कामना चंद्रा : गृहिणी से बनीं फिल्म लेखिका
-अजय ब्रह्मात्मज
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1953 में हिंदी से स्नातक कामना चंद्रा की शादी उसी साल हो गई थी। हिंदी की पढ़ाई और इलाहाबाद के माहौैल ने कामना चंद्रा में लेखन को शौक पैदा किया। उनकी टीचर मिस निगम ने सलाह दी कि कामना तुम अच्छा लिखती हो। चाहे कुछ भी हो, लिखना मत बंद करना। कामना चंद्रा ने अपने टीचर की सलाह गांठ बांध ली। घर-गृहस्थी के बाद भी कामना चंद्रा का लेखन चलता रहा। शादी के बाद कामना चंद्रा के पति नवीन चंद्रा की पोस्टिंग दिल्ली हुई। दिल्ली में उन्होंने आकाशवाणी और पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन किया। फिर भी कामना चंद्रा ने घर-परिवार को प्राथमिकता दी। बच्चों की परवरिश से फुर्सत मिलने पर ही वह लिखती थीं। बेटे विक्रम चंदा और बेटियां अनुपमा और तनुजा चंद्रा के पालन-पोषण पर उन्होंने पूरा ध्यान दिया। उन्होंने अपनी मर्जी से तय किया था कि वह जॉब नहीं करेंगी। 1977 में उनके पति मुंबई आ गए। यहां आने के बाद कामना चंद्रा की इच्छा जगी कि राज कपूर को एक स्टोरी सुनाई जाए। और फिर फिल्मों का सिलसिला चालू हुआ।
‘प्रेमरोग’
‘आग’ के समय से ही मैं राज कपूर की प्रशंसिका थीं। मैंनेे उनकी सारी फिल्में देख रखी थीं। मुंबई में भी एक साल तक आकाशवाणी के लिए लेखन करने के बाद मैंंने राज कपूर से मिलने की कोशिश की। बच्चे हंसे ़ ़ ़ क्या मम्मी राज कपूर तुम्हारी कहानी सुनेंगे? तब तक फिल्म इंडस्ट्री के किसी व्यक्ति से मेरा संपर्क नहीं था। डायरेक्टरी से नंबर देख कर मैंने आर के स्टूडियो फोन कर दिया। राज कपूर के सेक्रेटरी हरीश भिबरा ने फोन उठाया। बातें हुई तो मैंने स्पष्ट कहा कि मुझे राज साहब को ही कहानी सुनानी है। बहरहाल, एक हफ्ते के अंदर हरीश भिबरा का कॉल आया कि आप का समय तय हो गया है। आप आकर मिल लें और अपनी कहानी सुना दें।
मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। पहली मुलाकात में मैंने राज कपूर साहब को दो कहानियां सुनाईं। उन्होंने दो घंटे से ज्यादा समय दिया। मेरी कहानियां सुनीं और एक कहानी पसंद की। उन्होंने मुझे कहा कि आप इस कहानी को पूरे विस्तार के साथ लिख दें। मैंने लगभग 120 पृष्ठों में कहानी का विस्तार किया। उन्होंने मुझे गाइड किया कि अपनी कहानी जरिस्टर करवा लें। फिर मुझ से पूछा कि अगर मैं इस कहानी के स्क्रीनप्ले और डायलॉग के लिए किसी और को जोड़ूं तो आप को कोई दिक्कत तो नहीं होगी? इस तरह जैनेन्द्र जैन जुड़े। उस फिल्म के निर्माण के समय मेरे पति का ट्रांसफर हांगकांग हो गया। मैं जाने लगी तो राज साहब ने तब तक शूट हो चुकी फिल्म के 10 रील मुझे और मेरे परिवार को दिखाए। उन्होंने मेरी तारीफ की। संयोग ऐसा रहा कि फिल्म की रिलीज के समय मैं अपने परिवार के साथ भारत आ गई थी। पोस्टर और फिल्म में उन्होंने कहानीकार का क्रेडिट दिया।
चांदनी
सबसे पहले यश चोपड़ा की पत्नी पामेला चोपड़ा का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैंने आप की फिल्म ‘प्रेमरोग’ देखी है। अगर वैसी कोई कहानी है तो बताएं। मैं यश चोपड़ा जी से मिलने गई। इतने विनम्र हैं यश चोपड़ा। उन्होंने पूरे आदर के साथ बिठाया। मेरी कहानी सुनी। कहानी पसंद आ गई तो लिख कर देने के लिए कहा। इस बार भी मैंने कहानी पूरे विस्तार से लिख कर उन्हें सौंप दी। उसके डायलॉग सागर सरहदी ने लिखे और स्क्रिनप्ले किसी और ने किया। ‘चांदनी’ फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई। यश चोपड़ा के साथ मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। उन्होंने मुझे पूरा सम्मान दिया। इस फिल्म के समय तक मेरे बच्चे बड़े हो गए थे। मैं भी तैयार थी कि कुछ और फिल्में लिखूं।
1942-ए लव स्टोरी
मैं अपने बच्चों से मिलने अमेरिका गई थी। उनकी भी छुट्टियां थीं। एक दिन हम सभी ने वीडियो पर ‘परिंदा’ देखी। मेरे पूरे परिवार को फिल्म अच्छी लगी। मेरी बेटी अनुपमा ने कहा कि मम्मी अगली कहानी इसके डायरेक्टर को सुनाना। भारत लौटने के बाद मैंने विनोद के यहां फोन किया तो उनकी मां ने फोन उठाया। बाद में विनोद से बातें हुईं। अगले दिन मुलाकात हुई तो मैंने कहानी सुनाई। मेरी इच्छा थी कि ‘प्रेमरोग’ और ‘चांदनी’ की ही तरह विनोद कहानी ले लें। विनोद ने कहा कि मेरे साथ तो काम करना होगा। स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखने के समय रहना होगा। 1989 में ‘1942-ए लव स्टोरी’ का काम शुरू हुआ और फिल्म 1995 में आई। मैंने उन्हें समकालीन प्रेम कहानी दी थी, जिस वे 1942 में ले गए। मैंने अपने बचपन की यादों के सहारे उस दौर को जिंदा किया।
बाद में कामना चंद्रा ने अरुणा राजे के लिए ‘भैरवी’ लिखी और अभी बेटी तनुजा चंद्रा के लिए एक फिल्म लिखी हैं। बीच में राजश्री के टीवी सीरियल ‘वो रहने वाली महलों की’ के साथ सलाहकार के तौर पर जुड़ी रहीं। कामना चंद्रा संतुष्ट जीवन जी रही हैं। छोटी बेटी तनुजा चंद्रा उनके साथ रहती हैं। वह फिल्म निर्देशक हैं। बड़ी बेटी अनुपमा चंद्रा की विधु विनोद चोपड़ा से शादी हो गई है। अनुपमा देश की मशहूर फिल्म समीक्षक और लेखक हैं। बेटा विक्रम चंद्रा अंग्रेजी में लिखते हैं और अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में क्रिएटिव रायटिंग के प्रोफेसर हैं।
‘प्रेमरोग’
‘आग’ के समय से ही मैं राज कपूर की प्रशंसिका थीं। मैंनेे उनकी सारी फिल्में देख रखी थीं। मुंबई में भी एक साल तक आकाशवाणी के लिए लेखन करने के बाद मैंंने राज कपूर से मिलने की कोशिश की। बच्चे हंसे ़ ़ ़ क्या मम्मी राज कपूर तुम्हारी कहानी सुनेंगे? तब तक फिल्म इंडस्ट्री के किसी व्यक्ति से मेरा संपर्क नहीं था। डायरेक्टरी से नंबर देख कर मैंने आर के स्टूडियो फोन कर दिया। राज कपूर के सेक्रेटरी हरीश भिबरा ने फोन उठाया। बातें हुई तो मैंने स्पष्ट कहा कि मुझे राज साहब को ही कहानी सुनानी है। बहरहाल, एक हफ्ते के अंदर हरीश भिबरा का कॉल आया कि आप का समय तय हो गया है। आप आकर मिल लें और अपनी कहानी सुना दें।
मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। पहली मुलाकात में मैंने राज कपूर साहब को दो कहानियां सुनाईं। उन्होंने दो घंटे से ज्यादा समय दिया। मेरी कहानियां सुनीं और एक कहानी पसंद की। उन्होंने मुझे कहा कि आप इस कहानी को पूरे विस्तार के साथ लिख दें। मैंने लगभग 120 पृष्ठों में कहानी का विस्तार किया। उन्होंने मुझे गाइड किया कि अपनी कहानी जरिस्टर करवा लें। फिर मुझ से पूछा कि अगर मैं इस कहानी के स्क्रीनप्ले और डायलॉग के लिए किसी और को जोड़ूं तो आप को कोई दिक्कत तो नहीं होगी? इस तरह जैनेन्द्र जैन जुड़े। उस फिल्म के निर्माण के समय मेरे पति का ट्रांसफर हांगकांग हो गया। मैं जाने लगी तो राज साहब ने तब तक शूट हो चुकी फिल्म के 10 रील मुझे और मेरे परिवार को दिखाए। उन्होंने मेरी तारीफ की। संयोग ऐसा रहा कि फिल्म की रिलीज के समय मैं अपने परिवार के साथ भारत आ गई थी। पोस्टर और फिल्म में उन्होंने कहानीकार का क्रेडिट दिया।
चांदनी
सबसे पहले यश चोपड़ा की पत्नी पामेला चोपड़ा का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैंने आप की फिल्म ‘प्रेमरोग’ देखी है। अगर वैसी कोई कहानी है तो बताएं। मैं यश चोपड़ा जी से मिलने गई। इतने विनम्र हैं यश चोपड़ा। उन्होंने पूरे आदर के साथ बिठाया। मेरी कहानी सुनी। कहानी पसंद आ गई तो लिख कर देने के लिए कहा। इस बार भी मैंने कहानी पूरे विस्तार से लिख कर उन्हें सौंप दी। उसके डायलॉग सागर सरहदी ने लिखे और स्क्रिनप्ले किसी और ने किया। ‘चांदनी’ फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई। यश चोपड़ा के साथ मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। उन्होंने मुझे पूरा सम्मान दिया। इस फिल्म के समय तक मेरे बच्चे बड़े हो गए थे। मैं भी तैयार थी कि कुछ और फिल्में लिखूं।
1942-ए लव स्टोरी
मैं अपने बच्चों से मिलने अमेरिका गई थी। उनकी भी छुट्टियां थीं। एक दिन हम सभी ने वीडियो पर ‘परिंदा’ देखी। मेरे पूरे परिवार को फिल्म अच्छी लगी। मेरी बेटी अनुपमा ने कहा कि मम्मी अगली कहानी इसके डायरेक्टर को सुनाना। भारत लौटने के बाद मैंने विनोद के यहां फोन किया तो उनकी मां ने फोन उठाया। बाद में विनोद से बातें हुईं। अगले दिन मुलाकात हुई तो मैंने कहानी सुनाई। मेरी इच्छा थी कि ‘प्रेमरोग’ और ‘चांदनी’ की ही तरह विनोद कहानी ले लें। विनोद ने कहा कि मेरे साथ तो काम करना होगा। स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखने के समय रहना होगा। 1989 में ‘1942-ए लव स्टोरी’ का काम शुरू हुआ और फिल्म 1995 में आई। मैंने उन्हें समकालीन प्रेम कहानी दी थी, जिस वे 1942 में ले गए। मैंने अपने बचपन की यादों के सहारे उस दौर को जिंदा किया।
बाद में कामना चंद्रा ने अरुणा राजे के लिए ‘भैरवी’ लिखी और अभी बेटी तनुजा चंद्रा के लिए एक फिल्म लिखी हैं। बीच में राजश्री के टीवी सीरियल ‘वो रहने वाली महलों की’ के साथ सलाहकार के तौर पर जुड़ी रहीं। कामना चंद्रा संतुष्ट जीवन जी रही हैं। छोटी बेटी तनुजा चंद्रा उनके साथ रहती हैं। वह फिल्म निर्देशक हैं। बड़ी बेटी अनुपमा चंद्रा की विधु विनोद चोपड़ा से शादी हो गई है। अनुपमा देश की मशहूर फिल्म समीक्षक और लेखक हैं। बेटा विक्रम चंद्रा अंग्रेजी में लिखते हैं और अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में क्रिएटिव रायटिंग के प्रोफेसर हैं।
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