साहब बीबी और गुलाम
- अजय ब्रह्मात्मज
फिल्मों की स्क्रिप्ट का पुस्तकाकार प्रकाशन हो रहा है। सभी का दावा रहता है कि ओरिजनल स्क्रिप्ट के आधार पर पुस्तक तैयार की गई है। हाल ही में दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी की देखरेख में ‘साहब बीबी और गुलाम’ की स्क्रिप्ट प्रकाशित हुई है। उन्हें ओरिजनल स्क्रिप्ट गुरुदत्त के बेटे अरुण दत्त से मिली है। दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने चलन के मुताबिक फिल्म के हिंदी संवादों के अंग्रेजी अनुवाद के साथ उसे रोमन हिंदी में भी पेश किया है। संवादों के अंग्रेजी अनुवाद या रोमन लिपि में लिखे जाने से स्पष्ट है कि इस पुस्तक का भी मकसद उन चंद अंग्रेजीदां लोगों के बीच पहुंचना है, जिनकी हिंदी सिनेमा में रुचि बढ़ी हैं। उनकी इस रुचि को ध्यान में रखकर विनोद चोपड़ा फिल्म्स ने ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ और ‘3 इडियट’ के बाद गुरुदत्त की तीन फिल्मों ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘कागज के फूल’ और ‘चौदहवीं का चांद’ के स्क्रिप्ट के प्रकाशन का बीड़ा उठाया है। पिछले दिनों विधु विनोद चोपड़ा ने बताया था कि वे कुछ दूसरी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी प्रकाशित करना चाहते हैं।
दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी ने पुस्तकाकार रूप में आई स्क्रिप्ट में पटकथा और संवादों के साथ कुछ इंटरव्यू और लेख भी दिए हैं। पुस्तक के आरंभ में जितेन्द्र कोठारी ने ‘रोमांसिंग द पास्ट’ शीर्षक से भूमिका लिखी है, जिसमें गुरुदत्त के सिनेमा के संक्षिप्त विवरण के साथ ‘साहब बीवी और गुलाम’ का संदर्भ दिया गया है। दिनेश रहेजा ने फिल्म पर लिखे अपने लेख में इसे ढंग से विश्लेषित किया है। उन्होंने छोटी बहू और भूतनाथ के बीच के रिश्ते की पड़ताल की है। दोनों के बीच के ‘प्लूटोनिक लव’ की खासियत बताते हुए दिनेश ने सप्रसंग बताया है कि छोटी बहू और भूतनाथ का यह संबंध हिंदी फिल्मों के लिए अनोखा और पहला है। छोटी बहू के प्रति भूतनाथ के लगाव में प्रेम के साथ आदर और चिंता भी है। छोटी बहू भी भूतनाथ को अपना विश्वस्त और प्रिय मानती हैं। भूतनाथ को देखकर वह खुश होती हैं। दूसरी तरफ भूतनाथ भी छोटी बहू पर अपना अधिकार समझता है। फिल्म के कुछ कोमल और अंतरंग दृश्यों में भूतनाथ छोटी बहू को तुम कहने से भी नहीं हिचकता। छोटी बहू के संबोधन में आए इस परिवर्तन पर दिनेश रहेजा ने अपने लेख में गौर नहीं किया है। अबरार अल्वी या गुरुदत्त जीवित रहते तो बना सकते थे कि भूतनाथ क्यों और कैसे छोटी बहू को ‘आप’ के बदल ‘तुम’ कहने लगता है? भूतनाथ एक नौकर है और छोटी बहू मालकिन है। दोनों के बीच ‘प्लूटोनिक रिश्ता’ है, लेकिन फिल्म के एक दृश्य में हम देखते हैं कि शराब का ग्लास छीनने में जब भूतनाथ अचानक छोटी बहू का हाथ छू लेता है तो वह बिफर उठती हें। वह डांटती हैं कि तुमने एक परायी स्त्री का हाथ छुआ। स्पष्ट है कि तमाम अंतरंगता के बावजूद दोनों के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं है। स्त्री-पुरुष संबंध का ऐसा चित्रण हिंदी में दुर्लभ है। दिनेश रहेजा ने इस पुस्तक में फिल्म के गीतों को उनकी लय में ही अनूदित करने का सुंदर प्रयास किया है। गीतों का यह काव्यात्मक अनुवाद भावपूर्ण है
इस पुस्तक में गुरुदत्त के कैमरामैन वीके मूर्ति के साथ ही वहीदा रहमान, मीनू मुमताज और श्याम कपूर के भी इंटरव्यू हैं। वीके मूर्ति और वहीदा रहमान की बातचीत से फिल्म के निर्माण की हल्की झलक मिलती है। अगर यह बातचीत और विस्तार में रहती और फिल्म की मेकिंग के अन्य पहलुओं को भी टच करती तो फिल्म के अध्येताओं और छात्रों के लिए पुस्तक अधिक उपयोगी हो जाती। फिर भी जितेन्द्र कोठारी का यह प्रयास सराहनीय है। हिंदी फिल्मों के दस्तावेजी करण पर फिल्म इंडस्ट्री के लोग ही अधिक ध्यान नहीं देते। फिल्मों पर की गई बातचीत के दौरान उनका रवैया बहुत ही कैजुअल, चलताऊ और टरकाऊ रहता है। खास कर फिल्म की रिलीज के बाद वे कोई बात नहीं करने और फिल्म की रिलीज के पहले हर बात इतनी ढकी-छिपी और सामान्य होती है कि उस से फिल्म की रचना प्रक्रिया समझ में नहीं आती। देर से ही स्क्रिप्ट का पुस्तकों के रूप में प्रकाशन के इस अभियान का स्वागत किया जाना चाहिए। हां, थोड़ा इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि ओरिजनल स्क्रिप्ट और फिल्म में बोले गए संवाद के फर्क को रेखांकित करते हुए उसका स्पष्टीकरण भी दिया जाना चाहिए।
साहब बीबी और गुलाम
संकलन,अनुवाद,निबंध और इंटरव्यू-दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी
प्रकाशक-ओम बुक्स
मूल्य-595 रु
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