सत्यमेव जयते-11: सम्मान के साथ सहारा भी दें-आमिर खान
मुङो लगता है कि भारत विश्व के उन गिने-चुने देशों या समाजों में शामिल
है जहां सांस्कृतिक और पारंपरिक रूप से बुजुर्गो को बहुत अधिक सम्मान दिया
जाता है। भारत संभवत: एकमात्र देश है जहां हम बड़ों के प्रति सम्मान
प्रदर्शित करने के लिए उनके पैर छूते हैं। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है
कि व्यावहारिक स्तर पर और अपने बुनियादी ढांचे के लिहाज से हम अपने
बुजुर्गो की देखभाल के मामले में अन्य देशों से बहुत पीछे हैं। भारतीय समाज
बदल रहा है और धीरे-धीरे हम संयुक्त परिवार की संस्कृति से एकल परिवारों
की ओर बढ़ रहे हैं और इसके साथ ही अपने परिवार में बड़े-बूढ़ों के प्रति
हमारे संबंध भी बदल रहे हैं। आज जो व्यक्ति किसी बड़े शहर में काम-धंधे के
सिलसिले में रह रहा है उसके समक्ष बहुत चुनौतियां हैं। उसके पास खुद के
लिए, अपने छोटे से परिवार के लिए बहुत कम समय है। इस बदलते परिदृश्य में
गौर कीजिए कि हमारे बड़े-बुजुर्गो के साथ क्या होता है? हम उनके लिएक्या
करते हैं?हमें अपने बुजुर्गो के लिए बेहतर योजना बनाने की आवश्यकता है और
सच कहें तो खुद अपने लिए भी, क्योंकि देर-सबेर हम सभी को उस स्थिति में
पहुंचना है जहां आज बुजुर्ग हैं।
वर्ष 1947 में औसत जीवन अवधि मात्र
31 साल थी। लिहाजा सेवानिवृत्ति के बाद अर्थात 60 साल की उम्र पार कर चुके
लोगों की संख्या अधिक नहीं रही होगी। इसके साथ ही उस समय संयुक्त परिवार
के चलन के कारण एक-दूसरे के देखभाल की प्रवृत्ति भी थी। आज औसत जीवनकाल
लगभग 65 साल है। स्पष्ट है कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या
स्वाभाविक रूप से ऊंची है। अब लोगों को 75-80 साल की उम्र तक जीते देखना एक
सामान्य बात है। इसका मतलब है रिटायर होने के बाद वे 20 साल तक आसानी से
जीते हैं। याद रखिए रिटायरमेंट के बाद ये 20 साल ऐसे होते हैं जब हमें
स्वास्थ्य संबंधी मामलों में सबसे अधिक खर्च करना होता है। क्या हमारे
बच्चे और हम बिना किसी आय के 20 से 25 साल तक जिंदा रह सकते हैं? फिर कौन
हमारी देखभाल करेगा? निश्चित ही हमारे बच्चों की यह जिम्मेदारी है, लेकिन
उनकी अपनी समस्याएं हो सकती हैं। लिहाजा हमें इस चीज की ओर ध्यान देने की
आवश्यकता है कि जब हम 60 साल की उम्र में सरकारी अथवा निजी सेवा से रिटायर
होंगे तो हमें तब तक आय के कुछ अन्य स्नोत बनाने की आवश्यकता है जब तक
हमारे लिए ऐसा करना संभव हो।
एक समाज के रूप में हमने एक ऐसा
बुनियादी ढांचा और सपोर्ट सिस्टम तैयार कर लिया है जिससे हम अपने बच्चों की
देखभाल कर सकते हैं। हमारे बच्चे छह से सोलह वर्ष की उम्र तक कम से कम दस
साल स्कूल में बिताते हैं। इसके पहले उनके लिए केजी, नर्सरी और प्ले स्कूल,
क्रच जैसे प्रबंध भी हैं। लेकिन हमारे बुजुर्गो के लिए समाज में ऐसा कोई
सपोर्ट सिस्टम नहीं है। हमें ऐसे अधिक से अधिक पेशेवर संगठनों की आवश्यकता
है जो बुजुर्गो को एक साथ लाएं और उन्हें उत्पादक बनाने की कोशिश करें।
हमारी कोशिश होनी चाहिए कि उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी अच्छा वक्त मिले।
वे अपने ढंग से खर्च कर सकें, अपने ढंग से जी सकें। एक उदाहरण के रूप में
हम कुछ नाना-नानी अथवा दादा-दादी पार्क बना सकते हैं। देश के अलग-अलग
स्थानों पर स्थानीय निकाय, एनजीओ, सीनियर सिटीजन समूह बुजुर्गो के लिए
मनोरंजन केंद्र चला रहे हैं अथवा उनके लिए पार्क बनाए गए हैं। उन्हें
कभी-कभी इसके लिए कुछ सरकारी अनुदान भी मिलता है अथवा निजी दानदाताओं या
प्रायोजकों का सहयोग मिलता है। दिल्ली इस मामले में खास तौर पर सक्रिय है।
यहां ऐसे करीब 75 मनोरंजन केंद्र हैं और दिल्ली सरकार ऐसी कोशिशों को
बढ़ावा देने के लिए कुछ वित्तीय सहायता भी देती है। आवश्यकता यह है कि इस
तरह के प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर किए जाएं।
हमारे शो में हिमांशु रथ
ने यह उल्लेख किया कि वोट देने वाली आबादी का एक बड़ा प्रतिशत 60 वर्ष से
ऊपर है और यह संख्या बढ़ती जा रही है। यहां तक कि हमारे अधिकांश राजनेता भी
60 वर्ष से ऊपर हैं। इस तथ्य के बावजूद बुजुर्गो के लिए राजनीतिक स्तर पर
जो प्रयास किए गए हैं उन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। ग्रामीण विकास
मंत्रलय ने इंदिरा गांधी नेशनल ओल्ड एज पेंशन स्कीम शुरू की है। इसके तहत
गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले 65 वर्ष से अधिक उम्र के सभी
व्यक्तियों को प्रतिमाह 200 रुपये की पेंशन दी जाती है। ज्यादातर राज्य
सरकारें ऐसी योजनाओं के तहत गरीबी रेखा से नीचे के बुजुर्गो को 200 से 500
रुपये प्रतिमाह की पेंशन देती हैं, जो आज के युग में पर्याप्त नहीं कही जा
सकती।
कुछ राज्य सरकारें इस मामले में अधिक उदार हैं। तमिलनाडु
सरकार कार्डधारकों को 1000 रुपये और 20 किलोग्राम मुफ्त चावल देती है, जबकि
बीपीएल के लिए 35 किलोग्राम चावल दिए जाते हैं। गोवा आय संबंधी किसी
प्रतिबंध के बिना सभी सीनियर सिटीजनों को दो हजार रुपये प्रतिमाह की पेंशन
देता है। संक्षेप में कहें तो हमें यह याद रखने की जरूरत है कि केवल बड़ों
के पैर छूना ही पर्याप्त नहीं है। सम्मान का यह प्रदर्शन केवल परंपरा के
कारण एक अर्थहीन शिष्टाचार बनकर नहीं रह जाना चाहिए, बल्कि यह अनुराग और
सम्मान की सही भावना के प्रदर्शन के साथ-साथ बुजुर्गो के लिएकुछ करने की
हमारी आकांक्षा का प्रतीक बनना चाहिए। हमें यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि
आज जहां हमारे बुजुर्ग हैं, कल हमें भी वहीं पहुंचना है।
जय हिंद, सत्यमेव जयते।
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ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...