रियल ड्रामा और पॉलिटिक्स है ‘शांघाई’ में
-अजय ब्रह्मात्मज
अपनी चौथी फिल्म ‘शांघाई’ की रिलीज तैयारियों में जुटे बाजार और विचार के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी यह फिल्म दिल्ली से बाहर निकली है। उदार आर्थिक नीति के के देश में उनकी फिल्म एक ऐसे शहर की कहानी कहती है, जहां समृद्धि के सपने सक्रिय हैं। तय हआ है कि उसे विशेष आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा। राज्य सरकार और स्थानीय राजनीतिक पार्टियों ने स्थानीय नागरिकों को सपना दिया है कि उनका शहर जल्दी ही शांघाई बन जाएगा। इस राजनीति दांवपेंच में भविष्य की खुशहाली संजोए शहर में तब खलबली मचती है, जब एक सामाजिक कार्यकर्ता की सडक़ दुर्घटना में मौत हो जाती है। ज्यादातर इसे हादसा मानते हैं, लेकिन कुछ लोगों को यह शक है कि यह हत्या है। शक की वजह है कि सामाजिक कार्यकर्ता राजनीतिक स्वार्थ के तहत पोसे जा रहे सपने के यथार्थ से स्थानीय नागरिकों को परिचित कराने की मुहिम में शामिल हैं। माना जाता है कि वे लोगों को भडक़ा रहे हैं और सपने की सच्चाई के प्रति सचेत कर रहे हैं।
दिबाकर बनर्जी राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म ‘शांघाई’ में हमें नए भारत से परिचित कराते हैं। यहां जोगिन्दर परमार, टीए कृष्णन, डाक्टर अली अहमदी,शालिनी सहाय जैसे किरदार हैं। वे समाज के विभिन्न तबकों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। रियल इंडिया की इस फिल्म में हिंदी फिल्मों के प्रचलित ग्रामर का खयाल नहीं रखा गया है। दिबाकर बनर्जी हमेशा की तरह वास्तविक और विश्वसनीय किरदारों के माध्यम से अपनी कहानी कह रहे हैं। वे स्वीकार करते हैं कि उन्हें बाजार के दबाव के बीच काम करना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें बाजार की जरूरतों से कोई गुरेज नहीं है। रिलीज के एक महीने पहले उन्हें इमरान हाशमी के साथ एक गाने की शूटिंग करनी पड़ी है। फिल्म में इसकी जरूरत नहीं थी, फिर भी मार्केटिंग टीम की सलाह पर उन्होंने सूफियाना अंदाज का यह गीत इमरान हाशमी के प्रशंसकों और दर्शकों के लिए रखा। वे कहते हैं, ‘यह गाना मेरी फिल्म के कथ्य को प्रभावित नहीं करेगा और बाजार की जरूरत भी पूरी हो जाएगी।’
‘शांघाई’ में अभय देओल और इमरान हाशमी का साथ आना रोचक है। दोनों के बीच बमुश्किल चार सीन होंगे, लेकिन उनकी मौजूदगी अलग-अलग समूहों के दर्शकों को फिल्म से जोड़ेगी। दिबाकर कहते हैं, ‘फिल्म में जोगिन्दर परमार के किरदार के लिए उनसे बेहतर एक्टर नहीं हो सकता था। हर छोटे शहर में दो-चार ऐसे शख्य होते हैं। यह किरदार इमरान हाशमी की इमेज के साथ मैच करता है और फिल्म के लिए बिल्कुल उचित है।’ दिबाकर की बातचीत से पता चलता है कि पॉलिटिकल थ्रिलर के तौर पर बनी उनकी ‘शांघाई’ में आम दर्शकों के मनोरंजन का पूरा ख्याल रखा गया है। ‘जिंदगी का रियल ड्रामा किसी फैंटेसी से अधिक इंगेजिंग होता है’, कहते हैं दिबाकर बनर्जी। दिबाकर बनर्जी ने इस बार एक अलग लेवल पर ड्रामा रचा है।
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