निर्देशन में राकेश रोशन के 25 साल
-अजय ब्रह्मात्मज
राकेश रोशन का पूरा नाम राकेश रोशनलाल नागरथ है। संगीतकार पिता रोशन के पुत्र
राकेश को छोटी उम्र से घर की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। पिता की मौत के वक्त
उनकी उम्र मात्र 17 साल थी। वयस्क होने से पहले ही पारिवारिक स्थितियों ने
उन्हें जिंदगी के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने
या पूना फिल्म इंस्टीट्यूट जाने की अपनी इच्छा का गला घोंट दिया और एस एस
रवेल के सहायक निर्देशक बन गए। उन दिनों एच एस रवेल दिलीप कुमार और
वैजयंतीमाला के साथ संघर्ष बना रहे थे। रवेल के आरंभिक प्रशिक्षण के बाद
राकेश रोशन ने निर्देशक मोहन कुमार के साथ काम किया। मोहन कुमार के साथ
उन्होंने अनजाना और आप आए बहार आई फिल्में कीं। राकेश रोशन की इच्छा कैमरे
के सामने आने की थी। उन्हें टी प्रकाश राव के निर्देशन में बनी घर घर की
कहानी में बतौर हीरो अवसर मिला। सीमा, पराया धन और मन मंदिर से उन्हें
पहचान तो मिली, लेकिन हिंदी फिल्मों के कामयाब हीरो का रुतबा उन्हें नहीं
मिला। वे फिल्में करते रहे। बीच में उन्होंने निगेटिव शेड के किरदार भी
निभाए। बेहतरीन अवसर न मिलने से निराश होकर वे खुद फिल्मों के निर्माण में
उतर आए। इस प्रयोग में भी उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली। अंत में निर्देशन
में उतरने का फैसला किया। सन 1987 में आई खुदगर्ज उनके निर्देशन में बनी
पहली फिल्म थी।
खुदगर्ज के साथ निर्देशन में उतर कर राकेश रोशन ने करियर का बड़ा दांव खेला
था। फिल्म नहीं चलती, तो उनका बेड़ा गर्क हो जाता। एक्टिंग के दिनों में
भी राकेश रोशन फिल्म के प्रोडक्शन और डायरेक्शन की बारीकियों पर नजर रखते
थे। चूंकि एक्टिंग में ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाने का अंदेशा उन्हें पहले से
था, इसलिए करियर विकल्प के रूप में उन्होंने निर्देशन में हाथ आजमाने का मन
बना रखा था। मेहनत काम आई। दोस्ती और रिश्ते पर आधारित खुदगर्ज खूब चली।
राकेश रोशन चाहते, तो अपनी कामयाबी को फार्मूले के तौर पर अगली फिल्मों में
दूह सकते थे, लेकिन उनकी अगली ही फिल्म खून भरी मांग थी। यह हीरोइन प्रधान
फिल्म थी। राकेश रोशन कमर्शियल फिल्मों के कामयाब डायरेक्टर हैं। कमर्शियल
ढांचे में वे प्रयोग करने से नहीं हिचकते। यही वजह है कि उनकी हर फिल्म
पिछली फिल्म से अलग होती है। अपनी कामयाबी के बावजूद उन्होंने क्वालिटी को
हमेशा प्राथमिकता दी। पचीस सालों के डायरेक्शन करियर में अभी तक उन्होंने
केवल 12 फिल्में ही निर्देशित की हैं। कोई और सफल डायरेक्टर होता तो
फिल्मों की झड़ी लगा देता। भले ही उनमें कुछ असफल रहतीं।
राकेश रोशन ने हमेशा अपनी प्रतिष्ठा का खयाल रखा। उन्होंने कुछ अद्भुत
प्रयोग भी किए। हिंदी फिल्मों एलियन और सुपरहीरो पर केंद्रित फिल्में बनाने
वाले वे पहले डायरेक्टर हैं। उनकी हर फिल्म सभी उम्र और तबके के दर्शकों
को पसंद आती है। कोई मिल गया के बाद उन्होंने बच्चों को भी आकर्षित करना
शुरू कर दिया है। उनके समर्पित दर्शकों में बच्चों की अच्छी तादाद है।
राकेश रोशन ने कभी दावा नहीं किया कि वे कोई नई या गंभीर फिल्में बनाते
हैं। वे मानते हैं कि दर्शकों के मनोरंजन के साथ वे फैमिली एंटरटेनमेंट की
वैल्यू का ध्यान रखते हैं। उन्होंने आम दर्शकों के लिए फिल्में बनाई। उनकी
फिल्मों का कैनवास बड़ा होता है और उसका प्रोडक्शन वैल्यू हाई क्वालिटी का
रहता है। वे कहते हैं कि मैं अपनी तरह से इंटरनेशनल सिनेमा के स्तर की
फिल्में बनाता हूं।
उनकी नई चुनौती कृष 3 है। इस फिल्म की शुरुआत के समय भी वे पहली फिल्म की
तरह नर्वस थे। उन्हें हमेशा अगली फिल्म का निर्देशन मुश्किल काम लगता है।
उन्होंने एक बार बताया था, प्लानिंग से लेकर रिलीज तक मेरी फिल्म में दो
साल लग जाते हैं। मुझे दो साल बाद के दर्शकों की पसंद की फिल्म आज ही सोचनी
पड़ती है। अच्छा है कि मैंने युवा सहायकों की टीम रखी है। वे मुझे हमेशा
अलर्ट करते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि मैं भी उनकी सोच से तालमेल बिठा
सकूं। अभी उन्हें रितिक रोशन से भरपूर मदद मिलती है। पिता-पुत्र की जोड़ी
अभी तक कामयाब रही है। उम्मीद है कि वे आगे भी इसी तरह मनोरंजक फिल्में
लाते रहेंगे।
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