुत इनोसेंट। एकदम बच्चे की तरह है। जिस तरह एक बच्चा बिना सोचे-समझे, बिना किसी कॉन्सेशनेस के मजाक करते हैं। रोते हैं। गुस्सा होते हैं। एकदम वैसा किरदार है। डीग्लैम तो नहीं कहूंगी। मेकअप भी है, लेकिन मुझे बच्चे की तरह बिहेव करना था, तो उस तरह के गेटअप को अपनाना पड़ा। यह बहुत मुश्किल रहा है, मेरे लिए, लेकिन जब लोग इसे देखेंगे, तो सोचेंगे कि यह प्रियंका चोपड़ा नहीं है झिलमिल है।
-फिर रणबीर कपूर के साथ ‘बर्फी’ का अनुभव कैसा रहा?
रणबीर बहुत बेहतरीन एक्टर हैं। जिस तरह से उन्होंने यह रोल प्ले किया है, शायद ही कोई निभा पाए। उनके साथ मेरी दोस्ती बहुत अच्छी है, क्योंकि हमने ‘अनजाना अनजानी’ की थी। यह फिल्म भी कर रहे हैं। हमारा तालमेल बहुत अच्छा है। एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझते हैं। खासकर इस फिल्म में जहां ‘बर्फी’ गूंगा-बहरा है और मैं ऑटिस्टिक, तो हमारे सीन काफी इम्प्रोवाइज करके शूट किए गए थे। अनुराग ने हमें जिस तरह से रोल पेश करने को कहा। हमने उसी तरह से किरदार को निभाया। मुझे गर्व होता है कि मैंने रणबीर जैसे को-स्टार के साथ काम किया।
-दोनों कलाकारों का तालमेल तो अच्छा है, पर मैं दोनों किरदारों के तालमेल की बात पूछंू तो?
किरदारों का तालमेल पिक्चर में बनता है। एक तरह से उनका रिश्ता डेवलप होता है। प्यार होता है। इस तरह दो डिसएबल लोगों की लव स्टोरी को आप कमर्शियल तरीके से बताने की कोशिश करें, तो वह ‘बर्फी’ है। बहुत मनोरंजक फिल्म है। आमतौर पर जब हम डिसएबल लोगों की फिल्म देखते हैं, तो वह सैड नोट की होती है। उनके लिए आप को बुरा लगता है। एक तरह की सिमपैथी आती है आप को, लेकिन यह उस तरह की फिल्म नहीं है। फिल्म के पहले दस मिनट में ही आप भूल जाएंगे कि झिलमिल और बर्फी में किसी किस्म की डिसएबिलिटी है।
- अनुराग बसु के लिए भी ‘बर्फी’ एक बड़ी फिल्म है। वे पहली बार दो बड़े स्टारों के साथ काम कर रहे हैं। अनुराग में ऐसी क्या खास बात लगी आप को?
मैं तो कहूंगी कि फिल्म इंडस्ट्री के सभी एक्टरों को एक बार अनुराग बसु के साथ जरूर काम करना चाहिए। वे कलाकार के भीतर की कोमल संवेदनाओं को उभार कर सामने ले आते हैं। उन्होंने अभी तक चरित्र प्रधान फिल्में बनाईं हैं। पहले उनकी फिल्में थोड़ी डार्क और ग्रे शेड की होती थी। इस बार आप जिंदगी की हरियाली देखेंगे।

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