फिल्म समीक्षा : कॉकटेल
दिखने में नयी,सोच में पुरानी
-अजय ब्रह्मात्मज
होमी अदजानिया निर्देशित कॉकटेल की कहानी इम्तियाज अली ने लिखी है।
इम्तियाज अली की लिखी और निर्देशित फिल्मों के नायक-नायिका संबंधों को लेकर
बेहद कंफ्यूज रहते हैं। संबंधों को स्वीकारने और नकारने में ढुलमुल
किरदारों का कंफ्यूजन ही उनकी कहानियों को इंटरेस्टिंग बनाता है। कॉकटेल के
तीनों किरदार गौतम, वेरोनिका और मीरा अंत-अंत तक कंफ्यूज रहते हैं।
इम्तियाज अली ने इस बार बैकड्रॉप में लंदन रखा है। थोड़ी देर के लिए हम
केपटाउन भी जाते हैं। कहानी दिल्ली से शुरू होकर दिल्ली में खत्म होती है।
गौतम कपूर आशिक मिजाज लड़का है। उसे हर लड़की में हमबिस्तर होने की संभावना
दिखती है। वह हथेली में दिल लेकर चलता है। लंदन उड़ान में ही हमें गौतम और
मीरा के स्वभाव का पता चल जाता है। लंदन में रह रही वेरोनिका आधुनिक
बिंदास लड़की है। सारे रिश्ते तोड़कर मौज-मस्ती में गुजर-बसर कर रही
वेरोनिका के लिए आरंभ में हर संबंध की मियाद चंद दिनों के लिए होती है।
एनआरआई शादी के फरेब में फंसी मीरा पति से मिलने लंदन पहुंचती है।
पहली ही मुलाकात में उसका स्वार्थी पति उसे दुत्कार देता है। बेघर और
बेसहारा हो चुकी मीरा को वेरोनिका का सहारा मिलता है। लंदन में कितनी आसानी
से सबकुछ हो जाता है। वेरोनिका और मीरा साथ रहने लगते हैं। अपनी भिन्नता
की वजह से दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वे अपनी जिंदगी से संतुष्ट हैं। इस
बीच मीरा के कहने पर गौतम को सबक सिखाने के लिए वेरोनिका उसकी चाल ही उस पर
आजमाती है। गौतम को वेरोनिका का अंदाज पसंद आता है। असमर्पित रिश्ते में
यकीन रखने वाले दोनों मौज-मस्ती के लिए साथ रहने लगते हैं। मीरा उनके साथ
एडजस्ट करती है। अरे हां, गौतम की मां और मामा भी हैं।
मां दिल्ली में रहती हैं और मामा लंदन में। मामा का ही दिलफेंक मिजाज
भांजे को मिला है। मां बेटे की शादी के लिए परेशान हैं। न जाने कब हिंदी
फिल्मों की माताएं बेटे-बेटियों की शादी की चिंता से मुक्त होंगी? वह बेटे
को समझाने के लिए लंदन पहुंच जाती हैं। मां को खुश करने के लिए गौतम
संभावित बहु के रूप में मीरा का परिचय करवाता है। कुछ दिनों के लिए भिड़ायी
गयी यह तरकीब रिश्तों के नए मायने उजागर करती है। तीनों मुख्य किरदारों के
स्वभाव और सोच में परिवर्त्तन आता है। लव और इमोशन का कंफ्यूजन आरंभ होता
है, जो अंत तक जारी रहता है। थोड़ा खिंच भी जाता है।
सैफ ऐसे खिलंदड़े और दिलफेंक आशिक की भूमिका में जंचते हैं। उन्होंने दिल
चाहता है से लेकर लव आज कल तक में निभाई भूमिकाओं में से थोड़ा-थोड़ा याद
कर कॉकटेल के गौतम को भी निभा दिया है। कुछ दृश्यों में वे बहुत अच्छे हैं
तो कुछ में दोहराव की वजह से बहुत बुरे भी लगे हैं। उन्हें लगता होगा कि वे
परफॉर्म कर रहे हैं,जबकि वे बोर करने लगते हैं। दीपिका पादुकोण भी बिगड़ी
हुई लड़की का किरदार निभाने के अनुभव बटोर चुकी हैं। यहां उनमें थोड़ा और
निखार दिखाई देता है। खास कर छूट जाने, अकेले पड़ने और प्रेमरहित होने के
एहसास, भाव और दृश्यों में वह प्रभावशाली लगी हैं। इस फिल्म में उन्हें
चरित्र के मुताबिक आकर्षक कॉस्ट्यूम भी मिले हैं।
वेरोनिका को उन्होंने बहुत अच्छी तरह जीवंत किया है। सीधी-सादी मीरा के
किरदार में पहली बार पर्दे पर आई डायना पेंटी में आत्मविश्वास है। वह अपने
किरदार के साथ न्याय करती हैं। बोमन ईरानी और डिंपल कपाडि़या के किरदार
घिसेपिटे हैं, इसलिए उनके अभिनय में नयापन भी नहीं है। रणदीप हुडा का
चरित्र अविकसित रह गया है।
कॉकटेल हिंदी फिल्मों की पीढि़यों पुरानी सोच को फिर से स्थापित करती है।
दीपिका पादुकोण जैसी आधुनिक लड़की को कथित भारतीय नारी में तब्दील करने की
कोशिश लेखक-निर्देशक के वैचारिक दायरे को जाहिर करती है। एक-दूसरे के लिए
त्याग कर रही लड़कियों के व्यवहार को देख कर हंसी आती है। क्या ऐसा नहीं हो
सकता था कि वेरोनिका और मीरा के बीच एक अंडरस्टैंडिंग बनती और दोनों लात
मार कर गौतम को अपनी जिंदगी और घर से बाहर निकाल देतीं। यह फिल्म हर हाल
में गौतम यानी नायक के फैसलों को उचित ठहराती चलती है। फिल्म के कुछ संवाद
अंग्रेजी में हैं। हिंदीभाषी दर्शकों को दिक्कत हो सकती है।
अवधि - 146 मिनट
** 1/2 ढाई स्टार
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