फिल्म समीक्षा : अन्हे घोरे दा दान
-अजय ब्रह्मात्मज
ऐसा भी है पंजाब
अन्हे घोरे दा दान (पंजाबी फिल्म)
गुरविंदर सिंह निर्देशित अन्हे घोरे दा दान पंजाबी भाषा में बनी फिल्म है। इसका निर्माण नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ने किया है। पंजाब के मशहूर साहित्यकार गुरदयाल सिंह की कहानी पर आधारित इस फिल्म में हिंदी फिल्मों में देखे पंजाब के सरसों के खेत और बल्ले-बल्ले करते हुए भांगड़ा में मस्त किरदार नहीं हैं। कुहासे में लिपटी नीरवता उदास करती है। किरदारों की खामोश हरकतों से खीझ होती है। समझ में आता है कि समाज और गांव के हाशिए पर मौजूद किरदार आनी विवशता और लाचारी के गवाह भर हो सकते हैं। उनके अंदर प्रतिरोध है,लेकिन सामाजिक और शासकीय तंत्र के अकुंश ने उन्हें दीन-हीन अवस्था में डाल दिया है। फिल्म में उनकी स्थिति पर विलाप नहीं है। उनकी जिजीविषा और रोजमर्रा जिंदगी की व्यस्तता में ही उनके संषर्ष की दास्तान है।
अनहे घोरे का दान दृश्यात्मक फिल्म है। कम संवादों में ही गांव के श्लथ किरदारों के मनाभावों को उकेरने में फिल्म सफल रही है। फिल्म का धूसर रंग नैरेटिव के मर्म को प्रभावशाली तरीके से बढ़ाता है। कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को जीवंत कर दिया है। इस फिल्म में कैमरे और ध्वनि से बहुत सारी अव्यक्त बातें कही गई हैं। पंजाबी सिनेमा के परिदृश्य में ऐसी यथार्थवादी फिल्में लगभग देखने को नहीं मिलती हैं।
गुरविंदर सिंह निर्देशित अन्हे घोरे दा दान पंजाबी भाषा में बनी फिल्म है। इसका निर्माण नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ने किया है। पंजाब के मशहूर साहित्यकार गुरदयाल सिंह की कहानी पर आधारित इस फिल्म में हिंदी फिल्मों में देखे पंजाब के सरसों के खेत और बल्ले-बल्ले करते हुए भांगड़ा में मस्त किरदार नहीं हैं। कुहासे में लिपटी नीरवता उदास करती है। किरदारों की खामोश हरकतों से खीझ होती है। समझ में आता है कि समाज और गांव के हाशिए पर मौजूद किरदार आनी विवशता और लाचारी के गवाह भर हो सकते हैं। उनके अंदर प्रतिरोध है,लेकिन सामाजिक और शासकीय तंत्र के अकुंश ने उन्हें दीन-हीन अवस्था में डाल दिया है। फिल्म में उनकी स्थिति पर विलाप नहीं है। उनकी जिजीविषा और रोजमर्रा जिंदगी की व्यस्तता में ही उनके संषर्ष की दास्तान है।
अनहे घोरे का दान दृश्यात्मक फिल्म है। कम संवादों में ही गांव के श्लथ किरदारों के मनाभावों को उकेरने में फिल्म सफल रही है। फिल्म का धूसर रंग नैरेटिव के मर्म को प्रभावशाली तरीके से बढ़ाता है। कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को जीवंत कर दिया है। इस फिल्म में कैमरे और ध्वनि से बहुत सारी अव्यक्त बातें कही गई हैं। पंजाबी सिनेमा के परिदृश्य में ऐसी यथार्थवादी फिल्में लगभग देखने को नहीं मिलती हैं।
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