शौर्य,साहस और संरक्षक के सिंबल रहे दारा सिंह
-अजय ब्रह्मात्मज
1987 में आरंभ हुए टीवी सीरियल रामायण ने दारा सिंह को हनुमान की छवि
दी। उनकी इस छवि को सराहा और पूजा गया। आज के अधिकांश युवक उन्हें इसी रूप
में जानते और पहचानते हैं, लेकिन 40 की उम्र पार कर चुके किसी भी भारतीय
नागरिक के मन में दारा सिंह की अन्य छवियां और किंवदंतियां हैं। उन दिनों न
तो मीडिया का ऐसा प्रचार-प्रसार था और न मीडिया ऐसी हस्तियों को अधिक तूल
देता थी। फिर भी दारा सिंह अपने किस्सों के साथ बिहार के सुदूर बगहा और
बेतिया जैसे कस्बों और छोटे शहरों तक में धूम मचाए रहते थे। उनकी
लोकप्रियता कहीं न कहीं भारत के गौरव से जुड़ी थी। तभी तो प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी को उनसे सपरिवार मिलने में संकोच नहीं होता था। दारा सिंह की
एक पॉपुलर तस्वीर में वह अपने छोटे भाई रंधावा के साथ इंदिरा गांधी के
परिवार से मिल रहे हैं। उस तस्वीर के एक कोने में फिल्मों में आने के पहले
के अमिताभ बच्चन भी खड़े हैं।
हम सभी ने अपने बचपन में उनके कुछ
किस्से सुने हैं। खुद दारा सिंह बनने की कोशिश की है या किसी को चुनौती के
रूप में देख कर ललकारा है-अपने आप को दारा सिंह समझते हो क्या? दारा सिंह
का नाम लेते ही एक रोबीला और निर्भीक चेहरा सामने आता है, जो पराजित नहीं
हो सकता। दारा सिंह को चेहरे से शायद ही कोई पहचानता था, लेकिन उनके नाम से
सभी वाकिफ थे। जीवन के चालीस वसंत पार कर चुके सभी भारतीयों ने सुन रखा है
कि दारा सिंह ने गामा पहलवान को पछाड़ दिया था और किंगकांग जैसे दैत्याकार
पहलवान को भी अखाड़े में छठी के दूध की याद दिला दी थी। तब के भारत में
क्रिकेट का नहीं कुश्ती का क्रेज था। रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह शक्ति के
साक्षात प्रतीक थे। फिल्मों और सीरियल में हनुमान, शिव, भीम और बलराम की
भूमिकाएं निभा कर वह भक्ति और श्रद्धा के स्वरूप बन गए। किसी अन्य
व्यक्तित्व की ऐसी कद्दावर छवि भारतीय समाज में नहीं दिखती, जो एक साथ
शक्ति और भक्ति का पर्याय रही हो। उनकी मृत्यु के पश्चात लाइव कवरेज में
इलेक्ट्रानिक मीडिया मुख्य रूप से उनकी हनुमान की छवि ही दोहराता रहा, जबकि
दारा सिंह के उत्तर जीवन का वह एक छोटा एपिसोड था। हालांकि हनुमान की
भूमिका के राजनीतिक प्रसाद के रूप में उन्हें संसद के लिए भी चुना गया।
उन्होंने अपनी जवानी और उत्कर्ष के दिनों में देश-विदेश के अखाड़ों में
प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ा और अपने साथ देश की जीत के झंडे गाड़े। अफसोस
की बात है कि हमारे पास उनके उन कारनामों के साक्ष्य नहीं हैं।
कुश्ती
और पहलवानी के तमाम खिताबों को जीतने के बाद दारा सिंह ने फिल्मों का रुख
किया। दूसरी तरफ यह सच भी है कि अगर वह फिल्मों और टीवी सीरियल में नहीं आए
होते तो कुछ अखाड़ों की दीवारों पर तस्वीर के रूप में टंगे रहते। फिल्मों
का दीवाना अपना देश फिल्मी हस्तियों को कमोबेश याद रखता है, क्योंकि इस रूप
में वह देश के आम नागरिक से जुड़ते हैं। 1952 में उनकी पहली फिल्म संगदिल
आई थी। उनकी आखिरी फिल्म अता पता लापता है। इस अप्रदर्शित फिल्म का
निर्देशन राजपाल यादव ने किया है। सौ से अधिक फिल्मों में अपने शरीर सौष्ठव
के साथ अवतरित हो चुके दारा सिंह ने मुख्य रूप से एक्शन, धार्मिक और कुछ
सामाजिक फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाईं। अपनी छवि और फिल्मों की वजह
से वह फिल्म इंडस्ट्री की परिधि पर रहे, लेकिन दर्शकों ने उन्हें हर रूप
में स्वीकार किया। उन्हें बी ग्रेड फिल्मों का हीरो माना जाता था, लेकिन उन
फिल्मों ने ही उन्हें गांव-कस्बों तक पहुंचाया। फिल्मों में मुमताज के साथ
उनकी जोड़ी पॉपुलर रही। संयोग ऐसा था कि दारा सिंह के साथ काम करने के लिए
दूसरी हीरोइनें तैयार नहीं होती थीं और एक्स्ट्रा से एक्ट्रेस बनीं मुमताज
के साथ दिखने में पॉपुलर हीरो अपनी तौहीन समझते थे। लिहाजा दोनों एक-दूसरे
के पूरक बने और उन्होंने 16 फिल्मों में एक साथ काम किया। फिल्मों में
बलशाली और विजयी किरदारों को निभाने के लिए दारा सिंह का चुनाव किया जाता
था। नायक से चरित्र अभिनेता बनने के बाद भी उनकी यही छवि बनी रही। उन्होंने
हर दौर में दर्शकों के आम तबके का मनोरंजन किया। पर्दे और अखाड़े, दोनों
ही जगहों पर अपनी जीत से दर्शकों और प्रशंसकों को गर्व का अहसास दिया। वह
शौर्य और साहस के सिंबल बने रहे। उनकी फिल्मों और सीरियलों से अलग छवि
विज्ञापनों में दिखाई देती है। वह परिवार के सीनियर और संरक्षक सदस्य के
रूप में नजर आते हैं, जिनकी सलाह में दम है। उनकी हिदायतों को टाला नहीं जा
सकता। विज्ञापन एजेंसियों ने उनकी विश्वसनीय छवि को भुनाया।
हिंदी
फिल्म इंडस्ट्री में वह अपनी दरियादिली और नेकदिली के लिए विख्यात रहे।
धर्मेद्र से पहले पंजाब के इस पुत्तर का घर ही बेसहारों का आसरा हुआ करता
था। अपने जीवनकाल में ही व्यक्ति से विशेषण बन चुके दारा सिंह की छवि किसी
गार्जियन की बन गई थी। मृदु स्वभाव और बोली के धनी दारा सिंह की आत्मीयता
के अनेक किस्से हैं। उनके व्यवहार में वात्सल्य था। पॉपुलर स्टारों की
भीड़ से उनकी छवि अलग रही, जबकि एक दौर में वह हिंदी फिल्मों के एक्शन किंग
भी रहे। उनका सीना स्वाभाविक रूप से चौड़ा था। उन्हें कभी सीना फुला कर
लोगों के सामने आने की जरूरत नहीं पड़ी। सिक्स और एट पैक एब्स के साथ
प्रचार पा रहे आज के सितारे उनकी तरह आकर्षक और बलवान दिखने का ढोंग भी
नहीं कर सकते। उन्होंने अपने साथी कलाकारों के हित में अनेक कार्य किए। वह
कलाकारों और तकनीशियनों के संगठन के सक्रिय कार्यकर्ता थे।
Comments
उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि !!