सत्यमेव जयते-6 : जीडीपी बढ़ाने की सरल राह-आमिर खान
बदलाव की यह शुरुआत कहां से और कैसे
होनी चाहिए?
शिक्षा पहला पड़ाव है। सर्वशिक्षा अभियान और शिक्षा का अधिकार कानून यह
कहता है कि देश के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य रूप से शिक्षा मिलनी चाहिए।
बावजूद इसके अधिकांश रेगुलर स्कूल विकलांगता के शिकार बच्चों को प्रवेश
देने में आनाकानी करते हैं। वे बुनियादी ढांचे के अभाव का बहाना बनाते हैं,
खासकर प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव का। शायद वे सही हैं, लेकिन सवाल यह है
कि क्यों देश के बहुत सारे स्कूल ऐसा रूप ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं जिससे
उनमें हर तरह के बच्चे भलीभांति शिक्षा ग्रहण कर सकें। उनके सिर पर किसने
बंदूक तान रखी है? मुझे लगता है कि कमी खुद हमारे अंदर है। हममें विकलांग
बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने के लिए न तो विचार हैं, न जज्बा और
शायद दिल भी नहीं। आइए हम इस स्थिति को बदलें।
अगर हम आज से ही शुरुआत कर
दें तो प्रत्येक स्कूल दो से तीन वर्ष में ऐसा रूप ग्रहण कर सकता है जिससे
वे विकलांग बच्चों को भी अपने यहां शिक्षित कर सकें। प्रत्येक स्कूल का यही
लक्ष्य होना चाहिए।
मौजूदा समय विकलांग बच्चों में मात्र दो प्रतिशत ही शिक्षित हैं। यह एक
चिंताजनक स्थिति है, जिस पर सभी को विचार करना चाहिए। शिक्षा की बुनियाद के
बिना कोई भी भी बच्चा जीवन में अपने मकसद तक नहीं पहुंच सकता है। रेगुलर
स्कूलों में विकलांग बच्चों को प्रवेश देने का अवसर उपलब्ध कराने से इन्कार
कर हम उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। हम यह भूल रहे हैं कि
इस अवसर के बिना वे जिंदगी में कुछ नहीं बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त हम
सामान्य बच्चों को भी उनके साथ घुलने-मिलने का अवसर देने से इन्कार कर रहे
हैं। सामान्य बच्चे भी उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं, उनके साथ मित्र के रूप
में बड़े हो सकते हैं। यही बात दोनों पक्षों के लिए लागू होती है।
विकलांगता के शिकार बच्चों को शिक्षित कर हम उनके उत्पादक बनने का आधार
तैयार कर सकते हैं, जिससे न केवल वे अपनी देखभाल खुद कर सकते हैं, बल्कि
अपने परिजनों की भी मदद कर सकते हैं।
सरकार कहती है कि हमारे यहां की दो प्रतिशत आबादी विकलांगता की शिकार है।
अनेक विशेषज्ञ और गैर सरकारी संगठन कहते हैं कि यह प्रतिशत 6 है। मुझे लगता
है कि इस प्रतिशत को 6 से 10 प्रतिशत के बीच रहना सुरक्षित होगा। आइए हम
इसे 8 प्रतिशत मान लें। 1.2 अरब आबादी का 8 प्रतिशत 9 करोड़ 60 लाख होता
है। यह इंग्लैंड की आबादी (5.1 करोड़), फ्रांस (6.5 करोड़) और जर्मनी (8
करोड़) से अधिक है। जावेद अबीदी कहते हैं कि हमारे समाज को यह सोचने की
जरूरत है कि क्या हम अपने देश की 9 करोड़ से अधिक आबादी को अशिक्षित,
बेरोजगार, अनुत्पादक रखना चाहते हैं? क्या हमें इसके लिए प्रयास नहीं करने
चाहिए कि यह आबादी शिक्षित हो, रोजगार में लगी हो, उत्पादक हो, खुद अपनी और
अपने परिजनों की देखभाल करने में सक्षम हो। उन्हें शिक्षा और रोजगार के
अवसर उपलब्ध कराकर ही हम उन्हें विकास और अपने देश की संपदा में योगदान
देने का मौका दे सकते हैं। यह काम उन्हें मुख्य धारा वाली शिक्षा में शामिल
करके ही किया जा सकता है। यही बुनियादी बात है।
जयहिंद, सत्यमेव जयते!
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