मैं फैशनेबल लड़की हूं: सोनम कपूर
-अजय ब्रह्मात्मज
सांवरिया से हिंदी फिल्मों में आई सोनम कपूर में नूतन और वहीदा रहमान की छवि देखी जाती है। लोकप्रियता के लिहाज से उनकी फिल्में अगली कतार में नहीं हैं, लेकिन अपनी स्टाइल और इमेज के चलते सोनम कपूर सुर्खियों में रहती हैं। उन्हें स्टाइल आइकन माना जाता है। सोनम से खास बातचीत-
स्टाइल क्या है? आप उसे कैसे देखती हैं?
स्टाइल आपकी अपनी पर्सनैलिटी होती है। आप कपडों और स्टाइल के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं। देव आनंद की टोपी, राजकपूर की छोटी पैंट या मीना कुमारी के लहंगे, मधुबाला की टेढी स्माइल या शाहरुख के स्वेटर, सलमान खान के जींस या बूट..। उनकी स्टाइल ही सिग्नेचर है। लोग मुझे देखते हैं तो कहते हैं कि मैं अजीबोगरीब कपडे पहनती हूं। मैं फैशन करती हूं और बहुत अच्छी लगती हूं, अपने चुने कपडों में। मेरी नजर में स्टाइल अपनी पर्सनैलिटी का एक्सप्रेशन और एक्सपेरिमेंट है। इसी को कुछ लोग फैशन से जोड देते हैं।
पर्सनैलिटी के एक्सप्रेशन का शौक बचपन से था?
मैं लडकी हूं। बचपन से शौक है कि मुझे अच्छे कपडे पहनने हैं, खूबसूरत दिखना है। आपने मेरा पहला इंटरव्यू किया था, तब पूछा था कि मैं भारतीय परिधान क्यों पहनती हूं? मेरा जवाब था कि उनमें मैं कंफर्टेबल महसूस करती हूं। मेरी बॉडी ऐसी नहीं है कि मैं छोटे-छोटे टाइट कपडे पहनूं। मुझे अपनी स्टाइल ऐसी करनी होगी कि कंफर्ट, ग्लैमर और गुड लुक तीनों मेरी पर्सनैलिटी में दिखे। मैं अपने ढंग से कपडे पहनती हूं।
हर कपडे को कैरी कर पाना सब के बस की बात नहीं होती?
सही कह रहे हैं। मुझे लगा कि मैं वेस्टर्न कैरी नहीं कर सकती। मुझे भारतीय परिधान के अलावा वेस्टर्न पहनना पडा तो उसके लिए राह निकालनी पडी। मैंने जिस तरह शरीर के अनुकूल कपडों का चुनाव किया वह बाद में ट्रेंड हो गया। अब सारी लडकियां मेरी तरह ड्रेस पहनने लगी हैं।
आपने किसी की मदद ली या ट्रायल एंड एरर से सीखा?
ट्रायल एंड एरर से ही सीखा है। किसी ने मेरी मदद नहीं की है। हर छह महीने में मेरी डिजाइनर बदल जाती है। वे मेरे साथ काम करती हैं और छह महीने कुछ नया करते हैं। फिर पता चलता है कि वह दूसरी हीरोइनों को वही कपडे पहना रही है तो मैं बदल देती हूं।
आपकी फेवरिट डिजाइनर कौन हैं?
अनामिका खन्ना। वह बेहद खूबसूरत इंडियन कपडे बनाती हैं। फिल्म दिल्ली-6 और मौसम के लिए उन्होंने मेरे ड्रेस बनाए थे। बाहर के डिजाइनर में शनैल मतलब कार्ल लेगरफेल्ड, जो शनैल के हेयर डिजाइनर हैं। डिओर के पुराने डिजाइनर जॉन गैलिआनो.. और भी कई हैं।
क्या आज लडकियां ज्यादा स्टाइल कॉंन्शियस हैं?
हां मैंने शुरुआत की है। अब तो सभी लडकियां मेरे कपडों पर इतना ध्यान देने लगी हैं कि वे खुद भी ऐसे कपडे पहनने लगी हैं।
फैशन सिनारियो आपकी मम्मी के जमाने से कितना बदला है?
हर पीढी की अपनी स्टाइल होती है। आठवें दशक में पलाजो पैंट्स और मैक्सी आए। उस समय हाई वेस्ट पैंट पहनते थे फिर नौवें दशक में सोल्जर पैंट आ गए और फिर सीक्वेंस आ गए। डिस्को जैसे कपडों का चलन बढा। अंतिम दशक में मनीष मल्होत्रा के ट्रेंड बहुत चले। वे हाई स्ट्रीट कपडे लेकर आए। अब हम लोग जो पहनते हैं, वह ट्रेंड बन रहा है।
पहले फैशन फिल्मों से आता था। अब यह निर्भरता कम हुई है। क्या कारण है?
अभी एक्सपोजर बढ गया है। फिल्मों के साथ हम फैशन शो, इवेंट और दूसरी जगहों पर दिखते रहते हैं। मीडिया एक्सपोजर बढ गया है। कहने का मतलब है कि अब दर्शकों को सिर्फ फिल्मों पर निर्भर नहीं रहना पडता।
स्टाइल के लिए बॉडी और एटीट्यूड दोनों में क्या ज्यादा जरूरी है?
दोनों जरूरी है। अगर आप के पैर मोटे हैं तो छोटे कपडे ठीक नहीं लगेंगे, अगर बांह मोटी है तो स्लीवलेस अच्छा नहीं दिखेगा। लेकिन कॉन्फिडेंस हो तो आप सब कुछ पहन सकती हैं। यह पर्सन टु पर्सन बदल जाता है।
खुद को कैसे अपडेट क रती हैं?
मुझे शॉपिंग का शौक है। शॉपिंग करना, मैगजीन पढना, ट्रेंड देखना मैं इनकी शौकीन हूं। इट्स पैशन ऑफ माइंड। अगर आप किसी चीज के लिए पैशनेट हों तो वह आपको आसानी से आ जाती है।
पांच ऐसी चीजें जिनके बिना आप नहीं रह सकतीं?
मेरा हैंड बैग, सेल फोन, फ्लैट जूते, सन ग्लासेस और शॉल।
अपनी मम्मी में क्या पसंद है?
वह बहुत ट्रडिशनल इंडियन कपडे पहनती हैं। मुझे उनकी स्टाइल पसंद है। इंडियन कपडों में मैं कभी एक्सपेरिमेंट नहीं करती।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आज सबसे फैशनेबल ऐक्ट्रेस और पहले की अभिनेत्रियों में?
अभी मैं हूं। पहले की अभिनेत्रियों में मीना कुमारी व नूतन। मीना कुमारी के मैंने किस्से सुने हैं कि वह बहुत ही पटिकुलर थीं अपने लुक्स व कपडों के बारे में। उनकी साडियां अलग होती थीं। उनकी एक लट हमेशा ललाट पर रहती थी। इतनी स्टाइलिश थीं वे। देव आनंद तो लंदन से सूट सिलवाते थे। मुझे किसी ने कहा था मीना कुमारी पाकीजा के सेट पर असली इतर की शीशियां रखवाती थीं। ऐसा कौन करता है आजकल?
अगर आप लडका होतीं तो?
बिलकुल नहीं। मुझे लडकियों के कपडे पसंद हैं। लडकी होने पर जिम्मेदारियां भी कम हो जाती हैं। आई एम हैपी फॉर बीइंग अ गर्ल।
आपको लगता है लडकियां इंडस्ट्री या बाकी जगहों पर पुरुषों के बराबर हैं?
अभी उन्हें समझौते करने पडते हैं। आजकल थोडा बेहतर सीन यह है कि लडकियों को मौके मिलने लगे हैं।
सुना है आप बहुत पढती हैं। अपनी फेवरिट किताबों के नाम बताएं, फेवरिट लेखक भी। अभी गिरीश कर्नाड के नाटक पढ रही हूं। देवदत्त पटनायक की राइटिंग बहुत पसंद है। उनकी सारी किताबें पढी हैं मैंने।
अभी कौन सी फिल्में कर रही हैं?
एक तो भाग मिल्खा भाग है और दूसरी है रांझना, यह जून में शुरू होगी। थर्ड पिक्चर अभी तक एनाउंस नहीं की है। लाइफ बिजी हो गई है मई-जून से।
लडकियों को कुछ मेसेज देना चाहती हैं, खासकर उन्हें, जो पारिवारिक और सामाजिक दबाव में रहती हैं?
अपनी जिंदगी स्वयं बनाएं, आगे बढने का यही रास्ता है। दिल्ली 6 में मेरा किरदार इंडियन आइडल बनना चाहती है। उसे लगता है कि इसी से वह जिंदगी में आगे बढ सकती है। उस लडकी में दम था, इसलिए वह लोगों को पसंद आई। आजकल मौके हैं। साहस और आत्मविश्वास की जरूरत है। हिम्मत करें और नया करने की कोशिश करें।
सांवरिया से हिंदी फिल्मों में आई सोनम कपूर में नूतन और वहीदा रहमान की छवि देखी जाती है। लोकप्रियता के लिहाज से उनकी फिल्में अगली कतार में नहीं हैं, लेकिन अपनी स्टाइल और इमेज के चलते सोनम कपूर सुर्खियों में रहती हैं। उन्हें स्टाइल आइकन माना जाता है। सोनम से खास बातचीत-
स्टाइल क्या है? आप उसे कैसे देखती हैं?
स्टाइल आपकी अपनी पर्सनैलिटी होती है। आप कपडों और स्टाइल के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं। देव आनंद की टोपी, राजकपूर की छोटी पैंट या मीना कुमारी के लहंगे, मधुबाला की टेढी स्माइल या शाहरुख के स्वेटर, सलमान खान के जींस या बूट..। उनकी स्टाइल ही सिग्नेचर है। लोग मुझे देखते हैं तो कहते हैं कि मैं अजीबोगरीब कपडे पहनती हूं। मैं फैशन करती हूं और बहुत अच्छी लगती हूं, अपने चुने कपडों में। मेरी नजर में स्टाइल अपनी पर्सनैलिटी का एक्सप्रेशन और एक्सपेरिमेंट है। इसी को कुछ लोग फैशन से जोड देते हैं।
पर्सनैलिटी के एक्सप्रेशन का शौक बचपन से था?
मैं लडकी हूं। बचपन से शौक है कि मुझे अच्छे कपडे पहनने हैं, खूबसूरत दिखना है। आपने मेरा पहला इंटरव्यू किया था, तब पूछा था कि मैं भारतीय परिधान क्यों पहनती हूं? मेरा जवाब था कि उनमें मैं कंफर्टेबल महसूस करती हूं। मेरी बॉडी ऐसी नहीं है कि मैं छोटे-छोटे टाइट कपडे पहनूं। मुझे अपनी स्टाइल ऐसी करनी होगी कि कंफर्ट, ग्लैमर और गुड लुक तीनों मेरी पर्सनैलिटी में दिखे। मैं अपने ढंग से कपडे पहनती हूं।
हर कपडे को कैरी कर पाना सब के बस की बात नहीं होती?
सही कह रहे हैं। मुझे लगा कि मैं वेस्टर्न कैरी नहीं कर सकती। मुझे भारतीय परिधान के अलावा वेस्टर्न पहनना पडा तो उसके लिए राह निकालनी पडी। मैंने जिस तरह शरीर के अनुकूल कपडों का चुनाव किया वह बाद में ट्रेंड हो गया। अब सारी लडकियां मेरी तरह ड्रेस पहनने लगी हैं।
आपने किसी की मदद ली या ट्रायल एंड एरर से सीखा?
ट्रायल एंड एरर से ही सीखा है। किसी ने मेरी मदद नहीं की है। हर छह महीने में मेरी डिजाइनर बदल जाती है। वे मेरे साथ काम करती हैं और छह महीने कुछ नया करते हैं। फिर पता चलता है कि वह दूसरी हीरोइनों को वही कपडे पहना रही है तो मैं बदल देती हूं।
आपकी फेवरिट डिजाइनर कौन हैं?
अनामिका खन्ना। वह बेहद खूबसूरत इंडियन कपडे बनाती हैं। फिल्म दिल्ली-6 और मौसम के लिए उन्होंने मेरे ड्रेस बनाए थे। बाहर के डिजाइनर में शनैल मतलब कार्ल लेगरफेल्ड, जो शनैल के हेयर डिजाइनर हैं। डिओर के पुराने डिजाइनर जॉन गैलिआनो.. और भी कई हैं।
क्या आज लडकियां ज्यादा स्टाइल कॉंन्शियस हैं?
हां मैंने शुरुआत की है। अब तो सभी लडकियां मेरे कपडों पर इतना ध्यान देने लगी हैं कि वे खुद भी ऐसे कपडे पहनने लगी हैं।
फैशन सिनारियो आपकी मम्मी के जमाने से कितना बदला है?
हर पीढी की अपनी स्टाइल होती है। आठवें दशक में पलाजो पैंट्स और मैक्सी आए। उस समय हाई वेस्ट पैंट पहनते थे फिर नौवें दशक में सोल्जर पैंट आ गए और फिर सीक्वेंस आ गए। डिस्को जैसे कपडों का चलन बढा। अंतिम दशक में मनीष मल्होत्रा के ट्रेंड बहुत चले। वे हाई स्ट्रीट कपडे लेकर आए। अब हम लोग जो पहनते हैं, वह ट्रेंड बन रहा है।
पहले फैशन फिल्मों से आता था। अब यह निर्भरता कम हुई है। क्या कारण है?
अभी एक्सपोजर बढ गया है। फिल्मों के साथ हम फैशन शो, इवेंट और दूसरी जगहों पर दिखते रहते हैं। मीडिया एक्सपोजर बढ गया है। कहने का मतलब है कि अब दर्शकों को सिर्फ फिल्मों पर निर्भर नहीं रहना पडता।
स्टाइल के लिए बॉडी और एटीट्यूड दोनों में क्या ज्यादा जरूरी है?
दोनों जरूरी है। अगर आप के पैर मोटे हैं तो छोटे कपडे ठीक नहीं लगेंगे, अगर बांह मोटी है तो स्लीवलेस अच्छा नहीं दिखेगा। लेकिन कॉन्फिडेंस हो तो आप सब कुछ पहन सकती हैं। यह पर्सन टु पर्सन बदल जाता है।
खुद को कैसे अपडेट क रती हैं?
मुझे शॉपिंग का शौक है। शॉपिंग करना, मैगजीन पढना, ट्रेंड देखना मैं इनकी शौकीन हूं। इट्स पैशन ऑफ माइंड। अगर आप किसी चीज के लिए पैशनेट हों तो वह आपको आसानी से आ जाती है।
पांच ऐसी चीजें जिनके बिना आप नहीं रह सकतीं?
मेरा हैंड बैग, सेल फोन, फ्लैट जूते, सन ग्लासेस और शॉल।
अपनी मम्मी में क्या पसंद है?
वह बहुत ट्रडिशनल इंडियन कपडे पहनती हैं। मुझे उनकी स्टाइल पसंद है। इंडियन कपडों में मैं कभी एक्सपेरिमेंट नहीं करती।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आज सबसे फैशनेबल ऐक्ट्रेस और पहले की अभिनेत्रियों में?
अभी मैं हूं। पहले की अभिनेत्रियों में मीना कुमारी व नूतन। मीना कुमारी के मैंने किस्से सुने हैं कि वह बहुत ही पटिकुलर थीं अपने लुक्स व कपडों के बारे में। उनकी साडियां अलग होती थीं। उनकी एक लट हमेशा ललाट पर रहती थी। इतनी स्टाइलिश थीं वे। देव आनंद तो लंदन से सूट सिलवाते थे। मुझे किसी ने कहा था मीना कुमारी पाकीजा के सेट पर असली इतर की शीशियां रखवाती थीं। ऐसा कौन करता है आजकल?
अगर आप लडका होतीं तो?
बिलकुल नहीं। मुझे लडकियों के कपडे पसंद हैं। लडकी होने पर जिम्मेदारियां भी कम हो जाती हैं। आई एम हैपी फॉर बीइंग अ गर्ल।
आपको लगता है लडकियां इंडस्ट्री या बाकी जगहों पर पुरुषों के बराबर हैं?
अभी उन्हें समझौते करने पडते हैं। आजकल थोडा बेहतर सीन यह है कि लडकियों को मौके मिलने लगे हैं।
सुना है आप बहुत पढती हैं। अपनी फेवरिट किताबों के नाम बताएं, फेवरिट लेखक भी। अभी गिरीश कर्नाड के नाटक पढ रही हूं। देवदत्त पटनायक की राइटिंग बहुत पसंद है। उनकी सारी किताबें पढी हैं मैंने।
अभी कौन सी फिल्में कर रही हैं?
एक तो भाग मिल्खा भाग है और दूसरी है रांझना, यह जून में शुरू होगी। थर्ड पिक्चर अभी तक एनाउंस नहीं की है। लाइफ बिजी हो गई है मई-जून से।
लडकियों को कुछ मेसेज देना चाहती हैं, खासकर उन्हें, जो पारिवारिक और सामाजिक दबाव में रहती हैं?
अपनी जिंदगी स्वयं बनाएं, आगे बढने का यही रास्ता है। दिल्ली 6 में मेरा किरदार इंडियन आइडल बनना चाहती है। उसे लगता है कि इसी से वह जिंदगी में आगे बढ सकती है। उस लडकी में दम था, इसलिए वह लोगों को पसंद आई। आजकल मौके हैं। साहस और आत्मविश्वास की जरूरत है। हिम्मत करें और नया करने की कोशिश करें।
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