हंगल की स्मृति में
मैं अपनी अनूदित पुस्तक सत्यजित भटकल लिखित ऐसे बनी लगान से एके हंगल से संबंधित अंश यहां दे रहा हूं। ए के हंगल की स्मृति को समर्पित यह अंश प्रेरक है....
24 जनवरी 2000
हंगल डॉ राव के अस्पताल में विश्राम कर रहे हैं।डाम्क्टर दंपति ज्ञानेश्वर और अलका परिवार के किसी सदस्य की तरह ही उनकी देखभाल करते हैं।पिछले दो सालों में हंगल ने पत्नी और बहू को खो दिया हैत्रवह उनके प्रेम और स्नेह सेप्रभावित हैंत्रआज शाम 'लगान' के कई लोग डॉ राव के अस्पताल जाते हैं और हंगल की सेहतमंदी के लिए गीत गाते हैंत्रअस्पताल के बाहर आधा भुज जमा हो जाता है।हंगल बिस्तर पर पीठ के बल लेटे हैं। उनकी तकलीफ कम नहीं हुई है,लेकिन वि द्रवित हो उठते हैं।
आमिर और आशुतोष महसूस करते हैं कि हंगल शूटिंग करने की अवस्था में नहीं हैं,वे दूसरे उपाय सोचते हैं। आमिर हंगल से कहता है कि वे वैकल्पिक व्यवस्था करेंगे,लेकिन वह बीमार एक्टर के जवाब से चौंक जाता है।हंगल उससे कहते हैं कि अगर प्रोडक्शन एंबुलेंस से उन्हें सेट पर ले जाए तो वे शूटिंग करेंगे। आमिर उनसे गुजारिश करता है कि उनकी पीठ फिल्म से अधिक महत्वपूर्ण है,पर कोई फायदा नहीं होता।जिंदगी के इस दौर में हंगल का स्वास्थ्य गिर गया है,लेकिन उनकी दृढ़ता जस की तस है।
हंगल ने जिंदगी से प्यार किया और मुश्किलों से निकलकर आए।बचपन में पेशावर में जब ब्रिटिश टुकडि़यां निर्दोष नागरिकों की हत्याएं कर रही थीं तो हंगल बाल-बाल बचे थे।जवानी में विभाजन के समय उन्हें पाकिस्तानी जेल में डाल दिया गया कि उन्होंने दोरोष्ट्रों के सिद्धांत को स्वीकार नहीं कियात्रबुढ़ापे में उन्हें ठाकरे का कोपभाजन बनना पड़ात्रउन्होंने अपने काम का बहिष्कार सहा। अब काम से भाग जाना उनके स्वभाव के खिलाफ होगा।
25 जनवरी 2000
मैं एक एंबुलेंस लेकर डॉ राव के अस्पताल जाता हूं।मुझे हंगल को सेट पर ले जाना हैत्रअस्पताल में पगवेश करने पर देखता हूं कि एक निस्तेज व्यक्ति बिस्तर पर सिमटा पड़ा है। मुढे देखकर हंगल मुस्कराते हैं,पर वह थोड़ा भी हिल नहीं सकते।मैं सोचता हूं कि ऐसी स्स्थिति में वह शूटिंग केसे करेंग।हंगल के सहायक गोपाल की मदद से हम उन्हें उठाकर स्ट्रेचर पर रखते हैं।उन्हें बिस्तर से उठाकर स्ट्रेचर पर रखने में पंद्रह मिनट लगते हैं।उनके शरीर के किसी भी हिस्से के हिल-डुल का खयाल रखना है और पूरी सावधानी बरतनी है।हमारी तमाम सावधानी के बावजूद हंगल दर्द से तड़पते हैं।
यथासंभव धीमी गति से एंबुलेंस कच्ची और उबड़-खाबड़ सड़क से होकर चंपानेर पहुंचता है।पा्रेडक्शन एरिया का सख्त लनयम है कि शूटिंग एरिया में कोई भी गाड़ी नहीं आएगी।वचे पीरियड फिल्म में गलती से भी टायरों के निशान दिखाने का जोखिम नहीं लेना चाहते।हंगल के लिए विशेष छूट मिलती है।जैसे ही उनका एंबुलेंस सेट पर पहुंचता है,यूनिट के सदस्य तालियां बजाकर उनका स्वागत करते हैं।स्ट्रेचर बाहर निकलता है और हंगल हाथ हिलाकर सभी को धन्यवाद देते हैं।दर्द पहले की तरह बरकरार है।हंगल की दाढ1ी छांटी जाती है और उन्हें याूटिंग के मुताबिे कपड़े पहनाए जाते हैं।हंगल कराहते हुए यह सारा काम करते हें। इसके बाद बड़ा क्षण आता है।सात किरदारों से घूता हुआ कैमरा आकर हंगल पर रुकता है।हंगल को संवाद बोलना है-नहीं,नहीं।इस साल जो अनाज है उसी में गुजर-बसर हो जाइ,लेकिन अगले साल अगर यही हाल रहा तो गांव छोड़ने के अलावा कौनो रास्ता नाही बची,कौनो ही रास्ता ही नहीं बची।
पांच टेक में शॉट ओके हो जाता है।एक बार गोली से गड़बड़ हो जाती है।एक बार अनिल ना,ाुश होते हैं,एक बार नकुल....लेकिन हर बार हंगल का टेक परफेक्ट होता है।ण्क बार भी वह अपनी पंक्तियां नहीं भूलते,एक बार भी दर्द से नहीं कराहते,एक बार भी उनका अभिनय कमजोर नहीं पड़ता।
रात के खाने के समय माहौल गंभाीर और मननशील है।सभी जानते हैं कि उन्हें आज कुछ खास देखने का मौका मिला।उन्होंने शरारपर जोश की जय देखी।
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