फिल्‍म समीक्षा : कसम से कसम से

साधारण और घिसी-पिटी 
-अजय बह्मात्‍मज 
हिंदी फिल्मों के सामान्य हीरो के लिए लव, रोमांस, डांस, एक्शन और डायलॉग डिलिवरीमुख्य रूप से ये पांच चीजें जरूरी होती हैं। माना जाता है कि इनमें हिंदी फिल्मों के एक्टर को दक्ष होना चाहिए। यही कारण है कि फिल्म इंडस्ट्री के हर पिता अपने बेटे की लांचिंग फिल्म में इन पांचों तत्वों का ताना-बाना बुनते हैं। एक ऐसी फिल्म तैयार करते हैं, जिसमें लांचिंग हो रहे बेटे की दक्षता दिखायी जा सके। निर्माता नाजिम रिजवी ने इसी उद्देश्य से कसम से कसम से का निर्माण किया है। इस उद्देश्य से शिकायत नहीं है, लेकिन देखना चाहिए कि पर्दे पर पेश किया जा रहा एक्टर कहीं अपनी कमजोरी ही न जाहिर कर दे।
कसम से कसम से अनेक गानों और चंद घिसे-पिटे दृश्यों की फिल्म है। कैंपस फिल्म की एक खूबी एनर्जी होती है। वह हीरो और सहयोगी कलाकार पैदा करते हैं। इस फिल्म में यह एनर्जी सिरे से गायब है,जबकि फिल्म के पोस्टर में यह बताया गया है कि यह 22 करोड़ युवकों की सोच पर आधारित है। रोमांस और प्रेम के दृश्यों में नवीनता नहीं है। किसी बहाने गीत डाल डाल देने की कोशिश में फिल्म में ड्रामा की गुंजाइश नहीं रह गई है। प्रेम के त्रिकोण में भी दम नहीं है। दरअसल, फिल्म की पटकथा कमजोर है। संवादों की अधिक संभावना नहीं रही है, जबकि इस फिल्म के संवाद लेखन के लिए तीन व्यक्ति हैं। कुछ दृश्य इतने लंबे खिंच गए हैं कि उनका प्रभाव खत्म हो गया है। निर्देशक अशफाक मकरानी फिल्म नहीं संभाल पाए हैं।
लांचिंग एक्टर अजीम को अभी लंबे अभ्यास और मेहनत की जरूरत होगी। उन्हें अगली फिल्म के समय विशेष सावधान रहना पड़ेगा। फिल्म की नायिका रूप, गुण और अभिनय किसी भी तरह प्रभावित नहीं करती। सतीश कौशिक को अवश्य गाना गाने और मसखरी करने का मौका मिल गया है, लेकिन कमीज फाड़कर बदन दिखाने से वे बच सकते थे।

** दो स्टार

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