फिर से अनुराग कश्‍यप-2

-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछली बार अनुराग कश्‍यप से हुई बातचीत का पहला अंश पोस्‍ट किय था। यह उस बातचीत का दूसरा और अंतिम अंश है। आप की प्रतिक्रिया और जिज्ञासा मुझे जोश देती है अनुराग कश्‍यप से बार-बार बात करने के लिए। आप के सवालों का इंतजार रहेगा।


-लेकिन बिहार में सब अच्‍छा ही नहीं हो रहा है। वहां के सुशासन का स्‍याह चेहरा भी है।
0 वह हमें नहीं पता है। बिहार के लोग अच्‍छी तरह बता सकते हैं,क्‍योंकि वे वहां फंसे हुए हैं। कहानी का हमें पता चलेगा तो उस पर भी फिल्‍म बना सकते हैं। अच्‍छा या गलत जो भी आसपास हो रहा है,उसे सिनेमा में दर्ज किया जाना चाहिए। पाइंट ऑफ व्‍यू कोई भी हो सकता है।
हमें अच्छी कहानी मिलेगी तो अच्छी फिल्म बनाएंगे। 
- वासेपुर में सिनेमा का कितना इंफलुएंश है।
0 वासेपुर देखा जाए तो पूरे इंडियन सोसायटी का एक छोटा सा वर्सन है। वासेपुर कहीं न कहीं वही है।
- इस फिल्म के पीछे जो गॉड फादर वाली बात की जाती है?
0 ये कहानी वासेपुर की है। इस कहानी का गॉड फादरसे कुछ लेना देना नहीं है। लोग बिना पिक्चर देखे हुए बात करते हैं तो लोगों के हिसाब से क्या जवाब दूं। कहानी है वासेपुर से। गॉड फादरसबने पढ़ी है, लेकिन उनको अपना खुद का वासेपुर नहीं मालूम। पहले वासेपुर के बारे में रिसर्च करिए। पहले वासेपुर का जानिए फिर आप बोलिए गॉड फादरसे  कितना प्रभावित है। किसी भी कहानी में बाप, बेटा और पोता है तो क्या वह गॉड फादरसे प्रभावित हो जाती है। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जो कहीं से उठाया हुआ है। इसमें जो कुछ भी उठाया गया है वहां की हेड लाइनस से... वहां की न्यूज पेपर रिपार्टिंग से। क्या गॉड फादरदेखने के बाद वासेपुर के लोग ऐसे हो गए थे? अगर हो गए थे तो डिफनिटली गॉड फादरहै। और वह दूसरी इंटरेस्टिंग कहानी हो सकती है।
-वासेपुर की शूटिंग प्रक्रिया कैसी रही?
0 हमलोगों ने 2009 में काम शुरू कर दिया था। सबसे पहले म्‍यूजिक पर काम हुआ। मैं इसे म्‍यूजिकल बनाना चाहता था। शूटिंग बाद में 2010 में आरंभ हुई। फिल्‍म में धनबाद के विजुअल्‍स हैं। पूरी फिल्‍म की वहां शूटिंग करना संभव नहीं था। स्‍थानीय स्‍तर पर कई तरह की दिक्‍कतें हो जाती हैं। हमलोगों ने बिहार,झारखंड और उत्‍तर प्रदेश में शूटिंग की है। हमलोगों ने वहीं धनबाद क्रिएट किया।हमलोगों ने ओबरा,अनपड़ा,चकिया,चुनार,गहरौड़ा,बनारस,रांची,पटनाआदि स्‍थानों पर शूट किया। कई सारे लेखकों ने अपनाअपना वर्सन तैयार किया। फिर मैंने फायनल स्क्रिप्टिंग की। मेरी बीवी कल्कि स्‍पेन में जिंदगी ना मिलेगी दोबारा की शुटिंग कर रही थी। वहीं चला गया। वासेपुर की फायनल स्क्रिप्‍ट स्‍पेन में लिखी गई। मैं खुद नार्थ इंडिया से हूं। उधर का मिजाज और व्‍यवहार समझता हूं। शूल और युवा मैं लिख चुका हूं। इस फिल्‍म की पूरी कहानी बदले की है। पीडि़यों तक चलती है श्‍ह कहानी। फिल्‍म में सबसे ज्‍यादा समय तक तिग्‍मांशु धूलिया दिखाई पड़ेंगे। मनोज बाजपेयी और नवाजुद्दीन सिद्दिकी इस फिल्‍म की रीढ़ हैं। ये दोनों एक्टिंग नहीं करते। किरदारों को जीते हैं। इस फिल्‍म में कहानी सबसे खास है। उसी का महत्‍व है।
- ‘पेडलर्सक्या है?
0 ‘पेडलर्सएक यूनिक फिल्‍म है। पेडलर्सयूनिक फिल्ममेकर की यूनिक फिल्म है। पेडलर्सतो दिखा कर ही समझाया जा सकता है। कुछ लोगों की कहानी है। वे कैसे लोग है और क्या हैं, बताना मुश्किल है। मतलब पेडलर्सदिखा कर ही समझा सकते हैं। पेडलर्सको समझा पाना बड़ा मुश्किल है।
- ‘पेडलर्सकी कहानी क्या है?
0 कहानी ये है कि बंबई शहर में लोग रहते हैं। सब के अपने-अपने, सब के अलग-अलग और अकेली कहानियां हैं। वासन ने तीन व्‍यक्तियों को पकड़ कर उनकी कहानी कही है। कहानी पकड़ते-पकड़ते एक समय एंड में आकर सब की कहानियां आपस में टकराती हैं। टकराती है तो जो साउंड होता है न, वह खतरनाक है।
- कैरेक्टर कौन हैं?
0 गुलशन देवैया हैं जो कि नारकोटिक्स आफिसर है। छोटी सी प्रॉब्लम को डील नहीं कर पाता है। वह नपुंसक है। य‍ह समस्‍या उसकी जिंदगी पर हावी हो जाती है। बहुत बड़ी हो जाती है। एक लडक़ी है,जो अपना इलाज कराने आयी है और उसे पैसे की जरूरत है। क्योंकि इलाज महंगा है। उसके लिए कुछ भी कर सकती है। इसे कीर्ति मल्‍होत्रा निभा रही हैं। तीसरा एक लडक़ा है जो कुछ नहीं करता।
- कौन है?
0 सिद्धार्थ धवन नाम का एक नया लडक़ा है। लडक़ी है कीर्ति मल्होत्रा। तीनों की कहानी आपस में आ कर टकराती है।
- वासन बाला आप के असोसिएट डायरेक्टर रह चुके हैं। मैंने सुना है कि आप ने शुरू में पसंद नहीं थी फिल्‍म?
0 कहानी मैंने पसंद की थी। स्क्रिप्ट नहीं पसंद की थी। उसने जाकर स्क्रिप्ट लिखी और उसने कहा कि स्क्रिप्ट नहीं दिखाऊंगा। उसकी भी जिद्द थी। वह नहीं चाहता था कि मेरे शैडो में रह कर फिल्‍म बनाए। उसने पूरी टीम बनाई। मेरे सहायकों ने रिवोल्‍ट कर दिया। उन्‍होंने कहा कि हम वासन की फिल्‍म बनाने जा रहे हैं। उसने जाकर फिल्‍म बनाई। वर्क किया। उसने मुझे पूरी होने के बाद फिल्‍म दिखाई। मैंने देखा तो खुश हो गया। वह फिल्म लेकर हमलोग तुरंत भागे। लास्ट मोमेंट पर उसका सलेक्शन हुआ। भाग के गया लोगों को दिखाने के लिए कि देखो-देखो-देखो  ...फोन कर रहा था कि लोग देखेंगे-देखेंगे। लास्ट मोमेंट पर कोई देखता नहीं है। ठीक है उन्होंने देख ली और उन्हें पसंद आ गई।
- ‘मिस लवलीके लिए क्या कहना चाहते हैं?
0 ‘मिस लवलीकी स्क्रिप्ट पढ़ी थी मैंने बहुत दिन पहले। मुझे बहुत पसंद है। उस फिल्ममेकर की फिल्म मुझे पसंद है। वह आदमी मुझे अभी तक समझ में नहीं आया है। अच्छा है, कई लोग जो समझ में नहीं आते हैं वे हमेशा इंटरेस्टिंग काम करते हैं। मिस लवलीमुझे कान में देखनी है।
- और कौन-कौन सी फिल्में आप देखने जा रहे हैं।
0 मुझे माइकल हैनरी की नई फिल्म देखनी है। जॉन हिलपोर्ट की नई फिल्म देखनी है। बाकी देखूंगा कि और क्‍या फिल्‍में हैं?
- कान से आप कितनी उम्मीदें रख रहे हैं ?  आपका स्ट्रांग प्रेजेंस होगा। पता नहीं वहां की मीडिया में कितना आप पर फोकस रहेगा कि नहीं रहेगा वह मुझे नहीं मालूम?
0 कहा नहीं जा सकता। मेरी कोशिश रहेगी कि लोग फिल्‍म देखें और लिखें। रिएक्‍ट करें।
- अच्छे या बुरे तरीके से अनुराग ने अपनी जगह बनाई इंटरनेशनल मार्केट में अब वे अपने ढंग की फिल्म बना कर के, हमलोग की परवाह किए बगैर एक अलग ढंग का सिनेमा कर रहा है। यों कहें कि विरोध में खड़े अनुराग कश्‍यप की अपनी जमात बन गई है। वह साथ के लोगों की परवाह नहीं करता।
0 देखिए मेरा प्रॉब्लम क्या है? बहुत संवेदनशील सवाल पूछ लिया आप ने। मेरे बहुत सारे सीनियर्स हैं जिनके साथ मैंने काम किया है। उनसे सीखा है। उनके पास आयडिया है। मैंने सब से सीखा है। बहुत सारे आदमी की शिकायत है कि मैंने कुछ करने के बाद उनके लिए ऐसा कुछ नहीं किया। बहुत सारे लोग की नाराजगी है। मेरी प्रॉब्लम यह है कि मैंने जब भी किसी से बात करने की कोशिश की है। उनका ये कहना रहता है कि तुम ने हम से सीखा है और अब तुम हमें सीखा रहे हो ? बहुत ही डीफिकल्टीज होती है। मैं अपनी आजादी के साथ कुछ कर पाने की कोशिश कर रहा हूं। एक साथ काम करने के लिए पहले तो एक लेबल पर होना पड़ता है। मैं अपने सीनियर कैमरामैन के साथ काम नहीं कर पाया कभी, क्योंकि एक रेस्पेक्ट है बीच में। जब तर्क-वितर्क होगा तो वहां पर रेस्पेक्टफुल हो जाऊंगा। वह मुझे करना नहीं है। मैं उन चीज से दूर हो गया। बहुत सारे लोग जिनके साथ मैं बढ़ा ,वे फिकस्ड रह गए। उनके अंदर फ्लैक्सिबिलीटी बिल्कुल नहीं है और मेरे साथ के लोग कई बार बोलते हैं कि अब तेरे में एनर्जी नहीं रह गई। वे भूल जाते हैं कि मैं अभी उस उम्र का हूं,जिस उम्र में में वे मुझे सीख रहे थे। सब कुछ यंग रहने या एनर्जी से नहीं होता। यहां पर सब लोगों के साथ प्रॉब्लम क्या रहा है मेरा कि वे ढीले पड़ गए हैं। मैं यंग आदमी के साथ ही काम कर सकता हूं। उन लोगों के साथ काम नहीं कर सकता हूं। उन सभी के पास अपने घर हैं, सब के सब ईएमआई की सोचते हैं। उनका फोकस अपने खर्च पर है। जब भी किसी से बात किया हूं। मेरे साथ के बहुत सारे फिल्ममेकर हैं जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, उनकी बात कर रहा हूं। बोलते हैं पहले पैसे दे दो उसके बाद काम करेंगे। मेरा कहना है कि पहले फिल्‍म बनाओ ना ? फिल्म बनाओ तो पैसे आ जाते हैं। वासेपुर की ही बात करें तो तीन साल में हमारी फिल्म बनी। तीन साल में कितने पैसे कमाए ? उनकी भी फिल्म बन गयी होती तो पैसे आते शायद। वैसे क्‍या आया? मेरा ये रहा है कि मैंने जो फिल्म बनायी है, उसके पैसे की चिंता साइड में कर दी। शायद इसलिए फिल्म आसानी से बनी। यह मैं नए लोगों के साथ कर सकता हूं,क्योंकि वो पैशन में आते हैं। वे पिक्चर बनाने आते हैं। मैं उन लोगों के साथ नहीं कर सकता जिन्होंने अलग तरह की इंडस्ट्री देखी है, जिन्हे मालूम है कि यार ये जगह ऐसी नहीं है, पैसे बहुत जरूरी होते हैं। मुझे मालूम है पैसे बहुत जरूरी होते हैं। जिस आदमी ने ये बात ठान ली है कि पैसे बहुत जरूरी होते हैं उन्हें समझ में आता है कि लोग बेवकूफ बना रहे हैं। मैं उनके साथ काम नहीं कर सकता। या तो लोग समझते हैं मैं लोगों को बेवकूफ बना रहा हूं या बन रहा हूं। मैं बहुत चालू तरह का हूं। इसमें बहुत झोल है। मेरा प्रॉब्लम यह है कि लोग मुझे कुछ भी बना दें,कुछ भी कहें, लेकिन मेरी पिक्चर तो बन रही है। उस पर मैं आज तक चलता आया हूं। बेवकूफ बनाने वाले आए और आ के चले गए। वे तो आज भी कहीं नहीं है न? मैं तो फिल्म बनाता रहा हूं लगातार। अगर आदमी का विजन इतना छोटा है कि वह मुझ जैसे को बेवकूफ बना के कुछ कर लेगा  तो फिर वो आदमी किसी लायक ही नहीं है। मुझे उससे क्या मिलने वाला है? मुझे तो फिल्म बनाने के लिए मिल रहा है और मुझे उससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए लाइफ में। इसी बात पर ऐसे ही लोग जुड़ते चले गए। टीम बन गयी। यही लोग हैं जो नई चीज पर कर पाते हैं। पुराने सब मेकर का दूसरा प्रॉब्लम क्या हैवो फॉर्मेट ही नहीं बना पा रहे हैं। कई बार बातें शुरू होती हैं और अटक जाती हैं।
- आपके टीम में सारे लोग आप से यंग हैं?
0 हां सब यंग हैं। मैं सबसे बूढ़ा हूं। सब लोग मुझे पापा बुलाते हैं। कोई भी चीज बनाने के लिए या बदलाव लाने के लिए आदमी के अंदर विलीव होना चाहिए न। नएपन में करने के लिए,नए लोगों के साथ करने के लिए, जो उन लोगों में नहीं है।
- वे बहुत फ्रेंडली होकर बातें करते है?
0 यंग और नए बच्चे हैं, जो चाहे बोलते हैं। जो चाहें कह सकते हैं।
- पूरी आजादी है?
0 बिल्कुल। यहां पर इस तरह का आजादी है कि जो चाहे बोल सकता है। जो चाहे कह सकता है। जब मुझे जरूरत पड़ती है,तब सभी तन कर मेरे साथ ख्‍ड़े हो जाते हैं। ये डेमोक्रेसी है। मेरा अस्सिटेंट मुझे कुछ भी बोलते हैं ,गाली भी देते हैं। ये क्या है? इंटरव्यू में बोलते रहते हो। सारी दुनिया ऐसे बात करती है मेरे से। मुझे कोई इगो नहीं होती है। लेकिन हां, पुराने लोगों के साथ एक अलग प्रॉब्लम है कि यार ये तो मेरे साथ पहली बार आया था काम करने के लिए। जब तक उनके माइंड से वह नया अनुराग नहीं निकलेगा तब तक हमलोग काम नहीं कर सकते। प्लस सिक्योरिटी होना बहुत जरूरी है। आप डरते क्‍यों हो? मैंने कितने लोगों से कहा,जिनको मैं इतना एडमायर करता हूं। इसलिए मैं उन से दूर रहता हूं। उनके लिए मैंने सब कुछ किया। पहले उनकी इमेज का प्राब्‍लम था। उनको सब लोग महान फिल्ममेकर मानते थे। मैं उनका नाम नहीं लूंगा। वे महान हैं। वे कहते हैं मैं दारू पीता हूं सारा दिन। पैसे होते नहीं थे। वो बस दारू छिडक़ने के लिए मेरे घर में आते थे। छिडक़ दो ताकि मैं बाहर जाऊं तो मुंह से बदबू आए। मुझे गुस्सा के साथ उन पर तरस आता है। थकी हुई एक फिल्‍म बनाई,जो कभी रिलीज नहीं हुई।




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