भविष्य का सिनेमा
-अजय ब्रह्मात्मज
दिल्ली में मोहल्ला लाइव द्वारा आयोजित सिने बहस तलब में विमर्श का एक
विषय रखा गया था -अगले सौ साल का एजेंडा। इस विमर्श में अनुराग कश्यप, हंसल
मेहता, स्वरा भास्कर और सुधीर मिश्र मौजूद थे। अनुराग और सुधीर दोनों ने
कहा कि हम उस इंडस्ट्री के संदर्भ में अगले सौ सालों के बारे में कैसे
बातें कर सकते हैं जो अगले कुछ सालों की तो छोडि़ए, अगले साल के बारे में
भी आश्वस्त नहीं हैं कि वह किस दिशा में मुड़ेगी या बढ़ेगी?
तात्कालिक लाभ में यकीन करने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री हमेशा पिछली
कामयाबी को दोहराने मे लगी रहती है। अचानक कभी एक निर्देशक कोई प्रयोग करने
में सफल होता है और फिर उसकी नकल आरंभ हो जाती है। धीरे-धीरे एक ट्रेंड बन
जाता है और कहा जाने लगता है कि दर्शक यही चाहते हैं। इसी एकरूपता में
परिवर्त्तन चलता रहता है।
सुधीर मिश्र ने जोर देकर कहा कि तकनीक की प्रगति से सिनेमा पारंपरिक हद से
निकल रहा है। सिनेमा का स्क्रीन छोटा होता जा रहा है। फिल्म देखने का आनंद
आज भी थिएटरों में ही आता है, लेकिन उसे दोबारा-तिबारा या अपनी सुविधा से
देखने का आनंद कुछ और होता है। टीवी, कंप्यूटर और अब मोबाइल ने सिनेमा को
दर्शकों की हथेलियों में पहुंचा दिया है।
स्क्रीन के साइज और सुविधा के मुताबिक सिनेमा का कंटेंट और क्राफ्ट भी
बदलेगा। छोटी फिल्मों का दौर आएगा। छोटी फिल्मों के बेहतर भविष्य की बात
अनुराग भी कर रहेथे। उन्होंने युवा फिल्मकारों को सचेत करने के साथ सुझाव
दिया कि वे फीचर फिल्मों के इंतजार में समय बर्बाद न करें। वे छोटी फिल्मों
के निर्माण में जुटें, लेकिन आनन-फानन में उसके अधिकार न बेच दें। अभी
बाजार में कंटेंट के ऐसे व्यापारी आ गए हैं, जो कम कीमत में छोटी फिल्में
खरीद कर भंडार कर रहे हैं। वे समय आने पर उन्हें भारी कीमत पर बेचेंगे और
मुनाफा कमाएंगे।
तकनीकी प्रगति से फिल्मों के वितरण और प्रदर्शन में बड़ा बदलाव आएगा।
समृद्ध दर्शक दुनिया भर की फिल्में अपनी सुविधा के मुताबिक घरों में देख
सकेंगे। उन्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी। आम दर्शक शुरू में इंटरनेट
या किसी और जरिये से ये फिल्में देख सकेंगे। ब्राडबैंड की गति बढ़ने के बाद
फिल्मों की लाइव स्ट्रीमिंग हो सकेगी। अभी छिटपुट रूप से हो रहे प्रयोग ही
ट्रेंड बन जाएंगे। थियेटर पर दर्शकों की निर्भरता कम होगी। घरों में या
किसी और तरीके से फिल्मों का वही आनंद लिया जा सकेगा, जो आधुनिक तकनीक से
लैस थियेटरों में मिलता है। पर्दे का आकार छोटा-बड़ा हो सकता है, लेकिन
सिनेमा के प्रभाव और आनंद में कोई कमी नहीं रहेगी। निश्चित ही ऐसा होने पर
फिल्मों का प्रसार और बाजार बढ़ेगा। सिनेमा की चुनौतियां बढ़ रही हैं,
लेकिन उसके साथ ही दर्शकों और सिनेमा के बीच नए संबंध बन रहे हैं।
सबसे बड़ा बदलाव सिनेमा के नए निर्माण स्थलों के रूप में सामने आ रहा है।
हिंदी सिनेमा के लिए मुंबई गढ़ बना रहेगा। अधिकांश फिल्में मुंबई में
बनेंगी। उन फिल्मों मे आज की तरह ही अधिकाधिक दर्शकों तक पहुंचाने के
उद्देश्य से मसाले इस्तेमाल किए जाएंगे। यह भ्रम और वहम जारी रहेगा कि
मुंबइया फिल्म निर्माता देश भर के दर्शकों के मनोरंजन की चिंता करता है।
इसके साथ ही छोटे शहरों और इलाकों में स्थानीय भावनाओं का खयाल रखते हुए कम
अल्प और सीमित बजट की फिल्में बनेंगी। उनके अपने स्थानीय दर्शक बनेंगे। यह
दर्शक दोनों तरह की फिल्मों का वैसे ही अभ्यस्त हो जाएगा जैसे कि वह घर
में अपनी मातृभाषा और बाहर में हिंदी या अंग्रेजी बोलता है। यकीन करें,
भविष्य में छोटे स्तर पर बनी फिल्मों के भव्य रीमेक होंगे। हिंदी फिल्मों
के मुंबइया निर्माता भविष्य में क्षेत्रीय फिल्मों के निर्माण में भी
आएंगे। भेजपुरी फिल्मों की लोकप्रियता के दौर में हम इस ट्रेंड की झलक देख
चुके हैं।
Comments
Good Morning,
This is Vikrant Chaudhary from U.P Ghaziabad...!
Just came to know how can I talk with you Mr. Anurag Kashyap, actually I have a proposal and a brilliant project for u to start the new edge in Indian film industry. i sure that the offer will change the current picture of Film industry.
Waiting for your positive response…
With warm regards,
Vikrant Chaudhary
Mob# 9639008702
You Sef says that:- फिल्म इंडस्ट्री हमेशा पिछली कामयाबी को दोहराने मे लगी रहती है। अचानक कभी एक निर्देशक कोई प्रयोग करने में सफल होता है और फिर उसकी नकल आरंभ हो जाती है। धीरे-धीरे एक ट्रेंड बन जाता है अनुराग और सुधीर दोनों ने कहा कि हम उस इंडस्ट्री के संदर्भ में अगले सौ सालों के बारे में कैसे बातें कर सकते हैं जो अगले कुछ सालों की तो छोडि़ए, अगले साल के बारे में भी आश्वस्त नहीं हैं कि वह किस दिशा में मुड़ेगी या बढ़ेगी?
Sir, this is the right time for Change...!